अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 1
उप॒मितां॑ प्रति॒मिता॒मथो॑ परि॒मिता॑मु॒त। शाला॑या वि॒श्ववा॑राया न॒द्धानि॒ वि चृ॑तामसि ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒प॒ऽमिता॑म् । प्र॒ति॒ऽमिता॑म् । अथो॒ इति॑ । प॒रि॒ऽमिता॑म् । उ॒त । शाला॑या: । वि॒श्वऽवा॑राया: । न॒ध्दानि॑ । वि । चृ॒ता॒म॒सि॒ ॥ ३.१॥
स्वर रहित मन्त्र
उपमितां प्रतिमितामथो परिमितामुत। शालाया विश्ववाराया नद्धानि वि चृतामसि ॥
स्वर रहित पद पाठउपऽमिताम् । प्रतिऽमिताम् । अथो इति । परिऽमिताम् । उत । शालाया: । विश्वऽवाराया: । नध्दानि । वि । चृतामसि ॥ ३.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]
पदार्थ
(विश्ववारायाः) सब ओर द्वारोंवाली वा सब श्रेष्ठ पदार्थोंवाली (शालायाः) शाला की (उपमिताम्) उपमायुक्त [देखने में सराहने योग्य], (प्रतिमिताम्) प्रतिमानयुक्त [जिसके आमने-सामने की भीतें, द्वार, खिड़की आदि एक नाप में हों] (अथो) और भी (परिमिताम्) परिमाणयुक्त [चारों ओर से नाप कर सम चौरस की हुई] [बनावट] को (उत) और (नद्धानि) बन्धनों [चिनाई, काष्ठ आदि के मेलों] को (वि चृतामसि) हम अच्छे प्रकार ग्रन्थित [बन्धनयुक्त] करते हैं ॥१॥
भावार्थ
मनुष्यों को योग्य है कि विचारपूर्वक प्रतिकृति अर्थात् चित्र बनाकर घरों को उत्तम सामग्री से भले प्रकार सुथरे, सुडौल, सुदृश्य, दिखनौत, और चित्तविनोदक बनावें ॥१॥ यह मन्त्र स्वामीदयानन्दकृत संस्कारविधि-गृहाश्रमप्रकरण में व्याख्यात है ॥ इस सूक्त के संस्कारविधि में आये सब मन्त्रों का अर्थ प्रशंसित महात्मा के आधार पर किया गया है ॥
टिप्पणी
१−(उपमिताम्) माङ् माने-क्त। द्यतिस्यतिमास्थामित्ति किति। पा० ७।४।४०। आकारस्य इकारः। उपमायुक्ताम् प्रशंसायुक्ताम् (प्रतिमिताम्) माङ्-क्त। प्रतिमानयुक्ताम्। मानप्रतिमानेन सदृशीकृताम् (अथो) अपि च (परिमिताम्) माङ्-क्त। कृतपरिमाणाम्। सर्वतो मानेन समीकृताम्। रचनामिति शेषः (उत) अपि च (शालायाः) अ० ३।१२।१। गृहस्य (विश्ववारायाः) अ० ७।२०।४। वृञ् वरणे-घञ्। विश्वतो वारा द्वाराणि यस्यां तस्याः। सर्वे वाराः श्रेष्ठपदार्थाः यस्यां तस्याः। (नद्धानि) णह बन्धने-क्त। बन्धनानि (वि) विशेषेण (चृतामसि) चृती हिंसाग्रन्थनयोः। ग्रन्थयामः। बध्नीमः। दृढीकुर्मः ॥
विषय
विश्ववारा शाला
पदार्थ
१. (विश्ववाराया:) = [वार-द्वार व वरणीय पदार्थ] सब ओर द्वारोंवाली व वरणीय पदार्थोंवाली (शालायाः = शाला की (उपमिताम्) = उपमायुक्त [देखने में सराहने योग्य] (प्रतिमिताम्) = प्रतिमानयुक्त [जिसके आमने-सामने की भीतें, द्वार, खिड़की आदि एक नाप में हों] (अथो) = और (परिमिताम्) = परिमाणयुक्त [चारों ओर से नापकर चौरस की हुई] बनावट को (उत) = और (नद्धानि) = बन्धनों को [चिनाई व काठ आदि के मेलों को] (विचृतामसि) = हम अच्छी प्रकार प्रथित करते हैं।
भावार्थ
हम गृह को 'उपमित, प्रतिमित व परिमित' बनाने का ध्यान करें। इसमें सब ओर द्वार हों। यह सब वरणीय वस्तुओं से युक्त हो। इसके बन्धन दृढ़ व सुग्रथित हों।
भाषार्थ
(उपमिताम्) उपमारूप, (अथ उ प्रतिमिताम्) और प्रतिमारूप, (उत परिमिताम्) तथा सब ओर से मापी गई, [शाला को] (विचृतामसि) हम विशेषतया ग्रथित करते हैं। (विश्ववारायाः) सब ओर द्वारों वाली या सब ओर से आवृत हुई (शालायाः) शाला के (नद्धानि) बन्धनों को (विचृतामसि) विशेषतया हम ग्रथित करते हैं।
टिप्पणी
[उपमिताम्= शाला के निर्माण में उपमारूप, आदर्शरूप। प्रतिमिताम् = जिसमें आमने-सामने के द्वार तथा खिड़कियां परस्पर में प्रतिरूप है, प्रतिच्छाया रूप (Image) हैं, परस्पर सदृश हैं। विश्ववारायाः= वारः= A door gate (आप्टे), तथा “that which covers" (आप्टे) वि चृतामसि= चृती हिंसाग्रन्थयोः (तुदादिः)। यहां ग्रन्थन अर्थ प्रतीत होता है। शाला को स्थानान्तरित करना है (२४), इसलिये इसके बन्धनों को अधिक ग्रथित करने का विधान हुआ है।]
इंग्लिश (4)
Subject
The Good House
Meaning
We build the house well designed, well proportioned and well measured to the last point of finish. Of the spacious, well ventilated house open on all sides, we bind, strengthen and firm up the joints, connections and interconnections to the last details of specifications.
Subject
Atma (self)
Translation
Of this mansion, that contains all the choicest things, we hereby unite the ceremonial barring ropes, tied to its pillars (upamitam), to its stays (pratimitam) as well as to its beams (parimitam).
Translation
We construct the house symmetrical, spacious and well measured. We loose all kinds of fastening and ties of the house which it has in the time of construction.
Translation
Let us construct a beautiful, well-designed, commodious house. Let us strengthen the ties and fastenings of the house that has doors on all sides and holds all precious things.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(उपमिताम्) माङ् माने-क्त। द्यतिस्यतिमास्थामित्ति किति। पा० ७।४।४०। आकारस्य इकारः। उपमायुक्ताम् प्रशंसायुक्ताम् (प्रतिमिताम्) माङ्-क्त। प्रतिमानयुक्ताम्। मानप्रतिमानेन सदृशीकृताम् (अथो) अपि च (परिमिताम्) माङ्-क्त। कृतपरिमाणाम्। सर्वतो मानेन समीकृताम्। रचनामिति शेषः (उत) अपि च (शालायाः) अ० ३।१२।१। गृहस्य (विश्ववारायाः) अ० ७।२०।४। वृञ् वरणे-घञ्। विश्वतो वारा द्वाराणि यस्यां तस्याः। सर्वे वाराः श्रेष्ठपदार्थाः यस्यां तस्याः। (नद्धानि) णह बन्धने-क्त। बन्धनानि (वि) विशेषेण (चृतामसि) चृती हिंसाग्रन्थनयोः। ग्रन्थयामः। बध्नीमः। दृढीकुर्मः ॥
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