ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 183/ मन्त्र 1
ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
तं यु॑ञ्जाथां॒ मन॑सो॒ यो जवी॑यान्त्रिवन्धु॒रो वृ॑षणा॒ यस्त्रि॑च॒क्रः। येनो॑पया॒थः सु॒कृतो॑ दुरो॒णं त्रि॒धातु॑ना पतथो॒ विर्न प॒र्णैः ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । यु॒ञ्जा॒था॒म् । मन॑सः । यः । जवी॑यान् । त्रि॒ऽव॒न्धु॒रः । वृ॒ष॒णा॒ । यः । त्रि॒ऽच॒क्रः । येन॑ । उ॒प॒ऽया॒थः । सु॒ऽकृतः॑ । दु॒रो॒णम् । त्रि॒ऽधातु॑ना । प॒त॒थः॒ । विः । न । प॒र्णैः ॥
स्वर रहित मन्त्र
तं युञ्जाथां मनसो यो जवीयान्त्रिवन्धुरो वृषणा यस्त्रिचक्रः। येनोपयाथः सुकृतो दुरोणं त्रिधातुना पतथो विर्न पर्णैः ॥
स्वर रहित पद पाठतम्। युञ्जाथाम्। मनसः। यः। जवीयान्। त्रिऽवन्धुरः। वृषणा। यः। त्रिऽचक्रः। येन। उपऽयाथः। सुऽकृतः। दुरोणम्। त्रिऽधातुना। पतथः। विः। न। पर्णैः ॥ १.१८३.१
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 183; मन्त्र » 1
अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 29; मन्त्र » 1
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अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 29; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विद्वच्छिल्पविद्यागुणानाह ।
अन्वयः
हे वृषणाऽश्विनौ विद्वांसो युवां यः पर्णैर्विर्न मनसो जवीयान् त्रिवन्धुरो यस्त्रिचक्रो येन त्रिधातुना सुकृतो दुरोणमुपयाथः सद्यः पतथस्तं युञ्जाथाम् ॥ १ ॥
पदार्थः
(तम्) (युञ्जाथाम्) (मनसः) (यः) (जवीयान्) अतिशयेन वेगवान् (त्रिवन्धुरः) त्रयो वन्धुरा यस्मिन् सः (वृषणा) बलिष्ठौ (यः) (त्रिचक्रः) त्रीणि चक्राणि यस्मिन् सः (येन) (उपयाथः) समीपं प्राप्नुतः (सुकृतः) धर्मात्मनः (दुरोणम्) गृहम् (त्रिधातुना) त्रयो धातवो यस्मिँस्तेन (पतथः) गच्छथः (विः) पक्षी (न) इव (पर्णैः) पक्षैः ॥ १ ॥
भावार्थः
ये शीघ्रं गमयितारं पक्षिवदाकाशे गमनसाधनं साङ्गोपाङ्गसुरचितं यानं च साध्नुवन्ति ते कथमैश्वर्य्यं लभेरन् ? ॥ १ ॥
हिन्दी (3)
विषय
अब एकसौ तिरासी सूक्त का आरम्भ है। उसके आरम्भ से विद्वान् की शिल्पविद्या के गुणों का विषय कहा है ।
पदार्थ
हे (वृषणा) बलवान् सर्वविद्यासम्पन्न शिल्पविद्या के अध्यापकोपदेशको ! तुम (यः) जो (पर्णैः) पङ्खों से (विः, न) पखेरू के समान (मनसः) मन से (जवीयान्) अत्यन्त वेगवाला (त्रिवन्धुरः) और तीन बन्धन जिसमें विद्यमान (यः) तथा जो (त्रिचक्रः) तीन चक्करवाला रथ है (येन) जिस (त्रिधातुना) तीन धातुओंवाले रथ से (सुकृतः) धर्मात्मा पुरुष के (दुरोणम्) घर को (उपयाथः) निकट जाते हो (तम्) उसको (युञ्जाथाम्) जोड़ो जोतो ॥ १ ॥
भावार्थ
जो शीघ्र ले जाने और पखेरू के समान आकाश में चलनेवाले साङ्गोपाङ्ग अच्छे बने हुए रथ को नहीं सिद्ध करते हैं, वे कैसे ऐश्वर्य को पावें ? ॥ १ ॥
विषय
'त्रिवन्धुर, त्रिचक्र, त्रिधातु' रथ
पदार्थ
१. हे (वृषणा) = शक्तिशाली प्राणापानो! (तम्) = उस रथ को (युञ्जाथाम्) = तुम ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रियरूप अश्वों से युक्त करो (यः) = जो रथ (मनसः जवीयान्) = मन से भी अधिक वेगवान् है। यह शरीररूप रथ (त्रिवन्धुरः) = सत्त्व, रज और तमरूप तीन बन्धनोंवाला है, (यः) = जो शरीररूप रथ (त्रिचक्रः) = इन्द्रियाँ, मन व बुद्धिरूप तीन चक्रोंवाला है। २. येन जिस शरीररूप रथ के द्वारा (सुकृतः) = इस ब्रह्माण्ड को उत्तमता से बनानेवाले प्रभु के दुरोणम् गृह को अर्थात् ब्रह्मलोक को (उपयाथः) = समीपता से प्राप्त होते हो। इस मानव-देहरूप रथ का लक्ष्यस्थान ब्रह्मलोक ही तो है। मानव-जीवन ब्रह्म-प्राप्ति के लिए ही मिलता है। ३. हे प्राणापानो! आप (त्रिधातुना) = वातपित्त व कफ से धारण किये जानेवाले इस रथ से उसी प्रकार (पतथः) = गति करते हो (न) = जैसे कि (विः) = पक्षी (पर्णैः) = पंखों से। प्राणापान पक्षी हैं तो यह तीन धातुओंवाला रथ उस पक्षी के पंखों का स्थानापन्न है ।
भावार्थ
भावार्थ – इस शरीररूप रथ के 'सत्त्व, रज व तम' तीन बन्धन हैं; इन्द्रियाँ, मन व बुद्धि तीन चक्र हैं, वात, पित्त व कफ तीन धातु हैं । इस रथ का लक्ष्यस्थान ब्रह्मलोक है। यह शरीर ब्रह्म-प्राप्ति के लिए मिला है।
विषय
विद्वान् स्त्री पुरुषों को उपदेश। त्रिवन्धुर त्रिचक्र रथ की व्याख्या।
भावार्थ
( यः ) जो मन से भी अधिक ( जवीयान् ) वेगवान् है, जो ( त्रिवन्धुरः ) तीन बन्धनों वाला, और जो ( त्रिचक्रः ) तीनों चक्रों वाला है ( तम् ) उसके साथ ( वृषणा ) बलवान् दो अश्व ( युञ्जाथाम् ) जोड़ो । ( त्रिधातुना येन ) तीन धातुओं के बने जिस द्वारा ( सुकृतः ) उत्तम कर्म करने वाले धर्मात्मा पुरुष के ( दुरोणं ) गृह को ( पर्णैः विः न ) पंखों से पक्षी के समान (उप याथः) प्राप्त होवो। उसी प्रकार मन से भी अधिक वेगवान् बलवान् उनका भी प्रेरक आत्मा है उसकी तरफ ( वृषणा ) बलवान् प्राण और अपान दोनों का योग करो । योगाभ्यास के बल से उनको वश करो। आत्मा युक्त देह तीन गुण सत्व, रजस्, तमस् तीनों से बन्धा होने से ‘त्रिवन्धुर’ है और मन, वाणी और काय इन तीन कारकों से युक्त होने से ‘त्रिचक्र’ है। वह वात, पित्त कफ से प्रयुक्त होने से त्रिधातु है । इसी द्वारा मन आत्मा दोनों उसका योग द्वारा ( तं ) उस प्रभु परमेश्वर का साक्षात् और ज्ञानों मे सुकृत के आश्रय उत्तम लोक व प्रभु को प्राप्त करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अगस्त्य ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१ पङ्क्तिः । ४ भुरिक् पङ्क्तिः। ५, ६ निचृत् पङ्क्तिः । २, ३ विराट् त्रिष्टुप् ॥ षडर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात विद्वानांच्या शिल्पविद्येच्या गुणांचे वर्तन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥
भावार्थ
जे पक्ष्याप्रमाणे आकाशात शीघ्र उडणारे चांगले रथ (यान) सिद्ध करू शकत नाहीत ते ऐश्वर्य कसे प्राप्त करणार? ॥ १ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Ashvins, mighty generous visionaries of science, technology and psychology, take to three-metal, three-turbine and three-stage chariot faster than the speed of mind by which you reach the house of sukrit Tvashta, holy designer and maker of chariots, armaments, implements and instruments, flying with wings like birds.$(This is a mantra of various possibilities of interpretation in the context of Physics, Astrophysics, Aeronautics, Medicine and Meditation. The meaning, can be ‘seen’ and realised by an expert who would be of the order of a Rshi, a visionary of the dynamics of Nature in his own field, and better in the unified field of comprehensive reality.)
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of learned persons and technocrats are highlighted.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O strong teachers and preachers of technology! you shower happiness. You harness the vehicle which has three seats, three wheels and is fast like the mind of a man. That carrier or vehicle is embellished with three metals (iron, silver and gold). You come to the dwelling of a pious man in it, when you travel like a bird with wings.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
How can those persons get much prosperity who do not manufacture a vehicle like the aircraft? Properly manufactured, a person can easily travel in it in the sky like a bird, with all its parts and implements, duly fitted well.
Foot Notes
(दुरोणम् ) गृहम् = Dwelling house. दुरोणेति गृह नाम (NG. 3-4) The objectives used for the , beautiful vehicle mentioned in the mantralike मनसो जवीयान् swift like the mind of a man विर्न पर्णे: Like a bird etc. do not leave the shadow of doubt in the mind of an impartial reader that the vehicle mentioned here is an ordinary chariot but something like an aircraft. Prof. Wilson's translation of मनसो जवीयान् is' as quick as thought'. The last line विर्नपर्णै: he has translated as like a bird with wing, Griffith's translation is worth quoting - "make ready that which passes thought in swiftness, that has three wheels and triple seat, ye mighty, whereon yeseek the dwelling of the pious, whereon three fold ye fly like birds with.” (Griffith's Hymns of the Rigveda Vol 1.P. 246)
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