Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 178 के मन्त्र
1 2 3 4 5
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 178/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - इन्द्र: छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    यद्ध॒ स्या त॑ इन्द्र श्रु॒ष्टिरस्ति॒ यया॑ ब॒भूथ॑ जरि॒तृभ्य॑ ऊ॒ती। मा न॒: कामं॑ म॒हय॑न्त॒मा ध॒ग्विश्वा॑ ते अश्यां॒ पर्याप॑ आ॒योः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । ह॒ । स्या । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । श्रु॒ष्टिः । अस्ति॑ । यया॑ । ब॒भूथ॑ । ज॒रि॒तृऽभ्यः॑ । ऊ॒ती । मा । नः॒ । काम॑म् । म॒हय॑न्तम् । आ । ध॒क् । विश्वा॑ । ते॒ । अ॒श्या॒म् । परि॑ । आपः॑ । आ॒योः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्ध स्या त इन्द्र श्रुष्टिरस्ति यया बभूथ जरितृभ्य ऊती। मा न: कामं महयन्तमा धग्विश्वा ते अश्यां पर्याप आयोः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। ह। स्या। ते। इन्द्र। श्रुष्टिः। अस्ति। यया। बभूथ। जरितृऽभ्यः। ऊती। मा। नः। कामम्। महयन्तम्। आ। धक्। विश्वा। ते। अश्याम्। परि। आपः। आयोः ॥ १.१७८.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 178; मन्त्र » 1
    अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 21; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ सेनापतिगुणानाह।

    अन्वयः

    हे इन्द्र यद्या स्या ते श्रुष्टिरस्ति यया त्वं जरितृभ्य उपदेष्टा बभूथ तयोती नो महयन्तं कामं मा धक्। ते हायोः या आपस्ताः विश्वापर्यश्याम् ॥ १ ॥

    पदार्थः

    (यत्) या (ह) किल (स्या) असौ (ते) तव (इन्द्र) सेनेश (श्रुष्टिः) श्रोतव्या विद्या (अस्ति) (यया) (बभूथ) भवसि (जरितृभ्यः) सकलविद्यास्तावकेभ्यः (ऊती) ऊत्या रक्षणादिकर्मयुक्तया (मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (कामम्) (महयन्तम्) सत्कर्त्तव्यम् (आ) समन्तात् (धक्) दहेः (विश्वा) सर्वाणि (ते) तव (अश्याम्) प्राप्नुयाम् (परि) सर्वतः (आपः) प्राणबलानि (आयोः) जीवनस्य ॥ १ ॥

    भावार्थः

    सेनापत्यादयो राजपुरुषाः स्वप्रयोजनाय कस्यापि कार्य्यं न विनाशयेयुः। सदाऽध्यापकाऽध्येतॄणां रक्षां कुर्युः। यतो बलिष्ठा दीर्घायुषो जनाः स्युः ॥ १ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    अब एकसौ अठहत्तरवें सूक्त का आरम्भ है। उसमें आरम्भ से सेनापति के गुणों का वर्णन करते हैं ।

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) सेनापति ! (यत्) जो (स्या) यह (ते) आपकी (श्रुष्टिः) सुनने योग्य विद्या (अस्ति) है (यया) जिससे आप (जरितृभ्यः) समस्त विद्या की स्तुति करनेवालों के लिये उपदेश करनेवाले (बभूथ) होते हैं उस (ऊती) रक्षा आदि कर्म से युक्त विद्या से (नः) हमारे (महयन्तम्) सत्कार प्रशंसा करने योग्य (कामम्) काम को (मा, आ, धक्) मत जलाओ (ते) आपके (ह) ही (आयोः) जीवन के जो (आपः) प्राण बल हैं उन (विश्वा) सभों को (पर्यश्याम्) सब ओर से प्राप्त होऊँ ॥ १ ॥

    भावार्थ

    सेनापति आदि राजपुरुष अपने प्रयोजन के लिये किसीके काम को न विनाशें, सदैव पढ़ाने और पढ़नेवालों की रक्षा करें, जिससे बहुत बलवान् आयुयुक्त जन हों ॥ १ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    'महयन् काम' का अ-दहन

    पदार्थ

    १. (इन्द्र) = हे परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (यत्) = क्योंकि (ह) = निश्चय से (स्या) = वह (श्रुष्टि:) = [prosperity] समृद्धि (ते अस्ति) = आपकी ही है, (यया) = जिसके द्वारा (जरितृभ्यः) = सब स्तोताओं के लिए आप (ऊती) = रक्षण के लिए (बभूथ) = होते हैं, वे आप (नः) = हमारे (महयन्तं कामम्) = [महत: कुर्वाणम्] वृद्धि के कारणभूत काम [मनोरथ] को (मा आधक्) = भस्म मत कीजिए। हमारे वासनारूप काम को तो नष्ट कीजिए परन्तु उत्कर्ष प्राप्ति के साधनभूत काम को नष्ट मत कीजिए । २. मैं (ते) = आपकी (विश्वा) = सब (आयोः आपः) = [आप्तव्यानि - सा०] मनुष्य द्वारा प्राप्त करने योग्य वस्तुओं को (परि अश्याम्) = सब प्रकार से प्राप्त करनेवाला बनूँ । इनको प्राप्त करके मैं इस जीवन में उन्नति करता चलूँ ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु की सब समृद्धि स्तोताओं की उन्नति के लिए है। प्रभु कृपा से हमारी कामना सदा उत्कर्ष के लिए हो। हम उत्कर्ष की साधनभूत वस्तुओं को प्राप्त करनेवाले हों ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ईश्वर, आचार्य, राजा से ज्ञान, समृद्धि प्राप्ति की प्रार्थना ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! हे आचार्य ! अज्ञानान्धकार के नाशक ! हे सूर्य के समान तेजस्विन् ! ( ते ) तेरी ( यत् ) जो ( स्या ) वह प्रसिद्ध (श्रुष्टिः) अन्न समृद्धि के समान सबके श्रवण करने योग्य गर्जन, घोषणा, श्रवण करने योग्य ज्ञान और ख्याति है और ( यया ) जिस रक्षण और ज्ञान के सामर्थ्य से तू ( जरितृभ्यः ) विद्वान् उपदेष्टा और स्तुतिशील प्रजा जनों की ( ऊती ) रक्षा करने में ( बभूथ ) समर्थ होता है उसी शक्ति या अधिकार से तू ( नः ) हमारे ( कामं ) कामना करने योग्य, ( महयन्तम् ) हमें उत्तम बना देने वाले इच्छा शक्ति या मनोरथ को (मा धक्) भस्म मत कर, समूल नष्ट मत कर । मैं (ते) तेरी ( आयोः ) मनुष्यों के योग्य ( विश्वा ) समस्त ( आपः ) प्राप्त सम्पत्तियों को, मेघ से प्राप्त जलों और अन्न समृद्धियों के समान ( परि अश्याम् ) सब प्रकार से प्राप्त करूं । (श्रुष्टिः = श्रुतिः । सकारोपजनः ) ( २ ) हे इन्द्र परमेश्वर जो तेरी श्रुति वेद है जिससे तू विद्वानों को ज्ञान देता है। उससे हमारे मनोरथ को विफल न कर। हम जीवन के सब प्राण वा भोगों और बलों को प्राप्त करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अगस्त्य ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः–१, २ भुरिक् पङ्क्तिः । ३, ४ निचृत् त्रिष्टुप् । ५ विराट् त्रिष्टुप् । २ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात सेनापतीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे. ॥

    भावार्थ

    सेनापती इत्यादी राजपुरुषांनी आपल्या प्रयोजनासाठी कुणाच्याही कार्याचा नाश करू नये. सदैव अध्यापक व अध्येता यांचे रक्षण करावे, ज्यामुळे अत्यंत बलवान व आयुष्यमान लोक व्हावेत. ॥ १ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, lord of power and protection, all that reputable knowledge and wealth of yours by which you become the protector and promoter of the celebrants may not, we pray, scorch and burn our exalting ambition in life. May we, instead, achieve all your blessings of life and energy for our existence and progress.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of a commander of the army are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O Indra (Commander of the army) your knowledge is admirable and your capability of being a preacher makes you endeared to the admires. May I enjoy all strength of the Pranas (vital energy) of the human life and earn your favor.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The commander of the army makes a mark with his knowledge and humility and likewise other officers of the State should not blacklist the good worker of any one. They should always protect all teachers and the pupils, so that the people may become strong and long-lived.

    Foot Notes

    (क्षुप्टि:) श्रेतव्या विद्या = Knowledge worth listening. (जरितृभ्यः) सफलविद्यास्तावकेभ्य: = For the admirers of all sciences. (आपः) प्राणबलानि = The strength of the Pranas (vital breaths).

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top