ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 24/ मन्त्र 1
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः स कृत्रिमो वैश्वामित्रो देवरातः
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
कस्य॑ नू॒नं क॑त॒मस्या॒मृता॑नां॒ मना॑महे॒ चारु॑ दे॒वस्य॒ नाम॑। को नो॑ म॒ह्या अदि॑तये॒ पुन॑र्दात्पि॒तरं॑ च दृ॒शेयं॑ मा॒तरं॑ च॥
स्वर सहित पद पाठकस्य॑ । नू॒नम् । क॒त॒मस्य॑ । अ॒मृता॑नाम् । मना॑महे । चारु॑ । दे॒वस्य॑ । नाम॑ । कः । नः॑ । म॒ह्यै । अदि॑तये । पुनः॑ । दा॒त् । पि॒तर॑म् । च॒ । दृ॒शेय॑म् । मा॒तर॑म् । च॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
कस्य नूनं कतमस्यामृतानां मनामहे चारु देवस्य नाम। को नो मह्या अदितये पुनर्दात्पितरं च दृशेयं मातरं च॥
स्वर रहित पद पाठकस्य। नूनम्। कतमस्य। अमृतानाम्। मनामहे। चारु। देवस्य। नाम। कः। नः। मह्यै। अदितये। पुनः। दात्। पितरम्। च। दृशेयम्। मातरम्। च॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 24; मन्त्र » 1
अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 13; मन्त्र » 1
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अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 13; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
तत्रादिमेन प्रजापतिरुपदिश्यते।
अन्वयः
वयं कस्य कतमस्य बहूनाममृतानामनादीनां प्राप्तमोक्षाणां जीवानां जगत्कारणानां नित्यानां मध्ये व्यापकस्यामृतस्यानादेरेकस्य पदार्थस्य देवस्य चारु नाम नूनं मनामहे कश्च देवो नः प्राप्तमोक्षानप्यस्मान् मह्या अदितये पुनर्दातु ददाति येनाहं पितरं मातरं च दृशेयम्॥१॥
पदार्थः
(कस्य) कीदृशगुणस्य (नूनम्) निश्चयार्थे (कतमस्य) बहूनां मध्ये व्यापकस्यामृतस्याऽनादेरेकस्य (अमृतानाम्) उत्पत्तिविनाशरहितानां प्राप्तमोक्षाणां जीवानां (मनामहे) विजानीयाम्। अत्र प्रश्नार्थे लेट् व्यत्ययेन श्यनः स्थाने शप् च। (चारु) सुन्दरम् (देवस्य) प्रकाशमानस्य दातुः (नाम) प्रसिद्धार्थे (कः) सुखस्वरूपो देवः (नः) अस्मान् (मह्ये) महत्याम् (अदितये) कारणरूपेण नाशरहितायां पृथिव्याम्। अदितिरिति पृथिवीनामसु पठितम्। (निघं०१.१) अत्रोभयत्र सप्तम्यर्थे चतुर्थी। (पुनः) पश्चात् (दात्) ददाति। अत्र लडर्थे लङडभावश्च। (पितरम्) जनकम् (च) समुच्चये (दृशेयम्) दृश्यासम् इच्छां कुर्याम्। अत्र दृशेरग्वक्तव्यः। (अष्टा०३.१.८६) अनेन वार्त्तिकेनाशीर्लिङि दृशेरग्विकरणेन रूपम्। (मातरम्) गर्भस्य धात्रीम् (च) पुनरर्थे॥१॥
भावार्थः
अत्र प्रश्नः कोऽस्तीदृशः सनातनानां पदार्थानां मध्ये सनातनस्याविनाशिनोऽर्थोऽस्ति यस्यात्युत्कृष्टं नाम्नः स्मरेम जानीयाम? कश्चास्मिन् संसारेऽस्मभ्यं केन हेतुना मोक्षसुखभोगानन्तरं जन्मान्तरं सम्पादयति? कथं च वयमानन्दप्रदां मुक्तिं प्राप्य पुनर्मातापित्रोः सकाशात् पुनर्जन्मनि शरीरं धारयेमेति॥१॥
हिन्दी (5)
विषय
अब चौबीसवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके पहिले मन्त्र में प्रजापति का प्रकाश किया है-
पदार्थ
हम लोग (कस्य) कैसे गुण कर्म स्वभाव युक्त (कतमस्य) किस बहुतों (अमृतानाम्) उत्पत्ति विनाशरहित अनादि मोक्षप्राप्त जीवों और जो जगत् के कारण नित्य के मध्य में व्यापक अमृतस्वरूप अनादि तथा एक पदार्थ (देवस्य) प्रकाशमान सर्वोत्तम सुखों को देनेवाले देव का निश्चय के साथ (चारु) सुन्दर (नाम) प्रसिद्ध नाम को (मनामहे) जानें कि जो (नूनम्) निश्चय करके (कः) कौन सुखस्वरूप देव (नः) मोक्ष को प्राप्त हुए भी हम लोगों को (मह्यै) बड़ी कारणरूप नाशरहित (अदितये) पृथिवी के बीच में (पुनः) पुनर्जन्म (दात) देता है। जिससे कि हम लोग (पितरम्) पिता (च) और (मातरम्) माता (च) और स्त्री पुत्र बन्धु आदि को (दृशेयम्) देखने की इच्छा करें॥१॥
भावार्थ
इस मन्त्र में प्रश्न का विषय है कौन ऐसा पदार्थ है जो सनातन अर्थात् अविनाशी पदार्थों में भी सनातन अविनाशी है कि जिसका अत्यन्त उत्कर्षयुक्त नाम का स्मरण करें वा जानें? और कौन देव हम लोगों के लिये किस-किस हेतु से एक जन्म से दूसरे जन्म का सम्पादन करता? और अमृत वा आनन्द के करानेवाली मुक्ति को प्राप्त होकर भी फिर हम लोगों को माता-पिता से दूसरे जन्म में शरीर को धारण कराता है॥१॥
विषय
अब चौबीसवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके पहिले मन्त्र में प्रजापति का प्रकाश किया है।
सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः
वयं कस्य कतमस्य बहूनाम् अमृतानाम् अनादीनां प्राप्तमोक्षाणां जीवानां जगत्कारणानां नित्यानां मध्ये व्यापकस्य अमृतस्य अनादेः एकस्य पदार्थस्य देवस्य चारु नाम नूनं मनामहे कः च देवः नः प्राप्तमोक्षान् अपि अस्मान् मह्यै अदितये पुनः दातु ददाति येन अहं पितरं मातरं च दृशेयम्॥१॥
पदार्थ
(वयम्)=हम लोग, (कस्य) कीदृशगुणस्य=कैसे गुण कर्म स्वभाव युक्त, (कतमस्य) बहूनां मध्ये=बहुतों के मध्य, (बहूनाम्)=बहुतों का, (अमृतानाम्) उत्पत्तिविनाशरहितानां प्राप्तमोक्षाणां जीवानां=उत्पत्ति विनाशरहित अनादि मोक्षप्राप्त जीवों, (अनादीनाम्)=और जो जगत् के अनादि कारण, (प्राप्तमोक्षाणाम्)=मोक्षप्राप्त, (जीवानाम्)=जीवों के, (जगत्कारणानाम्)= जगत् के उत्पत्ति कारण के, (नित्यानाम्)= नित्य के, (मध्ये)=मध्य में, (व्यापकस्य)=व्यापक के, (अनादेः)=अनादि, (एकस्य)=एक, (पदार्थस्य)=पदार्थ के, (देवस्य) प्रकाशमानस्य दातुः=प्रकाशमान को देने वाले, (चारु) सुन्दरम्=सुन्दर, (नाम) प्रसिद्धार्थे=प्रसिद्ध नाम को, (नूनम्) निश्चयार्थे मनामहे=निश्चय करके, (कः) सुखस्वरूपो देवः=सुखस्वरूप देव, (च) पुनरर्थे=भी, (देवः)=देव, (नः)=हमें, (प्राप्तमोक्षान्)=मोक्ष प्राप्त लोगों को, (अपि)=भी, (अस्मान्)=हम को, (मह्यै) महत्याम्= बड़े, (अदितये) कारणरूपेण नाशरहितायां पृथिव्याम्=कारणरूप नाशरहित पृथिवी, (पुनः) पश्चात्=बाद में, (दातु) ददाति=देता है, (येन)=जिससे, (अहम्)=मैं, (पितरम्) जनकम्=पिता, (च) समुच्चये=और, (मातरम्) गर्भस्य धात्रीम्=माता, (दृशेयम्)=देखने की इच्छा करें॥१॥
महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद
यहाँ प्रश्न है- इस प्रकार के सनातन पदार्थों के मध्य में सनातन का अविनाशी अर्थ है जिसके अति उत्कृष्ट नाम को स्मरण करें, क्या ऐसा जानना चाहिए? और कौन देव हम लोगों के लिये किस-किस हेतु से एक जन्म से दूसरे जन्म का सम्पादन कराता है? और अमृत वा आनन्द के करानेवाली मुक्ति को प्राप्त होकर भी फिर हम लोगों को माता-पिता के पास दूसरे जन्म में शरीर को धारण कराता है॥१॥
विशेष
अनुवादक की टिप्पणी- प्रजापति- इस मन्त्र का देवता अर्थात् वर्ण्य विषय प्रजापति है। प्रजापति का अर्थ है-प्रजा रक्षक या प्रजापालक। परमेश्वर सबका रक्षक होने से प्रजापति कहलाता है।
पदार्थान्वयः(म.द.स.)
(वयम्) हम लोग (कस्य) कैसे गुण कर्म स्वभाव युक्त (बहूनाम्) बहुतों के मध्य (अमृतानाम्) उत्पत्ति, विनाशरहित, अनादि मोक्षप्राप्त जीवों, (अनादीनाम्) जो जगत् के अनादि कारण और (नित्यानाम्) नित्य कारण के (मध्ये) मध्य में (व्यापकस्य) व्यापक, (अनादेः) अनादि (एकस्य) एक (पदार्थस्य) पदार्थ को (देवस्य) प्रकाश देने वाले (चारु) सुन्दर (नाम) प्रसिद्ध नाम के (च) और (नूनम्) निश्चय ही (कः) सुखस्वरूप (देवः) देव (नः) हम (प्राप्तमोक्षान्) मोक्ष प्राप्त लोगों को (अपि) भी (मह्यै) बड़े (अदितये) कारणरूप और नाशरहित पृथिवी (पुनः) बाद में अर्थात् अगले जन्म में (दातु) देता है। (येन) जिससे (अहम्) मैं (पितरम्) पिता (च) और (मातरम्) माता को (दृशेयम्) देखने की इच्छा करूँ॥१॥
संस्कृत भाग
पदार्थः(महर्षिकृतः)- (कस्य) कीदृशगुणस्य (नूनम्) निश्चयार्थे (कतमस्य) बहूनां मध्ये व्यापकस्यामृतस्याऽनादेरेकस्य (अमृतानाम्) उत्पत्तिविनाशरहितानां प्राप्तमोक्षाणां जीवानां (मनामहे) विजानीयाम्। अत्र प्रश्नार्थे लेट् व्यत्ययेन श्यनः स्थाने शप् च। (चारु) सुन्दरम् (देवस्य) प्रकाशमानस्य दातुः (नाम) प्रसिद्धार्थे (कः) सुखस्वरूपो देवः (नः) अस्मान् (मह्ये) महत्याम् (अदितये) कारणरूपेण नाशरहितायां पृथिव्याम्। अदितिरिति पृथिवीनामसु पठितम्। (निघं०१.१) अत्रोभयत्र सप्तम्यर्थे चतुर्थी। (पुनः) पश्चात् (दात्) ददाति। अत्र लडर्थे लङडभावश्च। (पितरम्) जनकम् (च) समुच्चये (दृशेयम्) दृश्यासम् इच्छां कुर्याम्। अत्र दृशेरग्वक्तव्यः। (अष्टा०३.१.८६) अनेन वार्त्तिकेनाशीर्लिङि दृशेरग्विकरणेन रूपम्। (मातरम्) गर्भस्य धात्रीम् (च) पुनरर्थे॥१॥
विषयः- तत्रादिमेन प्रजापतिरुपदिश्यते।
अन्वयः- वयं कस्य कतमस्य बहूनाममृतानामनादीनां प्राप्तमोक्षाणां जीवानां जगत्कारणानां नित्यानां मध्ये व्यापकस्यामृतस्यानादेरेकस्य पदार्थस्य देवस्य चारु नाम नूनं मनामहे कश्च देवो नः प्राप्तमोक्षानप्यस्मान् मह्या अदितये पुनर्दातु ददाति येनाहं पितरं मातरं च दृशेयम्॥१॥
भावार्थः(महर्षिकृतः)- अत्र प्रश्नः कोऽस्तीदृशः सनातनानां पदार्थानां मध्ये सनातनस्याविनाशिनोऽर्थोऽस्ति यस्यात्युत्कृष्टं नाम्नः स्मरेम जानीयाम? कश्चास्मिन् संसारेऽस्मभ्यं केन हेतुना मोक्षसुखभोगानन्तरं जन्मान्तरं सम्पादयति? कथं च वयमानन्दप्रदां मुक्तिं प्राप्य पुनर्मातापित्रोः सकाशात् पुनर्जन्मनि शरीरं धारयेमेति॥१॥
विषय
क - कतम
पदार्थ
१. (नूनम्) - अब जीवन को नीरोग व निर्मल बनाकर हम (कस्य) - उस अनिर्वचनीय प्रजापति के (अमृतानाम्) - विषय - वासनाओं के पीछे न मरनेवाले देवों में (कतमस्य) - अत्यन्त आनन्दमय (देवस्य) - सब दिव्य गुणों से युक्त प्रभु के (चारु नाम) - सुन्दर नाम का (मनामहे) - अभ्यास व उच्चारण करते हैं । प्रभु का यह नाम - स्मरण मुझे निर्मल व नीरोग बनाये रक्खेगा ।
२. (कः) - वह अनिर्वचनीय प्रभु (नः) - हमें (मह्यै+अदितये) - महनीय - अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अखण्डन व जीवन के लिए (पुनः) - फिर (दात्) - देता है , ताकि मैं (पितरम् च) - पिता को और (मातरम् च) - माता को (दृशेयम्) - देख सकूँ ।
३. विषयों में फंसकर हमारा दृष्टिकोण बड़ा विचित्र हो जाता है , हमारा ज्ञान लुप्त - सा हो जाता है और हम उस सबके माता - पिता प्रभु को तो देख ही क्या पाते हैं , सांसारिक माता - पिता को भी नहीं देखते ; केवल अपने सुख का ही ध्यान करते हैं । उस समय हमारा जीवन महनीय नहीं रहता , उसका सब सौन्दर्य समाप्त हो जाता है ।
४. यदि हम प्रभु - नामस्मरण से पृथक् नहीं हो जाते तो हमें जन्म मिलता भी है तो बड़ा सुन्दर । इस जीवन को प्राप्त करके हमारा प्रयत्न सबके माता - पिता प्रभु के दर्शन के लिए होता है ।
भावार्थ
भावार्थ - हम 'क - कतम' देव के सुन्दर नाम का स्मरण करते हैं , ताकि हमें महनीय जीवन ही प्राप्त हो ।
विषय
मुक्ति से पुनरावृत्ति
शब्दार्थ
(अमृतानाम्) नित्य पदार्थों में (कतमस्य कस्य देवस्य) कौन-से तथा किस गुणवाले देव का (चारु नाम मनामहे) सुन्दर नाम हम स्मरण करे । (कः नः) कौन हमें (मह्या अदितये पुनः दात्) महती, अखण्ड-सम्पत्ति-मुक्ति के लिए पुनः देता है (पितरं च मातरं च दृशेयम्) और फिर किसकी प्रेरणा से माता-पिता के दर्शन करता हूँ ।
भावार्थ
१. मनुष्यों को सर्वप्रमुख, ज्ञानस्वरूप परमात्मा का ही जप,ध्यान एवं स्मरण करना चाहिए । २. वह प्रभु ही जीव को मुक्ति में पहुँचाता है। ३. वही परमात्मा मुक्त जीव को मुक्ति-सुख-भोग के पश्चात् माता-पिता के दर्शन कराता है, उसे जन्म धारण कराता है । ४. जन्म धारण करना, मुक्ति प्राप्त करना, पुनः जन्म धारण करना-यह एक क्रम है जो निरन्तर चलता रहता है और चलना भी चाहिए । यदि जीव परमात्मा में विलीन हो जाए तो वह मुक्ति क्या हुई ?
विषय
जीव का प्रभुस्मरण ।
भावार्थ
( अमृतानाम् ) मरण रहित, मुक्तात्माओं के ( देवस्य ) परम सुखदायक ( कस्य ) कौन से सबसे अधिक सुखमय प्रजापालक के ( चारु नाम ) अति उत्तम नाम को ( मनामहे ) जानें, स्मरण करें, चिन्तन और मनन करें । ( नः ) हम मुक्ति सुख ही सुख के भोगने हारे जीवों को भी ( कः ) वह कौन प्रजापति परमेश्वर ( मह्या अदितये ) बड़ी भारी अखण्ड पृथिवी के ऐश्वर्यों को भोगने के लिये ( पुनः ) बार २ (दात्) प्रदान करता है, भेजता है, जिससे मैं जीव ( पितरं च ) पालक पिता और ( मातरम् ) जननी माता का ( दृशेयम् ) दर्शन करता हूं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-१५ शुनःशेप आजीगर्तिः कृत्रिमो वैश्वामित्रो देवरात ऋषिः । देवता—१ प्रजापतिः । २ अग्निः । ३-५ सविता भगो वा । ६-१५ वरुणः ॥ छन्दः-१, २, ६–१५ त्रिष्टुप् । ३-५ गायत्री ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
विषय
तेविसाव्या सूक्तात सांगितलेले वायू इत्यादी अर्थानुकूल प्रजापती इत्यादी अर्थ सांगण्याने या चोविसाव्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥
भावार्थ
या मंत्रातील प्रश्न असा की कोणता असा पदार्थ जो सनातन अर्थात अविनाशी पदार्थांमध्येही सनातन अविनाशी आहे? ज्याच्या उत्कृष्ट नावाचे स्मरण करावे व जाणावे. कोणता देव आमच्यासाठी कोणकोणत्या हेतूने एका जन्मातून दुसऱ्या जन्माला घालतो व अमृत, आनंद देणारी मुक्ती प्राप्त होऊन पुन्हा आम्हाला माता-पिता यांच्याद्वारे दुसऱ्या जन्मात शरीर धारण करवितो? ॥ १ ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Who, which one, is that supreme lord of the many immortals whose auspicious name we adore and worship? Who is that for sure who sends us back to the great earth so that we may again behold and be with our father and mother?
Subject of the mantra
Now, there is start of twenty fourth hymn, In its first mantra deity Prajapati has been elucidated.
Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-
(vayam)=We people, (kasya)=how virtuous, (bahūnām)=among many, (amṛtānām)=living beings without creation, destruction and having achieved salvation, [aur]=and, (anādīnām)=who are cause of primordial creation, (nityānām)=eternal cause, (madhye)=in the middle (vyāpakasya)=pervading, [aur]=and, (anādeḥ)=are primordial cause, (ekasya)=one, (padārthasya) =to substance, (devasya)=provider of light, (cāru)=graceful, (nāma)=having famous name, (ca)=and, (nūnam)=certainly, (kaḥ)=delightful, (devaḥ)=deity, (naḥ)=we, (prāptamokṣān)=to those who got salvation, (api)=also, (mahyai)=great, (aditaye) causal and perishable earth, (punaḥ)=later, in other words, in next birth, (dātu)=provides, (yena)=by whom, (aham)=I, (pitaram)=father, (ca)=and, (mātaram)=mother (dṛśeyam)=would like to see.
English Translation (K.K.V.)
We people among many, how virtuous living beings without creation, destruction and having achieved salvation are, who are cause of primordial creation and eternal cause pervading in the middle. Provider of the light to one substance, graceful, having famous name and certainly delightful deity and to those who got salvation also, provides great causal and perishable earth later, in other words, in the next birth, by whom I would like to see father and mother.
TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand
The question here is- ‘in the midst of such eternal objects, there is an imperishable meaning of eternals, whose most excellent name should be remembered, should it be known? And which deity does gets enactment from one birth to another for what purpose for us? And having attained the liberation that brings nectar or bliss, still makes us imbibe the body in the second birth with our parents’.
TRANSLATOR’S NOTES-
Prajapati-The deity of this mantra i.e. the subject matter is Prajapati. Prajapati means protector of the people or Prajapalak. God being the protector of all is called Prajapati.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
In the first Mantra, the nature of Prajapati or the Lord of the world is taught.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
Who is that God pervading immortal and eternal emancipated souls and Himself One Eternal Imperishable Supreme Being, the Resplendent Giver of Bliss whose auspicious name we may invoke and always remember? Who will send us-the liberated souls, back to the great earth that we may again behold our parents.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Here there is a question raised. Who is that one among the eternal and immortal souls whose most auspicious name we may know and remember? Who will give birth to us after the period of emancipation so that we may be born again through our earthly parents after enjoying the Bliss of liberation for a very long period.
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