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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 167 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 167/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - इन्द्रो मरुच्च छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    स॒हस्रं॑ त इन्द्रो॒तयो॑ नः स॒हस्र॒मिषो॑ हरिवो गू॒र्तत॑माः। स॒हस्रं॒ रायो॑ माद॒यध्यै॑ सह॒स्रिण॒ उप॑ नो यन्तु॒ वाजा॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒हस्र॑म् । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । ऊ॒तयः॑ । नः॒ । स॒हस्र॑म् । इषः॑ । ह॒रि॒ऽवः॒ । गू॒र्तऽत॑माः । स॒हस्र॑म् । रायः॑ । मा॒द॒यध्यै॑ । स॒ह॒स्रिणः॑ । उप॑ । नः॒ । य॒न्तु॒ । वाजाः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सहस्रं त इन्द्रोतयो नः सहस्रमिषो हरिवो गूर्ततमाः। सहस्रं रायो मादयध्यै सहस्रिण उप नो यन्तु वाजा: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सहस्रम्। ते। इन्द्र। ऊतयः। नः। सहस्रम्। इषः। हरिऽवः। गूर्तऽतमाः। सहस्रम्। रायः। मादयध्यै। सहस्रिणः। उप। नः। यन्तु। वाजाः ॥ १.१६७.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 167; मन्त्र » 1
    अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ सज्जनगुणानाह ।

    अन्वयः

    हे हरिव इन्द्र यास्ते सहस्रमूतयः सहस्रमिषः सहस्रं गूर्त्ततमा रायः सन्ति ता नः सन्तु। सहस्रिणो वाजा मादयध्यै नोऽस्मानुपयन्तु ॥ १ ॥

    पदार्थः

    (सहस्रम्) असंख्या (ते) तव (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त सम्राट् (ऊतयः) रक्षाः (नः) अस्माकम् (सहस्रम्) (इषः) अन्नादीनि (हरिवः) धारणाऽऽकर्षणादियुक्त (गूर्त्ततमाः) अतिशयिता उद्यमाः (सहस्रम्) (रायः) श्रियः (मादयध्यै) मादयितुमानन्दयितुम् (सहस्रिणः) सहस्रमसंख्याता बहवः पदार्थाः सन्ति येषु ते (उप) (नः) अस्मान् (यन्तु) प्राप्नुवन्तु (वाजाः) बोधाः ॥ १ ॥

    भावार्थः

    मनुष्यैर्यानि भाग्यशालिनां सर्वोत्तमसामग्र्या यथायोग्यक्रियया चाऽसंख्यानि सुखानि भवन्ति तान्यस्माकं सन्त्विति मत्वा सततं प्रयतितव्यम् ॥ १ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब एकसौ सरसठवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में सज्जनों के गुणों का वर्णन करते हैं ।

    पदार्थ

    हे (हरिवः) धारणाकर्षणादियुक्त (इन्द्र) परमैश्वर्यवाले विद्वान् ! जो (ते) आपकी (सहस्रम्) सहस्रों (ऊतयः) रक्षायें (सहस्रम्) सहस्रों (इषः) अन्न आदि पदार्थ (सहस्रम्) सहस्रों (गूर्त्ततमाः) उत्यन्त उद्य वा (रायः) धन हैं वे (नः) हमारे हों और (सहस्रिणः) सहस्रों पदार्थ जिनमें विद्यमान वे (वाजाः) बोध (मादयध्यै) आनन्दित करने के लिये (नः) हम लोगों को (उप, यन्तु) निकट प्राप्त हों ॥ १ ॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को जो भाग्यशालियों को सर्वोत्तम सामग्री से और यथायोग्य क्रिया से असंख्य सुख होते हैं, वे हमारे हों, ऐसा मानकर निरन्तर प्रयत्न करना चाहिये ॥ १ ॥

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    विषय

    रक्षण, प्रेरणा, धन, शक्ति

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशाली प्रभो ! (ते) = आपकी (ऊतयः) = रक्षाएँ (सहस्रम्) = हजारों हैं, सहस्रों प्रकारों से आप हमारा रक्षण करते हैं। हे (हरिवः) = प्रशस्त इन्द्रियाश्वोंवाले प्रभो ! आपकी (सहस्त्रम् इषः) = सहस्रशः [हजारों] प्रेरणाएँ (नः) = हमारे लिए (गूर्ततमा:) = उद्यततम हों। आपकी प्रेरणाएँ हमारे जीवनों में प्रसुप्त न रहें, वे जागरित हों। हम उनके अनुसार चलते हुए अपने इन्द्रियाश्वों को उत्तम बनानेवाले हों। २. आपके (सहस्त्रं रायः) = सहस्रों धन (मादयध्यै) = हमारे जीवन में आनन्द उत्पन्न करनेवाले हों। आपकी प्रेरणा से धनों का ठीक प्रयोग करते हुए हम आनन्द को सिद्ध करनेवाले हों। ३. आपकी (सहस्त्रिणः वाजा:) = हजारों शक्तियाँ (न:) = हमें (उपयन्तु) = समीपता से प्राप्त हों। आपके दिये हुए धनों का ठीक प्रयोग करते हुए हम शक्तिसम्पन्न बनें।

    भावार्थ

    भावार्थ - हे प्रभो! आप हमें 'रक्षण, प्रेरणा, धन व शक्ति' प्राप्त कराएँ ।

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    विषय

    रक्षक प्रभु की शरण सहस्रों ऐश्वर्यवान् हैं ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! (ते ) तेरी ( सहस्रं ) हजारों ( ऊतयः ) रक्षा के साधन (गूर्त्ततमाः) उत्तम उद्यमी ( सहस्रम् इषः ) सहस्रों सेनाएं और ( सहस्रं ) हजारों ( रायः ) ऐश्वर्य और (सहस्रिण) हजारों ऐश्वर्य प्रदान करने वाले ( वाजाः ) ज्ञान, और नाना ऐश्वर्य और बल और अन्न ( नः ) हमें ( मादयध्यै ) हर्ष और आनन्द प्राप्त करने के लिये ( उप यन्तु ) प्राप्त हों ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अगस्तय ऋषिः ॥ इन्द्रो मरुच्च देवता । छन्दः - १, ४, ५, भुरिक् पङ्क्तिः । ७, स्वराट् पङ्क्तिः । १० निचृत् पङ्क्तिः ११ पङ्क्तिः । २, ३, ६, ८ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात वायूच्या दृष्टान्ताने चांगल्या विद्वान लोकांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागील अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

    भावार्थ

    सौभाग्यवान माणसांना सर्वोत्तम सामग्रीने व यथायोग्य क्रियेने असंख्य सुख प्राप्त होते. ते आपल्याला निरंतर मिळावे असा माणसांनी प्रयत्न केला पाहिजे. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Lord of power and sustenance, Indra, thousands are your protections and ways of protection for us. Lord of sunbeams, thousand-fold are the foods and energies of the most admirable order. Thousands are your gifts of wealth for us to enjoy life. And thousands may be, we pray, the forms of knowledge, valour and victory for us.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of a noble person.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O lord of wealth and President of the State! you shine with your virtues. May many thousands of your protective aids reach us. O man of charming nature ! may thousands of your food materials reach us when needed. May thousands of your exertions come to us "along with varied wealth. Come to exhilarate us. May a thousand kinds of knowledge and instructions reach us.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should simultaneously endeavor with the desire for the infinite happiness. It is enjoyed by lucky (fortunate) persons with the best means and proper procedure.

    Foot Notes

    (ह्निवः) धारणाकर्षणा दियुक्तः = Possessing the power of upholding and attraction. (गूर्ततम :) अतिशयिता उद्यमाः = Great exertions. (बाजा:) बोघा: = Instructions.

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