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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 93 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 93/ मन्त्र 1
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    1

    इन्द्रे॑ण म॒न्युना॑ व॒यम॒भि ष्या॑म पृतन्य॒तः। घ्नन्तो॑ वृ॒त्राण्य॑प्र॒ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रे॑ण । म॒न्युना॑ । व॒यम् । अ॒भि । स्या॒म॒ । पृ॒तन्य॒त: । घ्नन्त॑: । वृ॒त्राणि॑ । अ॒प्र॒ति ॥९८.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रेण मन्युना वयमभि ष्याम पृतन्यतः। घ्नन्तो वृत्राण्यप्रति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रेण । मन्युना । वयम् । अभि । स्याम । पृतन्यत: । घ्नन्त: । वृत्राणि । अप्रति ॥९८.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 93; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शूरों के लक्षणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्रेण) प्रतापी सेनापति के साथ और (मन्युना) क्रोध के साथ (वृत्राणि) [घेरनेवाले] सेनादलों को (अप्रति) बेरोक (घ्नन्तः) मारते हुए (वयम्) हम लोग (पृतन्यतः) सेना चढ़ानेवालों को (अभि स्याम्) हरा देवें ॥१॥

    भावार्थ

    शूर सेनानी के साथ समस्त सेना शूर होकर शत्रुओं को मारे ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(इन्द्रेण) परमैश्वर्यवता सेनापतिना (मन्युना) क्रोधेन (वयम्) सैनिकाः (अभि स्याम) अभिभवेम (पृतन्यतः) अ० १।२१।२। पृतनां सेनामात्मन इच्छतः शत्रून् (घ्नन्तः) मारयन्तः (वृत्राणि) आवरकाणि सेनादलानि (अप्रति) प्रतिपक्षम् ॥

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    विषय

    मन्युना इन्द्रेण इन्द्रेण

    पदार्थ

    १.(मन्युना) [मन्यतिःसिकर्मा] = [मन्युमता] दीसिवाले (इन्द्रेण) = शत्रुओं के विद्रावक प्रभु की सहायता से (बयम्) = हम (पृतन्यतः) = संग्राम को चाहनेवाले युयुत्सु शत्रुओं को (अभिष्याम) = अभिभूत करनेवाले हों। हम (वृत्राणि) = ज्ञान पर पर्दा डाल देनेवाले पापों को [काम, क्रोध आदि शत्रुओं को] (अप्रति) = प्रतिपक्ष को शेष न रहने देते हुए (घ्नन्तः) = विनष्ट करते हुए, शत्रुओं को जीतनेवाले हों।

    भावार्थ

    दीप्तिमान् प्रभु को साथी पाकर हम संग्रामेच्छ शत्रुओं को पराजित करें। ज्ञान के आवरण बने हुए इन काम-क्रोध आदि को प्रभुकृपा से नि:शेष कर डालें।

    काम-क्रोध को समाप्त करके यह अथर्वा'-न डॉवाडोल होता है। अगले सूक्त में यही ऋषि है -

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    भाषार्थ

    (इन्द्रेण) सम्राट् [की सहायता द्वारा], (मन्युना) तथा साम्राज्य-प्रजा के (मन्युना) मननपूर्वक क्रोध द्वारा, (वयम्) हम राष्ट्रिय-प्रजाजन या राष्ट्राधिकारी वर्ग (पृतन्यतः) युद्धेच्छुक शत्रु का (अभि स्याम) पराभव करें (वृत्राणि) राष्ट्र का आवरण करने वाले, घेरा डालने वाले शत्रुओं का (अप्रति) उन द्वारा विना प्रतिपक्ष हुए (घ्नन्तः) हनन करते हुए।

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    विषय

    राजा के पराक्रम से शत्रुओं का विजय।

    भावार्थ

    (मन्युना) ज्ञानदीप्ति विवेक और असह्य तेज प्रताप से युक्त मन्युस्वरूप (इन्द्रेण) राजा के साथ (वयम्) हम, (पृतन्यतः) सेना द्वारा युद्ध करनेहारे शत्रुओं का और (वृत्राणि) सब प्रकार के विघ्नों और उपद्रवों का (अप्रति) सर्वथा, निःशेष रूप से (घ्नन्तः) विनाश करते हुए (अभि स्याम) जीत लें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वङ्गिरा ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्री छन्दः। एकर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Ruler

    Meaning

    With the power, force and high morale of Indra, ruler, commander and leader, let us too be conquerors of our fighting enemies, throwing out and destroying all surrounding forces of darkness, want and ignorance.

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    Subject

    Indrah

    Translation

    With the (aid of the) resplendent Lord, glowing with enthusiasm, may we subdue the invading hosts, killing the besiegers relentlessly.

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.98.1AS PER THE BOOK

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    Translation

    With the aid of the effulgent power of Almighty God may we subdue our inimical tendencies destroying completely our internal enemies—passion aversion etc.

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    Translation

    With the aid of the king, filled with righteous indignation, may we subdue our enemies, willing to attack us, and resistlessly remove all impediments.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(इन्द्रेण) परमैश्वर्यवता सेनापतिना (मन्युना) क्रोधेन (वयम्) सैनिकाः (अभि स्याम) अभिभवेम (पृतन्यतः) अ० १।२१।२। पृतनां सेनामात्मन इच्छतः शत्रून् (घ्नन्तः) मारयन्तः (वृत्राणि) आवरकाणि सेनादलानि (अप्रति) प्रतिपक्षम् ॥

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