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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 28 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 28/ मन्त्र 1
    ऋषिः - मेधातिथिः देवता - वेदः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - स्वस्ति सूक्त
    1

    वे॒दः स्व॒स्तिर्द्रु॑घ॒णः स्व॒स्तिः प॑र॒शुर्वेदिः॑ पर॒शुर्नः॑ स्व॒स्ति। ह॑वि॒ष्कृतो॑ यज्ञिया य॒ज्ञका॑मास्ते दे॒वासो॑ य॒ज्ञमि॒मं जु॑षन्ताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वे॒द: । स्व॒स्ति: । द्रु॒ऽघ॒न: । स्व॒स्ति: । प॒र॒शु: । वेदि॑: । प॒र॒शु: । न॒: । स्व॒स्ति । ह॒वि॒:ऽकृत॑: । य॒ज्ञिया॑: । य॒ज्ञऽका॑मा: । ते । दे॒वास॑: । य॒ज्ञम् । इ॒मम् । जु॒ष॒न्ता॒म् ॥२९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वेदः स्वस्तिर्द्रुघणः स्वस्तिः परशुर्वेदिः परशुर्नः स्वस्ति। हविष्कृतो यज्ञिया यज्ञकामास्ते देवासो यज्ञमिमं जुषन्ताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वेद: । स्वस्ति: । द्रुऽघन: । स्वस्ति: । परशु: । वेदि: । परशु: । न: । स्वस्ति । हवि:ऽकृत: । यज्ञिया: । यज्ञऽकामा: । ते । देवास: । यज्ञम् । इमम् । जुषन्ताम् ॥२९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 28; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    यज्ञ करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (वेदः) वेद [ईश्वरीय ज्ञान] (स्वस्तिः) मङ्गलकारी हो, (द्रुघणः) मुद्गर [मोगरी] (स्वस्तिः) मङ्गलकारी हो, (वेदिः) वेदी [यज्ञभूमि, हवनकुण्ड आदि], (परशुः) फरसा [वा गड़ासी] और (परशुः) कुल्हाड़ी (नः) हमें (स्वस्ति) मङ्गलकारी हो। (हविष्कृतः) देने लेने योग्य व्यवहार करनेवाले, (यज्ञियाः) पूजनीय, (यज्ञकामाः) मिलाप चाहनेवाले (ते) वे (देवासः) विद्वान् लोग (इमम्) इस (यज्ञम्) यज्ञ [पूजनीय कर्म को] (जुषन्ताम्) स्वीकार करें ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य वेदज्ञान द्वारा सब उचित सामग्री लेकर विद्वानों के सत्सङ्ग से अग्नि में हवन तथा शिल्प सम्बन्धी संयोग-वियोग आदि क्रिया करके आनन्दित रहें ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(वेदः) हलश्च। पा० ३।३।१२१। इति विद ज्ञाने, विद सत्तायाम्, विद्लृ लाभे, विद विचारणे-घञ्। संहितात्मकः परमेश्वरोक्तो ग्रन्थभेदः (स्वस्तिः) अ० १।३०।२। मङ्गलकरः (द्रुघणः) करणेऽयोविद्रुषु। पा० ३।३।८२। इति द्रु+हन्-अप्, घनादेशश्च। पूर्वपदात्संज्ञायामगः। पा० ८।४।३। इति णत्वम्। द्रुमयः काष्ठमयो घनः। मुद्गरः (स्वस्तिः) (परशुः) अ० ३।१९।४। तृणादिच्छेदनी (वेदिः) हृपिषिरुहिवृतिविदि–०। उ० ४।११९। इति विद ज्ञाने-इन्। यज्ञभूमिः। हवनकुण्डादिः। पण्डितः (परशुः) वृक्षच्छेदनसाधनं कुठारः (नः) अस्मभ्यम् (स्वस्ति) सुखकरः (हविष्कृतः) दातव्यग्राह्यव्यवहारकर्तारः (यज्ञियाः) आदरार्हाः (यज्ञकामाः) संगतिं कामयमानाः (ते) प्रसिद्धाः (देवासः) व्यवहारिणो विद्वांसः (यज्ञम्) पूजनीयं व्यवहारम् (इमम्) (जुषन्ताम्) सेवन्ताम् ॥

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    विषय

    वेद यज्ञ

    पदार्थ

    १. (वेदः स्वस्ति:) = यज्ञों में उच्चरित होता हुआ यह वेद हमारे लिए कल्याणकर हो। (द्रुघणः स्वस्ति:) = [द्रुमः हन्यते अनेन] वृक्ष आदि को काटनेवाला आरा कल्याणकर हो। (परशुः) = तृणादि काटनेवाला दरौंती कल्याणकर हो। (वेदिः) = हवि रखने की आधारभूत वेदि कल्याणकर हो। (परशुः) = लकड़ियों को काटनेवाली कुल्हाड़ी (नः स्वस्ति) = हमारे लिए कल्याणकर हो। २. (यज्ञिया:) = पूजनीय (यज्ञकामा:) = यज्ञों की कामनावाले (ते देवासः) = वे देव (हविः कत:) = हवि के सम्पादक मेरे (इमं यज्ञम्) = इस यज्ञ को (जुषन्ताम्) = प्रीतिपूर्वक सेवन करनेवाले हों।

    भावार्थ

    वेद तथा यज्ञ के साधनभूत सब पदार्थ हमारा कल्याण करनेवाले हों। सब पूण्यदेव हवि के सम्पादक मेरे इस यज्ञ का प्रीतिपूर्वक सेवन करें।

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    भाषार्थ

    (वेदः स्वस्तिः) वेद कल्याणकर हो, (द्रुघणः) द्रुम अर्थात् वृक्ष काटने वाला (परशुः) कुल्हाड़ा (स्वस्तिः) कल्याणकर हो, (वेदिः) यज्ञभूमि, (परशुः) तथा कुशा को काटने वाला फरसा (नः) हमें (स्वस्ति) कल्याण कर हो, (हविष्कृतः) हवि को तैयार करने वाले ऋत्विक, (यज्ञिया) यज्ञ के योग्य यजमान, (यज्ञकामाः) तथा यज्ञ की कामना वाले अन्य लोग (ते) वे सब (देवासः) देव कोटि के विद्वान्, (इमम यज्ञम्) इस यज्ञ का (जुषन्ताम्) प्रीतिपूर्वक सेवन करें।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में यज्ञ के उपकरणों, यज्ञ के अधिकारियों, ऋत्विजों, तथा अन्य उपस्थित विद्वानों का वर्णन हुआ है।]

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    विषय

    कुशल की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (वेदः) वेद, पुरुष और दर्भमुष्टि (स्वस्तिः) हमें शुभ कल्याणकारी हो, (द्रुघणः) जिस पर बढ़ई लकड़ी रख कर काटता है वह लकड़ी का मुड भी (स्वस्ति) शुभकारी हो। (परशुः) घास काटने की दात्री ये पदार्थ भी (नः) हमें (स्वस्ति) शुभ और सुखकारी हों। (हविः-कृतः) अन्न, हवि को तैयार करने वाले (यज्ञकामाः) यज्ञ के अभिलाषी (यज्ञियाः) यज्ञ करने में कुशल (देवासः) विद्वान् लोग आकर (इमं यज्ञं जुषन्ताम्) इस यज्ञ का प्रेमपूर्वक सेवन करें। अध्यात्म में—वेद = पुरुष। द्रुघण = प्राण, परशु = ज्ञानवज्र, वेदि = चितिशक्ति। यज्ञिय = इन्द्रियें। यज्ञ=आत्मा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मेधातिथिर्ऋषिः। वेदादयो देवताः। त्रिष्टुप् एकर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prayer for Svasti

    Meaning

    May the Veda be the harbinger of the good for us in life. May the grinder be good and used for the good purpose. May the knife be good and be used for positive purpose. May the yajna altar be good and bring us good fortune. May our axe be good and be used only for good and peaceful purposes. May divine sages and brilliant scholars, lovers of yajnic company and social creativity, dedicated to yajna and bearing offers of holy materials, love and join this yajna of learning, science and social creativity of universal value.

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    Subject

    Vedah (Broom)

    Translation

    May the grass-broom (veda: used for cleansing the sacrificial place) be nice; may the tree-falling mace (drughnah) be nice; may the sickle (parasu), the altar (vedih) and the hatchet (parasu) be nice to us. May the enlightened ones, who make offerings, who are pious and willing to perform sacrifice, revel in this sacrifice.

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.29.1AS PER THE BOOK

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    Translation

    Let the shoot of Kusha-grass be for our benefit, let the mace be for our advantage, let the Vedi of yajnas bring us prosperity and let the hatchet be for our good in the yajnas, let learned men desiring the accomplishment of yajnas, wedded with the intentions of performing yajnas and engaged in preparing yajna-samagri use to perform this yajna.

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    Translation

    Blest be the Veda May the mace bring a blessing, and may the altar and the hatchet bless us. May the adorable learned persons, lovers of sacrifice, and sacrificers accept this sacrifice (Yajna)!

    Footnote

    The Vedic verses recited at the time of the performance of Havan, the altar in which oblations are put, and the hatchet with which sticks to be put in the altar are cut, should all help the sacrificer at the time of Havan in its successful performance

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(वेदः) हलश्च। पा० ३।३।१२१। इति विद ज्ञाने, विद सत्तायाम्, विद्लृ लाभे, विद विचारणे-घञ्। संहितात्मकः परमेश्वरोक्तो ग्रन्थभेदः (स्वस्तिः) अ० १।३०।२। मङ्गलकरः (द्रुघणः) करणेऽयोविद्रुषु। पा० ३।३।८२। इति द्रु+हन्-अप्, घनादेशश्च। पूर्वपदात्संज्ञायामगः। पा० ८।४।३। इति णत्वम्। द्रुमयः काष्ठमयो घनः। मुद्गरः (स्वस्तिः) (परशुः) अ० ३।१९।४। तृणादिच्छेदनी (वेदिः) हृपिषिरुहिवृतिविदि–०। उ० ४।११९। इति विद ज्ञाने-इन्। यज्ञभूमिः। हवनकुण्डादिः। पण्डितः (परशुः) वृक्षच्छेदनसाधनं कुठारः (नः) अस्मभ्यम् (स्वस्ति) सुखकरः (हविष्कृतः) दातव्यग्राह्यव्यवहारकर्तारः (यज्ञियाः) आदरार्हाः (यज्ञकामाः) संगतिं कामयमानाः (ते) प्रसिद्धाः (देवासः) व्यवहारिणो विद्वांसः (यज्ञम्) पूजनीयं व्यवहारम् (इमम्) (जुषन्ताम्) सेवन्ताम् ॥

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