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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 137 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 137/ मन्त्र 2
    ऋषिः - परुच्छेपो दैवोदासिः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - विराडतिशक्वरी स्वरः - पञ्चमः

    इ॒म आ या॑त॒मिन्द॑व॒: सोमा॑सो॒ दध्या॑शिरः सु॒तासो॒ दध्या॑शिरः। उ॒त वा॑मु॒षसो॑ बु॒धि सा॒कं सूर्य॑स्य र॒श्मिभि॑:। सु॒तो मि॒त्राय॒ वरु॑णाय पी॒तये॒ चारु॑र्ऋ॒ताय॑ पी॒तये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मे । आ । या॒त॒म् । इन्द॑वः । सोमा॑सः । दधि॑ऽआशिरः । सु॒तासः॑ । दधि॑ऽआशिरः । उ॒त । वा॒म् । उ॒षसः॑ । बु॒धि । सा॒कम् । सूर्य॑स्य । र॒श्मिऽभिः॑ । सु॒तः । मि॒त्राय । वरु॑णाय । पी॒तये॑ । चारुः॑ । ऋ॒ताय॑ । पी॒तये॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इम आ यातमिन्दव: सोमासो दध्याशिरः सुतासो दध्याशिरः। उत वामुषसो बुधि साकं सूर्यस्य रश्मिभि:। सुतो मित्राय वरुणाय पीतये चारुर्ऋताय पीतये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमे। आ। यातम्। इन्दवः। सोमासः। दधिऽआशिरः। सुतासः। दधिऽआशिरः। उत। वाम्। उषसः। बुधि। साकम्। सूर्यस्य। रश्मिऽभिः। सुतः। मित्राय। वरुणाय। पीतये। चारुः। ऋताय। पीतये ॥ १.१३७.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 137; मन्त्र » 2
    अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 1; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथौषध्यादिरसपानविषयमाह ।

    अन्वयः

    हेऽध्यापकाऽध्येतारौ यश्चारुर्मित्राय पीतये वरुणायर्ताय पीतये चोषसो बुधि सूर्यस्य रश्मिभिः साकं सोमस्सुतस्तं युवामायातम्। वां य इम इन्दवः सोमासो दध्याशिर इव दध्याशिरस्सुतासः सन्ति तानुताप्यायातम् ॥ २ ॥

    पदार्थः

    (इमे) (आ) (यातम्) (इन्दवः) आर्द्रीभूताः (सोमासः) दिव्यौषधिरसाः (दध्याशिरः) ये दध्ना अश्यन्ते ते (सुतासः) संपादिताः (दध्याशिरः) (उत) अपि (वाम्) युवाभ्याम् (उषसः) (बुधि) बोधे। अत्र संपदादिलक्षणः क्विप्। (साकम्) सह (सूर्य्यस्य) (रश्मिभिः) किरणैः (सुतः) अभिनिष्पादितः (मित्राय) सुहृदे (वरुणाय) वराय (पीतये) पानाय (चारुः) सुन्दरः (ऋताय) सत्याचाराय (पीतये) पानाय ॥ २ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैरस्मिन्संसारे यावन्तो रसा ओषधयश्च निर्मातव्यास्तावन्तः सर्वे सौहार्दोत्तमकर्मसेवनायालस्यादिनाशाय च समर्पणीयाः ॥ २ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब ओषधि आदि पदार्थों के रस के पीने आदि के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे पढ़ाने वा पढ़नेवाले ! जो (चारुः) सुन्दर (मित्राय) मित्र के लिये (पीतये) पीने को और (वरुणाय) उत्तम जन के लिये (ऋताय) सत्याचरण और (पीतये) पीने को (उषसः) प्रभात वेला के (बुधि) प्रबोध में (सूर्य्यस्य) सूर्यमण्डल की (रश्मिभिः) किरणों के (साकम्) साथ ओषधियों का रस (सुतः) सब ओर से सिद्ध किया गया है उसको तुम (आयातम्) प्राप्त होओ तथा (वाम्) तुम्हारे लिये (इमे) ये (इन्दवः) गीले वा टपकते हुए (सोमासः) दिव्य ओषधियों के रस और (दध्याशिरः) जो पदार्थ दही के साथ भोजन किये जाते उनके समान (दध्याशिरः) दही से मिले हुए भोजन (सुतासः) सिद्ध किये गये हैं (उत) उन्हें भी प्राप्त होओ ॥ २ ॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये कि इस संसार में जितने रस वा ओषधियों को सिद्ध करें, उन सबको मित्रपन और उत्तम कर्म सेवने को तथा आलस्यादि दोषों के नाश करने को समर्पण करें ॥ २ ॥

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    विषय

    शरीर व मानस स्वास्थ्य का साधन सोम

    पदार्थ

    १. हे प्राणापानो! (आयातम्) = आप आइए ! (इमे) = ये (इन्दवः) = शक्ति देनेवाले [इन्द् to be powerful] (सोमास:) = सोमकण (दध्याशिरः) = [दधि धारकं बलम्] धारक बल से युक्त हैं। (सुतास:) = उत्पन्न हुए-हुए ये सोमकण निश्चय ही (दध्याशिरः) = धारक बलों से युक्त हैं। इनके प्रति आप आइए । (उत) = और (वाम्) = आपकी प्रीति के लिए (उषसः बुधि) = उषाकाल के जागरित होने पर (सूर्यस्य रश्मिभिः साकम्) = सूर्यकिरणों के साथ आप आइए । (सुतः) = यह सोम उत्पन्न किया गया है। यह (मित्राय वरुणाय पीतये) = मित्र और वरुण के पान के लिए उत्पन्न किया गया है। यह सोम (चारु:) = अत्यन्त सुन्दर है। यह (ऋताय) = ऋत के लिए और (पीतये) = रक्षण के लिए होता है। यदि इस सोम का शरीर में ही रक्षण किया जाए तो हमारे जीवन में से अनृत दूर होकर वहाँ ऋत का स्थापन होता है और यह सोम हमें अनेकशः रोगों के आक्रमण से बचानेवाला होता है। मन में यह ऋत का स्थापन करता है, शरीर में नीरोगता का इस प्रकार यह सोम सुन्दर ही सुन्दर है। प्राणसाधना के द्वारा - मित्रावरुणों की उपासना के द्वारा हमें इसे शरीर में ही सुरक्षित करना है।

    भावार्थ

    भावार्थ - रक्षित सोम धारक शक्तिवाला है। यह हमारे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का साधन है।

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    विषय

    वैदिक श्लेषमय वाक्यों का स्पष्टीकरण ।

    भावार्थ

    हे ( मित्र ) स्नेही और सूर्य के समान तेजस्विन् ! हे ( वरुण ) सर्वश्रेष्ठ और दुःखवारक रात्रि के समान शान्तिदायक, माता पिता एवं अधिकारी पुरुषो ! ( इमे ) ये ( इन्दवः ) आर्द्र, जलमिश्रित ( सोमासः ) औषधिरस जिस प्रकार ( सुताप्तः ) कूट पीस कर निकाले हुए ( दध्याशिरः ) दधि में मिश्रित कर लिये जाते हैं इसी प्रकार ( इमे ) ये ( सोमासः ) सौम्य शिष्यगण भी ( इन्दवः ) ऐश्वर्य युक्त, एवं ज्ञान जल से और भक्तिभाव से आर्द्रचित्त ( सुतासः ) पुत्रों के समान पालित, शिक्षित और विद्यादि में स्नातक होकर ( दधिआशिरः ) गृहस्थ धारण, प्रजापालन पोषण के कार्य में आश्रय करने योग्य, समर्थ हो गये हैं। ( उत ) और जिस प्रकार औषधि और अन्न आदि के उत्तम रस ( सूर्यस्थ रश्मिभिः ) सूर्य की किरणों से परिपक्व होकर ( उषसः बुधि ) प्रभात वेला के उदय होने पर ( मित्राय, वरुणाय ऋताय च पीतये ) स्नेहवान् श्रेष्ठ और ज्ञानी पुरुष के पान के योग्य होते हैं उसी प्रकार ये युवक विद्वान् गण ( सूर्यस्य ) सूर्य के समान तेजस्वी आचार्य के रश्मियों, अर्थात् नियामक प्रतिबन्ध, व्रत, नियमों से नियन्त्रित और शिक्षित होकर ( उषसः बुधि ) प्रभात वेला के समान जीवन के पूर्व भाग में ज्ञान प्राप्त हो जाने पर ( वाम् ) तुम माता पिताओं के ( पीतये ) पालन करने के लिये हों। जिस प्रकार ( सुतः ) कूट पीस कर छाना हुआ ओषधि रस, ( मित्राय ) स्नेहवान् बन्धुजन और मित्र के समान स्थित माता पिता के और ( वरुणाय ) श्रेष्ठ गुरुजन और पापादि मार्ग और कष्टों से निवारक उपकारी पुरुषों के और ( ऋताय ) ज्ञानमय परमेश्वर, और यज्ञ के ( पीतये ) पालन करने के लिये अथवा ( ऋताय पीतये ) धनैश्वर्य के उपभोग और रक्षा करने के कार्य में ( चारुः ) उत्तम यत्नवान् और आचरणशील हो ।

    टिप्पणी

    ‘पीतये’ पालनायेति सायणः । ‘मित्राय’—प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत् । मनुः ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    परुच्छेप ऋषिः । मित्रावरुणौ देवते । छन्दः- १ निचृच्छक्वरी । २ विराट् शक्वरी । ३ भुरिगतिशक्वरी ॥ तृचं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या जगात जितका रस किंवा औषधी सिद्ध केली जाते त्या सर्वांना माणसांनी सौहार्द व उत्तम कर्म अंगीकारण्यासाठी तसेच आळस इत्यादी दोषांचा नाश करण्यासाठी समर्पित करावे. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Mitra and Varuna, bright friend as the day and highest lord of wisdom, broad as the sky and deep as the night, come, these nectar drops of soma mixed with curds, distilled at the break of dawn and matured with life-giving rays of the sun, are for you both, yes, distilled for the drink of Mitra and Varuna, matured for a soothing, inspiring and enlightening drink of the truth and essence of law of the world of existence for both our friends and wise teachers, ideals of our love and cherished choice and for the dearest lover of truth.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Here te drinking of herbal juices is referred.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O teachers and taught, you all come for these dripping Soma juices mixed with curds; they are extracted and then mixed with curds; and they be prepared for you at the ushering of the dawn, o as to be associated with the rays of the sun. The juice is offered for Mitra (a friend), Varuna (a noble person) and Rit (a person of truthful conduct) for their drinking. This is a delicious juice of the Soma and other herbs and plants.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Whatever juices and medicinal substances are prepared, they should be dedicated to promote friendship, noble deeds and eradication of laxity.

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