अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 69/ मन्त्र 1
शं नो॒ वातो॑ वातु॒ शं न॑स्तपतु॒ सूर्यः॑। अहा॑नि॒ शं भ॑वन्तु नः॒ शं रात्री॒ प्रति॑ धीयतां शमु॒षा नो॒ व्यु॑च्छतु ॥
स्वर सहित पद पाठशम् । न॒: । वात॑: । वा॒तु॒ । शम् । न॒: । त॒प॒तु॒ । सूर्य॑: । अहा॑नि। शम् । भ॒व॒न्तु॒। न॒: । शम् । रात्री॑ । प्रति॑ । धी॒य॒ता॒म् । शम् । उ॒षा: । न॒: । वि । उ॒च्छ॒तु॒ ॥७२.१॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नो वातो वातु शं नस्तपतु सूर्यः। अहानि शं भवन्तु नः शं रात्री प्रति धीयतां शमुषा नो व्युच्छतु ॥
स्वर रहित पद पाठशम् । न: । वात: । वातु । शम् । न: । तपतु । सूर्य: । अहानि। शम् । भवन्तु। न: । शम् । रात्री । प्रति । धीयताम् । शम् । उषा: । न: । वि । उच्छतु ॥७२.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सुख के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पदार्थ
(शम्) सुखकारी (वातः) वायु (नः) हमारे लिये (वातु) चले, (शम्) सुखकारी (सूर्यः) सूर्य (नः) हमारे लिये (शम्) (तपतु) तपे। (अहानि) दिन (नः) हमारे लिये (शम्) सुखकारी (भवन्तु) होवें, (रात्री) रात्रि (शम् प्रति) सुख के लिये (धीयताम्) धारण की जावे (शम्) सुखकारी (उषाः) उषा [प्रभात वेला] (नः) हमारे लिये (वि) विविध प्रकार (उच्छतु) चमके ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य ईश्वर और आप्त विद्वानों की शिक्षा से ऐसे काम करें, जिसमें वायु, सूर्य आदि पदार्थों से प्रतिक्षण सुख मिलता रहे ॥१॥
टिप्पणी
१−(शम्) सुखकरः (नः) अस्मभ्यम् (वातः) वायुः (वातु) संचरतु (शम्) (नः) (तपतु) तपः करोतु (सूर्यः) (अहानि) दिनानि (शम्) सुखकराणि (भवन्तु) (नः) (शम्) सुखम् (रात्री) (प्रति) व्याप्य (धीयताम्) डुधाञ् धारणपोषणयोः-कर्मणि लोट्। ध्रियताम् (शम्) सुखप्रदा (उषाः) प्रभातवेला, (नः) अस्मभ्यम् (वि) विविधम् (उच्छतु) उच्छी विवासे। विवासिता प्रकाशिता भवतु ॥
विषय
'वायु, सूर्य, दिन-रात व उषा' सब 'शम्' हों
पदार्थ
१. (वात:) = यह बहनेवाला वायु (नः शम्) = हमारे लिए शान्तिकर होकर, (वातु) = प्रवाहित हो। (सूर्यः) = सबको कर्मों में प्रेरित करनेवाला सूर्य (नः शं तपतु) = हमारे लिए शान्तिकर दीतिवाला हो। (अहानि) = दिन (नः शं भवन्तु) = हमारे लिए शान्तिकर हों। (रात्री) = रात (शं प्रतिधीयताम्) = सुख को हमारे साथ संहित करे [संदधातु] अथवा सुखकर होकर धारण की जाए। (उ) = और (उषा:) = उषा (शं) = शान्तिकर होती हुई (नः) = हमारे लिए (व्युच्छतु) = [विवासित] प्रकाशित हो।
भावार्थ
सरस्वती के आराधन के परिणामस्वरूप हमारे लिए 'वायु, सूर्य, दिन व रात तथा उषाकाल' सब शान्ति देनेवाले हों।
सरस्वती-आराधक यह शान्त व स्थिरवृत्ति का व्यक्ति अथर्वा' बनता है। अगले चार सूक्तों का यही ऋषि है -
भाषार्थ
(वातः) वायु (नः) हमारे लिये (शम्) सुखकर (वातु) बहे, (सूर्य) सूर्य (नः) हमारे लिये (शम्) सुखकर (तपतु) तपे (अहानि) दिन (नः) हमारे लिये (शम्) सुखकर (भवन्तु) हों, (रात्री) रात्री (शम्) सुख (प्रति धीयताम्) प्रदान करे, (नः) हमारे लिये (उषाः) उषा (शम्) सुख कर (व्युच्छतु) चमकें।
विषय
कल्याण, सुख की प्रार्थना।
भावार्थ
(वातः) वायु (नः) हमारे लिए (शं) सुखकारी होकर (वातु) बहे। (सूर्य:) सूर्य (नः) हमारे लिए (शं) सुखकारी होकर (तपतु) तपे। (नः) हमारे (अहानि) दिन (शं) सुखकारी हों। (रात्री) रात्रि (शं) सुखकारी (प्रति घीयताम्) रहे (उषा) प्रातःकाल (नः) हमें (शम्) सुखकारी होकर (व्युच्छतु) प्रकट हो।
टिप्पणी
“शनो वातः पवतां।” (च०) ‘शं रात्रीः’ इति यजु०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंतातिर्ऋषिः। सुखं देवता। पथ्यापंक्ति छन्दः। एकर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Prayer for Peace
Meaning
Let the winds blow at peace for peace and exhilaration for us. Let the sun shine in peace for peace and warmth of life for us. Let the days be bright at peace and give us peace and joy. May the night bring us peace and bliss. May the dawn bring us peace and joy with
Subject
Sukham (Happiness)
Translation
May the wind (vatah) blow in happiness for us; may the Sun warm up for our happiness. May the days be full of happiness to us. May the night, bring happiness. May the dawn brighten up with happiness for us.
Comments / Notes
MANTRA NO 7.72.1AS PER THE BOOK
Translation
May the wind breath on us auspiciously, may the Sun warm us in pleasant way, may days pass happily for us, may night bear all sorts of delight for us and may dawn break emitting joy for us.
Translation
May the wind kindly blow on us, may the Sun pleasantly warm us. May days pass happily for us, may night draw near delightfully, may dawn break joyfully for us.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(शम्) सुखकरः (नः) अस्मभ्यम् (वातः) वायुः (वातु) संचरतु (शम्) (नः) (तपतु) तपः करोतु (सूर्यः) (अहानि) दिनानि (शम्) सुखकराणि (भवन्तु) (नः) (शम्) सुखम् (रात्री) (प्रति) व्याप्य (धीयताम्) डुधाञ् धारणपोषणयोः-कर्मणि लोट्। ध्रियताम् (शम्) सुखप्रदा (उषाः) प्रभातवेला, (नः) अस्मभ्यम् (वि) विविधम् (उच्छतु) उच्छी विवासे। विवासिता प्रकाशिता भवतु ॥
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