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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 49 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 49/ मन्त्र 1
    ऋषिः - प्रस्कण्वः काण्वः देवता - उषाः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    उषो॑ भ॒द्रेभि॒रा ग॑हि दि॒वश्चि॑द्रोच॒नादधि॑ । वह॑न्त्वरु॒णप्स॑व॒ उप॑ त्वा सो॒मिनो॑ गृ॒हम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उषः॑ । भ॒द्रेभिः॑ । आ । ग॒हि॒ । दि॒वः । चि॒त् । रो॒च॒नात् । अधि॑ । वह॑न्तु । अ॒रु॒णऽप्स॑वः । उप॑ । त्वा॒ । सो॒मिनः॑ । गृ॒हम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उषो भद्रेभिरा गहि दिवश्चिद्रोचनादधि । वहन्त्वरुणप्सव उप त्वा सोमिनो गृहम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उषः । भद्रेभिः । आ । गहि । दिवः । चित् । रोचनात् । अधि । वहन्तु । अरुणप्सवः । उप । त्वा । सोमिनः । गृहम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 49; मन्त्र » 1
    अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    (उषः) उषर्वत्कल्याणनिमित्ते (भद्रेभिः) कल्याणकारकैर्गुणैः (आ) समन्तात् (गहि) प्राप्नुहि (दिवः) प्रकाशान् (चित्) अपि (रोचनात्) देदीप्यमानात् (अधि) उपरि (वहन्तु) प्राप्नुवन्तु (अरुणप्सवः) अरुणा रक्तगुणविशिष्टाश्च प्सवो भक्षणानि येषान्ते वृद्धा जाताः (समीपे) (त्वा) त्वाम् (सोमिनः) प्रशस्ताः सोमाः पदार्थास्सन्ति यस्य तस्य (गृहम्) निवासस्थानम् ॥१॥

    अन्वयः

    तत्रादिमे मन्त्रे उषर्दृष्टान्तेन स्त्री कृत्यमुपदिश्यते।

    पदार्थः

    हे उषः शुभगुणैः प्रकाशमाने ! यथोषा रोचनादधि भद्रेभिरागच्छति तथा त्वमागहि येथेयं दिव उषा वहति तथा त्वारुणप्सवः सोमिनो गृहमुपवहन्तु सामीप्यं प्रापयन्तु ॥१॥

    भावार्थः

    यस्योषसो भूमिसंयुक्तसूर्य्यप्रकाशादुत्पत्तिरस्ति सा यथा दिनरूपेण परिणता पदार्थान्प्रकाशयन्ती सर्वानाह्लादयति तथा ब्रह्मचर्यविद्यासंयोगा स्त्री वरा स्यात् ॥१॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    अब ४९ सूक्त का आरम्भ है। इसके प्रथम मंत्र में उषा के दृष्टान्त से स्त्रियों के कर्म का उपदेश किया है।

    पदार्थ

    हे शुभगुणों से प्रकाशमान ! जैसे (उषाः) कल्याणनिमित्त (रोचनात्) अच्छे प्रकार प्रकाशमान से (अधि) ऊपर (भद्रेभिः) कल्याणकारक गुणों से अच्छे प्रकार आती है वैसे ही तू (आगहि) प्राप्त हो और जैसे यह (दिवः) प्रकाश के समीप प्राप्त होती है वैसे ही (त्वा) तुझ को (अरुणप्सवः) रक्त गुणविशिष्ट छेदन करके भोक्ता (सोमिनः) उत्तम पदार्थ वाले विद्वान् के (गृहम्) निवासस्थान को (उपवहन्तु) समीप प्राप्त करें ॥१॥

    भावार्थ

    जिस उषा की भूमि संयुक्त सूर्य के प्रकाश से उत्पत्ति है वह दिन रूप परिणाम को प्राप्त होकर पदार्थों को प्रकाशित करती हुई सबको आह्लादित करती है वैसे ही ब्रह्मचर्य विद्या योग से युक्त स्त्री श्रेष्ठ हो ॥१॥

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    विषय

    भद्र की प्राप्ति

    पदार्थ

    १. हे (उषः) = उषः काल ! (रोचनात्) = देदीप्यमान (दिवः) ज्ञान के द्वारा (चित्) = निश्चय से (भद्रेभिः) = भद्र वस्तुओं के साथ (अधि आगहि) = तू हमें आधिक्येन प्राप्त हो । जितना - जितना हमारा ज्ञान बढ़ता जाता है, उतना - उतना हम अभद्र से दूर और भद्र के समीप होते जाते हैं । इन उषः कालों में हम स्वाध्याय के द्वारा अपने ज्ञान को बढ़ाएँ और इस प्रकार अपना सम्पर्क भद्रताओं के साथ करते चलें । २. (अरुणप्सवः) = [प्सान्ति भक्षयन्तीति प्सवः अश्वाः, अरुणः - अव्यक्तरागः] नहीं प्रकट हुआ है राग जिनमें, ऐसे इन्द्रियरूप अश्वोंवाले, अर्थात् विषयों में अनासक्त इन्द्रियोंवाले (सोमिनः) = सोम [वीर्य] का रक्षण करनेवाले पुरुष (त्वा) = तुझे (गृहम्) = अपने घर में (उपवहन्तु) = प्राप्त करानेवाले हों, अर्थात् प्रत्येक उषः काल में हमारा यह निश्चय हो कि हमें इन्द्रियों को विषयों में नहीं फंसने देना और वीर्य की रक्षा करनी है । वस्तुतः ऐसा होने पर ही तो उषा हमें सब भद्रों के प्राप्त करानेवाली होगी ।

    भावार्थ

    भावार्थ - हमारा ज्ञान बढ़े और वह हमें अभद्र से हटाकर भद्र की और ले - चले । हम विषयों में आसक्त न हों और सोम का रक्षण करनेवाले बनें ।

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    विषय

    उषा के वर्णन के साथ २ कान्तिमती कन्या के कर्तव्यों का वर्णन ।

    भावार्थ

    हे (उषः) प्रभातवेला के समान सबको प्रिय लगने वाली ! कन्ये ! तू (भद्रेभिः) कल्याणकारी गुणों और व्यवहारों से रहित (रोचनात् दिवः चित् ) अति उज्वल सूर्य से उषा के समान, तेजस्वी ज्ञानी कुल से ( आगहि ) हमें प्राप्त हो। और (अरुणप्सवः) जलों के सोखनेवाले लाल रंग के किरण जिस प्रकार उषा को लाते हैं उसी प्रकार हे विदुषि कन्ये ! ( त्वा ) तुझको (अरुणप्सवः ) लाल वर्ण के घोड़े (सोमिनः) ऐश्वर्यवान् बलवीर्य से युक्त ब्रह्मचारी, प्रिय पति के (गृहम् उप वहन्तु ) घर तक सुख-पूर्वक ले आवें ।

    टिप्पणी

    अरुणप्सवः—प्सान्तीति प्सवः अश्वाः, अरुणा रक्तगुणविशिष्टाश्च तेप्सवश्व इति ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रस्कण्वः काणव ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ निचृदनुष्टुप् छन्दः ॥

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    विषय

    अब उनचासवें सूक्त का आरम्भ है। इसके प्रथम मंत्र में उषा के दृष्टान्त से स्त्रियों के कर्म का उपदेश किया है।

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    हे उषः शुभगुणैः प्रकाशमाने ! यथा उषा रोचनात् अधि भद्रेभिः आगच्छति तथा त्वम् आ गहि यथा इयं दिव उषा वहति तथा त्वा अरुणप्सवः सोमिनः गृहम् उपवहन्तु सामीप्यं प्रापयन्तु ॥१॥

    पदार्थ

    हे (उषः) उषर्वत्कल्याणनिमित्ते=उषा के समान कल्याण करनेवाली और (शुभगुणैः)= शुभ गुणों से (प्रकाशमाने)= प्रकाशमान ! (यथा)=जैसे, (उषा)= उषा के, (रोचनात्) देदीप्यमानात्=दीप्त होने से, (अधि) उपरि= ऊपर से, (भद्रेभिः) कल्याणकारकैर्गुणैः=कल्याण कारक गुणों के द्वारा, (आगच्छति)=आती है, (तथा)=वैसे ही, (त्वम्)=तुम, (आ) समन्तात्=हर ओर से, (गहि) प्राप्नुहि=प्राप्त होओ। (यथा)=जैसे, (इयम्)=इस, (दिवः) प्रकाशान्= प्रकाश को, (उषा)=उषा, (वहति)=ले जाती है, (तथा)=वैसे ही, (त्वा) त्वाम्=तुम को, (अरुणप्सवः) अरुणा रक्तगुणविशिष्टाश्च प्सवो भक्षणानि येषान्ते वृद्धा जाताः= जिसके खाद्य पदार्थ हैं विशेष लाल रंग, ऐसी वृद्ध हो रही, (सोमिनः) प्रशस्ताः सोमाः पदार्थास्सन्ति यस्य तस्य= प्रशस्त सोम पदार्थों वाली स्त्री, (गृहम्) निवासस्थानम्= निवास स्थान के, (सामीप्यम्)=समीप, (प्रापयन्तु)=पहुँच जायें ॥१॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    जिसकी उषा से भूमि में संयुक्त सूर्य के प्रकाश से उत्पत्ति है, वह दिन रूप परिवर्तित होकर पदार्थों को प्रकाशित करती हुई सबको आह्लादित करती है, वैसे ही ब्रह्मचर्य और विद्या के संयोग से स्त्री श्रेष्ठ होवे ॥१॥

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    हे (उषः) उषा के समान कल्याण करनेवाली [और] (शुभगुणैः) शुभ गुणों से (प्रकाशमाने) प्रकाशमान ! (यथा) जैसे (उषा) उषा के (रोचनात्) दीप्त होने से [यह] (अधि) ऊपर से (भद्रेभिः) कल्याणकारक गुणों के द्वारा (आगच्छति) आती है, (तथा) वैसे ही (त्वम्) तुम (आ) हर ओर से (गहि) प्राप्त होओ। (यथा) जैसे (इयम्) इस (दिवः) प्रकाश को (उषा) उषा (वहति) ले जाती है, (तथा) वैसे ही (त्वा) तुम को (अरुणप्सवः) जिसके विशेष लाल रंग के खाद्य पदार्थ हैं हैं, ऐसी वृद्ध हो रही [और] (सोमिनः) प्रशस्त सोम पदार्थों वाली स्त्री (गृहम्) निवास स्थान के (सामीप्यम्) समीप (प्रापयन्तु) पहुँच जायें ॥१॥

    संस्कृत भाग

    पदार्थः(महर्षिकृतः)- (उषः) उषर्वत्कल्याणनिमित्ते (भद्रेभिः) कल्याणकारकैर्गुणैः (आ) समन्तात् (गहि) प्राप्नुहि (दिवः) प्रकाशान् (चित्) अपि (रोचनात्) देदीप्यमानात् (अधि) उपरि (वहन्तु) प्राप्नुवन्तु (अरुणप्सवः) अरुणा रक्तगुणविशिष्टाश्च प्सवो भक्षणानि येषान्ते वृद्धा जाताः (समीपे) (त्वा) त्वाम् (सोमिनः) प्रशस्ताः सोमाः पदार्थास्सन्ति यस्य तस्य (गृहम्) निवासस्थानम् ॥१॥ विषयः- तत्रादिमे मन्त्रे उषर्दृष्टान्तेन स्त्री कृत्यमुपदिश्यते। अन्वयः- हे उषः शुभगुणैः प्रकाशमाने ! यथोषा रोचनादधि भद्रेभिरागच्छति तथा त्वमागहि यथेयं दिव उषा वहति तथा त्वारुणप्सवः सोमिनो गृहमुपवहन्तु सामीप्यं प्रापयन्तु ॥१॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- यस्योषसो भूमिसंयुक्तसूर्य्यप्रकाशादुत्पत्तिरस्ति सा यथा दिनरूपेण परिणता पदार्थान्प्रकाशयन्ती सर्वानाह्लादयति तथा ब्रह्मचर्यविद्यासंयोगा स्त्री वरा स्यात् ॥१॥

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    मराठी (1)

    विषय

    यात उषेचे गुणवर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

    भावार्थ

    ज्या उषेची स्थिती सूर्याच्या प्रकाशामुळे उत्पन्न होते ती दिवसरूपी परिणामाला प्राप्त होऊन पदार्थांना प्रकाशित करून सर्वांना आल्हादित करते. तसेच ब्रह्मचर्य, विद्या योगाने युक्त स्त्री श्रेष्ठ असावी. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O Divine light of the Dawn, come with auspicious living energy from the top of refulgent heaven, and may the red beams of splendour, we pray, carry the creative energy to the yajnic home of the lover of Soma.

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    Subject of the mantra

    Now is the beginning of the forty-ninth hymn. In its first mantra, the work of women has been preached by the example of dawn.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    He=O! (uṣaḥ)=benevolent like dawn, [aura]=and, (śubhaguṇaiḥ)=with good qualities, (prakāśamāne)=luminous, (yathā) =like, (uṣā) =its, (rocanāt)= by shining’ [yaha]=this, (adhi) =from above, (bhadrebhiḥ)=by beneficial properties, (āgacchati) =comes, (tathā) =in the same way, (tvam) =you, (ā) =from all sides, (gahi) =get obtained, (yathā) =like, (iyam) =this, (divaḥ) =to light, (uṣā) =dawn, (vahati) =carries away, (tathā) =in the same way, (tvā) =to you, (aruṇapsavaḥ) Who has special red colored foods, is getting old like this, [aura]=and, (sominaḥ)= woman of abundant substances, (gṛham)= of residence, (sāmīpyam) =near, (prāpayantu) =must reach.

    English Translation (K.K.V.)

    O benefactor like dawn and shining with auspicious qualities! May you be received from all sides, as the light of the dawn comes from above through auspicious qualities. As this light is carried away by dawn, so may you, such an aging woman who has special red colored foods, reach near the abode.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    From dawn in the earth, with the combined light of the Sun there is creation. That changing its form into day and illuminating the substances, pleases everyone, in the same way, a woman should be the best with the combination of celibacy and education.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    In the first mantra, the duties of a woman are taught by the illustration of the Dawn.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    1. O girl shining with good virtues like the Dawn, as the Dawn comes by auspicious ways from above the sky's bright realm, so come thou with auspicious virtues from the family of the people full of splendor. As red rays of the sun bring the dawn, so let horses or the old people eating articles increasers of red corpuscles in the blood (or red horses) bring thee to the house of the virile husband, possessing all objects, for marriage.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the Dawn born from the horizon (association of the light of the sun with the earth) when turned into day, gladdens all manifesting all objects, in the same way, a woman endowed with Brahmacharya (continence) and Vidya (Knowledge) is to be admired. ( अरुणप्सवः) अरुणा रक्तगुणविशिष्टाइचप्सवो भक्षणानि येषां ते वृद्धाः जाता: = Old men eating articles increasers of red corpuscles in the blood. (प्सा-भक्षणे-प्सान्तीति प्सव:-अश्वाः अरुणा:-रक्तगुणविशिष्टाश्च ते प्सवश्च Tr.)

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