Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 82 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 82/ मन्त्र 3
    ऋषिः - शौनकः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - अग्नि सूक्त
    1

    इ॒हैवाग्ने॒ अधि॑ धारया र॒यिं मा त्वा॒ नि क्र॒न्पूर्व॑चित्ता निका॒रिणः॑। क्ष॒त्रेणा॑ग्ने सु॒यम॑मस्तु॒ तुभ्य॑मुपस॒त्ता व॑र्धतां ते॒ अनि॑ष्टृतः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒ह । ए॒व । अ॒ग्ने॒ । अधि॑ । धा॒र॒य॒ । र॒यिम् । मा । त्वा॒ । नि । क्र॒न् । पूर्व॑ऽचित्ता: । नि॒ऽका॒रिण॑: । क्ष॒त्रेण॑ । अ॒ग्ने॒ । सु॒ऽयम॑म् । अ॒स्तु॒ । तुभ्य॑म् । उ॒प॒ऽस॒त्ता । व॒र्ध॒ता॒म् । ते॒ । अनि॑ऽस्तृत: ॥८७.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इहैवाग्ने अधि धारया रयिं मा त्वा नि क्रन्पूर्वचित्ता निकारिणः। क्षत्रेणाग्ने सुयममस्तु तुभ्यमुपसत्ता वर्धतां ते अनिष्टृतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इह । एव । अग्ने । अधि । धारय । रयिम् । मा । त्वा । नि । क्रन् । पूर्वऽचित्ता: । निऽकारिण: । क्षत्रेण । अग्ने । सुऽयमम् । अस्तु । तुभ्यम् । उपऽसत्ता । वर्धताम् । ते । अनिऽस्तृत: ॥८७.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 82; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    वेद के विज्ञान का उपदेश।

    पदार्थ

    (अग्ने) हे सर्वज्ञ परमात्मन् ! (इह एव) यहाँ पर ही (रयिम्) धन को (अधि) अधिकारपूर्वक (धारय) पुष्ट कर, (पूर्वचित्ताः) पहिले से सोचनेवाले [घाती], (निकारिणः) अपकारी [दुष्ट] लोग (त्वा) तुझ को (मा नि क्रन्) नीचा न करें। (अग्ने) हे सर्वव्यापक परमेश्वर (तुभ्यम्) तेरे (क्षत्रेण) [विघ्न से बचानेवाले] राज्य के साथ [हमारा] (सुयमम्) सुन्दर नियमवाला कर्म (अस्तु) होवे, (ते) तेरा (उपसत्ता) उपासक [अश्रित जन] (अनिष्टृतः) अजेय होकर (वर्धताम्) बढ़ता रहे ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य दूरदर्शी नीतिज्ञ होकर घात लगानेवाले शत्रुओं से बचकर धर्म के साथ अपनी और प्रजा की उन्नति करें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(इह) अस्माकं मध्ये (एव) (अग्ने) हे सर्वज्ञ (अधि) अधिकृत्य (धारय) पोषय (रयिम्) धनम् (त्वा) परमेश्वरम् (मा नि क्रन्) मन्त्रे घसह्वर०। पा० २।४।८०। करोतेर्लुङि च्लेर्लुक्। नीचैर्मा कार्षुः (पूर्वचित्ताः) प्राग्विचारवन्तः, घातिन इत्यर्थः (निकारिणः) अपकारिणः (क्षत्रेण)-म० २। विघ्नाद् रक्षकेण राज्येन (अग्ने) सर्वव्यापक (सुयमम्) ईषद्दुःसुषु०। पा० ३।३।१२६। सु+यम नियमने-खल्। यथावद् नियमयुक्तं कर्म (अस्तु) (तुभ्यम्) षष्ठ्यर्थे चतुर्थीति वक्तव्या। वा० पा० २।३।६२। तव (उपसत्ता) षद्लृ विषरणगत्यवसादनेषु-तृच्। उपासकः। आश्रितः (वर्धताम्) (ते) तव (अनिष्टृतः) स्तॄञ् आच्छादने-क्त। स्तृणातिवर्धकर्मा-निघ० २।१९। अहिंसितः। अजेयः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    क्षत्रेण सुयमम्

    पदार्थ

    १. हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो! (इह एव) = यहाँ-हम उपासकों में ही (रयिं अधिधारय) = ऐश्वर्य को आधिक्येन स्थापित कीजिए, जो (पूर्वचित्ता:) = [मतिपूर्व-Intentionally. Knowingly] जानबूझकर पहले से ही चित्त बनाकर (निकारिण:) = हमारा अपकार करनेवाले हैं, वे (त्वा) = तुझे (मा निक्रन्) = अपने अधीन न कर पाएँ, अपने अनुकूल न कर पाएँ। २. हे (अग्ने) = प्रभो! (तुभ्यम्) = आपकी प्राप्ति के लिए हममें क्(षत्रेण सुयमम् अस्तु) = बल के साथ उत्तम संयम हो। हे प्रभो! (ते) = आपका उपसत्ता उपासक (अनिष्ट्रत:) = किसी से भी हिसित न होता हुआ, अतिरस्कृत प्रभाववाला, (वर्धताम्) = वृद्धि को प्राप्त हो।

    भावार्थ

    प्रभु हमें धन दें। हमारा अपमान करनेवाले प्रभु के प्रिय न बनें। प्रभु-प्राप्ति के लिए हम बल के साथ संयमवाले हों। प्रभु के उपासक बनकर हम अहिंसित होते हुए वृद्धि को प्राप्त हों।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (अग्ने) हे अग्नि! (इह एव) इस ही जीवन में (रयिम्) अध्यात्म सम्पत् (अधि धारय) मुझ में मेरे अधिकाररूप में स्थापित कर, (पूर्वचित्ताः निकारिणः) पूर्वकाल की विकृत मेरी चित्तवृत्तियां (त्वा) तुझे हे अग्नि ! (मा निक्रन्) विकृत न करें, मुझसे पराङ्मुख या विमुख न करें। (अग्ने) हे अग्नि ! (तुभ्यम्) तेरे लिये (क्षत्रेण) क्षात्रदृढ़ता द्वारा (सुयमम्) सुनियन्त्रित [मेरा चित्त] (अस्तु) हो, (ते) तेरे (उप) समीप (सत्ता) उपासनाविधि से बैठने वाला (अनिष्टृतः) अहिंसित हुआ (वर्धताम्) वृद्धि को प्राप्त हो, बढ़े।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में अग्नि पद द्वारा परमेश्वराग्नि ही अभिप्रेत है, भौतिकाग्नि नहीं। यजुर्वेद (२७।४) में "पूर्वचित्ताः" के स्थान में "पूर्वचितः" पाठ है, जिसका अभिप्राय सम्भव है "पूर्व संचित"। अनिष्टृतः= काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि द्वारा हिंसित, इन वृत्तियों द्वारा अनाच्छादित हुआ। अनिष्टतः = अ + नि (नितराम्) + ष्टृतः, स्तुञ् आच्छाने (क्र्यादिः)।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ईश्वर से बलों की याचना।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) अग्नि या सूर्य या विद्युत् के समान तेजस्वी नेता ! राजन् ! तू (इह एव) इस राष्ट्र में ही (रयिं) धन सम्पत्ति को (अधि धारय) धारण कर। (पूर्व-चित्ताः) पूर्व राजाओं के कार्यों को जानने वाले, (नि-कारिणः) तुझे गद्दी से उतार देने में समर्थ अथवा तुझसे अपमानित या तिरस्कृत लोग (त्वा) तुझको (मा नि क्रन्) तेरे पद से नीचे न करें या तेरा अपमान न करें। हे (अग्ने) राजन् ! सभापते ! यह राष्ट्र (तुभ्यम्) तेरे लिये (क्षत्रेण) क्षात्रबल से (सु-यमम्) सुखपूर्वक व्यवस्था करने योग्य (अस्तु) रहे। (उप-सत्ता) तेरा आश्रय लेने वाली प्रजा (अनि-स्तृतः) कभी मारी न जाकर सदा (वर्धताम् वृद्धि को प्राप्त हो। निकारिणः = ज्ञान कर्म समुच्चय से नाना जन्मों को नीचे करने वाले नितरां यज्ञ करणशील, इत्यादि अर्थ संगत नहीं क्योंकि स्वयं वेद ‘मा निक्रन्’ इस प्रयोग में ‘नि’ पूर्वक ‘कृ’ धातु को पद से नीचे उतार देने अर्थ में प्रयोग करता है। नये पदाधिष्ठित राजा को चाहिए कि वह १. सब रयि (कोष, सम्पत्ति) को अपने वश करले जिसे ‘निकारी’ लोग जो राजा को उसके राजपद से च्युत करने में सशक्त हों और पूर्व राजाओं के राज्य कार्यों से पूर्ण परिचित या पूर्व राजाओं के पक्षकर्ता हों और उसके नवीन राज्य के संचालन में बाधा उपस्थित कर सकें, वे भी उसको राजपद से नीचे न कर सकें। २. फिर वह क्षत्र-बल या सेना-बल से राज्य को अपने वश करे। ३. वह अपने आश्रित लोगों की रक्षा करे कि उनको दूसरे विरोधी पक्ष के लोग न मार सकें।

    टिप्पणी

    द्वि० ‘पूर्वजितो निकारिणः’ (तृ०) ‘क्षत्रमग्ने सुयम’ इति यजु०। अत्र यजुर्वेदे अग्निः प्रजापतिर्ऋषिः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सम्पत्कामः शौनक ऋषिः। अग्निर्देवता। १, ४, ५, ६ त्रिष्टुप्, २ ककुम्मती बृहती, ३ जगती। षडृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prayer to Agni

    Meaning

    Agni, leading light and ruler of the world, bring in, rule over and sustain the wealth and values of life here itself. Let not miscreants with back-loads of mind and memory demoralise you to pull you down. Let every thing be good and smooth for you by the social order of the commonwealth, and may your friends and allies go on rising in strength and support for you, unopposed.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O foremost adorable Lord (Agni) please maintain your wealth just here. Let not the down-putters with their previous intentions (purva-citta) put you down By your sovereignty, you have a natural control over them. Please give more attention, and do not neglect. (Also Yv. XX. VII)

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.87.3AS PER THE BOOK

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let this fire (made means of production) give us here the wealth and let not the oppressors premeditated in their motives guard them against this fire. Let operation of this fire by its power be easy and may the man having scientific approach to this fire grow strong and unconquerable.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O King, amass wealth in this world. Let not the old, exalted, learned persons, ever devoted to action, tolerate thy moral degradation. O ruler, let thy administration be run by just laws. May thy adorers, following nonviolence make thee strong.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(इह) अस्माकं मध्ये (एव) (अग्ने) हे सर्वज्ञ (अधि) अधिकृत्य (धारय) पोषय (रयिम्) धनम् (त्वा) परमेश्वरम् (मा नि क्रन्) मन्त्रे घसह्वर०। पा० २।४।८०। करोतेर्लुङि च्लेर्लुक्। नीचैर्मा कार्षुः (पूर्वचित्ताः) प्राग्विचारवन्तः, घातिन इत्यर्थः (निकारिणः) अपकारिणः (क्षत्रेण)-म० २। विघ्नाद् रक्षकेण राज्येन (अग्ने) सर्वव्यापक (सुयमम्) ईषद्दुःसुषु०। पा० ३।३।१२६। सु+यम नियमने-खल्। यथावद् नियमयुक्तं कर्म (अस्तु) (तुभ्यम्) षष्ठ्यर्थे चतुर्थीति वक्तव्या। वा० पा० २।३।६२। तव (उपसत्ता) षद्लृ विषरणगत्यवसादनेषु-तृच्। उपासकः। आश्रितः (वर्धताम्) (ते) तव (अनिष्टृतः) स्तॄञ् आच्छादने-क्त। स्तृणातिवर्धकर्मा-निघ० २।१९। अहिंसितः। अजेयः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top