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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - त्रिपदार्ची पङ्क्तिः सूक्तम् - विराट् सूक्त
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    वि॒राड्वा इ॒दमग्र॑ आसी॒त्तस्या॑ जा॒तायाः॒। सर्व॑मबिभेदि॒यमे॒वेदं भ॑वि॒ष्यतीति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒ऽराट् । वै । इ॒दम् । अग्रे॑ । आ॒सी॒त् । तस्या॑: । जा॒ताया॑: । सर्व॑म्‌ । अ॒बि॒भे॒त् । इ॒यम् । ए॒व । इ॒दम् । भ॒वि॒ष्यति॑ । इति॑ ॥१०.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विराड्वा इदमग्र आसीत्तस्या जातायाः। सर्वमबिभेदियमेवेदं भविष्यतीति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विऽराट् । वै । इदम् । अग्रे । आसीत् । तस्या: । जाताया: । सर्वम्‌ । अबिभेत् । इयम् । एव । इदम् । भविष्यति । इति ॥१०.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 1; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्म विद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (विराट्) विराट् [विविध ईश्वरी, ईश्वरशक्ति] (वै) ही (अग्रे) पहिले ही पहिले (इदम्) यह [जगत्] (आसीत्) थी, (तस्याः जातायाः) उस प्रकट हुई से (सर्वम्) सबका सब (अबिभेत्) डरने लगा, “(इति) बस, (इयम् एव) यही (इदम्) यह [जगत्] (भविष्यति) हो जायगी” ॥१॥

    भावार्थ

    सृष्टि से पहिले एक ईश्वरशक्ति थी, जिससे ही होनहार सृष्टि उत्पन्न होने के लिये अनुभव होती थी, उसी का वर्णन अगले मन्त्रों में है ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(विराट्) अ० ८।९।१। विविधेश्वरी। विविधप्रकाशमाना। ईश्वरशक्तिः (वै) एव (इदम्) जगत् (अग्रे) सृष्टेः प्राक् (तस्याः) विराजः सकाशात् (जातायाः) प्रादुर्भूतायाः (सर्वम्) सकलं जगत् (अबिभेत्) भयमगच्छत् (इयम्) विराट् (एव) (इदम्) (भविष्यति) प्राकट्यं प्राप्स्यति (इति) समाप्तौ। पर्य्याप्ते। परामर्शे ॥

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    विषय

    विराट् से गार्हपत्य में

    पदार्थ

    १. यहाँ काव्यमय भाषा में शासन-व्यवस्था के विकास का सुन्दर वर्णन हुआ है। (अग्रे) = पहले (वै) = निश्चय से (इदम्) = यह (विराट्) = [वि-राट्] राजा से रहित स्थिति आसीत् थी। कोई शासक न था। (तस्याः जाताया:) = उस प्रादुर्भूत हुई-हुई अराजकता की स्थिति से (सर्वं अबिभेत्) = सभी भयभीत हो उठे कि (इयं एव) = यह विराट् अवस्था ही (इदं भविष्यति) = इस जगत् को प्राप्त होगी [भू प्राप्ती] (इति) = क्या इसी प्रकार यह सब रहेगा? २. इसप्रकार सबके भयभीत होने पर सबमें विचार उठा। एक घर में परिवार के व्यक्तियों ने मिलकर सोचा कि क्या करना चाहिए? परिणामतः (सा) = वह विराट् अवस्था (उदक्रामत्) = उत्क्रान्त हुई। उसमें कुछ सुधार हुआ और प्रत्येक घर में एक व्यक्ति प्रमुख बनाया गया। इसप्रकार (सा) = विराट् अवस्था उत्क्रान्त होकर (गार्हपत्ये न्यक्रामत्) = गार्हपत्य में आकर स्थित हुई। प्रत्येक घर में गृहपति का शासन स्थापित हो गया। घर में अराजकता का लोप हो गया। (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार गाईपत्य व्यवस्था के महत्व को समझ लेता है, वह (गृहमेधी भवति) = गृहस्थ यज्ञ को सुन्दरता से चलानेवाला होता है, (गृहपतिः भवति) = गृहपति बनता है-अराजकता पैदा न होने देकर घर का रक्षण करता है।

    भावार्थ

    विराट् [अराजकता] की स्थिति सबको भयंकर प्रतीत हुई, अत: लोगों ने विचार कर प्रत्येक घर में एक को मुखिया नियत किया। यही 'गार्हपत्य' कहलायी। इससे घर में अराजकता का लोप होकर शान्ति की स्थिति उत्पन्न हुई।

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    भाषार्थ

    (इदम्) यह दृश्यमान जगत् (अग्रे) मानुष-सृष्टि से पहिले, (वै) निश्चय से, (विराट्) राज्यव्यवस्था से विहीन (आसीत्) था [अर्थात् मानुषी राज्यव्यवस्था उस में न थी], (तस्याः जातायाः) मानुष-सृष्टि में उस के प्रादुर्भाव हो जाने से (सर्वम्) सब [मानुष वर्ग] (अबिभेत्) भयभीत हो गया, [और कहने लगा] कि (इयम्) यह [राज्यविहीन अवस्था] (एव) ही (इदम्) इस रूप में (भविष्यति, इति) भविष्य में होगी, रहेगी।

    टिप्पणी

    [मानुष-सृष्टि से पूर्व केवल ईश्वरीय व्यवस्था थी, उस समय मानुषी-सृष्टि अभी पैदा ही नहीं हुई थी, अतः मनुष्यकृत भय भी उस समय न था। यह वर्णन ऐतिहासिक वृत्त नहीं अपितु सृष्ट्युत्पत्ति का दार्शनिकरूप है। यह एक विचाररूप है कि प्रारम्भ में सामाजिक तथा राजनैतिक अवस्था किस प्रकार की होनी सम्भावित है। और किस प्रक्रिया से मानुष जगत् में सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था का विकास हुआ होगा। यह तो मन्त्र (१) द्वारा स्पष्ट है कि इस व्यवस्था का विकास "भयमूलक" है]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Virat

    Meaning

    This Virat Sukta is third on the Virat-Brahma theme, in continuation of 5,1 and 8,9. It has six thematic variations which have to be interpreted not as different but as complementary and developmental. Paryaya 1 Virat, the state of nature, was there before this state of organised order. When Virat arose (as a state without organised order) everyone grew conscious and feared: This state will continue as it is. (That state of natural freedom might deteriorate into disorder, this could be the fear.)

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    Subject

    Virat

    Translation

    In the beginning, surely, Viraj (an immense blaze) was this (universe). When she was born, all were afraid that she alone will be this (universe).

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    Translation

    This universe before coming into its manifestative state was Virat, the tenacious nebulous matter. At the stage of its manifestation process all that was included and collected in jts fold feared as the thought that it would become all caused terror.

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    Translation

    In the beginning existed Matter in its primordial, subtle form. On its change from the invisible to the visible state, all were struck with terror, thinking that this matter in its visible shape, will become the universe.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(विराट्) अ० ८।९।१। विविधेश्वरी। विविधप्रकाशमाना। ईश्वरशक्तिः (वै) एव (इदम्) जगत् (अग्रे) सृष्टेः प्राक् (तस्याः) विराजः सकाशात् (जातायाः) प्रादुर्भूतायाः (सर्वम्) सकलं जगत् (अबिभेत्) भयमगच्छत् (इयम्) विराट् (एव) (इदम्) (भविष्यति) प्राकट्यं प्राप्स्यति (इति) समाप्तौ। पर्य्याप्ते। परामर्शे ॥

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