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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 26 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 1
    ऋषिः - मेधातिथिः देवता - विष्णुः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - विष्णु सूक्त
    1

    विष्णो॒र्नु कं॒ प्रा वो॑चं वी॒र्याणि॒ यः पार्थि॑वानि विम॒मे रजां॑सि। यो अस्क॑भाय॒दुत्त॑रं स॒धस्थं॑ विचक्रमा॒णस्त्रे॒धोरु॑गा॒यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विष्णो॑: । नु । क॒म् । प्र । वो॒च॒म् । वी॒र्या᳡णि । य: । पार्थि॑वानि । वि॒ऽम॒मे । रजां॑सि । य: । अस्क॑भायत् । उत्ऽत॑रम् । स॒धऽस्थ॑म् । वि॒ऽच॒क्र॒मा॒ण: । त्रे॒धा । उ॒रु॒ऽगा॒य: ॥२७.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विष्णोर्नु कं प्रा वोचं वीर्याणि यः पार्थिवानि विममे रजांसि। यो अस्कभायदुत्तरं सधस्थं विचक्रमाणस्त्रेधोरुगायः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विष्णो: । नु । कम् । प्र । वोचम् । वीर्याणि । य: । पार्थिवानि । विऽममे । रजांसि । य: । अस्कभायत् । उत्ऽतरम् । सधऽस्थम् । विऽचक्रमाण: । त्रेधा । उरुऽगाय: ॥२७.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 26; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (3)

    विषय

    व्यापक ईश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (विष्णोः) विष्णु व्यापक परमेश्वर के (वीर्याणि) पराक्रमों को (नु) शीघ्र (कम्) सुख से (प्र) अच्छे प्रकार (वोचम्) मैं कहूँ, (यः) जिसने (पार्थिवानि) भूमिस्थ और अन्तरिक्षस्थ (रजांसि) लोकों को (विममे) अनेक प्रकार रचा है, (यः) जिस (उरुगायः) बड़े उपदेशक प्रभु ने (उत्तरम्) सब अवयवों के अन्त (सधस्थम्) साथ में रहनेवाले कारण को (विचक्रमाणः) चलाते हुए (त्रेधा) तीन प्रकार से [उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय रूप से] [उन लोकों को] (अस्कभायत्) थाँभा है ॥१॥

    भावार्थ

    जो परमेश्वर परमाणुओं में संयोग-वियोग शक्ति देकर अनेक लोकों को बनाकर उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय रूप से धारण करता है, उसकी भक्ति सब मनुष्य सदा किया करें ॥१॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है-१।१५४।१। और यजुर्वेद में ५।१८ ॥

    टिप्पणी

    १−(विष्णोः) अ० ३।२०।४। सर्वव्यापकस्य परमेश्वरस्य (नु) शीघ्रम् (कम्) सुखेन (वोचम्) अ० २।५।५। उच्यासम् (वीर्याणि) पराक्रमान् (यः) विष्णुः (पार्थिवानि) पृथिवी, पृथिवीनाम-निघ० १।१। अन्तरिक्षम्-१।३। तत्र विदित इति च। पा० ५।१।४३। इति पृथिवी-अञ्। भूमिस्थानि अन्तरिक्षस्थानि च (विममे) विविधं निर्मितवान् (रजांसि) लोकान् (यः) विष्णुः (अस्कभायत्) अ० ४।१।४। अस्कभ्नात्। स्तम्भितवान् (उत्तरम्) उद्गततरम्। सर्वान्तावयवम् (सधस्थम्) यत् सह तिष्ठति तत्कारणम् (विचक्रमाणः) विपूर्वस्य क्रमतेः कानच्। अन्तर्गतण्यर्थः। विशेषेण चालयन् (त्रेधा) त्रिप्रकारेण, उत्पत्तिस्थितिप्रलयरूपेण (उरुगायः) अ० २।१२।१। बहूनर्थान् वेदद्वारा गायत्युपदिशति यः सः। बहूपदेशकः ॥

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    विषय

    त्रेधा विचक्रमाणः, उरुगाय:

    पदार्थ

    १. मैं (विष्णो:) = उस सर्वव्यापक प्रभु के वीर्याणि वीरतायुक्त कर्मों को (न कम्) = शीघ्र ही (प्रावोचम्) = प्रकर्षेण कहता हूँ। उस विष्णु के (य:) = जिसने इन (पार्थिवानि रजांसि विममे) = पार्थिव लोकों को बनाया है। अथवा इन पार्थिव लोकों में होनेवाली अग्नि, विद्युत, सूर्यात्मक ज्योतियों को [रजासि] बनाया है। २. (य:) = जिस विष्णु ने (उत्तरम्) = उत्कृष्टतर (सधस्थम्) = [सह तिष्ठन्त्यस्मिन् देवा:] प्रभु के साथ मिलकर बैठने के आधारभूत इस स्वर्ग को (अस्कभायत्) = थामा है। वे विष्णु (त्रेधा) = तीन प्रकार से-पृथिवी, अन्तरिक्ष वद्युलोक में (विचक्रमाण:) = विशिष्टरूप से गति करते हुए (उरुगाय:) = खूब ही गायन के योग्य हैं, अथवा सर्वत्र गमनवाले हैं।

    भावार्थ

    प्रभु के ही सब बीरतापूर्ण कर्म हैं, प्रभु ही सब अग्नि, विद्युत, सूर्यरूप ज्योतियों को निर्मित करते हैं। स्वर्ग को भी वे ही थामनेवाले हैं। पृथिवी, अन्तरिक्ष व धुलोक में गति करते हुए वे प्रभु गायन के योग्य हैं।

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    भाषार्थ

    (विष्णोः) व्यापक परमेश्वर के (नु कम्) (वीर्याणि) बलों का (प्र अवोचम्) मैंने प्रवचन किया है, (यः) जिसने कि (पार्थिवानि) पृथिवी और अन्तरिक्ष के (रजांसि) लोकों का (विममे) निर्माण किया है तथा (यः) जिस (उरुगायः) महा स्तुति वाले ने (त्रेधा विचक्रमाणः) तीन प्रकार से पराक्रम करते हुए (उत्तरम्) ऊपर के (सधस्थम्) सह स्थान को (अस्कभायत्) थामा है।

    टिप्पणी

    [पृथिवी= भूलोक तथा अन्तरिक्ष (निघं० १।१; तथा निघं० १।३)। सधस्थम्= नक्षत्रों और तारागणों की सहस्थिति का स्थान द्युलोक। तीन प्रकार से= तीन लोकों में)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Omnipresent Vishnu

    Meaning

    Let us sing and celebrate the great divine exploits of Vishnu who creates all regions of the natural world of existence, who sustains the higher regions of heaven, and who, most adored and adorable, sustains the universe three ways: creating, maintaining and withdrawing.

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    Subject

    Visnuh

    Translation

    Earnestly I glorify the mighty deeds of the all-pervading God, who has made the terrestrial bodies, who is highly glorified and who upholds the extensive cosmos, possessed of three types of motions of translation, of rotation and the vibration. (Also Rg. X.154.1) .

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.27.1AS PER THE BOOK

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    Translation

    I, the cosmologist gladly describe the mighty deeds of All-pervading Divinity who created the material worlds and praise worthy who is supporting the highest heavenly region pervading in the three plans of the universe.

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    Translation

    I will declare the mighty deeds of God, of Him Who hath measured out the earthly regions, Who propped the highest Heaven full of stars, Who pervades the Earth, Atmosphere and Sky, and is sung by sages.

    Footnote

    See Yajur, 5-18; Rig, 1-154-1.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(विष्णोः) अ० ३।२०।४। सर्वव्यापकस्य परमेश्वरस्य (नु) शीघ्रम् (कम्) सुखेन (वोचम्) अ० २।५।५। उच्यासम् (वीर्याणि) पराक्रमान् (यः) विष्णुः (पार्थिवानि) पृथिवी, पृथिवीनाम-निघ० १।१। अन्तरिक्षम्-१।३। तत्र विदित इति च। पा० ५।१।४३। इति पृथिवी-अञ्। भूमिस्थानि अन्तरिक्षस्थानि च (विममे) विविधं निर्मितवान् (रजांसि) लोकान् (यः) विष्णुः (अस्कभायत्) अ० ४।१।४। अस्कभ्नात्। स्तम्भितवान् (उत्तरम्) उद्गततरम्। सर्वान्तावयवम् (सधस्थम्) यत् सह तिष्ठति तत्कारणम् (विचक्रमाणः) विपूर्वस्य क्रमतेः कानच्। अन्तर्गतण्यर्थः। विशेषेण चालयन् (त्रेधा) त्रिप्रकारेण, उत्पत्तिस्थितिप्रलयरूपेण (उरुगायः) अ० २।१२।१। बहूनर्थान् वेदद्वारा गायत्युपदिशति यः सः। बहूपदेशकः ॥

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