ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 185/ मन्त्र 1
ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः
देवता - द्यावापृथिव्यौ
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
क॒त॒रा पूर्वा॑ कत॒राप॑रा॒योः क॒था जा॒ते क॑वय॒: को वि वे॑द। विश्वं॒ त्मना॑ बिभृतो॒ यद्ध॒ नाम॒ वि व॑र्तेते॒ अह॑नी च॒क्रिये॑व ॥
स्वर सहित पद पाठक॒त॒रा । पूर्वा॑ । क॒त॒रा । अप॑रा । अ॒योः । क॒था । जा॒ते इति॑ । क॒व॒यः॒ । कः । वि । वे॒द॒ । विश्व॑म् । त्मना॑ । बि॒भृ॒तः॒ । यत् । ह॒ । नाम॑ । वि । व॒र्ते॒ते॒ । अह॑नी॒ इति॑ । च॒क्रिया॑ऽइव ॥
स्वर रहित मन्त्र
कतरा पूर्वा कतरापरायोः कथा जाते कवय: को वि वेद। विश्वं त्मना बिभृतो यद्ध नाम वि वर्तेते अहनी चक्रियेव ॥
स्वर रहित पद पाठकतरा। पूर्वा। कतरा। अपरा। अयोः। कथा। जाते इति। कवयः। कः। वि। वेद। विश्वम्। त्मना। बिभृतः। यत्। ह। नाम। वि। वर्तेते। अहनी इति। चक्रियाऽइव ॥ १.१८५.१
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 185; मन्त्र » 1
अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
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अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ जन्यजनककर्माण्याह ।
अन्वयः
हे कवयोऽयोः कतरा पूर्वा कतराऽपरा इमे कथा जाते एतत् को वि वेद। त्मना यद्ध विश्वं नामाऽस्ति तद्बिभृतस्ते अहनी चक्रियेव वि वर्त्तेते तौ गुणस्वभावौ विजानीहि ॥ १ ॥
पदार्थः
(कतरा) द्वयोर्द्वयोर्मध्ये कतरौ (पूर्वा) पूर्वौ (कतरा) कतरौ (अपरा) अपरौ (अयोः) अनयोर्द्यावापृथिव्योः कार्यकारणयोर्वा अत्र छान्दसो वर्णलोपः। (कथा) कथम् (जाते) उत्पन्ने (कवयः) विद्वांसः (कः) (वि) (वेद) जानाति (विश्वम्) सर्वम् (त्मना) आत्मना (बिभृतः) धरतः (यत्) ये (ह) किल (नाम) जलम् (वि) (वर्त्तेते) (अहनी) अहर्निशम् (चक्रियेव) यथा चक्रे भवः पदार्थः ॥ १ ॥
भावार्थः
हे विद्वांसा येऽस्मिञ्जगति द्यावापृथिव्यौ ये च पूर्वाः कारणाख्याः पराः कार्य्याख्याः पदार्थाः सन्ति। ये आधाराधेयसम्बन्धेनाहोरात्रवद्वर्त्तन्ते तान् यूयं विजानीत । अयं मन्त्रः निरुक्ते व्याख्यातः । निरु० ३। २२। ॥ १ ॥
हिन्दी (3)
विषय
अब एकसौ पचासी सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र से उत्पन्न होने योग्य और उत्पन्न करनेवाले के गुणों का वर्णन करते हैं ।
पदार्थ
हे (कवयः) विद्वान् पुरुषो ! (अयोः) द्यावापृथिवी में वा कार्य-कारणों में (कतरा) कौन (पूर्वा) पूर्व (कतरा) कौन (अपरा) पीछे है ये द्यावापृथिवी वा संसार के कारण और कार्यरूप पदार्थ (कथा) कैसे (जाते) उत्पन्न हुए इस विषय को (कः) कौन (वि, वेद) विविध प्रकार से जानता है, (त्मना) आप प्रत्येक (यत्) जो (ह) निश्चित (विश्वम्) समस्त जगत् (नाम्) प्रसिद्ध है उसको (बिभृतः) धारण करते वा पुष्ट करते हैं और वे (अहनी) दिन-रात्रि (चक्रियेव) चाक के समान घूमते वैसे (वि वर्त्तेते) विविध प्रकार से वर्त्तमान हैं ॥ १ ॥
भावार्थ
हे विद्वानो ! जो इस जगत् में द्यावापृथिवी और जो प्रथम कारण और परकार्य्यरूप पदार्थ हैं तथा जो आधाराधेय सम्बन्ध से दिन-रात्रि के समान वर्त्तमान हैं, उन सबको तुम जानो ॥ १ ॥
विषय
रहस्यमय संसार
पदार्थ
१. अयोः = इन द्यावापृथिवी में से कतरा पूर्वा- कौन-सा तो पहले हुआ, कतरा अपरा- कौनसा पीछे हुआ तथा कथा जाते- किस प्रकार इनका निर्माण हुआ ' — ये सब बातें हे कवयः - ज्ञानी पुरुषो ! कः विवेद - कौन जानता है ? अथवा (क) वह आनन्दमय प्रभु ही जानता है। ये बातें मनुष्य के ज्ञान से ऊपर की हैं। मनुष्य इन्हें जान नहीं सकता। 'को अद्धा वेद क इह प्रवोचत् कुत आ जाता कुत इयं विसृष्टि: ।' (ऋ० १० । १२९ । ६) २. मनुष्य तो बस यही देखता है कि ये द्यावापृथिवी यत् = जो ह नाम निश्चय से अहनी - दिन-रात की भाँति चक्रिया इव-चक्रयुक्तसे विवर्तेते विशिष्ट चक्राकार गतिवाले होते हैं तो विश्वम्- सम्पूर्ण संसार को त्मना स्वयं बिभृतः = धारण करते हैं अथवा त्मना उस परमात्मा की अध्यक्षता में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का धारणकरते हैं। ब्रह्माण्ड-शकट का एक चक्र द्युलोक है तो दूसरा पृथिवी। इन दो चक्रों की गति से यह शकट गतिमय है ।
भावार्थ
भावार्थ- संसार की उत्पत्ति के विषय में उत्सुकता की अपेक्षा यह अच्छा है कि हम द्यावापृथिवी के धारण के प्रकार को समझने का यत्न करें।
विषय
द्यावापृथिवी रूप से माता पिता के कर्त्तव्यों का वर्णन ।
भावार्थ
द्यावा पृथ्वी रूप से माता पिता के कर्त्तव्यों का वर्णन। (अयोः) माता और पिता इन दोनों में से ( कतरा पूर्वा ) पहले कौन उत्पन्न हुई और ( कतरा अपरा) बाद में कौन उत्पन्न हुई अथवा (पूर्वा कतरा और अपरा कतरा ) मुख्य कौन और गौण कौन ? या पहले मातृ रूप या जनक रूप से कौन और ‘अपर’ अर्थात् पीछे कार्य रूप से कौन है ? और यह भी बतलाओ कि ( कथा जाते ) वें दोनों क्यों, किस प्रयोजन से उत्पन्न हुए हैं ? हे ( कवयः ) दीर्घदर्शी विद्वान् पुरुषो ! आप लोग बतलावें कि इस तत्व का रहस्य ( कः विवेद ) कौन भली प्रकार से जानता है यह तत्व किसने साक्षात् किया है, वस्तुतः ये दोनों ही स्त्री पुरुष माता और पिता (त्मना) स्वयं अपने आप अपने देह से और अपनी आत्मा से (विश्वं) सब जगत् को या समस्त ‘विश्व’ अर्थात् जीवमात्र को (बिभृतः) विविध प्रकार से धारण पोषण करते हैं। और जिस प्रकार सूर्य और पृथ्वी (त्मना विश्वं नाम बिभृतः) अपने सामर्थ्य से समस्त जल को धारण करती हैं उसी प्रकार, (अहनी ) रात और दिन के समान और ( चक्रिया-इव ) रथ के दो पहियों के समान ( वि वर्त्तेते ) विविध प्रकार से वर्त्तते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अगस्त्य ऋषिः॥ द्यावापृथिव्यौ देवते॥ छन्दः- १, ६, ७, ८, १०, ११ त्रिष्टुप् । २ विराट् त्रिष्टुप् । ३, ४, ५, ९ निचृत् त्रिष्टुप्। एकादशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात द्यावा पृथ्वीच्या दृष्टान्ताने उत्पन्न होण्यायोग्य व उत्पादक कर्मांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे. हे जाणले पाहिजे.
भावार्थ
हे विद्वानांनो! जे या जगात द्यावा पृथ्वी व प्रथम कारण व परकार्यरूपी पदार्थ आहेत व जे आधार आधेय संबंधाने दिवस-रात्रीप्रमाणे वर्तमान आहेत, त्या सर्वांना तुम्ही जाणा. ॥ १ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Of the two, heaven and earth, which comes first? Which follows later? How were they bom? O men wise and bold, who knows all this? Verily they hold this entire universe as it is by themselves and go round and round like days and nights as parts of a wheel. Answer: Ka, He the Lord Supreme, knows.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of the generator and the generated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O wise learned men! which of these two (heaven and earth) has priority and which is posterior? How were they engendered? Who knows all this exactly? Verily, such wise men uphold the water and other substances of the world and the days and nights revolve around them, like the wheels. You should know their attributes and functions.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O learned persons! you should try to know exactly the nature of the heaven and the earth, the cause and effect and the supporter and the supported that revolve around your thoughts. like the days and nights.
Foot Notes
(अयोः) अनयोः द्यावापृथिव्यो: कार्यकारणयोर्वा । अत्न छान्दसो वर्णलोप: Of the heaven and earth or the cause and effect (नाम ) जलम् । नाम इत्युदक नाम (NG. 1-12) = Water.
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