अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 8
अक्षु॒मोप॒शं वित॑तं सहस्रा॒क्षं वि॑षू॒वति॑। अव॑नद्धम॒भिहि॑तं॒ ब्रह्म॑णा॒ वि चृ॑तामसि ॥
स्वर सहित पद पाठअक्षु॑म् । ओ॒प॒शम् । विऽत॑तम् । स॒ह॒स्र॒ऽअ॒क्षम् । वि॒षु॒ऽवति॑ । अव॑ऽनध्दम् । अ॒भिऽहि॑तम् । ब्रह्म॑णा । वि । चृ॒ता॒म॒सि॒ ॥३.८॥
स्वर रहित मन्त्र
अक्षुमोपशं विततं सहस्राक्षं विषूवति। अवनद्धमभिहितं ब्रह्मणा वि चृतामसि ॥
स्वर रहित पद पाठअक्षुम् । ओपशम् । विऽततम् । सहस्रऽअक्षम् । विषुऽवति । अवऽनध्दम् । अभिऽहितम् । ब्रह्मणा । वि । चृतामसि ॥३.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]
पदार्थ
(विषुवति) व्याप्तिवाले [ऊँचे] स्थान पर (विततम्) फैले हुए, (सहस्राक्षम्) सहस्रों व्यवहार वा झरोखेवाले (ओपशम्) उपयोगी, (ब्रह्मणा) वेदज्ञ विद्वान् करके (अवनद्धम्) अच्छे प्रकार छाये गये और (अभिहितम्) बताये गये (अक्षुम्) व्याप्तिवाले [सर्वदर्शक स्तम्भगृह] को (विचृतामसि) हम अच्छे प्रकार ग्रन्थित करते हैं ॥८॥
भावार्थ
विद्वान् लोग विद्वान् शिल्पियों की सम्मति से ऊँचे स्थान पर सर्वदर्शक स्तम्भ, अर्थात्, ज्योतिष चक्र, प्रकाश लाट, घटिकाधान आदि सर्वोपयोगी स्थान बनावें ॥८॥
टिप्पणी
८−(अक्षुम्) अक्षू व्याप्तौ संघाते च-उ। व्याप्तं सर्वदर्शकं स्तम्भगृहम् (ओपशम्) आ+उप+शीङ् स्वप्ने-ड। अर्शआद्यच्। बहूपशयम्। सर्वोपयोगिनम् (विततम्) विस्तृतम् (सहस्राक्षम्) सहस्राणि व्यवहारा गवाक्षा वा यस्मिन् तम् (विषुवति) विष्लृ व्याप्तौ-कु, मतुप्। व्याप्तिमति। उच्चस्थाने (अवनद्धम्) आच्छादिनम् (अभिहितम्) कथितम्। विज्ञापितम् (ब्रह्मणा) वेदज्ञेन विप्रेण शिल्पिना (वि चृतामसि) विशेषेण ग्रन्थयामः ॥
विषय
ओपशं अक्षु
पदार्थ
१. जब कभी घरों पर कुछ लम्बे यज्ञों का विधान होता है तब उन यज्ञ के दिनों में केन्द्रीभूत दिन "विधूवत्' कहाता है [The central day in sacrifical session] | इस (विषुवति) = यज्ञों के केन्द्रीभूत दिन के अवसर पर (ओपशम्) = गृह के शिरोभूषणरूप इस (अक्षुम्) = जाल को (ब्रह्मणा) = वेद के निर्देशानुसार-ज्ञानपूर्वक (विचृतामसि) = विशेषरूप से ग्रथित करते हैं। २. यह जाल (विततम्) = फैला हुआ-विस्तृत है, (सहस्त्राक्षम्) = हज़ारों आँखों-झरोखोंवाला है, (अवनद्धम्) = नीचे से सम्यक् बद्ध है तथा (अभिहितम्) = चारों ओर से सम्यक् बद्ध हुआ है।
भावार्थ
यज्ञों के अवसर पर केन्द्रीभूत [मुख्य] दिन में घर में जो जाल [तम्बू]-सा लगाया जाए वह शोभा को बढ़ानेवाला, प्रकाश व वायु के लिए सहस्रों झरोखोंवाला, नीचे से चारों ओर से सम्यक् बद्ध हो।
भाषार्थ
(विषूवति) विविध प्राणियों को पैदा करने वाली हे शाला ! (सहस्राक्षम्) हजारों झरोखों वाला (विततम्) विस्तृत (अक्षम्) जाल (ओपशम्) तेरा शिरोभूषण रूप है जोकि (ब्रह्मणा) ब्राह्मण-पुरोहित द्वारा (अवनद्धम्) [द्वार के सिर पर] बान्धा गया है, (अभिहितम्) और जो वेद में कथित हुआ है, उसे (वि नृतामसि) हम विशेषतया ग्रथित करते हैं।
टिप्पणी
[विषूवति = वि + षङ्१ (प्रसवे) + वति, सम्बोधने] ओपशम् (देखो १४।११।८;६।१३८।१,२)] [१. तथा षूङ् प्राणिगर्भविमोचने (अदादिः)।]
इंग्लिश (4)
Subject
The Good House
Meaning
Spacious, centrally situated on a large plot of land, imposing in view against a skyey background and studded with innumerable sky lights and beauties, designed, built and certified by a Vedic architect, we complete the beautiful home with a wreath of flowers at the door on the Entrance ceremony.
Translation
The thousand-eyed ceremonial net, which has been stretched as a diadem, tied and firmly laid upon the central beam, that we unfasten with prayer.
Translation
I loose the wreath of leaves which has many holes and 1s tied round, which is bound securely with the Vedic mantras at the time of entrance ceremony.
Translation
We construct an elevated thousand-eyed, commodious, serviceable, vast, securely tied and well-designed house.
Footnote
Thousand-eyed: Having several skylights.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(अक्षुम्) अक्षू व्याप्तौ संघाते च-उ। व्याप्तं सर्वदर्शकं स्तम्भगृहम् (ओपशम्) आ+उप+शीङ् स्वप्ने-ड। अर्शआद्यच्। बहूपशयम्। सर्वोपयोगिनम् (विततम्) विस्तृतम् (सहस्राक्षम्) सहस्राणि व्यवहारा गवाक्षा वा यस्मिन् तम् (विषुवति) विष्लृ व्याप्तौ-कु, मतुप्। व्याप्तिमति। उच्चस्थाने (अवनद्धम्) आच्छादिनम् (अभिहितम्) कथितम्। विज्ञापितम् (ब्रह्मणा) वेदज्ञेन विप्रेण शिल्पिना (वि चृतामसि) विशेषेण ग्रन्थयामः ॥
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