अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 80/ मन्त्र 1
ऋषिः - अथर्वा
देवता - पौर्णमासी
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - पूर्णिमा सूक्त
2
पू॒र्णा प॒श्चादु॒त पू॒र्णा पु॒रस्ता॒दुन्म॑ध्यतः पौ॑र्णमा॒सी जि॑गाय। तस्यां॑ दे॒वैः सं॒वस॑न्तो महि॒त्वा नाक॑स्य पृ॒ष्ठे समि॒षा म॑देम ॥
स्वर सहित पद पाठपू॒र्णा । प॒श्चात् । उ॒त । पू॒र्णा । पु॒रस्ता॑त् । उत् । म॒ध्य॒त: । पौ॒र्ण॒ऽमा॒सी । जि॒गा॒य॒ । तस्या॑म् । दे॒वै: । स॒म्ऽवस॑न्त: । म॒हि॒ऽत्वा । नाक॑स्य । पृ॒ष्ठे । सम् । इ॒षा । म॒दे॒म॒ ॥८५.१॥
स्वर रहित मन्त्र
पूर्णा पश्चादुत पूर्णा पुरस्तादुन्मध्यतः पौर्णमासी जिगाय। तस्यां देवैः संवसन्तो महित्वा नाकस्य पृष्ठे समिषा मदेम ॥
स्वर रहित पद पाठपूर्णा । पश्चात् । उत । पूर्णा । पुरस्तात् । उत् । मध्यत: । पौर्णऽमासी । जिगाय । तस्याम् । देवै: । सम्ऽवसन्त: । महिऽत्वा । नाकस्य । पृष्ठे । सम् । इषा । मदेम ॥८५.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ईश्वर के गुणों का उपदेश
पदार्थ
(पश्चात्) पीछे (पूर्णा) पूर्णा, (पुरस्तात्) पहिले (उत) और (मध्यतः) मध्य में (पूर्णा) पूर्ण (पौर्णमासी) पौर्णमासी [सम्पूर्ण परिमेय वा आकारवान् पदार्थों की आधारशक्ति, परमेश्वर] (उत् जिगाय) सब से उत्कृष्ट हुई है। (तस्याम्) उस [शक्ति] में (देवैः) उत्तम गुणों और (महित्वा) महिमा के साथ (संवसन्तः) निवास करते हुए हम (नाकस्य) सुख की (पृष्ठे) ऊँचाई पर [वा सिंचाई में] (इषा) पुरुषार्थ से (सम्) यथावत् (मदेम) आनन्द भोगें ॥१॥
भावार्थ
परमेश्वर सृष्टि से पहिले और पीछे और मध्य में वर्तमान और सर्वोत्कृष्ट है, उसी के आश्रय से मनुष्य उत्तम गुणी होकर मोक्ष सुख प्राप्त करें ॥१॥
टिप्पणी
१−(पूर्णा) समग्रा (पश्चात्) सृष्टेः पश्चात् (उत) अपि (पूर्णा) (पुरस्तात्) सृष्टेः प्राक् (उत्) उत्तमतया (मध्यतः) इतराभ्योऽपि दृश्यन्ते। पा० ५।३।१४। इति सप्तम्यर्थे तसिल्। मध्ये। सृष्टिकाले (पौर्णमासी) सर्वधातुभ्योऽसुन्। उ० ४।१८९। माङ् माने-असुन्। सास्मिन्पौर्णमासीति। पा० ४।२।२१। इति पूर्णमास-अण्। पूर्णाः सम्पूर्णा मासः परिच्छेद्याः पदार्था यस्मिन् स पौर्णमासः, स्त्रियां ङीप्। सम्पूर्णपरिच्छेद्यपदार्थाधारा शक्तिः परमेश्वरः (जिगाय) उत्कृष्टा बभूव (तस्याम्) पौर्णमास्याम् (देवैः) उत्तमगुणैः (संवसन्तः) सम्यग् निवसन्तः (महित्वा) अ० ४।२।२। महिम्ना (नाकस्य) सुखस्य (पृष्ठे) पृषु सेचने-थक्। उपरिभागे सेचने वा (सम्) सम्यक् (इषा) इष गतौ-क्विप्। उपायेन (मदेम) हृष्येम ॥
विषय
पौर्णमासी
पदार्थ
१. पौर्णमासी के दिन चन्द्रमा पूर्ण होता है, इस दिन वह सोलह कलाओं से युक्त होता है। हमें भी सोलह कला-सम्पन्न बनने की प्रेरणा पूर्णिमा से प्राप्त होती है। हम भी 'प्राण, श्रद्धा, पञ्चभूत, इन्द्रिय, मन, अन्न, वीर्य, तप, मन्त्र, कर्म, लोक व नाम' इन सोलह कलाओं से पूर्ण जीवनवाले बनें । यह (पौर्णमासी) = पूर्णिमा पूर्णचन्द्रोपेता होती हुई (पश्चात् पूर्णा) = पीछे से पूर्ण है, (पुरस्तात् पूर्णा) = आगे से भी पूर्ण है, (उत) = और (मध्यत:) = बीच से भी पूर्ण होती हुई (जिगाय) = विजयी होती है। हम भी पीछे, आगे व मध्य से पूर्ण बने। हमारे एक ओर 'शक्ति' है, दूसरी ओर 'ज्ञान' और इन दोनों के बीच में 'नर्मल्य' है। हमारे शरीर शक्ति-सम्पन्न हों, मस्तिष्क ज्ञानान्वित हों तथा मन नैर्मल्य को लिये हुए हो। २. (तस्याम्) = उस पूर्णिमा में-शक्ति, ज्ञान व नैर्मल्य के समन्वय में, (सं देवैः) = सब दिव्य गुणों के साथ (संवसन्त:) = निवास करते हुए, महित्वा प्रभुपूजन के द्वारा [मह पूजायाम्] (नाकस्य पृष्ठे) = मोक्षलोक में-दुःख से असंभिन्न सुखमय लोक में, (इषा) = प्रभु प्रेरणा के द्वारा (संमदेम) = सम्यक् आनन्द का अनुभव करें।
भावार्थ
पूर्णिमा से पूर्णता का पाठ पढ़ते हुए हम शक्ति, ज्ञान व नैर्मल्य को अपने में पूरण करें। दिव्यगुणों से युक्त होते हुए हम प्रभु-पूजन के साथ प्रभुप्रेरणा को सुनते हुए सुखमय लोक में आनन्द से रहें।
भाषार्थ
(पौर्णमासी) पौर्णमासी के सदृश (पश्चात्) पश्चिम में (पूर्णा) पूर्णप्रकाश वाली, (पुरस्तात्, उत मध्यतः) पूर्व तथा दोनों दिशाओं के मध्य१ में (पूर्णा) पूर्ण प्रकाश वाली पारमेश्वरीमाता (उत् जिगाय= उज्जिगाय) सर्वोत्कर्षेण विद्यमान है (महित्वा) तथा प्राप्त महिमा के कारण (तस्याम्) उस पारमेश्वरी माता में (देवेः) अन्य देवों के साथ (संवसन्तः) मिल कर वास करते हुए (नाकस्य पृष्ठे) दुःख से रहित नाकलोक की पीठ पर (इषा) आनन्दरसरूपी अन्न द्वारा (सम् मदेम) हम सुमुदित हों।
टिप्पणी
[मन्त्र में पौर्णमासी के दृष्टान्त द्वारा पारमेश्वरी माता के सर्वत्र पूर्ण प्रकाश का द्योतन किया है। पारमेश्वरीमाता के प्रकाश को प्राप्त करने से महिमायुक्त हुए योगी जन, नाक की पीठ पर मोक्षावस्था में अन्य मुक्तात्मा-देवों के साथ मिल कर आनन्दरस के पान द्वारा संमुदित रहते हैं। पौर्णमासी के प्रकाश को प्राप्त कर मोक्षावस्था का आनन्दरस अलभ्य है। अतः पौर्णमासी के दृष्टान्त द्वारा पारमेश्वरीमाता के पूर्ण प्रकाश का ही वर्णन मन्त्र में अभिप्रेत है।] [१. अभिप्राय यह कि पौर्णमासी का चन्द्रमा जब पूर्व में उदित होता, तो पूर्ण कलाओं से ही युक्त होता है, और जब पश्चिम में प्राप्त होता है तब भी पूर्ण कलाओं से ही युक्त होता है तथा पूर्व और पश्चिम के मध्याकाश में गति करता हुआ भी पूर्ण कलाओं से ही युक्त रहता है। परन्तु पौर्णमासी के उत्तरकाल से उसकी कलाओं मैं ह्रास होने लगता है। परन्तु परमेश्वर का प्रकाश पौर्णमासी के प्रकाश की तरह सदा एक सा रहता है, उसके प्रकाश में ह्रास नहीं होतक०]
विषय
परमपूर्ण ब्रह्मशक्ति।
भावार्थ
वह ब्रह्मशक्ति (पश्चात्) इस संसार के प्रलय के अनन्तर भी (पूर्णा) पूर्ण ही थी, और (मध्यतः) इन दोनों कालों के बीच के संसार के रचना काल में भी वह (पौर्णमासी) पूर्णरूप से समस्त जगत् को अपने भीतर मापने या बनाने वाली, महती शक्ति (उत् जिगाय) सब से अधिक उच्चता पर विराजमान है। (तस्यां) उसमें (देवैः) विद्वान् मुक्तात्माओं सहित (सं-वसन्तः) निवास करते हुए (महित्वा) हम लोग अपनी शक्ति और उसकी महिमा से (नाकस्य) सर्वथा दुःखरहित, परम सुखमय मोक्ष के (पृष्ठे) धाम में (इषा) अपनी इच्छा के अनुसार (सं मदेम) आनन्द का उपभोग करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। पौर्णमासी प्रजापतिर्देवता। १, ३, ४ त्रिष्टुप्। ४ अनुष्टुप्।चतुर्ऋचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Purnima
Meaning
Full and perfect before, full and perfect after, full and perfect in the middle, the full moon night, all comprehensive sustaining spirit of Divinity, reigns supreme over all. Resting and abiding in peace and union with divinities and the greatness and grandeur of the light of perfection, may we, we pray, rejoice with food, energy and enlightenment on the heights of heaven.
Subject
Full Moon Night
Translation
Full in the west, full in the east, and also in the middle, the full moon's night rises victorious. In her, living together with the enlightened ones, may we greatly revel together (madeama) with food and drinks at the height of the sorrowless world.
Comments / Notes
MANTRA NO 7.85.1AS PER THE BOOK
Translation
The full-mooned night, full in the front, full in the middle and full rear-ward come victorious in battle of moon’s phase changing. On that occasion we living with the yajna conducting learned men or the rays of moon in magnanimity enjoy the pleasure freely in the vault of sky or enjoy the pleasure freely in heavenly state.
Translation
God was perfect after, and perfect before the creation of the universe. His power of creation is perfect in the middle as well. May we, residing in the company of emancipated souls, through our strength and His grace, derive full joy in a state of final beatitude.
Footnote
Final beatitude: Salvation.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(पूर्णा) समग्रा (पश्चात्) सृष्टेः पश्चात् (उत) अपि (पूर्णा) (पुरस्तात्) सृष्टेः प्राक् (उत्) उत्तमतया (मध्यतः) इतराभ्योऽपि दृश्यन्ते। पा० ५।३।१४। इति सप्तम्यर्थे तसिल्। मध्ये। सृष्टिकाले (पौर्णमासी) सर्वधातुभ्योऽसुन्। उ० ४।१८९। माङ् माने-असुन्। सास्मिन्पौर्णमासीति। पा० ४।२।२१। इति पूर्णमास-अण्। पूर्णाः सम्पूर्णा मासः परिच्छेद्याः पदार्था यस्मिन् स पौर्णमासः, स्त्रियां ङीप्। सम्पूर्णपरिच्छेद्यपदार्थाधारा शक्तिः परमेश्वरः (जिगाय) उत्कृष्टा बभूव (तस्याम्) पौर्णमास्याम् (देवैः) उत्तमगुणैः (संवसन्तः) सम्यग् निवसन्तः (महित्वा) अ० ४।२।२। महिम्ना (नाकस्य) सुखस्य (पृष्ठे) पृषु सेचने-थक्। उपरिभागे सेचने वा (सम्) सम्यक् (इषा) इष गतौ-क्विप्। उपायेन (मदेम) हृष्येम ॥
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