अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 114/ मन्त्र 1
ऋषिः - भार्गवः
देवता - अग्नीषोमौ
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
1
आ ते॑ ददे व॒क्षणा॑भ्य॒ आ ते॒ऽहं हृद॑याद्ददे। आ ते॒ मुख॑स्य॒ सङ्का॑शा॒त्सर्वं॑ ते॒ वर्च॒ आ द॑दे ॥
स्वर सहित पद पाठआ । ते॒ । द॒दे॒। व॒क्षणा॑भ्य: । आ । ते॒ । अ॒हम् । हृद॑यात् । द॒दे॒ । आ । ते॒ । मुख॑स्य । सम्ऽका॑शात् । सर्व॑म् । ते॒ । वर्च॑: । आ । द॒दे॒ ॥११९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
आ ते ददे वक्षणाभ्य आ तेऽहं हृदयाद्ददे। आ ते मुखस्य सङ्काशात्सर्वं ते वर्च आ ददे ॥
स्वर रहित पद पाठआ । ते । ददे। वक्षणाभ्य: । आ । ते । अहम् । हृदयात् । ददे । आ । ते । मुखस्य । सम्ऽकाशात् । सर्वम् । ते । वर्च: । आ । ददे ॥११९.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राक्षसों के नाश का उपदेश।
पदार्थ
[हे शत्रु !] (अहम्) मैंने (ते) तेरी (वक्षणाभ्यः) छाती के अवयवों से [बल को] (आ ददे) ले लिया है, (ते) तेरे (हृदयात्) हृदय से (आ ददे) ले लिया है। (आ) और (ते) तेरे (मुखस्य) मुख के (संकाशात्) आकार से (ते) तेरे (सर्वम्) सब (वर्चः) ज्योति वा बल को (आ ददे) ले लिया है ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य अधार्मिक दोषों और शत्रुओं को नाश करें ॥१॥
टिप्पणी
१−(ते) तव (आ ददे) लिटि रूपम्। गृहीतवानस्मि (वक्षणाभ्यः) अ० २।५।५। वक्ष रोधे-युच्। टाप्। वक्षःस्थलेभ्यः (ते) (अहम्) (हृदयात्) (आ ददे) (आ) चार्थे (ते) (मुखस्य) (संकाशात्) आकारात् (सर्वम्) (ते) तव (वर्चः) तेजो बलं वा (आ ददे) ॥
विषय
[अग्निषोमौ] शत्रु-निराकरण
पदार्थ
१. राष्ट्र का संचालक [सभापति] 'अग्नि' है। राष्ट्र में न्याय-व्यवस्था का अध्यक्ष [मुख्य न्यायाधीश] 'सोम' है। अग्नि और सोम इन दोनों को मिलकर राष्ट्र का सुप्रबन्ध करना होता है। राजा राष्ट्र के शत्रु को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि मैं (ते वक्षणाभ्य:) = तेरी छाती के अवयवों से बल को (आददे) = छीन लेता हूँ। (अहम्) = मैं (ते हृदयात्) = तेरे हृदय से बल का (आददे) = अपहरण करता हूँ। २. (ते मुखस्य संकाशात्) = तेरे मुख की समीपता से [संकाश=nearmess](ते सर्व वर्चः आददे) = तेरे सारे तेज को छीन लेता हूँ, तुझे निस्तेज कर देता हूँ। [संकाश Appearance] तेरे चेहरे को निस्तेज कर देता हैं।
भावार्थ
अग्नि और सोम दोनों को मिलकर राष्ट्र के शत्रु को उचित दण्ड-व्यवस्था द्वारा निस्तेज करना चाहिए।
भाषार्थ
[हे शत्रु !] (ते) तेरे (वक्षणाभ्यः) वक्षःस्थल के अवयवों से [वर्चः] दीप्ति का (आ ददे) मैं अपहरण करता हूं, (ते) तेरे (हृदयात्) हृदय से [दीप्ति का] (अहम्) मैं (आ ददे) अपहरण करता हूं, (ते) तेरी (मुखस्य) मुख की (संकाशात्) दीप्ति से [तेज का] (आ) मैं अपहरण करता हूं, (ते) तेरी (सर्वम्) सब (वर्चः) दीप्ति का (आददे) मैं अपहरण करता हूं।
टिप्पणी
[शत्रु जब परास्त हो गया तब मानो उसकी छाती का बल, हृदय की भावनाएं, तथा मुख का तेज आदि सब हर लिये गए। संकाशात्= सम् + काशृ दीप्तौ]।
इंग्लिश (4)
Subject
Towards Self-integration
Meaning
O Desire insatiable, attachment and greed, I take away your force and agitation from the mind and its fluctuations and from the heart. I take away your flutters of anxiety from over and around your complexion. Thus, I take away and subdue your entire force from the personality (and restore the mind and soul to peace).
Subject
Agni - Soma (Pair)
Translation
I take away from your inner cavities; I take away from your heart; I take away from the look of your face all lustre and strength that you have.
Comments / Notes
MANTRA NO 7.119.1AS PER THE BOOK
Translation
O diseased man! I extract the strength and vigor of disease from your sides, I extract it from your heart, I extract it from your face and thus I extract all strength and splendor of your disease from you.
Translation
O foe, I have extracted from thy sides, I have extracted from thy heart, I have extracted from thy face the strength and splendor that were thine.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(ते) तव (आ ददे) लिटि रूपम्। गृहीतवानस्मि (वक्षणाभ्यः) अ० २।५।५। वक्ष रोधे-युच्। टाप्। वक्षःस्थलेभ्यः (ते) (अहम्) (हृदयात्) (आ ददे) (आ) चार्थे (ते) (मुखस्य) (संकाशात्) आकारात् (सर्वम्) (ते) तव (वर्चः) तेजो बलं वा (आ ददे) ॥
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