ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 47/ मन्त्र 1
अ॒या सोम॑: सुकृ॒त्यया॑ म॒हश्चि॑द॒भ्य॑वर्धत । म॒न्दा॒न उद्वृ॑षायते ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒या । सोमः॑ । सु॒ऽकृ॒त्यया॑ । म॒हः । चि॒त् । अ॒भि । अ॒व॒र्ध॒त॒ । म॒न्दा॒नः । उत् । वृ॒ष॒ऽय॒ते॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अया सोम: सुकृत्यया महश्चिदभ्यवर्धत । मन्दान उद्वृषायते ॥
स्वर रहित पद पाठअया । सोमः । सुऽकृत्यया । महः । चित् । अभि । अवर्धत । मन्दानः । उत् । वृषऽयते ॥ ९.४७.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 47; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
विषय - अब परमात्मा उद्योग का उपदेश करते हैं।
पदार्थ -
(सोमः) परमात्मा (अया सुकृत्यया) विद्वानों के शुभकर्म्मों से (मन्दानः) हर्ष को प्राप्त होता हुआ (महश्चित् अभ्यवर्धत) उनको अत्यन्त अभ्युदय को प्राप्त कराता है और (उद् वृषायते) उन विद्वानों के लिये बल प्रदान करता है ॥१॥
भावार्थ - हे अभ्युदयाभिलाषी जनों ! यदि आप अभ्युदय को चाहते हैं, तो एकमात्र परमात्मा की शरण को प्राप्त होकर उद्योगी बनें ॥१॥
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