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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 114 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 114/ मन्त्र 1
    ऋषिः - कुत्स आङ्गिरसः देवता - रुद्रः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    इ॒मा रु॒द्राय॑ त॒वसे॑ कप॒र्दिने॑ क्ष॒यद्वी॑राय॒ प्र भ॑रामहे म॒तीः। यथा॒ शमस॑द्द्वि॒पदे॒ चतु॑ष्पदे॒ विश्वं॑ पु॒ष्टं ग्रामे॑ अ॒स्मिन्न॑नातु॒रम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒माः । रु॒द्राय॑ । त॒वसे॑ । क॒प॒र्दिने॑ । क्ष॒यत्ऽवी॑राय । प्र । भ॒रा॒म॒हे॒ । म॒तीः । यथा॑ । शम् । अस॑त् । द्वि॒ऽपदे॑ । चतुः॑ऽपदे॑ । विश्व॑म् । पु॒ष्टम् । ग्रामे॑ । अ॒स्मिन् । अ॒ना॒तु॒रम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमा रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्वीराय प्र भरामहे मतीः। यथा शमसद्द्विपदे चतुष्पदे विश्वं पुष्टं ग्रामे अस्मिन्ननातुरम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमाः। रुद्राय। तवसे। कपर्दिने। क्षयत्ऽवीराय। प्र। भरामहे। मतीः। यथा। शम्। असत्। द्विऽपदे। चतुःऽपदे। विश्वम्। पुष्टम्। ग्रामे। अस्मिन्। अनातुरम् ॥ १.११४.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 114; मन्त्र » 1
    अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 5; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वद्विषयमाह।

    अन्वयः

    वयमध्यापकाः उपदेशका वा यथा द्विपदे चतुष्पदे शमसदस्मिन् ग्रामे विश्वमनातुरं पुष्टमसत्तथा तवसे क्षयद्वीराय रुद्राय कपर्दिन इमा मतीः प्रभरामहे ॥ १ ॥

    पदार्थः

    (इमा) प्रत्यक्षतयाऽऽप्तोपदिष्टा वेदादिशास्त्रोत्थबोधसंयुक्ताः (रुद्राय) कृतचतुश्चत्वारिंशद्वर्षब्रह्मचर्य्याय (तवसे) बलयुक्ताय (कपर्दिने) ब्रह्मचारिणे (क्षयद्वीराय) क्षयन्तो दोषनाशका वीरा यस्य तस्मै (प्र) भरामहे (धरामहे) (मतीः) प्रज्ञाः (यथा) (शम्) सुखम् (असत्) भवेत् (द्विपदे) मनुष्याद्याय (चतुष्पदे) गवाद्याय (विश्वम्) सर्वं जीवादिकम् (पुष्टम्) पुष्टिं प्राप्तम् (ग्रामे) शालासमुदाये नगरादौ (अस्मिन्) संसारे (अनातुरम्) दुःखवर्जितम् ॥ १ ॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यदाऽऽप्ता वेदविदः पाठका उपदेष्टारश्च पाठिका उपदेष्ट्र्यश्च सुशिक्षया ब्रह्मचारिणः श्रोतॄँश्च ब्रह्मचारिणीः श्रोतॄँश्च विद्यायुक्ताः कुर्वन्ति तदैवेमे शरीरात्मबलं प्राप्य सर्वं जगत् सुखयन्ति ॥ १ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब ग्यारह ऋचावाले एकसौ चौदहवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में विद्वद्विषय को कहते हैं ।

    पदार्थ

    हम अध्यापक वा उपदेशक लोग (यथा) जैसे (द्विपदे) मनुष्यादि (चतुष्पदे) और गौ आदि के लिये (शम्) सुख (असत्) होवे (अस्मिन्) इस (ग्रामे) बहुत घरोंवाले नगर आदि ग्राम में (विश्वम्) समस्त चराचर जीवादि (अनातुरम्) पीड़ारहित (पुष्टम्) पुष्टि को प्राप्त (असत्) हो तथा (तवसे) बलयुक्त (क्षयद्वीराय) जिसके दोषों का नाश करनेहारे वीर पुरुष विद्यमान (रुद्राय) उस चवालीस वर्ष पर्यन्त ब्रह्मचर्य करनेहारे (कपर्दिने) ब्रह्मचारी पुरुष के लिये (इमाः) प्रत्यक्ष आप्तों के उपदेश और वेदादि शास्त्रों के बोध से संयुक्त (मतीः) उत्तम प्रज्ञाओं को (प्र, भरामहे) धारण करते हैं ॥ १ ॥

    भावार्थ

    अत्रोपमालङ्कारः। जब आप्त, सत्यवादी, धर्मात्मा, वेदों के ज्ञाता, पढ़ाने और उपदेश करनेहारे विद्वान्, तथा पढ़ाने और उपदेश करनेहारी स्त्री, उत्तम शिक्षा से ब्रह्मचारी और श्रोता पुरुषों तथा ब्रह्मचारिणी और सुननेहारी स्त्रियों को विद्यायुक्त करते हैं, तभी ये लोग शरीर और आत्मा के बल को प्राप्त होकर सब संसार को सुखी कर देते हैं ॥ १ ॥

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    विषय

    शान्त , पुष्ट व अनातुर

    पदार्थ

    १. (इमाः मतीः) = इन बुद्धियों को - विचारपूर्वक किये जानेवाले स्तोत्रों को (रुद्राय) = सृष्टि के आरम्भ में हृदयस्थरूपेण ज्ञान [रुत्] देने - [द] - वाले प्रभु के लिए (प्रभरामहे) = प्रकर्षेण धारण करते हैं - ‘तद्बुद्धयस्तदात्मानः तन्निष्ठास्तत्परायणः’ - उसी में बुद्धियों व मन को धारण करते हुए तनिष्ठ व तत्परायण बनने का प्रयत्न करते हैं । उस रुद्र के लिए जो (तवसे) = अत्यन्त प्रवृद्ध हैं । प्रभु क्या ज्ञान , क्या शक्ति - सभी दृष्टिकोणों से बढ़े हुए हैं । ज्ञान की वे चरमसीमा हैं । वे सर्वशक्तिमान् हैं । उस रुद्र के लिए जो (कपर्दिने) = [क - सुख , पद् - पूर्ति , द - देना] आनन्द की पूर्ति देनेवाले हैं । प्रभु रसमय हैं । उन्हें प्राप्त करके उपासक एक अद्वितीय रस का अनुभव करता है । (क्षयद्वीराय) = वीरों में वे प्रभु निवास करनेवाले हैं [क्षि निवासे] । इस प्रभु के लिए हम अपनी बुद्धियों व स्तुतियों को धारण करते हैं । २. ऐसा हम इसलिए करते हैं कि (यथा) = जिससे (द्विपदे चतुष्पदे) = मनुष्यादि व गवादि के लिए (शम्) = शान्ति (असत्) = हो । प्रभु में स्थित बुद्धिवाला होने पर मनुष्य का जीवन ठीक बना रहता है , वह पाप की ओर नहीं झुकता । परिणामतः वायुमण्डल में निष्पापता होने पर सबका जीवन शान्तिवाला होता है । इसी बात का यह भी परिणाम है कि (अस्मिन् ग्रामे) = इस ग्राम में (विश्वम्) = सब (पुष्टम्) = ठीक पोषणवाले व (अनातुरम्) = नीरोग (असत्) = हों । शान्ति व नीरोगता के लिए निष्पापता चाहिए , निष्पापता के लिए प्रभुशरण चाहिए ।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभुभक्त बनते हुए हम शान्त , पुष्ट व अनातुर हों ।

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    विषय

    विद्वान् राजा तथा, उपदेष्टा पुरुष के कर्तव्य ।

    भावार्थ

    विद्वान् राजा का वर्णन करते हैं । ( रुद्राय ) दुष्टों को रुलाने वाले, अन्यों को ज्ञान का उपदेश करने वाले तथा ४४ वर्ष के ब्रह्मचारी, ( तवसे ) वलवान्, (कपर्दिने) केश जटा वाले पूर्ण युवा, (क्षयद्-वीराय ) दोषनाशक वीर पुरुषों के स्वामी, या शत्रुओं के नाशकारी या ऐश्वर्ययुक्त वीर गणों के स्वामी, राजा या सभाध्यक्ष के गुण वर्णन के लिये हम ( इमाः मतीः ) इन मनन करने योग्य ज्ञान-वाणियों को ( प्र भरामहे ) धारण करते हैं। जिससे ( द्विपदे चतुष्पदे ) दोपाये और चौपायों के सुख के लिये ( शम् असत् ) सुख कल्याण हो । और ( अस्मिन् ग्रामे ) इस ग्राम या जनपद में ( विश्वं ) सब कोई ( पुष्टं ) हृष्ट पुष्ट और ( अना तुरम् ) दुःख, रोग, शोक आदि से कभी पीड़ित न हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कुत्स आङ्गिरस ऋषिः॥ रुद्रो देवता॥ छन्दः- १ जगती । २, ७ निचृज्जगती । ३, ६, ८, ९ विराड् जगती च । १०, ४, ५, ११ भुरिक् त्रिष्टुप् निचृत् त्रिष्टुप् ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात ब्रह्मचारी, विद्वान, सभाध्यक्ष व सभासद इत्यादी गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्तात सांगितलेल्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणण्यायोग्य आहे. ॥

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जेव्हा आप्त, सत्यवादी, धर्मात्मा, वेदांचे ज्ञाते, अध्यापक, उपदेशक, विद्वान, अध्यापिका व उपदेशिका, उत्तम शिक्षणाने ब्रह्मचारी व श्रोत्यांना, ब्रह्मचारिणी व श्रोत्या स्त्रियांना विद्यायुक्त करतात तेव्हाच हे लोक शरीर व आत्मा यांचे बल प्राप्त करून सर्व जगाला सुखी करतात. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    We offer these songs of prayer and adoration to Rudra, omnipotent lord of mercy and justice, father and protector of the brave, for the sake of the brahmachari student of the Rudra order so that all may be peace and joy among the humans and animals and all life on earth and the environment be healthy and happy in this settlement, this world and the universe.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Now the attributes and duties of a learned person are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    We (teachers and preachers) offer these praises and words of advice full of Vedic wisdom to the mighty Rudra (a person who has observed BrahmaCharya up to the age of 44 years) with the braided or matted hair, the master of heroes who are destroyers of all defects, in order that health may be enjoyed by bipeds and quadrupeds, and that all beings in this village and city nay, in the whole world may be well-nourished and exempt from diseases.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (रुद्राय) कृत चतुश्चत्वारिंशद्वर्षब्रह्मचर्याय = For a person who has observed Brahamcharya. up to the age of 44 years. (क्षयद्वीराय) क्षयन्तो दोषनाशका वीरा यस्य तस्मै = For a person whose heroes are destroyers of all defects.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    When absolutely truthful knowers of the Vedas and preachers (both men and women) make Brahmacharis and Brahamcharinis and the audience endowed with knowledge and wisdom, it is then that they make the world delighted having attained physical and spiritual strength.

    Translator's Notes

    Regarding a Rudra Brahamchari, it is stated in the Chhandogya Upanishad 3. 16. अथ यानि चतुश्चत्वारिंशद् वर्षाणि तन्माध्यन्दिनं सवनं चतुश्चत्वारिंशदक्षरा, त्रिष्टुप् त्रैष्टुभं सवनं तदस्य रुद्रा अन्वायत्ताः ॥ This quotation from the Chhandogya Upanished clearly corroborates Rishi Dayananda Sarasvati's interpretation of Rudra as a man who has observed Brahmacharya up to the age of 44 years.

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