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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 49 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 49/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अथर्वा देवता - देवपत्नी छन्दः - आर्षी जगती सूक्तम् - देवपत्नी सूक्त
    1

    दे॒वानां॒ पत्नी॑रुश॒तीर॑वन्तु नः॒ प्राव॑न्तु नस्तु॒जये॒ वाज॑सातये। याः पार्थि॑वासो॒ या अ॒पामपि॑ व्र॒ते ता नो॑ देवीः सु॒हवाः॒ शर्म॑ यच्छन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वाना॑म् । पत्नी॑: । उ॒श॒ती: । अ॒व॒न्तु॒ । न॒: । प्र । अ॒व॒न्तु॒ । न॒: । तु॒जये॑ । वाज॑ऽसातये । या: । पार्थि॑वास: । या: । अ॒पाम् । अपि॑ । व्र॒ते । ता: । न॒: । दे॒वी॒: । सु॒ऽहवा॑: । शर्म॑ । य॒च्छ॒न्तु॒ ॥५१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवानां पत्नीरुशतीरवन्तु नः प्रावन्तु नस्तुजये वाजसातये। याः पार्थिवासो या अपामपि व्रते ता नो देवीः सुहवाः शर्म यच्छन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवानाम् । पत्नी: । उशती: । अवन्तु । न: । प्र । अवन्तु । न: । तुजये । वाजऽसातये । या: । पार्थिवास: । या: । अपाम् । अपि । व्रते । ता: । न: । देवी: । सुऽहवा: । शर्म । यच्छन्तु ॥५१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 49; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के समान रानी को न्याय का उपदेश।

    पदार्थ

    (याः) जो (उशतीः) [उपकार की] इच्छा करती हुई (देवानाम्) विद्वानों वा राजाओं की (पत्नीः) पत्नियाँ (नः) हमें (अवन्तु) तृप्त करें और (तुजये) बल वा स्थान के लिये और (वाजसातये) अन्न देनेवाले संग्राम [जीतने] के लिये (नः) हमारी (प्र) अच्छे प्रकार (अवन्तु) रक्षा करें। और (अपि) भी (याः) जो (पार्थिवासः) और जो पृथिवी की रानियाँ (अपाम्) जलों के (व्रते) स्वभाव में [उपकारवाली] हैं, (ताः) वे सब (सुहवाः) सुन्दर बुलावे योग्य (देवीः) देवियाँ (नः) हमें (शर्म) घर वा सुख (यच्छन्तु) देवें ॥१॥

    भावार्थ

    विद्वान् और राजा लोगों के समान उनकी स्त्रियाँ भी उपकार करके प्रजा पालन करें ॥१॥ मन्त्र १, २ कुछ भेद से ऋग्वेद में है−५।४६।७, ८; और निरुक्त में भी व्याख्यात हैं-१२।४५, ४६ ॥

    टिप्पणी

    १−(देवानाम्) विदुषां राज्ञां वा (पत्नीः) पत्न्यः (उशतीः) उशत्यः उपकारं कामयमानाः (अवन्तु) तर्पयन्तु (नः) अस्मान् (प्र) प्रकर्षेण (अवन्तु) रक्षन्तु (नः) अस्मान् (तुजये) इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। तुज हिंसाबलादाननिकेतनेषु-इन्। बलाय। निवासाय (वाजसातये) ऊतियूतिजूतिसाति०। पा० ३।३।९७। षणु दाने-क्तिन्। वाजोऽन्नं दीयते येन तस्मै। अन्नलाभाय संग्रामाय-निघ० २।१७। (याः) पत्न्यः (पार्थिवासः) तस्येश्वरः। पा० ५।१४२। पृथिवी-अण्, असुक्। पार्थिव्यः। पृथिवीराज्ञ्यः (याः) (अपाम्) जलानाम् (अपि) (व्रते) स्वभावे (ताः) (नः) अस्मभ्यम् (देवीः) प्रकाशमानाः (सुहवाः) शोभनाह्वानाः (शर्म) सुखं गृहं वा (यच्छन्तु) ददतु ॥

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    विषय

    तुजये वाजसातये

    पदार्थ

    १. (देवानां पत्नी:) = दिव्य गुणों का अपने में रक्षण करनेवाली, (उशती:) = हित की कामनावाली, ये पत्नियाँ (न: अवन्तु) = हमें प्रीणित करनेवाली हों। (न:) = हमें (तुजये) = उत्तम सन्तानों को प्राप्त कराने के लिए तथा (वाजसातये) = शक्तिप्रद अन्न प्राप्त कराने के लिए (प्रावन्त) = प्रकर्षण प्राप्त हों। २. (या:) = जो ये पलियाँ (पार्थिवास:) =  पृथिवी-स्थानीय हैं[द्यौरहं पृथिवी त्वम्] पृथिवीवत् दृढ व पालन करनेवाली हैं, (अपि) = और [अपि-चार्थे] (या:) = जो (अपां व्रते) = जलों के व्रत में स्थित हैं, जलों की भांति ही शान्त, मधुर स्वभाववाली हैं। (ता:) = वे (देवी:) = दिव्य गुणोंवाली (सुहवा:) = शोभन आह्वानवाली पत्नियों (न:) = हमारे लिए (शर्म यच्छन्तु) = सुख दें।

    भावार्थ

    पत्नी का मुख्य कार्य उत्तम सन्तान को जन्म देना व सबके लिए स्वास्थ्यकर अन्न प्राप्त कराना है। ये अपने में दिव्य गुणों का रक्षण करें, पृथिवी की भाँति सबका पालन करनेवाली हों, जलों की भाँति शान्त व मधुर हों, सुन्दरता से पुकारनेवाली हों, घर में सुख का विस्तार करें।

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    भाषार्थ

    (उषतीः) रक्षा करने की कामनाओं वाली (देवानाम् पत्नीः) देवों की पत्नियां, (नः अवन्तु) हमारी रक्षा करें, (तुजये) बलप्रदान के लिये, और (वाजसातये) अन्नप्रदान के लिये (नः) हमारी (प्रावन्तु) बार-बार रक्षा करें। (याः) जो पत्नियां (पार्थिवासः) पार्थिव जीवन वाली हैं, (याः) तथा जो (अपाम्) आपः सम्बन्धी अर्थात् ५ ज्ञानेन्द्रियां, १ मन और १ बुद्धि इनके नियन्त्रण के (व्रते अपि) व्रत में भी हैं, (ताः) वे दोनों प्रकार की (सुहवाः) सुगमता से बुलाई जा सकने वाली (देवीः) देवियां (नः) हमें (शर्म) सुख (यच्छन्तु) प्रदान करें।

    टिप्पणी

    [देवियां दो प्रकार की कही हैं। पार्थिव भोगों वाली, और इन्द्रियों, मन और बुद्धि का निरोध करने वाली। जैसे याज्ञवल्क्य की दो पत्नियां थीं, कात्यायनी और गार्गी पहली सांसारिक भावनाओं वाली थी, और दूसरी अध्यात्मपरायणा थी (बृदा० उप०)। तुजि= हिंसाबलादाननिकेतनेषु (चुरादिः)। वाजः अन्ननाम (निघं० २।७)। शर्म सुखनाम (निघं० ६।२)। आपः सप्त आपः = "षडिन्द्रियाणि, विद्या सप्तमी आत्मनि" (निरुक्त १२।४।३८), "सप्त ऋषयः " मन्त्र की व्याख्या में (यजु० ३४।५५)]

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    विषय

    विद्वान् पुरुषों की स्त्रियों के कर्तव्य।

    भावार्थ

    विद्वान् पुरुषों की विदुषी स्त्रियों को और ऊंचे कर्मों का उपदेश करते हैं—(देवानां पत्नीः) देव = विद्वान् या राज्यशासक अधिकारी लोगों की विदुषी स्त्रियें भी (रुशतीः) सुप्रसन्न, इच्छापूर्वक (नः) हम प्रजा के लोगों की (अवन्तु) रक्षा करें। और विशेष कर (वाज-सातये) संग्राम यज्ञ और ज्ञानप्राप्ति, शिक्षा के कार्य के लिए और (तुजये) बालकों की रक्षा और राष्ट्र में बल या जोश उत्पन्न करने के लिए ये (नः) हम में (अवन्तु) आदरपूर्वक आवें। और (याः) जो (पार्थिवासः) राज घराने की उन्नत पदाधिकार पर स्थित रानियां हैं और (याः) जो (अपाम्) प्रजाओं के (व्रते) पालन या शासन के कार्य में या सदाचार शिक्षण में नियुक्त हैं (ताः) वे (देवीः) विदुषी स्त्रियां भी (सु-हवाः) उत्तम उपदेश करने में समर्थ होकर प्रजाओं में (शर्म) सुख शान्ति (यच्छन्तु) प्रदान करें।

    टिप्पणी

    ‘यच्छत’ इति ऋ०। अस्य सूक्तस्य प्रतिक्षत्र आत्रेय ऋषिः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। देवपत्न्यो देवताः। १ आर्षी जगती। २ चतुष्पदा पंक्तिः। द्वयृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prayer for Peace and Protection

    Meaning

    May the Devapatnis, noble consorts of blessed people, like the essential powers of the divinities of nature, doing good to all with love and passion, protect us for strength and advancement and for success and victory in the fields of life’s struggle for progress. All those that are on earth and are active in human affairs, like nature’s divinities on the earth and in the waters, abiding by the laws of nature and the laws and discipline of humanity, divine and adorable, provide us peace, protection and comfortable settlement in happy homes.

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    Subject

    Deva - Patnyah’: Wives of Devas

    Translation

    May the consorts of the bounties of nature, full of longing, aid us. May they help us (to obtain) offspring and plenty of food-grains. Those who are terrestrial and also those who belong to the realm of the waters, may those divine ones, easy to call, grant us comfort.

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.51.1AS PER THE BOOK

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    Translation

    Let the resisting and supporting energies inherent in the physical elements (Devas) abiding in the worldly objects protect us, let them help us in obtaining offspring’s and winning bounty. These wondrous and admirable energies which are found in material, gross objects and which are abiding in the realm of rays, water etc; give us delight and protection.

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    Translation

    May the learned consorts of kings, aid us of their own free will. May they come unto us for protecting our offspring, and spreading knowledge. May the queens of royal family, who are devoted to the moral elevation of the subjects, learned as they are, expert in nice preaching, shower happiness and peace on the subjects.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(देवानाम्) विदुषां राज्ञां वा (पत्नीः) पत्न्यः (उशतीः) उशत्यः उपकारं कामयमानाः (अवन्तु) तर्पयन्तु (नः) अस्मान् (प्र) प्रकर्षेण (अवन्तु) रक्षन्तु (नः) अस्मान् (तुजये) इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। तुज हिंसाबलादाननिकेतनेषु-इन्। बलाय। निवासाय (वाजसातये) ऊतियूतिजूतिसाति०। पा० ३।३।९७। षणु दाने-क्तिन्। वाजोऽन्नं दीयते येन तस्मै। अन्नलाभाय संग्रामाय-निघ० २।१७। (याः) पत्न्यः (पार्थिवासः) तस्येश्वरः। पा० ५।१४२। पृथिवी-अण्, असुक्। पार्थिव्यः। पृथिवीराज्ञ्यः (याः) (अपाम्) जलानाम् (अपि) (व्रते) स्वभावे (ताः) (नः) अस्मभ्यम् (देवीः) प्रकाशमानाः (सुहवाः) शोभनाह्वानाः (शर्म) सुखं गृहं वा (यच्छन्तु) ददतु ॥

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