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ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 172/ मन्त्र 1
ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः
देवता - मरुतः
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
चि॒त्रो वो॑ऽस्तु॒ याम॑श्चि॒त्र ऊ॒ती सु॑दानवः। मरु॑तो॒ अहि॑भानवः ॥
स्वर सहित पद पाठचि॒त्रः । वः॒ । अ॒स्तु॒ । यामः॑ । चि॒त्रः । ऊ॒ती । सु॒ऽदा॒न॒वः॒ । मरु॑तः । अहि॑ऽभानवः ॥
स्वर रहित मन्त्र
चित्रो वोऽस्तु यामश्चित्र ऊती सुदानवः। मरुतो अहिभानवः ॥
स्वर रहित पद पाठचित्रः। वः। अस्तु। यामः। चित्रः। ऊती। सुऽदानवः। मरुतः। अहिऽभानवः ॥ १.१७२.१
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 172; मन्त्र » 1
अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
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अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ वायुदृष्टान्तेन विद्वद्गुणानाह ।
अन्वयः
हे ऊती सह वर्त्तमाना अहिभानवः सुदानवो मरुतो यथा वायूनां चित्रो यामश्चित्रः स्वभावोऽस्ति तथा वोऽस्तु ॥ १ ॥
पदार्थः
(चित्रः) विचित्रः (वः) युष्माकम् (अस्तु) भवतु (यामः) गमनम् (चित्रः) अद्भुतः (ऊती) रक्षणादिना (सुदानवः) सुष्ठु दातारः (मरुतः) प्राणवद्वर्त्तमानाः (अहिभानवः) अहेर्मेघस्य प्रकाशकाः ॥ १ ॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यथा जीवनप्रदानवर्षाकारणादीनि वायूनामद्भुतानि कर्माणि सन्ति तथा भवतामपि सन्तु ॥ १ ॥
हिन्दी (3)
विषय
अब तीन ऋचावाले एकसौ बहत्तरवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में पवन के दृष्टान्त से विद्वानों के गुणों का वर्णन करते हैं ।
पदार्थ
हे (ऊती) रक्षा आदि के साथ वर्त्तमान (अहिभानवः) मेघ का प्रकाश करनेवाले (सुदानवः) सुन्दर दानशील (मरुतः) प्राण के समान वर्त्तामान जनो ! जैसे पवनों का (चित्रः) अद्भुत (यामः) गमन करना वा (चित्रः) चित्र-विचित्र स्वभाव है वैसे (वः) तुम्हारा (अस्तु) हो ॥ १ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे जीवन का अच्छे प्रकार देना, वर्षा करना आदि पवनों के अद्भुत कर्म्म हैं, वैसे तुम्हारे भी हों ॥ १ ॥
विषय
'सुदानवः,अहिभानवः '
पदार्थ
१. हे (मरुतः) = प्राणो! (वः) = तुम्हारा (यामः) = मार्ग (चित्रः अस्तु) = अद्भुत है । वस्तुतः प्राणसाधना से मनुष्य का शारीर, मानस व बौद्धिक स्तर उन्नति के उस शिखर पर पहुँचता है कि देखनेवालों को आश्चर्य होता है। प्राणसाधना से शरीर के रोग दूर होकर दीर्घ जीवन प्राप्त होता है। मन से सब वासनाएँ दूर होकर मन: प्रसाद प्राप्त होता है। बुद्धि तीव्र होकर सूक्ष्म-से-सूक्ष्म विषय को समझने के योग्य हो जाती है। २. हे (सुदानव:) = [दाप् लवने] वासनाओं व मलिनताओं को काटनेवाले प्राणो! आपका मार्ग [चित्र:] अद्भुत तो है ही वह (ऊती) = रक्षण के लिए होता है। ये प्राण सब अवाञ्छनीय तत्त्वों के प्रवेश को रोककर हमारा रक्षण करते हैं । ३. हे प्राणो! आप (अहिभानवः) = अहीन दीप्तिवाले हो। आपकी साधना से रेतः कणों की ऊर्ध्वगति होकर ज्ञानाग्नि समिद्ध होती है और मनुष्य की ज्ञानदीप्ति चमक उठती है।
भावार्थ
भावार्थ – प्राणसाधना से मनुष्य अद्भुत उन्नति करनेवाला होता है। ये प्राण बुराइयों का खण्डन करनेवाले हैं और उत्कृष्ट ज्ञानदीप्ति को प्राप्त करानेवाले हैं।
विषय
विद्वानों वीरों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
जिस प्रकार (मरुतः) वायुगणों का (यामः चित्रः) जाना आना मेघ के जलों और मेघों का एकत्र करने वाला, और अद्भुत होता है वे स्वयं भी (सुदानवः) उत्तम जीवन वृष्टि के देने वाले और (अहिभानवः) विद्युत् द्वारा मेघों के प्रकाशक होते हैं । वे ( ऊती ) जगत् की रक्षा करने के लिये होते हैं । उसी प्रकार हे ( मरुतः ) विद्वान् और वीर पुरुषो ! (वः) आप लोगों का ( यामः ) जीवन मार्ग, आगमन और प्रयाण भी (चित्रः) अद्भुत, मान करने योग्य और अन्यों को ज्ञान प्रदान करने और चेताने हारा (अस्तु ) हो । और आप लोग जो ( सुदानवः ) उत्तम दानशील, ( अहिभानवः ) सूर्य के समान तेजस्वी, होकर ( ऊती ) सब की रक्षा करने और ज्ञान देने के लिये हों । ( २ ) देह में—प्राण गणों का ( यामः ) आयमन, गति और व्यापन ( चित्-रः ) चेतना सञ्चार करने वाला हो । जीवन प्रद होने से वे ‘सुदानु’ हैं । न मरने वाला अविनाशी आत्मा ‘अहि’ है । उसके भानु अर्थात् तेज और ओज को धारने वाले प्राण ‘अहिभानु’ हैं । वे देह की रक्षा के लिये होते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अगस्त्य ऋषिः ॥ मरुतो देवता ॥ छन्दः- १ विराड् गायत्री । २, ३ गायत्री ॥ तृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात वायूप्रमाणे विद्वानांच्या गुणांची प्रशंसा असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसे जीवन प्रदान करणे, वृष्टी करविणे इत्यादी वायूचे अद्भुत कर्म आहे तसे तुमचेही (कर्म) असावे. ॥ १ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Maruts, lights of the dark, breakers of the clouds, showers of soothing charities, may your progress be fast and wonderful, may your protections and promotions of society be wondrous, full of blessings.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of the learned persons with illustration of the air.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Protecting Maruts! you are learned and brave persons and dear to us like our Pranas or vital breaths. You are inseparable splendor and illuminators of the nature of clouds etc. May your march be marvelous. O liberal donors! as the movements of the air are wonderful and their nature is marvelous, so let it be yours too.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men ! as the air has wonderful functions like the giving of life and causing rains, so let it be yours too.
Foot Notes
(याम:) गमनम् = Movement (अहिमानवः ) अहे: मेघस्य प्रकाशकाः = Illuminators of the nature of the clouds and other things.
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