अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 68/ मन्त्र 1
सर॑स्वति व्र॒तेषु॑ ते दि॒व्येषु॑ देवि॒ धाम॑सु। जु॒षस्व॑ ह॒व्यमाहु॑तं प्र॒जां दे॑वि ररास्व नः ॥
स्वर सहित पद पाठसर॑स्वति । व्र॒तेषु॑ । ते॒ । दि॒व्येषु॑ । दे॒वि॒ । धाम॑ऽसु । जु॒षस्व॑ । ह॒व्यम् । आऽहु॑तम् । प्र॒ऽजाम् । दे॒वि॒ । र॒रा॒स्व॒ । न॒: ॥७०.१॥
स्वर रहित मन्त्र
सरस्वति व्रतेषु ते दिव्येषु देवि धामसु। जुषस्व हव्यमाहुतं प्रजां देवि ररास्व नः ॥
स्वर रहित पद पाठसरस्वति । व्रतेषु । ते । दिव्येषु । देवि । धामऽसु । जुषस्व । हव्यम् । आऽहुतम् । प्रऽजाम् । देवि । ररास्व । न: ॥७०.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
सरस्वती की आराधना का उपदेश।
पदार्थ
(देवि) हे देवी (सरस्वति) सरस्वती ! [विज्ञानवती वेदविद्या] (ते) अपने (दिव्येषु) दिव्य (व्रतेषु) व्रतों [नियमों] में और (धामसु) धर्मों [धारण शक्तियों] में [हमारे] (आहुतम्) दिये हुए (हव्यम्) ग्राह्य कर्म को (जुषस्व) स्वीकार कर, (देवि) हे देवी ! (नः) हमें (प्रजाम्) [उत्तम] प्रजा (ररास्व) दे ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य ब्रह्मचर्य आदि नियमों से उत्तम विद्या प्राप्त करके सब प्रजा प्राणीमात्र को उत्तम बनावें ॥१॥
टिप्पणी
१−(सरस्वती) विज्ञानवति (व्रतेषु) नियमेषु (ते) तव। स्वेषु (दिव्येषु) उत्तमेषु (देवि) दिव्यगुणे (धामसु) धारणसामर्थ्येषु। धर्मसु (जुषस्व) सेवस्व (हव्यम्) हु-यत् ग्राह्यं कर्म (आहुतम्) सम्यग् दत्तम् (प्रजाम्) मनुष्यादिरूपाम् (देवि) (ररास्व) रा दाने, शपः श्लुः। देहि (नः) अस्मभ्यम् ॥
विषय
सरस्वती के व्रतों में
पदार्थ
१.हे (सरस्वति देवि) = ज्ञान की अधिष्ठातृदेवि! [ज्ञान प्रवाह से, गुरु से शिष्य की ओर चलता है, अत: ज्ञान की अधिष्ठात्री 'सरस्वती' कहलाती है। यह प्रकाशमय होने से 'देवी' है] (ते खतेषु) = तेरे व्रतों में चलते हुए हम लोगों द्वारा (दिव्येषु धामसु) = दिव्य तेजों के निमित्त (आहुतम्) = पहले अग्निकुण्ड में आहुत किये गये यज्ञावशिष्ट (हव्यं जुषस्व) = हव्य का ही तू प्रीतिपूर्वक ग्रहण कर, अर्थात् तेरे व्रतों में चलते हुए हम यज्ञावशिष्ट हव्यों को ही ग्रहण करनेवाले बनें। तभी हमें 'दिव्य धाम [तेज]' प्राप्त होंगे। २. हे सरस्वति देवि! तू (न:) = हमारे लिए (प्रजा ररास्व) = प्रशस्त सन्तानों को प्रास करा । जहाँ घर में ज्ञानप्रधान वातावरण होगा, वहाँ सन्ताने उत्तम होंगे ही। ज्ञान के साथ व्यसनों का विरोध है।
भावार्थ
सरस्वती का आराधक यज्ञावशिष्ट हव्य पदार्थों का ही सेवन करता है। इससे उसे दिव्य तेज प्राप्त होता है और घर में सन्तान भी उत्तम होती हैं।
भाषार्थ
(सरस्वति देवि) हे ज्ञान-विज्ञान वाली देवि ! (ते) तेरे (दिव्येषु वामसु) दिव्य स्थानों अर्थात् विद्यालयों में, तथा (व्रतेषु) सारस्वत-व्रतों में (आहुतम्, हव्यम्ः) आहुतियों में दी हवि को (जुषस्व) प्रीतिपूर्वक तू स्वीकार कर, (देवि) और हे देवी! (नः) हमें (प्रजाम्) विद्यार्थीरूपी सन्तानें (ररास्व) प्रदान कर।
टिप्पणी
[सरस्वती = सरो विज्ञानं तद्वती, ज्ञान-विज्ञानवाली वेदवाक्। (धामसु= धामानि त्रयाणि भवन्ति, स्थानानि नामानि जन्मानि (निरुक्त ९।२८)। यहाँ स्थानार्थ का ग्रहण है, विद्यालयों और महाविद्यालयों के स्थान। विद्यालयों और महाविद्यालयों के सत्रारम्भ में सारस्वत-यज्ञ होना चाहिये, जिस में विद्यार्थियों को विद्याप्राप्ति तथा गुरुसेवा आदि सम्बन्धी व्रत ग्रहण करने चाहियें। गुरुवर्ग इन्हें व्रत ग्रहण कराएं। गुरुवर्ग भी प्रविष्ट विद्यार्थियों के साथ निज प्रजा अर्थात् सन्तानों का सा व्यवहार करें। विद्यालयों और महाविद्यालयों को दिव्यधाम जान कर इन की पवित्रता को बनाए रखना चाहिये। यह सरस्वती नदीरूपा नहीं, अपितु वाग्-रूपा है। सरो विज्ञानं विद्यतेऽस्यां सा सरस्वती वाक् (उणा० ४।१९०, दयानन्द)। परन्तु आहुतियां वागधिपति-परमेश्वरोद्देश्यक हैं। वह वेदवाक् का अधिपति है]।
इंग्लिश (4)
Subject
Sarasvati
Meaning
Mother Sarasvati, inspiring spirit of omniscience, pray accept our homage of oblations and actions dedicated o your disciplines in various fields of your divine refulgence and, O mother of light and knowledge, bless us with brilliant progeny educated and cultured in those disciplines.
Subject
Sarasvati
Translation
O learning divine, in your pious observances in your heavenly abodes, may you accept these offered oblations; O deity, may you bless us with progeny.
Comments / Notes
MANTRA NO 7.70.1AS PER THE BOOK
Translation
Let the Vedic speech applied as canon of yajna have the oblation offered in the yajna at the time when applied with its laws its glorious luster of divine light and let this wondrous speech give us progeny.
Translation
O Vedic knowledge, in thy celestial laws and decrees, accept our offered contribution, and grant us intellect!
Footnote
Man should try to contribute his share to the vast ocean of Vedic knowledge, by its study and propagation.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(सरस्वती) विज्ञानवति (व्रतेषु) नियमेषु (ते) तव। स्वेषु (दिव्येषु) उत्तमेषु (देवि) दिव्यगुणे (धामसु) धारणसामर्थ्येषु। धर्मसु (जुषस्व) सेवस्व (हव्यम्) हु-यत् ग्राह्यं कर्म (आहुतम्) सम्यग् दत्तम् (प्रजाम्) मनुष्यादिरूपाम् (देवि) (ररास्व) रा दाने, शपः श्लुः। देहि (नः) अस्मभ्यम् ॥
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