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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 18 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 18/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अथर्वा देवता - पर्जन्यः, पृथिवी छन्दः - चतुष्पदा भुरिगुष्णिक् सूक्तम् - वृष्टि सूक्त
    4

    प्र न॑भस्व पृथिवि भि॒न्द्धी॒दं दि॒व्यं नभः॑। उ॒द्नो दि॒व्यस्य॑ नो धात॒रीशा॑नो॒ वि ष्या॒ दृति॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । न॒भ॒स्व॒ । पृ॒थि॒व‍ि॒ । भि॒न्ध्दि । इ॒दम् । दि॒व्यम् ।नभ॑: । उ॒द्ग: । दि॒व्यस्य॑ । न॒:। धा॒त॒: । ईशा॑न: । वि । स्य॒ । दृति॑म् ॥१९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र नभस्व पृथिवि भिन्द्धीदं दिव्यं नभः। उद्नो दिव्यस्य नो धातरीशानो वि ष्या दृतिम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । नभस्व । पृथिव‍ि । भिन्ध्दि । इदम् । दिव्यम् ।नभ: । उद्ग: । दिव्यस्य । न:। धात: । ईशान: । वि । स्य । दृतिम् ॥१९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 18; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    दूरदर्शी होने का उपदेश।

    पदार्थ

    (पृथिवि) हे अन्तरिक्ष ! [वायु] (इदम्) इस (दिव्यम्) आकाश में छाये हुए (नभः) जल को (प्र) उत्तम रीति से (नभस्व) गिरा और (भिन्द्धि) छिन्न-भिन्न कर दे [फैला दे]। (धातः) हे पोषक, सूर्य ! (ईशानः) समर्थ तू (नः) हमारे लिये (दिव्यस्य) दिव्य [उत्तम गुणवाले] (उद्नः) जलके (दृतिम्) पात्र [मेघ] को (वि ष्य) खोल दे ॥१॥

    भावार्थ

    जैसे अन्तरिक्षस्थ वायु और सूर्य के संयोग-वियोग सामर्थ्य से आकाश से जल बरस कर संसार का उपकार करता है, वैसे ही विद्वान् लोग विद्या आदि शुभ गुणों की बरसा से उपकार करें ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(प्र) प्रकर्षेण (नभस्व) नभते, वधकर्मा-निघ० २।१९। पातय (पृथिवि) अन्तरिक्ष-निघ० १।३। वायो इत्यर्थः (भिन्द्धि) छिन्नं भिन्नं कुरु (इदम्) (दिव्यम्) दिव्याकाशे भवम् (नभः) उदकम्-निघ० ११।१२। (उद्नः) पद्दन्नोमास्हृन्निश०। पा० ६।१।६३। उदकस्य, उदन्। उदकस्य (दिव्यस्य) उत्तमगुणस्य (नः) अस्मभ्यम् (धातः) हे पोषक सूर्य (ईशानः) समर्थः (वि ष्य) षो अन्तकर्मणि। विमुञ्च (दृतिम्) दृणातेर्ह्रस्वः। उ० ४।१८४। इति दॄ विदारणे-ति। चर्ममयं जलपात्रम् ॥

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    विषय

    यज्ञमय जीवन व वृष्टि

    पदार्थ

    १. हे (पृथिवि) = भूमे ! तू (प्र नभस्व) = [नभ हिसायाम्] हल आदि साधनों से अच्छी प्रकार खण्डित हो, और हे (धात:) = धारक प्रभो! आप (ईशानः) = सर्वकर्मसामर्थ्यवाले होते हुए (इदं दिव्यं नभ:) = इस अन्तरिक्षस्थ मेघ को (भिन्द्धि) = विदीर्ण कीजिए और (न:) = हमारे पोषण के लिए (दिव्यस्य उद्नः) =  अन्तरिक्षस्थ दिव्यगुणयुक्त जल के (दृतिम्) = बड़े भारी कुप्पेरूप मेष को (विष्य) = नाना दिशाओं से काट डालिए।

    भावार्थ

    पृथिवी पर हम सम्यक् हल आदि चलाएँ और अन्तरिक्ष से सम्यक् वृष्टि होकर यह वृष्टि अन्न का उत्पादन करनेवाली हो। जीवन के यज्ञमय होने पर ऐसा होता ही है।

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    भाषार्थ

    (पृथिवि) हे विस्तृत अन्तरिक्ष ! (प्र नभस्व) तू प्रकर्ष में हिंसित हो जा, और (इदम्) इस (दिव्यम्, नभः) दिव्य मेघ का (भिन्द्धि) भेदन कर (धातः) हे धारण-पोषण करने वाले (ईशानः) अधीश्वर ! तू (दिव्यंस्य उन्दः) दिव्य उदक की (दृतिम्) चमड़े की थैली के सदृश मेघरूपी थैली को (नः) हमारे लिये (आ विज्य) खोल दे।

    टिप्पणी

    [पृथिवि= प्रथ विस्तारे, यथा “प्रथते विस्तीर्णा भवतीति पृथिवी" (उणा० १।१५०); तथा "पृथिवी अन्तरिक्षनाम" (निघं० १।३)। अन्तरिक्ष मेघीय विद्युत् द्वारा हिंसित होता है, ताड़ित होता है— यह कल्पना की गई है। प्रतिक्रिया या बदले में अन्तरिक्ष विद्युत के गृहभूत मेघ का भेदन करता है। इस से दिव्य उदक प्रवाहित होने लगता है जैसे कि चर्म की थैली के फटने पर उस से उदक प्रवाहित होने लगता है। दृतिः= Leather bag (आप्टे)। दिव्यम् = विभवम् । नमस्व= णभ हिंसायाम् (भ्वादिः)]।

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    विषय

    अन्न की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे (पृथिवी) पृथिवी मातः ! तू (प्र नभस्व) खूब अच्छी रीति से हल आदि साधनों से खण्डित की जाये। हे (धातः) ईश्वर ! (ईशानः) तू सामर्थ्यवान् विद्युत् रूप होकर (इदं) इस (दिव्यम्) दिव्य गुणवाले (नभः) मेघ को (भिन्धि) खण्डित कर और (दिव्यस्य) दिव्य (उद्गः) जल के भरे (दृतिम्) बड़े भारी कुप्पे अर्थात् मेघ को (वि स्य) खोल दे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। पृथिवी पर्जन्यश्च देवते। चतुष्पाद् भुरिगुष्णिक्। २ त्रिष्टुप्। द्वयृचं सुक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rain Showers

    Meaning

    Burst open, O regions of the firmament, Prthivi, break this divine cloud, and O Dhata, lord sustainer, ruler of heaven and earth, open the treasure hold of divine waters of rain for us.

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    Subject

    Prthivi, Parajanyah

    Translation

    O earth, become drenched with water. Cleave this cloud of the sky asunder. O sustainer Lord, ruling over all, may you open the leather bag (drti) of celestial water for us.

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.19.1AS PER THE BOOK

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    Translation

    Let this atmospheric air (Prithivi) burst open, let it cleave asunder this celestial cloud, let the sun which is most powerful open the mouth of this celestial water-bag like water-bag.

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    Translation

    O Earth, mayest thou be ploughed thoroughly. O powerful Sun, cleave asunder the celestial cloud, and untie the cloud filled with pure water.

    Footnote

    Earth should be tilled thoroughly. Filled with the rain water, it should produce bumper crop

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(प्र) प्रकर्षेण (नभस्व) नभते, वधकर्मा-निघ० २।१९। पातय (पृथिवि) अन्तरिक्ष-निघ० १।३। वायो इत्यर्थः (भिन्द्धि) छिन्नं भिन्नं कुरु (इदम्) (दिव्यम्) दिव्याकाशे भवम् (नभः) उदकम्-निघ० ११।१२। (उद्नः) पद्दन्नोमास्हृन्निश०। पा० ६।१।६३। उदकस्य, उदन्। उदकस्य (दिव्यस्य) उत्तमगुणस्य (नः) अस्मभ्यम् (धातः) हे पोषक सूर्य (ईशानः) समर्थः (वि ष्य) षो अन्तकर्मणि। विमुञ्च (दृतिम्) दृणातेर्ह्रस्वः। उ० ४।१८४। इति दॄ विदारणे-ति। चर्ममयं जलपात्रम् ॥

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