अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 107/ मन्त्र 1
अव॑ दि॒वस्ता॑रयन्ति स॒प्त सूर्य॑स्य र॒श्मयः॑। आपः॑ समु॒द्रिया॒ धारा॒स्तास्ते॑ श॒ल्यम॑सिस्रसन् ॥
स्वर सहित पद पाठअव॑ । दि॒व: । ता॒र॒य॒न्ति॒ । स॒प्त । सूर्य॑स्य । र॒श्मय॑: । आप॑: । स॒मु॒द्रिया॑: । धारा॑: । ता: । ते॒ । श॒ल्यम् । अ॒सि॒स्र॒स॒न् ॥११२.१॥
स्वर रहित मन्त्र
अव दिवस्तारयन्ति सप्त सूर्यस्य रश्मयः। आपः समुद्रिया धारास्तास्ते शल्यमसिस्रसन् ॥
स्वर रहित पद पाठअव । दिव: । तारयन्ति । सप्त । सूर्यस्य । रश्मय: । आप: । समुद्रिया: । धारा: । ता: । ते । शल्यम् । असिस्रसन् ॥११२.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परस्पर दुःख नाश का उपदेश।
पदार्थ
(सूर्यस्य) सूर्य की (सप्त) सात [वा नित्य मिली हुई] (रश्मयः) किरण (दिवः) आकाश से (समुद्रियाः) अन्तरिक्ष में रहनेवाले (धाराः) धारारूप (आपः) जलों को (अव तारयन्ति) उतारती हैं, (ताः) उन्होंने (ते) तेरी (शल्यम्) कील [क्लेश] को (असिस्रसन्) बहा दिया है ॥१॥
भावार्थ
जैसे सूर्य की किरणें जल बरसा कर दुर्भिक्ष आदि पीड़ायें दूर करती हैं, वैसे ही मनुष्य परस्पर दुःख नाश करें ॥१॥
टिप्पणी
१−(दिवः) आकाशात् (अवतारयन्ति) अवपातयन्ति (सप्त) अ० ४।६।२। सप्तसंख्याकाः। समवेताः (सूर्यस्य) आदित्यस्य (रश्मयः) व्यापकाः किरणाः (आपः) द्वितीयार्थे प्रथमा। अपः। जलानि (समुद्रियाः) अ० ७।७।१। अन्तरिक्षे भवाः (धाराः) प्रवाहरूपाः (ताः) (आपः) (ते) तव (शल्यम्) अ० २।३०।३। वाणाग्रभागम्। क्लेशमित्यर्थः। (असिस्रसन्) स्रंसु गतौ, ण्यन्ताल्लुङि चङि। अनिदितां हल० पा० ६।४।२४। उपधानकारलोपः। सन्वल्लघुनि०। पा० ७।४।९३। इति सन्वद्भावात्। सन्यतः। पा० ७।४।७९। अभ्यासस्य इत्वम्। निवारितवत्यः ॥
विषय
सूर्यस्य सप्त रश्मयः
पदार्थ
१. एक ही सूर्य ['कश्यप'-पश्यक-सदा सबको देखनेवाला-प्रकाशित करनेवाला] है, वह "कश्यप' है। उसके अंशभूत सात सूर्य उसकी सात प्रकार की किरणें ही हैं [आरोगः, भ्राजः, पटरः, पतङ्गः, स्वर्णरः, ज्योतिषीमान्, विभास:]। ये (सूर्यस्य सप्त रश्मयः) = सर्य की सात किरणें परस्पर समेवत [मिली हुई] किरणे, (समुद्रियाः) = समुद्र से वाष्पीभूत होकर ऊपर उठे हुए तथा मेघरूप में परिणत हुए-हुए, (आप:) = जलों को (दिवः अवतारयन्ति) = युलोक से नीचे उतारती हैं, अर्थात् उन जलों का ये किरणें प्रवर्षण करनेवाली होती हैं। २. (ता:) = ये (धारा:) = धारारूप से गिरने वाले जल अथवा धारण करनेवाले जल (ते शल्यम्) = तेरे पीडाकारी कासश्लेष्मादि रोग को (असि स्त्रसन्) = [संसयन्तु विनाशयन्तु] विनष्ट करें अथवा अन्नोत्पादन द्वारा दुर्भिक्ष के कष्ट को दूर करें।
भावार्थ
सूर्य-किरणें समुद्-जलों को वाष्मीभूत करके ऊपर ले-जाती हैं। वहाँ से वे उन्हें इस पृथिवी पर बरसाती हुई हमारे रोगों व दुर्भिक्षजनित कष्टों को दूर करती है।
भाषार्थ
(सूर्यस्य) सूर्य की (सप्त रश्मयः) सात रश्मियां (दिवः) द्युलोक से, (अवतारयन्ति) नीचे की ओर उतारती हैं, [जल] (आपः) जल जो कि (समुद्रियाः धाराः) अन्तरिक्ष से धारा रूप में [बरसते हैं], (ताः) वे जल (ते) तेरी (शल्यम्) रोगजन्य पीड़ा को (असिस्रसन्) दूर करें।
टिप्पणी
[सूर्य की शुभ्र-रश्मि सात रश्मियों का समूह है। यह शुभ्ररश्मि सात रश्मियों में विभक्त हो जाती है। वर्षाऋतु में इन्द्रधनुष के रूप में ये सात रश्मियां प्रकट होती हैं। उस समय अन्तरिक्ष से धारारूप में प्राप्त वर्षा जल रोगजन्य पीड़ा को दूर करता है। समुद्रः अन्तरिक्षनाम (निघं० १।३) तथा (निरुक्त २।१०)। असिस्रसन्= स्रंसु अवस्रंसने (भ्वादिः); लुङि चङ् सन्वद्भावात् “सन्यतः" इति (अष्टा० ७।४।७९) द्वारा अभ्यास को इत्त्व (सायण)]
विषय
सूर्य की किरणों का कार्य।
भावार्थ
(दिवः) द्योतमान प्रकाशस्वरूप (सूर्यस्य) सूर्य के (सप्त) सात प्रकार के (रश्मयः) किरण (समुद्रियाः) समुद्र के या अन्तरिक्ष या मेघ के (आपः) जलों को (धाराः) धारारूप में (अव तारयन्ति) नीचे भूमि पर लाते हैं। (ताः) वे धारायें हे पुरुष ! (ते) तेरे (शल्यं) कष्टों का (असिस्रसन्) नाश करें। समुद्र का जल सूर्य की किरणों से मेघ रूप होकर जल रूप से बरसता है उससे समस्त प्राणी अन्न प्राप्त कर सुखी होते हैं और कष्टों को भुला देते हैं।
टिप्पणी
त्वमन्तरिक्षे चरसि सूर्यस्त्वं ज्योतिषां पतिः ॥ ९॥ यदा त्वमभिवर्षस्यथेमाः प्राण ते प्रजाः। आनन्दरूपास्तिष्ठन्ति कामायान्नं भविष्यतीति ॥ १०॥ प्रश्नोप० २। १०॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृगुर्ऋषिः। सूर्य आपश्च देवताः। अनुष्टुप् छन्दः। एकर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Showers and the Sun
Meaning
Seven rays of the sun bring down the waters from space and the sky, and those showers of rain, O man, from the sky wash away your pain of want and famine.
Subject
Suryah - Apah also
Translation
Seven rays of the Sun make the waters of the ocean to descend down in streams from the sky. May those (waters) loosen the iron-headed Aapa (lodged in your body) and remove it.
Comments / Notes
MANTRA NO 7.112.1AS PER THE BOOK
Translation
The seven beams of the Sun bring the atmospheric waters downward from the sky. Let these streams drop away the sting that pained you, O man!
Translation
The seven bright beams of the Sun bring the streams of water downward from the sky, these streams remove thy misery.
Footnote
Sun sends down rain through its rays, wherewith crops ripen, more food is produced, which feeds men and keeps them free from disease.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(दिवः) आकाशात् (अवतारयन्ति) अवपातयन्ति (सप्त) अ० ४।६।२। सप्तसंख्याकाः। समवेताः (सूर्यस्य) आदित्यस्य (रश्मयः) व्यापकाः किरणाः (आपः) द्वितीयार्थे प्रथमा। अपः। जलानि (समुद्रियाः) अ० ७।७।१। अन्तरिक्षे भवाः (धाराः) प्रवाहरूपाः (ताः) (आपः) (ते) तव (शल्यम्) अ० २।३०।३। वाणाग्रभागम्। क्लेशमित्यर्थः। (असिस्रसन्) स्रंसु गतौ, ण्यन्ताल्लुङि चङि। अनिदितां हल० पा० ६।४।२४। उपधानकारलोपः। सन्वल्लघुनि०। पा० ७।४।९३। इति सन्वद्भावात्। सन्यतः। पा० ७।४।७९। अभ्यासस्य इत्वम्। निवारितवत्यः ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal