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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 86 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 86/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अथर्वा देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - त्राता इन्द्र सूक्त
    1

    त्रा॒तार॒मिन्द्र॑मवि॒तार॒मिन्द्रं॒ हवे॑हवे सु॒हवं॒ शूर॒मिन्द्र॑म्। हु॒वे नु॑ श॒क्रं पु॑रुहू॒तमिन्द्रं॑ स्व॒स्ति न॒ इन्द्रो॑ म॒घवा॑न्कृणोतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रा॒तार॑म् । इन्द्र॑म् । अ॒वि॒तार॑म् । इन्द्र॑म् । हवे॑ऽहवे । सु॒ऽहव॑म् । शूर॑म् । इन्द्र॑म् । हु॒वे । नु । श॒क्रम् । पु॒रु॒ऽहू॒तम् । इन्द्र॑म् । स्व॒स्ति । न॒: । इन्द्र॑: । म॒घऽवा॑न् । कृ॒णो॒तु॒ ॥९१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रं हवेहवे सुहवं शूरमिन्द्रम्। हुवे नु शक्रं पुरुहूतमिन्द्रं स्वस्ति न इन्द्रो मघवान्कृणोतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्रातारम् । इन्द्रम् । अवितारम् । इन्द्रम् । हवेऽहवे । सुऽहवम् । शूरम् । इन्द्रम् । हुवे । नु । शक्रम् । पुरुऽहूतम् । इन्द्रम् । स्वस्ति । न: । इन्द्र: । मघऽवान् । कृणोतु ॥९१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 86; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (त्रातारम्) पालन करनेवाले (इन्द्रम्) बड़े ऐश्वर्यवाले राजा को, (अवितारम्) तृप्त करनेवाले (इन्द्रम्) सभाध्यक्ष [राजा] को, (हवेहवे) संग्राम-संग्राम में (सुहवम्) यथावत् संग्रामवाले, (शूरम्) शूर (इन्द्रम्) सेनापति [राजा] को, (शक्रम्) शक्तिमान्, (पुरुहूतम्) बहुत [लोगों] से पुकारे गये (इन्द्रम्) प्रतापी राजा को (नु) शीघ्र (हुवे) मैं बुलाता हूँ, (मघवान्) बड़ा धनवाला (इन्द्रः) राजा (नः) हमारे लिये (स्वस्ति) मङ्गल (कृणोतु) करे ॥१॥

    भावार्थ

    सब मनुष्य धर्म्मात्मा, न्यायकारी, जितेन्द्रिय, शूरवीर राजा का सदा आदर करें ॥१॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−६।४७।११, यजु० २०।५०, और साम० पू० ४।५।२ ॥

    टिप्पणी

    १−(त्रातारम्) त्रैङ् पालने-तृच्। पालकम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं राजानम् (अवितारम्) तर्पयितारम् (इन्द्रम्) सभाध्यक्षम् (हवेहवे) सङ्ग्रामे सङ्ग्रामे (सुहवम्) यथावत् सङ्ग्रामिणम् (शूरम्) पराक्रमिणम् (इन्द्रम्) सेनापतिम् (हुवे) आह्वयामि (नु) शीघ्रम् (शक्रम्) अ० २।५।४। शक्तिमन्तम् (पुरुहूतम्) बहुभिः पुरुषैराहूतम् (इन्द्रम्) प्रतापिनम् (स्वस्ति) सुखम् (नः) अस्मभ्यम् (इन्द्रः) परमैश्वर्यः (मघवान्) अ० ६।५८।१। धनवान् (कृणोतु) करोतु ॥

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    विषय

    त्राता अविता

    पदार्थ

    १. (त्रातारम् इन्द्रं हुवे) = उस रक्षक सर्वशक्तिमान् प्रभु को पुकारता हूँ। (अवितारम्) = परमैश्वर्य के द्वारा प्रीणित करनेवाले (इन्द्रम्) = प्रभु को पुकारता हूँ। (हवेहवे) = प्रत्येक आह्वान पर (सुहवम्) = सुगमता से पुकारने योग्य (शूरम्) = शत्रुओं को शीर्ण करनेवाले (इन्द्रम्) = सर्वशक्तिमान् प्रभु को पुकारता हूँ। २. (नु) = अब (शक्रम) = शक्तिशाली (पुरुहूतम्) = बहुतों से पुकारे गये (इन्द्रम्) = परमैश्वर्यशाली प्रभु को पुकारता हूँ। वह (मघवान्) = सब ऐश्वर्योवाला (इन्द्रः) = सर्वशक्तिमान् प्रभु (नः) = हमारा (स्वस्ति) = कल्याण (कृणोतु) = करे।

    भावार्थ

    वे प्रभु हमारा रक्षण, प्रीणन व कल्याण करते हैं। उन शक्तिशाली, ऐश्वर्य सम्पन्न प्रभु को हम पुकारते हैं।

     

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    भाषार्थ

    (त्रातारम्) रक्षा करने वाले (इन्द्रम्) सम्राट् को, (अवितारम्) वृद्धि करने वाले (इन्द्रम्) सम्राट् को, (हवे हवे) प्रत्येक आह्वान में (सुहवम्) सुगमता से आहूत किये जा सकने वाले (शूरम्) शूर वीर (इन्द्रम्) सम्राद् को (शक्रम्) शक्तिशाली, (पुरुहूतम्) बहुतों द्वारा आहूत हुए (इन्द्रम्) सम्राट् को (नु) शीघ्रता से, आसानी से (हुवे) आह्वान करता हूं, ताकि (मघवान् इन्द्रः) धनवान् सम्राट् (नः) हमारा (स्वस्ति) कल्याण (कृणोतु) करे।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में आह्वान करने वाला प्रजा का प्रतिनिधि, या प्रधानमन्त्री है। अवितारम्= अव वृद्धौ (भ्वादिः)।]

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    विषय

    स्वस्त्यनकामोऽथर्वा ऋषिः इन्द्रो देवता। त्रिष्टुप् छन्दः। एकर्चं सूक्तम्॥

    भावार्थ

    मैं (इन्द्रम्) इन्द्र को (हुवे) बुलाता हूं। (अवितारम् इन्द्रम्) रक्षाकारी, शत्रुओं से बचाने वाले इन्द्र को (हुवे) बुलाता हूं। (हवे-हवे) प्रत्येक यज्ञ में या जब जब बुलाया जाय तब तव (सु-हवं) सुखपूर्व स्मरण करने योग्य, स्वयमेव सहायतार्थ उपस्थित होने वाले (शूरं) शूरवीर (इन्द्रं हुवे) इन्द्र को बुलाता हूं। (नु) और (शक्तं) शक्तिमान् (पुरु-हूतं) इन्द्रियों से पूजित आत्मा और प्रजाओं से सत्कृत राजा (इन्द्रं) इन्द्र को मैं बुलाता हूं। (इन्द्रः) वह इन्द्र (मघवान्) धन ऐश्वर्य आदि से सम्पन्न होकर (नः) हमारा (स्वस्ति) कल्याण (कृणोतु) करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    स्वस्त्यनकामोऽथर्वा ऋषिः इन्द्रो देवता। त्रिष्टुप् छन्दः। एकर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Ruler and the People

    Meaning

    From one challenging situation to another, I invoke and adore Indra the saviour, Indra the protector, Indra the brave and adorable, and Indra of noble deeds invoked by all. May Indra, mighty glorious ruler, bless us with peace, progress and all round well being.

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    Subject

    Indrah

    Translation

    At repeated worships, I invoke the resplendent Lord, the preserver, the rescuer, the brave and the one, who is easily propitiated. The Lord is invoked by all. May He, the bounteous Lord, bestow prosperity on us. (Also Rg. VI.47.11)

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.91.1AS PER THE BOOK

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    Translation

    I invoke Almighty God who is protector, I adore Almighty God who is rescuer, I pray Almighty God who is brave praiseworthy in our invocation, I invoke Almighty God who is the Supreme Power and worshipped by all. may Almighty God who is the master of all wealth prosper and bless us.

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    Translation

    God, the Rescuer, God, the Helper, God, the Brave, Who hears each invocation, God, the Almighty, Invoked of many, I call. May the Opulent God, prosper and bless us.

    Footnote

    The verse can apply to the King or Commander-in-chief as well.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(त्रातारम्) त्रैङ् पालने-तृच्। पालकम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं राजानम् (अवितारम्) तर्पयितारम् (इन्द्रम्) सभाध्यक्षम् (हवेहवे) सङ्ग्रामे सङ्ग्रामे (सुहवम्) यथावत् सङ्ग्रामिणम् (शूरम्) पराक्रमिणम् (इन्द्रम्) सेनापतिम् (हुवे) आह्वयामि (नु) शीघ्रम् (शक्रम्) अ० २।५।४। शक्तिमन्तम् (पुरुहूतम्) बहुभिः पुरुषैराहूतम् (इन्द्रम्) प्रतापिनम् (स्वस्ति) सुखम् (नः) अस्मभ्यम् (इन्द्रः) परमैश्वर्यः (मघवान्) अ० ६।५८।१। धनवान् (कृणोतु) करोतु ॥

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