ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 180/ मन्त्र 1
ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
यु॒वो रजां॑सि सु॒यमा॑सो॒ अश्वा॒ रथो॒ यद्वां॒ पर्यर्णां॑सि॒ दीय॑त्। हि॒र॒ण्यया॑ वां प॒वय॑: प्रुषाय॒न्मध्व॒: पिब॑न्ता उ॒षस॑: सचेथे ॥
स्वर सहित पद पाठयु॒वः । रजां॑सि । सु॒ऽयमा॑सः । अश्वाः । रथः॑ । यत् । वा॒म् । परि॑ । अर्णां॑सि । दीय॑त् । हि॒र॒ण्यया॑ । वाम् । प॒वयः॑ । प्रु॒षा॒य॒न् । मध्वः॑ । पिब॑न्तौ । उ॒षसः॑ । स॒चे॒थे॒ इति॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
युवो रजांसि सुयमासो अश्वा रथो यद्वां पर्यर्णांसि दीयत्। हिरण्यया वां पवय: प्रुषायन्मध्व: पिबन्ता उषस: सचेथे ॥
स्वर रहित पद पाठयुवः। रजांसि। सुऽयमासः। अश्वाः। रथः। यत्। वाम्। परि। अर्णांसि। दीयत्। हिरण्यया। वाम्। पवयः। प्रुषायन्। मध्वः। पिबन्तौ। उषसः। सचेथे इति ॥ १.१८०.१
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 180; मन्त्र » 1
अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
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अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्स्त्रीपुरुषगुणानाह ।
अन्वयः
हे स्त्रीपुरुषौ यद्यदा युवोः सुयमासोऽश्वा रजांसि वां रथोऽर्णांसि परिदीयत् वां रथस्य हिरण्यया पवयः प्रुषायन् मध्वः पिबन्तौ भवन्तावुषसः सचेथे ॥ १ ॥
पदार्थः
(युवोः) युवयोः (रजांसि) लोकान् (सुयमासः) संयमयुक्ताः (अश्वाः) वेगवन्तो वह्न्यादयः (रथः) यानम् (यत्) यः (वाम्) युवयोः (परि) सर्वतः (अर्णांसि) जलानि (दीयत्) गच्छेत्। दीयतीति गतिकर्मा। निघं० २। १४। (हिरण्ययाः) सुवर्णप्रचुराः (वाम्) युवयोः (पवयः) चक्राणि (प्रुषायन्) छिन्दन्ति (मध्वः) मधुरस्य रसस्य (पिबन्तौ) (उषसः) प्रभातस्य (सचेथे) संवेते ॥ १ ॥
भावार्थः
यौ स्त्रीपुरुषौ लोकविज्ञानौ पदार्थसंसाधितरथेन यायिनौ स्वलंकृतौ दुग्धादिरसं पिबन्तौ समयानुरोधेन कार्यसाधकौ स्तस्तौ प्राप्तैश्वर्यो स्याताम् ॥ १ ॥
हिन्दी (3)
विषय
अब एकसौ अस्सी सूक्त का आरम्भ है। उसमें आरम्भ से स्त्री-पुरुषों के गुणों का वर्णन करते हैं ।
पदार्थ
हे स्त्रीपुरुषो ! (यत्) जब (युवोः) तुम दोनों को (सुयमासः) संयम चाल के नियम को पकड़े हुए (अश्वः) वेगवान् अग्नि आदि पदार्थ (रजांसि) लोक-लोकान्तरों को और (वाम्) तुम्हारा (रथः) रथ (अर्णांसि) जलस्थलों को (परि, दीयत्) सब ओर से जावें, (वाम्) तुम दोनों के रथ के (हिरण्ययाः) बहुत सुवर्णयुक्त (पवयः) चाक पहिये (प्रुषायन्) भूमि को छेदते-भेदते हैं तथा (मध्वः) मधुर रस को (पिबन्तौ) पीते हुए आप (उषसः) प्रभात समय का (सचेथे) सेवन करते हैं ॥ १ ॥
भावार्थ
जो स्त्री-पुरुष लोक का विज्ञान राखते और पदार्थविद्या संसाधित रथ से जानेवाले अच्छे आभूषण पहिने दुग्धादि रस पीते हुए समय के अनुरोध से कार्य्यसिद्ध करनेवाले हैं, वे ऐश्वर्य्य को प्राप्त हों ॥ १ ॥
विषय
उत्तम लोक-प्राप्ति
पदार्थ
१. गत मन्त्र के अनुसार जीवन बनानेवाले पति-पत्नी प्राणसाधना के द्वारा अपने जीवन को उत्कृष्ट बनाने के लिए यत्नशील होते हैं, अतः उनके लिए कहते हैं कि (युवोः) = [युवयोः] आप दोनों के (रजांसि) = उत्कृष्ट लोक होते हैं अर्थात् आपको उत्कृष्ट लोकों की प्राप्ति होती है, क्योंकि आपके (अश्वाः) = इन्द्रियाश्व (सुयमासः) = उत्तमता से नियन्त्रित होते हैं । (यत्) = जो (वाम्) = आपका (रथः) = शरीररूप रथ है वह (अर्णांसि परिदीयत्) = ज्ञान जलों की ओर गति करनेवाला होता है, अर्थात् आपका झुकाव ज्ञान की ओर होता है। २. (वाम्) = आपकी (पवयः) = रथ की नेमियाँ (हिरण्यया) = ज्योतिर्मयी हैं और (प्रुषायन्) = [पुष्णन्ति अभिमतम्] इष्ट का पूरण करनेवाली हैं [प्रुष्= to fill] आपका जीवन ज्ञानप्रधान होकर मर्यादित है और इन मर्यादाओं में चलने के कारण इष्ट को प्राप्त करनेवाला है। ३. (मध्वः पिबन्तौ) = ओषधियों के सारभूत मधु अर्थात् सोम [वीर्यशक्ति] का पान करते हुए आप (उषसा सचेथे) = उषाकालों के साथ संगत होते हो । उषाकाल में जागरित होकर अपने नित्यकृत्यों में प्रवृत्त हो जाते हो ।
भावार्थ
भावार्थ - उत्तम लोकों की प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि- [क] हम जितेन्द्रिय बनें, [ख] हमारा झुकाव ज्ञान की ओर हो, [ग] जीवन में मर्यादाओं का पालन हो, [घ] सोमशक्ति का रक्षण करें, [ङ] उषाकाल में प्रबुद्ध होकर कार्यों में प्रवृत्त हो जाएँ।
विषय
गृहस्थ स्त्री पुरुषों को उपदेश ।
भावार्थ
हे स्त्री पुरुषो ! ( यत् ) जब ( वां ) तुम दोनों का (रथः) वेगवान् रथ ( अर्णांसि ) जल पूर्ण समुद्रों और रमण करने योग्य उत्तम उत्तम स्थल प्रदेशों को और ( रजांसि ) मनोरंजन करने वाले स्थानों को ( परि दीयत् ) जावे तो (युवोः) तुम दोनों के ( अश्वाः ) घोड़े भी ( सुयमासः ) उत्तम रीति से वश किये हुए होने चाहिये । इसी प्रकार हे स्त्री पुरुषो ! ( यत् वां रथः ) जब तुम दोनों का रमण करने हारा देह या गृहस्थ रूप रथ, या रमण करने वाला पारस्परिक आनन्द रस भी ( रजांसि अर्णांसि परिदीयत् ) मनोरंजन करने वाले, अति रमणीय विषयों को प्राप्त हो तब तुम्हारे ( अश्वाः सुयमासः ) भोग करने वाले इन्द्रियगण उत्तम संयम का पालन करने वाले हों। तुम दोनों जितेन्द्रिय होकर रहो। ( हिरण्ययाः पवयः ) लोह की बनी चक्रधाराएं जिस प्रकार मार्ग को काटती हुई जाती हैं उसी प्रकार ( वां ) तुम दोनों के ( पवयः ) पवित्र आचार (हिरण्ययाः) परस्पर के हितकारी और रमणीय, सुन्दर होकर ( प्रुषायन् ) एक दूसरों को पुष्ट करें और सब संकटों को काटें । तुम दोनों गृहस्थरूप रथ में बैठे हुए ( मध्वः पिबन्ता ) जल के समान मधुर मधुर जीवन के आनन्द रसों को आस्वाद लेते हुए ( उषसः सचेथे ) सब दिनों का उत्तम सेवन किया करे । या दोनों ( उषसः सचेथे ) परस्पर की कामना करने वाले एक दूसरे का सेवन करो । एक दूसरे से प्रेम पूर्वक मिलकर परस्पर प्रेमासक्त होकर रहो। दोनों एक दूसरे के आश्रय होकर, मिलकर रहो एक दूसरे के लिये उषा अर्थात् प्रभात के समान सदा नवीन, सुप्रसन्न और हँसमुख, उज्ज्वल होकर रहो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अगस्त्य ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः– १, ४, ७ निचृत् त्रिष्टुप्। २, ९ भुरिक् पङ्क्तिः ॥ ३, ५, ६, ८ विराट् त्रिष्टुप् । १० त्रिष्टुप । दशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात स्त्री-पुरुषांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥
भावार्थ
जे स्त्री-पुरुष लोकविज्ञानवेत्ते, पदार्थविद्या संसाधित, रथाने जाणारे, चांगले अलंकृत होऊन दूध इत्यादी पिऊन काळानुरूप कार्यसिद्धी करणारे असतात, ते ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ १ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Men and women all, wedded couples, Ashwins, when your well controlled and guided horses soar into the skies and the chariot shoots over oceans of earth and space, your golden wheels cut through the air and drip with vapour, then both of you enjoy the honey drink of the lights of dawn.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of men and women are told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men and women, your well-controlled horses in the form of energy are traversing the three regions, and your vehicles proceed to the desired quarters. The golden fellies of your conveyance wheels break up the ground. While drinking the sweet SOMA juice, you participate in the morning rites (rituals).
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those men and women who posses the knowledge of the world and travel by the car manufactured, are drinkers of milk and other nourishing juices. Such people accomplish all works timebound, and thus enjoy much prosperity.
Foot Notes
(अश्वा:) वेगवन्तो वन्ह्यादयः । अग्निरेष यदश्वः ।। ( Satpath 6.3.32) Speedy horses in the form of fire etc. (अर्णांसि ) जलानि । अर्ण इति उदक नाम । (NGT.1-12) Waters. (प्रुषायन्) छिन्दन्ति = Breakup.
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