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- औच्छत्सा रात्री परितक्म्या याँ ऋणंचये राजनि रुशमानाम्। अत्यो न वाजी रघुरज्यमानो बभ्रुश्चत्वार्यसनत्सहस्रा ॥१४॥ - Rigveda/5/30/14
- औदुम्बरेण मणिना पुष्टिकामाय वेधसा। पशूणां सर्वेषां स्फातिं गोष्ठे मे सविता करत् ॥ - Atharvaveda/19/31/0/1
- और्वभृगुवच्छुचिमप्नवानवदा हुवे । अग्निं समुद्रवाससम् ॥ - Rigveda/8/102/4
- और्वभृगुवच्छुचिमप्नवानवदा हुवे । अग्निꣳ समुद्रवाससम् ॥१८॥ - Samveda/18