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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 145 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 145/ मन्त्र 1
    ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यः देवता - अग्निः छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    तं पृ॑च्छता॒ स ज॑गामा॒ स वे॑द॒ स चि॑कि॒त्वाँ ई॑यते॒ सा न्वी॑यते। तस्मि॑न्त्सन्ति प्र॒शिष॒स्तस्मि॑न्नि॒ष्टय॒: स वाज॑स्य॒ शव॑सः शु॒ष्मिण॒स्पति॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । पृ॒च्छ॒त॒ । सः । ज॒गा॒म॒ । सः । वे॒द॒ । सः । चि॒कि॒त्वान् । ई॒य॒ते॒ । सः । नु । ई॒य॒ते॒ । तस्मि॑न् । स॒न्ति॒ । प्र॒ऽशिषः॑ । तस्मि॑न् । इ॒ष्टयः॑ । सः । वाज॑स्य । शव॑सः । शु॒ष्मिणः॑ । पतिः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं पृच्छता स जगामा स वेद स चिकित्वाँ ईयते सा न्वीयते। तस्मिन्त्सन्ति प्रशिषस्तस्मिन्निष्टय: स वाजस्य शवसः शुष्मिणस्पति: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम्। पृच्छत। सः। जगाम। सः। वेद। सः। चिकित्वान्। ईयते। सः। नु। ईयते। तस्मिन्। सन्ति। प्रऽशिषः। तस्मिन्। इष्टयः। सः। वाजस्य। शवसः। शुष्मिणः। पतिः ॥ १.१४५.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 145; मन्त्र » 1
    अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 14; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथोपदेश्योपदेशकगुणानाह ।

    अन्वयः

    हे मनुष्याः स सत्यमार्गे जगाम स ब्रह्म वेद स चिकित्वान् सुखानीयते सान्वीयते तस्मिन् प्रशिषः सन्ति तस्मिन्निष्टयः सन्ति स वाजस्य शवसः शुष्मिणः पतिरस्ति तं यूयं पृच्छत ॥ १ ॥

    पदार्थः

    (तं) पूर्वमन्त्रप्रतिपादितं विद्वांसम् (पृच्छत) अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (सः) (जगाम) गच्छति (सः) (वेद) जानाति (सः) (चिकित्वान्) विज्ञानयुक्तः (ईयते) प्राप्नोति (सः) (नु) सद्यः (ईयते) प्राप्नोति (तस्मिन्) (सन्ति) (प्रशिषः) प्रकृष्टानि शासनानि (तस्मिन्) (इष्टयः) सत्सङ्गतयः (सः) (वाजस्य) विज्ञानमयस्य (शवसः) बलस्य (शुष्मिणः) बहुबलयुक्तस्य सैन्यस्य राज्यस्य वा (पतिः) स्वामी ॥ १ ॥

    भावार्थः

    यो विद्यासुशिक्षायुक्तो धार्मिकः प्रयत्नशीलः सर्वोपकारी सत्यस्य पालक आप्तो विद्वान् भवेत् तदाश्रयाध्यापनोपदेशैः सर्वे मनुष्याः इष्टविनयप्राप्ताः सन्तु ॥ १ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब एक सौ पैंतालीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में उपदेश करने योग्य और उपदेश करनेवालों के गुणों का वर्णन करते हैं ।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (सः) वह विद्वान् सत्य मार्ग में (जगाम) चलता है (सः) वह (वेद) ब्रह्म को जानता है (सः) वह (चिकित्वान्) विज्ञानयुक्त सुखों को (ईयते) प्राप्त होता (सः) वह (नु) शीघ्र अपने कर्त्तव्य को (ईयते) प्राप्त होता है (तस्मिन्) उसमें (प्रशिषः) उत्तम-उत्तम शिक्षा (सन्ति) विद्यमान हैं (तस्मिन्) उसमें (इष्टयः) सत्सङ्ग विद्यमान हैं (सः) वह (वाजस्य) विज्ञान का (शवसः) बल वा (शुष्मिणः) बलयुक्त सेनासमूह वा राज्य का (पतिः) पालनेवाला स्वामी है, (तम्) उसको तुम (पृच्छत) पूछो ॥ १ ॥

    भावार्थ

    जो विद्या और अच्छी शिक्षायुक्त, धार्मिक और यत्नशील सबका उपकारी, सत्य की पालना करनेवाला विद्वान् हो, उसके आश्रय जो पढ़ाना और उपदेश हैं, उनसे सब मनुष्य चाहे हुए काम और विनय को प्राप्त हों ॥ १ ॥

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    विषय

    'परम चिकित्सक' प्रभु

    पदार्थ

    १. (तं पृच्छत्) = उस प्रभु को जानने की इच्छा करो। उसी की चर्चा करो। (स जगाम) = वह सर्वत्र गया हुआ है, सर्वव्यापक है, इसलिए (सः वेद) = वह सब कुछ जानता है। हमारे सब रोगों व कष्टों को भी प्रभु समझते हैं। (सः) = वे (चिकित्वान्) = उन रोगों की चिकित्सा करके हमारे निवास को उत्तम बनानेवाले होते हुए [कित निवासे रोगापनयने च] (ईयते) = गति कर रहे हैं। (सा नु आ ईयते) = उस परम चिकित्सक प्रभु की चिकित्सा भी शीघ्रता से सर्वत्र गतिमय हो रही है, प्रभु द्वारा सर्वत्र चिकित्सा की जा रही है। २. हमारे रोगों को जानकर वे प्रभु निर्देश करते हैं कि 'इसके निवारण के लिए ऐसा करो और ऐसा न करो'। (तस्मिन्) = उस प्रभु में (प्रशिषः) = सब प्रशासन (सन्ति) हैं। इन प्रशासनों का हम पालन करते हैं तो हमें सब इष्ट वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। (तस्मिन्) = उस प्रभु में सब इष्टयः = इष्ट वस्तुओं की प्राप्तियाँ विद्यमान हैं। सः वे प्रभु (वाजस्य) = सब अन्नों के (शवसः) = गतियों के तथा (शुष्मिणः) = शत्रु-शोषक बलों के (पतिः) = स्वामी हैं । हम प्रभु के प्रशासन में चलेंगे तो हमें अन्न, गति के लिए शक्ति तथा काम-क्रोधादि के शोषण की शक्ति प्राप्त होगी।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभु को जानने की इच्छा करें, उसके प्रशासन में चलने का यत्न करें। हमें अन्न, गतिशक्ति व शत्रुशोषक शक्ति प्राप्त होगी, परिणामतः हमारे सब रोगों का निवारण हो जाएगा।

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    विषय

    आदर्श विद्वान् का वर्णन ।

    भावार्थ

    हे विद्वान् पुरुषो ! ( सः जगाम ) वह विद्वान् परम पद तक पहुंचा है, ( सः वेद ) वह ही उस परम पद को जानता और प्राप्त करता है । ( सः ) वह ही ( चिकित्वान् ईयते ) विशेष ज्ञानवान् होकर ज्ञेय ध्येय परम पद तक जाता है ( सः नु ईयते ) वही अन्यों द्वारा अनुसरण और अनुकरण करने योग्य है । ( तस्मिन् ) उसके ही आश्रय पर ( प्रशिषः ) उत्तम शासन और ( तस्मिन् ) उसके ही आश्रय पर ( इष्टयः ) यज्ञ दान आदि उत्तम कर्म और सत्संग सब मैत्रीभाव और लेन देन आदि निर्भर हैं । ( सः ) वह ( वाजस्य ) समस्त ज्ञान, अन्न और वेग का और ( शवसः ) बलों का स्वामी है और वही ( शुष्मिणः ) बलवान् पुरुषों का भी स्वामी है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    दीर्घतमा ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः– १, विराड्जगती । २, निचृज्जगती च । ३,४ भुरिक त्रिष्टुप । पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात उपदेश करणारे व ऐकणारे यांच्या कर्तव्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

    भावार्थ

    जो विद्या व सुशिक्षण यांनी युक्त, धार्मिक व प्रयत्नशील तसेच सर्वांवर उपकार करणारा, सत्याचे पालन करणारा विद्वान असतो, त्याच्या आश्रयाने अध्यापन व उपदेश ग्रहण करून सर्व माणसांनी इच्छित काम करून विनयी बनावे. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni is the lord of light, knowledge and power: of him they ask the questions, he goes all round, he knows, he has the wisdom and awareness and the knowledge of sciences, he reaches, yes, reaches anywhere he wants. In him lies the power of governance and law, in him lies the potential for all you want, and he is the master, ruler and commander of energy, strength and valour, and of the fiery forces of his dominion.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of the preacher and the person to be instructed are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! you should seek solutions to your problems from that great scholar who has trodden upon the path of truth, and knows God. Wise and highly learned that preacher and leader enjoys happiness. He achieves full joy quickly. He administers admonitions and commands well over the associations. He is the lord of all knowledge and strength, and powerful. Such a person can rule successfully over the army and the State.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    With the association of teaching and preaching among the absolutely truthful industrious and wise persons, a preacher leader can fulfil the desires of the public and can make them humble.

    Foot Notes

    (प्रशिष:) प्रकृणानि शासना मि = Good admonitions or commands. (इष्टयः ) सत्संगतयः = Good associations. (शुष्मिणः) बहुबलयुक्तस्य सैन्यस्य राज्यस्य वा = Of the powerful army or State.

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