अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 79/ मन्त्र 1
यत्ते॑ दे॒वा अकृ॑ण्वन्भाग॒धेय॒ममा॑वास्ये सं॒वस॑न्तो महि॒त्वा। तेना॑ नो य॒ज्ञं पि॑पृहि विश्ववारे र॒यिं नो॑ धेहि सुभगे सु॒वीर॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । ते॒ । दे॒वा: । अकृ॑ण्वन् । भा॒ग॒ऽधेय॑म् । अमा॑ऽवास्ये । स॒म्ऽवस॑न्त: । म॒हि॒ऽत्वा । तेन॑ । न॒: । य॒ज्ञम् । पि॒पृ॒हि॒। वि॒श्व॒ऽवा॒रे॒ । र॒यिम् । न॒: । धे॒हि॒ । सु॒ऽभ॒गे॒ । सु॒ऽवीर॑म् ॥८४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्ते देवा अकृण्वन्भागधेयममावास्ये संवसन्तो महित्वा। तेना नो यज्ञं पिपृहि विश्ववारे रयिं नो धेहि सुभगे सुवीरम् ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । ते । देवा: । अकृण्वन् । भागऽधेयम् । अमाऽवास्ये । सम्ऽवसन्त: । महिऽत्वा । तेन । न: । यज्ञम् । पिपृहि। विश्वऽवारे । रयिम् । न: । धेहि । सुऽभगे । सुऽवीरम् ॥८४.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(अमावास्ये) हे अमावास्या ! [सबके साथ बसी हुई शक्ति परमेश्वर !] (यत्) जिस कारण से (ते) तेरी (महित्वा) महिमा से (संवसन्तः) यथावत् बसते हुए (देवाः) विद्वानों ने (भागधेयम्) अपना सेवनीय काम (अकृण्वन्) किया है। (तेन) उसीसे, (विश्ववारे) हे सब से स्वीकार करने योग्य शक्ति ! (नः) हमारे (यज्ञम्) यज्ञ [पूजनीय व्यवहार] को (पिपृहि) पूरा कर, (सुभगे) हे बड़े ऐश्वर्यवाली ! (नः) हमें (सुवीरम्) बड़े वीरोंवाला (रयिम्) धन (धेहि) दान कर ॥१॥
भावार्थ
इस मन्त्र में (अमावास्ये, संवसन्तः) पद [वस-रहना, ढाँकना] धातु से बने हैं। विद्वान् लोग सर्वान्तर्यामी, परमेश्वर में आश्रय लेकर सृष्टि के सब पदार्थों से उपकार करके सबको वीर, पुरुषार्थी और धनी बनावें ॥१॥ इस मन्त्र का उत्तरार्द्ध आ चुका-अ० ७।२०।४ ॥
टिप्पणी
१−(यत्) यस्मात्कारणात् (ते) तव (देवाः) विद्वांसः (अकृण्वन्) कृवि हिंसाकरणयोः-लङ्। अकुर्वन् (भागधेयम्) सेवनीयं व्यवहारम् (अमावास्ये) अमावस्यदन्यतरस्याम्। पा० ३।१।१२२। अमा+वस आच्छादने निवासे च-ण्यत्, टाप्। अमा सर्वैः सह वसति सा अमावास्या तत्सम्बुद्धौ। हे सर्वैः सह निवासशीले शक्ते परमात्मन् (संवसन्तः) वस-शतृ। सम्यग् निवसन्तः (महित्वा) अ० ४।२।२। महत्त्वेन। अन्यद्गतम्-अ० ७।२०।४ ॥
विषय
सूर्य + इन्द्र
पदार्थ
१. 'अमावस्या' को अमावस्या इसलिए कहते हैं की इसमें सूर्य और चन्द्र साथ-साथ रहते हैं | [अमा+वस्] अमावास्या' को अमावास्या इसलिए कहते हैं कि इसमें सूर्य और चन्द्र साथ-साथ रहते हैं। (अमावस्) 'सूर्य' प्रकाश व तेजस्विता का प्रतीक है 'चन्द्र' आह्लाद व सौम्यता का मानव जीवन में दोनों का समन्वय अभीष्ट है। तेजस्विता व सौम्यता का समन्वय सब दिव्य गुणों की उत्पत्ति का हेतु बनता है। हे (अमावास्ये) = अमावास्ये! (ते महित्वा) = तेरी महिमा से (यत्) = जब (संवसन्तः) = सम्यक् मिलकर रहते हुए (देवा:) = देववृत्ति के व्यक्ति (भागधेयं अकृण्वन्) = हवि का भाग करते हैं, अर्थात् यज्ञशील होते हैं तब हे विश्ववारे सबसे वरने के योग्य (सुभगे) = शोभन- भाग्ययुक्त अमावास्ये! (तेन) = उस हविर्भाग के द्वारा (नः यज्ञं पिपृहि) = हमारे यज्ञ को पूर्ण कर तथा (नः) = हमारे लिए (सुवीरम्) = उत्तम वीर सन्तानोंवाले (रयिम्) = ऐश्वर्य को (धेहि) = धारण कर ।
भावार्थ
जिस समय एक घर में रहनेवाले व्यक्ति सूर्य व चन्द्रतत्त्वों का अपने में समन्वय करते हैं, उस समय वे (क) परस्पर मिलकर रहते हैं, (ख) देववृत्ति के बनकर यज्ञशील होते हैं, (ग) वीर सन्तानों व ऐश्वर्यों को प्राप्त करते हैं।
भाषार्थ
(अमावास्ये) हमारे हृदयगृहों में हमारे साथ बसने वाली पारमेश्वरी मातः ! (महित्वा) योगजन्य महिमा के कारण (संवसन्तः) तेरे साथ बसते हुए (देवाः) दिव्य उपासक, (ते) तेरे लिये (यत्) जो (भागधेयम्) भक्तिभाग (अकृण्वन्) समर्पित करते रहे हैं, या करते हैं, (तेन) उस समर्पण के कारण (नः) हमारे (यज्ञम्) योगयज्ञ को (पिपृहि) पालित कर, सुरक्षित कर (विश्ववारे) हे विश्व द्वारा वरणीय मातः! (सुभगे) हे उत्तम भगों१ से सम्पन्न मातः ! (नः) हमें (सुवीरम्) उत्तम वीर पुत्ररूपी (रयिम्) घन (धेहि) प्रदान कर।
टिप्पणी
[अमा= अमा गृहनाम (निघं० ३।४), तथा अमा= सह (सायण)। पिपृहि= पृ पालनपूरणयोः (जुहोत्यादिः)। पारमेश्वरीमाता के सहवासी योगी जन, सुवीर पुत्रों को माता से प्राप्त कर, भूमि को स्वर्ग बना देते हैं। सुवीर= धर्मकृत्यों के करने में सुवीर]। [१. ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः। ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा।]
विषय
स्त्री के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (अमा-वास्ये) सहवास करनेहारी स्त्री ! (ते महित्वा) तेरे महत्व या गौरव या आदरभाव के कारण (सं-वसन्तः) एकत्र एक देश या गृह में निवास करनेवाले (देवाः) विद्वान् लोग (यत्) जो (भागधेयम्) भाग, अधिकार (ते) तेरे निमित्त (अकृण्वन्) नियत कर देते हैं (तेन) उसीसे तू (नः) हमारे (यज्ञं) यज्ञ, गृहस्थ यज्ञ, जो परस्पर-संगत रहने से हो रहा है उसको (पिपृहि) पूर्ण कर, पालन कर। और हे (विश्व-वारे) सब उत्तम गुणों से अलंकृत पत्नि ! और (सु-भगे) सौभाग्यवति ! तू ही (नः) हमें (सु-वीरं) उत्तम बलवान् पुत्ररूप (रयिम्) धन को (धेहि) प्रदान कर या धारण कर। अध्यात्म पक्ष में—(अमावास्ये) एकत्र सबको आवास देनेहारी ब्रह्मशक्ने ! तेरी महिमा से देव, विद्वान् ज्ञानी पुरुषों ने जो तेरा भाग नियत किया है उससे इस यशस्वी आत्मा को पूर्ण कर। हे विश्ववारे ! सर्व वरणीये, सर्वोत्तमे ! तू हममें सुवीर, रयि, आत्मस्वरूप या ब्रह्मज्ञान प्रदान कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ता अमावास्या देवता। १ जगती। २, ४ त्रिष्टुभः। चतुर्ऋचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Integrative Spirit
Meaning
O dark night of rest and peace, integrative spirit of divine bliss, since by virtue of your greatness and grandeur, pious sages and brilliant people abiding together happily offer their part of homage to you in yajna, for that reason, O universal power of peace, harbinger of good fortune, pray grace and fulfil our yajna with success and bring us wealth, honour and excellence worthy of the brave.
Subject
Amavasya (New Moon’s night)
Translation
What share of oblations the enlightened ones, living together in greatness, have allotted to you, O new moon’s night, with that may you lead our sacrifice to completion. O desired by all (visvavare), blessed one, grant us riches with brave sons.
Comments / Notes
MANTRA NO 7.84.1AS PER THE BOOK
Translation
The learned man living with greatness and magnanimity whatever share assign to Amavasya in yajna let this moonless dark night fulfill the purpose of our yajna. Let this universally known and pleasant Amavasy become the source of our attaining the wealth with good offspring.
Translation
O sociable woman, whatever right, out of reverence for thee, the learned living together in a place have assigned thee, therewith fulfill our domestic Yajna (sacrifice) all-bounteous! blessed one, grant us wealth with manly offspring.
Footnote
A woman is spoken of as Amavasya, as she lives together with her husband and relatives. Amavasya is also translated as God, Who lives with all animate and inanimate creation.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(यत्) यस्मात्कारणात् (ते) तव (देवाः) विद्वांसः (अकृण्वन्) कृवि हिंसाकरणयोः-लङ्। अकुर्वन् (भागधेयम्) सेवनीयं व्यवहारम् (अमावास्ये) अमावस्यदन्यतरस्याम्। पा० ३।१।१२२। अमा+वस आच्छादने निवासे च-ण्यत्, टाप्। अमा सर्वैः सह वसति सा अमावास्या तत्सम्बुद्धौ। हे सर्वैः सह निवासशीले शक्ते परमात्मन् (संवसन्तः) वस-शतृ। सम्यग् निवसन्तः (महित्वा) अ० ४।२।२। महत्त्वेन। अन्यद्गतम्-अ० ७।२०।४ ॥
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