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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 1
    ऋषिः - यमः देवता - दुःष्वप्ननाशनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दुष्वप्नाशन सूक्त
    1

    दौष्व॑प्न्यं॒ दौर्जी॑वित्यं॒ रक्षो॑ अ॒भ्व॑मरा॒य्यः॑। दु॒र्णाम्नीः॒ सर्वा॑ दु॒र्वाच॒स्ता अ॒स्मन्ना॑शयामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दौ:ऽस्व॑प्न्यम् । दौ:ऽजी॑वित्यम् । रक्ष॑: । अ॒भ्व᳡म् । अ॒रा॒य्य᳡: । दु॒:ऽनाम्नी॑: । सर्वा॑: । दु॒:ऽवाच॑: । ता: । अ॒स्मत् । ना॒श॒या॒म॒सि॒ ॥२४.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दौष्वप्न्यं दौर्जीवित्यं रक्षो अभ्वमराय्यः। दुर्णाम्नीः सर्वा दुर्वाचस्ता अस्मन्नाशयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दौ:ऽस्वप्न्यम् । दौ:ऽजीवित्यम् । रक्ष: । अभ्वम् । अराय्य: । दु:ऽनाम्नी: । सर्वा: । दु:ऽवाच: । ता: । अस्मत् । नाशयामसि ॥२४.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 23; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (दौष्वप्न्यम्) नींद में बेचैनी, (दौर्जीवित्यम्) जीवन का कष्ट, (अभ्वम्) बड़े (रक्षः) राक्षस, (अराय्यः) अनेक अलक्ष्मियों और (दुर्णाम्नीः) दुष्ट नामवाली (दुर्वाचः) कुवाणियों, (ताः सर्वाः) इन सबको (अस्मत्) अपने से (नाशयामसि) हम नाश करें ॥१॥

    भावार्थ

    राजा की सुनीति से प्रजा गण बाहिर-भीतर से निश्चिन्त होकर सुख की नींद सोवें, उद्यमी होकर आनन्द भोगें, चोर डाकू आदिकों से निर्भय रहें, धन की वृद्धि करें और विद्या बल से कलह छोड़कर परस्पर उन्नति करने में लगे रहें ॥१॥ यह मन्त्र आ चुका है-अ० ४।१७।५।

    टिप्पणी

    १-अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० ४।१७।५ ॥

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    विषय

    दौ:ष्वप्न्य

    पदार्थ

    १. अपने जीवन को नियमित करनेवाला 'यम' इस सूक्त का ऋषि है। अथर्व ४.१७.५ पर इस मन्त्र की व्याख्या हो चुकी है। नियमित जीवन से दौ:ष्वप्न्य आदि को दूर करके जीवन को उन्नत करता हुआ यह 'ब्रह्मा' बनता है|

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    भाषार्थ

    (दौःष्वप्न्यम्) दुःस्वप्न और दुःस्वप्न की बेचैनी, (दोर्जीवित्यम्) दुराचार का जीवन और उससे प्राप्त कष्ट, (रक्षः) राक्षसी भाव (अभ्वम्) योगज विभूति का अभाव (अराय्यः) अदान अर्थात् कंजूसी की भावनाएं (दुर्णाम्नीः) बुरे नामों वाली व्याधियां, (दुर्वाचः) दुर्वचन, (ताः सर्वाः) इन सब को (अस्मत्) अपने से (नाशयामसि) हम नष्ट करते हैं, दूर करते हैं।

    टिप्पणी

    [मन्त्र (२३।१,२) में परमेश्वर की स्तुति और तद्वारा आध्यात्मिक उषाओं का वर्णन हुआ है। इस योग विभूति की प्राप्ति होने पर मन्त्र सूक्त (२३) की भावनाएं चरितार्थ होती हैं। अभ्वम्= अ + भू + प्रथमैकवचन "इको यणचि” द्वारा उकार को वकार। अराय्य = अ + रा (दाने) + युक् + ङी + प्रथमा बहुवचन। दुर्वाचः- असत्य भाषण, कटुवचन, परकीय निन्दा वचन आदि]।

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    विषय

    बुरे विचार और बुरे आचार का त्याग।

    भावार्थ

    (दौः-स्वप्न्यम्) बुरे स्वप्नों (दौः-जीवित्यं) दुःख से जीवन के बीतने, जीवन में बुरे भाव, बुरे आचार और हीनता के होने और (रक्षः) धर्म कार्यों में विघ्नों के होने तथा (अभ्वम्) जीवन काल में सामर्थ्य के न रहने और (अराय्यः) समृद्धि, सम्पत्ति और उत्तम गुणों रहित दुष्टवृत्तियों, (दुः-नाम्नीः) बुरे व निन्दित नाम वाली और (दुः-वाचः) दुष्ट वाणी बोलने वाली, सब हीन मानस वृत्तियों को हम (अस्मत्) अपने से (नाशयामसि) दूर करें। इसकी व्याख्या (४/१७/५) में भी कर आये हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    यम ऋषिः। दुःस्वप्ननाशनो देवता। अनुष्टुप्। एकर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    No Negativity

    Meaning

    Evil dreams, desecration of life, violence, adversity, malignity, dishonour, and all evil tongues, these we eliminate from ourselves.

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    Subject

    Duh - svapna - nasanam - Dispelling evil dreams

    Translation

    Bad dreams, bad living, injurious germs, poverty and miseries, ill-named (durnamni) ill-tongued (durvacas) all of them we drive away from us.

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.24.1AS PER THE BOOK

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    Translation

    We drive a far from us the tendencies of bad-dream, disappointment in life, evil deed, cowardliness, malignity’s, despicable ideas and all the Wicked tongues.

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    Translation

    We drive away from us, the fearful dream, miserable life, misfortune of the violent, Poverty, suffering of distress, abusive language, and every kind of evil utterance.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १-अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० ४।१७।५ ॥

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