ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 113/ मन्त्र 1
ऋषिः - कुत्स आङ्गिरसः
देवता - उषाः द्वितीयस्यार्द्धर्चस्य रात्रिरपि
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
इ॒दं श्रेष्ठं॒ ज्योति॑षां॒ ज्योति॒रागा॑च्चि॒त्रः प्र॑के॒तो अ॑जनिष्ट॒ विभ्वा॑। यथा॒ प्रसू॑ता सवि॒तुः स॒वायँ॑ ए॒वा रात्र्यु॒षसे॒ योनि॑मारैक् ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम् । श्रेष्ठ॑म् । ज्योति॑षाम् । ज्योतिः॑ । आ । अ॒गा॒त् । चि॒त्रः । प्र॒ऽके॒तः । अ॒ज॒नि॒ष्ट॒ । विऽभ्वा॑ । यथा॑ । प्रऽसू॑ता । स॒वि॒तुः । स॒वाय॑ । ए॒व । रात्री॑ । उ॒षसे॑ । योनि॑म् । अ॒रै॒क् ॥
स्वर रहित मन्त्र
इदं श्रेष्ठं ज्योतिषां ज्योतिरागाच्चित्रः प्रकेतो अजनिष्ट विभ्वा। यथा प्रसूता सवितुः सवायँ एवा रात्र्युषसे योनिमारैक् ॥
स्वर रहित पद पाठइदम्। श्रेष्ठम्। ज्योतिषाम्। ज्योतिः। आ। अगात्। चित्रः। प्रऽकेतः। अजनिष्ट। विऽभ्वा। यथा। प्रऽसूता। सवितुः। सवाय। एव। रात्री। उषसे। योनिम्। अरैक् ॥ १.११३.१
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 113; मन्त्र » 1
अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
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अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
तत्रादिममन्त्रे विद्वद्गुणा उपदिश्यन्ते।
अन्वयः
यथा प्रसूता रात्री सवितुः सवायोषसे योनिमारैक् तथैव चित्रः प्रकेतो विद्वान् यदिदं ज्योतिषां श्रेष्ठं ज्योतिर्ब्रह्मागात्तेनैव विभ्वा सह सुखैश्वर्य्यायाजनिष्ट दुःखस्थानादारैक् ॥ १ ॥
पदार्थः
(इदम्) प्रत्यक्षं वक्ष्यमाणम् (श्रेष्ठम्) प्रशस्तम् (ज्योतिषाम्) प्रकाशानाम् (ज्योतिः) प्रकाशम् (आ) समन्तात् (अगात्) प्राप्नोति (चित्रः) अद्भुतः (प्रकेतः) प्रकृष्टप्रज्ञः (अजनिष्ट) जायते (विभ्वा) विभुना परमेश्वरेण सह। अत्र तृतीयैकवचनस्थाने आकारादेशः। (यथा) (प्रसूता) उत्पन्ना (सवितुः) सूर्य्यस्य सम्बन्धेन (सवाय) ऐश्वर्याय (एव) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (रात्री) (उषसे) प्रातःकालाय (योनिम्) (गृहम्) (आरैक्) व्यतिरिणक्ति ॥ १ ॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। यथा सूर्योदयं प्राप्यान्धकारो विनश्यति तथैव ब्रह्मज्ञानमवाप्य दुःखं विनश्यति। अतः सर्वैर्ब्रह्मज्ञानाय यतितव्यम् ॥ १ ॥
हिन्दी (3)
विषय
अब आठवें अध्याय का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों के गुणों का उपदेश किया है ।
पदार्थ
(यथा) जैसे (प्रसूता) उत्पन्न हुई (रात्री) निशा (सवितुः) सूर्य्य के सम्बन्ध से (सवाय) ऐश्वर्य्य के हेतु (उषसे) प्रातःकाल के लिये (योनिम्) घर-घर को (आरैक्) अलग-अलग प्राप्त होती है, वैसे ही (चित्रः) अद्भुत गुण, कर्म स्वभाववाला (प्रकेतः) बुद्धिमान् विद्वान् जिस (इदम्) इस (ज्योतिषाम्) प्रकाशकों के बीच (श्रेष्ठम्) अतीवोत्तम (ज्योतिः) प्रकाशस्वरूप ब्रह्म को (आ, अगात्) प्राप्त होता है, (एव) उसी (विभ्वा) व्यापक परमात्मा के साथ सुखैश्वर्य के लिये (अजनिष्ट) उत्पन्न होता और दुःखस्थान से पृथक् होता है ॥ १ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सूर्योदय को प्राप्त होकर अन्धकार नष्ट हो जाता है, वैसे ही ब्रह्मज्ञान को प्राप्त होकर दुःख दूर हो जाता है। इससे सब मनुष्यों को योग्य है कि परमेश्वर को जानने के लिये प्रयत्न किया करें ॥ १ ॥
विषय
उषा का प्रादुर्भाव
पदार्थ
१. (इदम्) = यह (श्रेष्ठम्) = प्रशस्यतम (ज्योतिषां ज्योतिः) = ज्योतियों में उत्तम ज्योति (आगात्) = आई है । यह उषा का प्रकाश (चित्रः) = अद्भुत है , (प्रकेतः) = प्रकृष्ट निवास को देनेवाला तथा रोगों को दूर भगानेवाला है [कित निवासे रोगापनयने च] । यह उषा का प्रकाश (विभ्वा) = उस विभु परमात्मा के साथ (अजनिष्ट) = प्रादुर्भूत होता है , अर्थात् यह प्रकाश प्रभु के ध्यान की ओर प्रेरित करता हुआ हमें भु के समीप ले - जानेवाला होता है । इस समय को इसी दृष्टिकोण से “ब्राह्ममुहूर्त” - यह नाम दिया जाता है । इस समय वायुमण्डल में ओजोन की मात्रा अधिक होती है , इसी से यह समय “प्रकेतम्” निवास [चेतना - बौद्धिक विकास] को उत्तम बनानेवाला कहा गया है । २. (यथा) = जिस प्रकार (प्रसूता) = उत्पन्न हुई - हुई यह उषा (सवितुः सवायँ) = सूर्य के आगमन के लिए अपने स्थान को रिक्त कर देती है (एव) = इसी प्रकार (रात्रि) = रात (उषसे) = उषा के लिए (योनिम् आरैक्) = स्थान खाली कर देती है । रात्रि जाती है और उषा आती है । उषा जाती है और सूर्य उसका स्थान लेकर अपने मार्ग का आक्रमण करने लगता है ।
भावार्थ
भावार्थ - उषा का प्रकाश श्रेष्ठतम है - न शीतल न उष्ण , न अस्पष्ट और न अत्यन्त प्रचण्ड । यह ओजोन गैस की अधिकता के कारण हमारे निवास को उत्तम बनाता है और रोगों को दूर करता है ।
विषय
उषा के दृष्टान्त से नववधू, गृहपत्नी, और विदुषी स्त्री के कर्तव्यों का उपदेश ।
भावार्थ
( यथा ) जिस प्रकार ( प्रसूता ) पुत्र प्रसव करनेवाली स्त्री ( सवितुः ) पुत्रोत्पादक पुरुष के ( सवाय ) पुत्र के उत्पन्न करने के लिये ( योनिम् आरैक ) गर्भाशय को रिक्त करती है। अथवा—( सवितुः सवाय ) उत्पादक पति के ऐश्वर्य वृद्धि और ( उपसे ) कामना करने योग्य पति के बसने के लिये ( योनिम् आरैक ) गृह को बनाती है और जिस प्रकार ( रात्री ) रात्रि ( सवितुः सवाय ) सूर्य के उत्पन्न या उदय होने के लिये और ( उषसे ) उषाकाल के लिये ( योनिम् ) स्थान ( आरैक ) प्रकट करती है । उसी प्रकार (प्रसूता) समस्त जगत् को उत्पन्न करनेवाली (रात्री) समस्त जीवों को रमण कराने वाली, प्रलय दशा, ( सवितुः ) सर्वजगदुत्पादक परमेश्वर के ( सवाय ) ऐश्वर्य को प्रकट करने के लिये और (एवा) उसी प्रकार (उषसे) दिन में सन्धि वेला के समान सर्ग और प्रलय के बीच के सन्धि वेला को प्रकट करने के लिये भी ( योनिम् आरैक् ) आश्रय रूप काल को प्रकट करती है। और जिस प्रकार ( ज्योतिषां ज्योतिः ) समस्त तेजस्वी पदार्थों में उत्तम तेजस्वी सूर्य ( आगात् ) उदय होता है ( चित्रः ) अद्भुत, या चेतना या चिद् रूप में रमण करनेवाला ( प्रकेतः ) उत्तम ज्ञानवान् पुरुष ( विभ्वा ) महान् परमेश्वर के साथ मिलकर ( अजनिष्ट ) सुख, ऐश्वर्य और आनन्द से युक्त हो जाता है ( इदं श्रेष्ठं ) यह साक्षात् सर्वश्रेष्ठ ( ज्योतिषां ज्योतिः ) सब ज्योतियों में परम ज्योति, प्रकाशस्वरूप ब्रह्म ( आगात् ) प्रकट होता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कुत्स आङ्गिरस ऋषिः ॥ १-२० उषा देवता । द्वितीयस्यार्द्धर्चस्य रात्रिरपि॥ छन्दः– १, ३, ९, १२, १७ निचृत् त्रिष्टुप् । ६ त्रिष्टुप् । ७, १८—२० विराट् त्रिष्टुप्। २, ५ स्वराट् पंक्तिः। ४, ८, १०, ११, १५, १६ भुरिक् पंक्तिः। १३, १४ निचृत्पंक्तिः॥ विंशत्यृचं सूक्तम्॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात रात्र व प्रभात यांच्या वेळेच्या गुणांचे वर्णन व त्यांच्या दृष्टांताने स्त्री- पुरुषांच्या कर्तव्य कर्माचा उपदेश केलेला आहे. यासाठी या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तात सांगितलेल्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे. ॥
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा सूर्योदय होताच अंधकार नष्ट होतो. तसेच ब्रह्मज्ञान प्राप्त झाल्यावर दुःख दूर होते. यामुळे सर्व माणसांनी परमेश्वराला जाणण्याचा प्रयत्न करावा. ॥ १ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Here comes this dawn, light of lights, supreme, wonderful, bright and enlightening, rising and expanding. Just as the night comes over for regeneration of the sun, so does it uncover the womb of darkness for the coming of dawn.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
In the first Mantra, the attributes of a learned man are taught.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
As the born night gives place to the dawn by the association of the Sun, so a wonderful highly learned and wise person attains God the Best Light of lights and in association with that Omnipresent Supreme Being enjoys all happiness and bliss and rises above misery and suffering.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(प्रकेत:) प्रकृष्टप्रज्ञः = A highly learned wise man. (बिभ्वा) विभुना परमेश्वरेण सह = With the all pervading God. (योनिम्) गृहम् = Abode.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As darkness vanishes when the sun rises, so all misery is annihilated when the knowledge of God is attained. Therefore all should try to acquire the knowledge of God.
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