ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 76/ मन्त्र 1
का त॒ उपे॑ति॒र्मन॑सो॒ वरा॑य॒ भुव॑दग्ने॒ शंत॑मा॒ का म॑नी॒षा। को वा॑ य॒ज्ञैः परि॒ दक्षं॑ त आप॒ केन॑ वा ते॒ मन॑सा दाशेम ॥
स्वर सहित पद पाठका । ते॒ । उप॑ऽइतिः । मन॑सः । वरा॑य । भुव॑त् । अ॒ग्ने॒ । शम्ऽत॑मा । का । म॒नी॒षा । कः । वा॒ । य॒ज्ञैः । परि॑ । दक्ष॑म् । ते॒ । आ॒प॒ । केन॑ । वा॒ । ते॒ । मन॑सा । दा॒शे॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
का त उपेतिर्मनसो वराय भुवदग्ने शंतमा का मनीषा। को वा यज्ञैः परि दक्षं त आप केन वा ते मनसा दाशेम ॥
स्वर रहित पद पाठका। ते। उपऽइतिः। मनसः। वराय। भुवत्। अग्ने। शम्ऽतमा। का। मनीषा। कः। वा। यज्ञैः। परि। दक्षम्। ते। आप। केन। वा। ते। मनसा। दाशेम ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 76; मन्त्र » 1
अष्टक » 1; अध्याय » 5; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
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अष्टक » 1; अध्याय » 5; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥
अन्वयः
हे अग्ने ! ते तव का उपेतिर्मनसो वराय भुवत्। का शन्तमा मनीषा को वा ते दक्षं यज्ञैः पर्याप वयं केन मनसा किं वा ते दाशेमेति ब्रूहि ॥ १ ॥
पदार्थः
(का) नीतिः (ते) तवानूचानस्य विदुषः (उपेतिः) उपेयन्ते सुखानि यया सा (मनसः) चित्तस्य (वराय) श्रैष्ठ्याय (भुवत्) भवति (अग्ने) शान्तिप्रद (शन्तमा) अतिशयेन सुखप्रापिका (का) (मनीषा) प्रज्ञा (कः) मनुष्यः (वा) पक्षान्तरे (यज्ञैः) अध्ययनाध्यापनादिभिर्यज्ञैः (परि) सर्वतः (दक्षम्) बलम् (ते) तव (आप) प्राप्नोति (केन) कीदृशेन (वा) पक्षान्तरे (ते) तुभ्यम् (मनसा) विज्ञानेन (दाशेम) दद्याम ॥ १ ॥
भावार्थः
मनुष्यैः परमेश्वरस्य विदुषो वेदृशी प्रार्थना कार्य्या हे भगवँस्त्वं कृपयाऽस्माकं शुद्धये यद्वरं कर्म वरा बुद्धिः श्रेष्ठं बलमस्ति तानि देहि येन वयं त्वां विज्ञाय प्राप्य वा सुखिनो भवेम ॥ १ ॥
हिन्दी (4)
विषय
अब छहत्तरवें सूक्त का आरम्भ किया जाता है। इसके प्रथम मन्त्र में विद्वान् के गुणों का उपदेश किया है ॥
पदार्थ
हे (अग्ने) शान्ति के देनेवाले विद्वान् मनुष्य ! (ते) तुझ अति श्रेष्ठ विद्वान् की (का) कौन (उपेतिः) सुखों को प्राप्त करनेवाली नीति (मनसः) चित्त की (वराय) श्रेष्ठता के लिये (भुवत्) होती है (का) कौन (शन्तमा) सुख को प्राप्त करनेवाली (मनीषा) बुद्धि होती है (कः) कौन मनुष्य (वा) निश्चय करके (ते) आपके (दक्षम्) बल को (यज्ञैः) पढ़ने-पढ़ाने आदि यज्ञों को करके (परि) सब ओर से (आप) प्राप्त होता है (वा) अथवा हम लोग (केन) किस प्रकार के (मनसा) मन से (ते) आपके लिये क्या (दाशेम) देवें ॥ १ ॥
भावार्थ
मनुष्यों को परमेश्वर और विद्वान् से ऐसी प्रार्थना करनी चाहिये कि हे परमात्मन् वा विद्वान् पुरुष ! आप कृपा करके हमारी शुद्धि के लिये श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ बुद्धि और श्रेष्ठ बल को दीजिये, जिससे हम लोग आपको जान और प्राप्त होके सुखी हों ॥ १ ॥
विषय
शान्ति व शक्ति का
पदार्थ
१. हे (अग्ने) = परमात्मन् ! (ते उपेतिः) = [उप इतिः] आपका उपगमन, आपकी उपासना का - आनन्द देनेवाली है । यह उपासना (मनसः वराय) = मन की श्रेष्ठता के लिए होती है । उपासना का प्रथम लाभ यह है कि मन श्रेष्ठ बनता है और एक अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव होता है । २. हे (अग्ने) = परमात्मन् ! आपका (मनीषा) = मनन व स्तुति का आनन्द देनेवाली व (शन्तमा) = अत्यन्त शान्ति प्राप्त करानेवाली (भुवत्) = होती है । (कः) = यह आनन्दमय मनोवृत्तिवाला पुरुष (वा) = ही (यज्ञैः) = यज्ञों से - देवपूजा, संगतिकरण व दानात्मक कर्मों से (ते दक्षम्) = आपकी शक्ति को (परि आप) = प्राप्त करता है । प्रभु का उपासक प्रभु की शक्ति को क्यों न प्राप्त करेगा ? जैसे अग्नि में पड़ा हुआ लोहे का गोला अग्नि की भाँति चमकने लगता है, वैसे यह उपासक भी प्रभु की शक्ति से दीप्त हो उठता है । ३. हे प्रभो ! हम (केन) = इस आनन्दमय (मनसा) = मन से (वा) = ही (ते दाशेम) = आपके प्रति अपना अर्पण करें । प्रभु की उपासना आनन्दमय मन से ही होती है । जिसने प्रभु के प्रति अपना अर्पण कर दिया उसे क्या चिन्ता ? उपासक तो निर्भय व निश्चिन्त होता ही है ।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु की उपासना से आनन्द, पवित्रता, शान्ति, शक्ति, निश्चिन्तता व निर्भीकता प्राप्त होती है ।
विषय
missing
भावार्थ
हे विद्वन् ! (मनसःवराय) मन या संकल्प बिकल्प करने वाले चित्त और ज्ञान को वरण करने, प्राप्त करने या श्रेष्ठ बनाने के लिये (ते) तुझे (का उपेतिः) क्या उपायन, भेट उचित है । हे परमेश्वर, ज्ञान की प्राप्ति और चित्त को उत्तम बनाने के लिए ( ते ) तेरी (का उपेतिः) किस प्रकार की प्राप्ति या उपासना आवश्यक है । हे (अग्ने) विद्वन् ! प्रभो ! तेरी (का मनीषा) कौनसी स्तुति या अभिलाषा ( शंतमा ) अति सुखकारिणी ( भुवत् ) है । ( ते ) तेरे ( दक्षं ) ज्ञान और कर्म सामर्थ्य को ( यज्ञैः ) अध्ययनाध्यापनादि कर्मों, दान देने योग्य पदार्थों तथा उपासनाओं द्वारा ( कः ) कौन (परि आप) पूर्ण रूप से प्राप्त कर सकता है । (केन वा मनसा) किस चित्त से हम ( ते ) तुझे ( दाशेम ) अर्पण करें । [आचार्याय प्रियं धनमाहृत्य प्रजा तन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः । इति स्नातकधर्मः ]। परमेश्वर के लिये ( उपेतिः ) उपगमन, उपासना ( मनीषा ) स्तुति और ( यज्ञैः ) उपासना आवश्यक हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-५ गोतमो राहूगण ऋषिः ॥ अग्निदेवता । छन्दः—१, ३, ४ निचृत् त्रिष्टुप् । २, ५ विराट् त्रिष्टुप् ॥ १-५ धैवतः स्वरः ॥
विषय
विषय (भाषा)- अब छहत्तरवें सूक्त का आरम्भ किया जाता है। इसके प्रथम मन्त्र में विद्वान् के गुणों का उपदेश किया है ॥
सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः
सन्धिच्छेदसहितोऽन्वयः- हे अग्ने ! ते तव का उपेतिः मनसः वराय भुवत्। का शन्तमा मनीषा कः वा ते दक्षं यज्ञैः परि आप वयं केन मनसा किं वा ते दाशेम इति ब्रूहि ॥१॥
पदार्थ
पदार्थः- हे (अग्ने) शान्तिप्रद= शान्ति प्रदान करनेवाले परमेश्वर ! (ते) तव =तुम्हारी, (का) नीतिः = नीति, (उपेतिः) उपेयन्ते सुखानि यया सा= सुखों की ओर ले जानेवाली. (मनसः) चित्तस्य=चित्त के,(वराय) श्रैष्ठ्याय= श्रेष्ठता के लिये, (भुवत्) भवति=होती है। (का) =कौन, (शन्तमा) अतिशयेन सुखप्रापिका=उत्कृष्ट सुख को प्राप्त करनेवाली, (मनीषा) प्रज्ञा= प्रज्ञा, (कः) मनुष्यः= किस मनुष्य के, (वा) पक्षान्तरे=अथवा, (ते) तवानूचानस्य विदुषः=तुम वेद और वेदाङ्गों के जाननेवाले विद्वानों के, (दक्षम्) बलम्= बल को, (यज्ञैः) अध्ययनाध्यापनादिभिर्यज्ञैः=अध्ययन और अध्यापन आदि यज्ञों से, (परि) सर्वतः=हर ओर से, (आप) प्राप्नोति=प्राप्त होता है, (वयम्)=हम, (केन) कीदृशेन =किस प्रकार से, (मनसा) विज्ञानेन=विशेष ज्ञान द्वारा, (किम्)= किसको, (वा) पक्षान्तरे=या, (ते) तुभ्यम्=तुम्हारे लिये, (दाशेम) दद्याम=देते हैं, (इति)=ऐसे, (ब्रूहि)=कहो ॥१॥
महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद
महर्षिकृत भावार्थ का अनुवादक-कृत भाषानुवाद- मनुष्यों के द्वारा परमेश्वर और विद्वानों की ऐसी प्रार्थना करनी चाहिये कि- ‘हे परमात्मन् कृपया आप हमारी शुद्धि के लिये जो श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ बुद्धि और श्रेष्ठ बल हैं,उनको दीजिये, जिनसे हम लोग आपको जान करके और प्राप्त हो करके सुखी होवें’ ॥१॥
विशेष
अनुवादक की टिप्पणी- वेद और वेदाङ्गों को ऋग्वेद के मन्त्र संख्या ०१.७६.०१ में परिभाषित किया गया है।
पदार्थान्वयः(म.द.स.)
पदार्थान्वयः(म.द.स.)- हे (अग्ने) शान्ति प्रदान करनेवाले परमेश्वर ! (ते) तुम्हारी (का) आचार नीतियां (उपेतिः) सुखों की ओर ले जानेवाली. (मनसः) चित्त की (वराय) श्रेष्ठता के लिये (भुवत्) होती है। (का) कौन (शन्तमा) उत्कृष्ट सुख को प्राप्त करनेवाली (मनीषा) प्रज्ञा, (कः) किस मनुष्य को, (वा) अथवा (ते) तुम वेद और वेदाङ्गों के जाननेवाले विद्वानों को (दक्षम्) बल, (यज्ञैः) अध्ययन और अध्यापन आदि यज्ञों से, (परि) हर ओर से (आप) प्राप्त होती है। (वयम्) हम (केन) किस प्रकार से (मनसा) विशेष ज्ञान द्वारा, (किम्) किस के लिये (वा) या (ते) तुम्हारे लिये (दाशेम) देते हैं, (इति) ऐसा (ब्रूहि) कहो ॥१॥
संस्कृत भाग
का । ते॒ । उप॑ऽइतिः । मन॑सः । वरा॑य । भुव॑त् । अ॒ग्ने॒ । शम्ऽत॑मा । का । म॒नी॒षा । कः । वा॒ । य॒ज्ञैः । परि॑ । दक्ष॑म् । ते॒ । आ॒प॒ । केन॑ । वा॒ । ते॒ । मन॑सा । दा॒शे॒म॒ ॥ विषयः- पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- मनुष्यैः परमेश्वरस्य विदुषो वेदृशी प्रार्थना कार्य्या हे भगवँस्त्वं कृपयाऽस्माकं शुद्धये यद्वरं कर्म वरा बुद्धिः श्रेष्ठं बलमस्ति तानि देहि येन वयं त्वां विज्ञाय प्राप्य वा सुखिनो भवेम ॥१॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात ईश्वर व विद्वानाच्या गुणाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥
भावार्थ
माणसांनी परमेश्वर व विद्वानाची अशी प्रार्थना करावी की हे परमेश्वरा व विद्वान पुरुषा! तू कृपा करून आमच्या पवित्रतेसाठी श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ बुद्धी व श्रेष्ठ बल दे. ज्यामुळे आम्ही तुला जाणावे व सुखी व्हावे. ॥ १ ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Agni, lord of peace and enlightenment, what is your way to the improvement of mind? What is the most tranquillising exercise of the mind? Who attains to laudable success in the realisation of Divinity by yajnas of study, socialisation and self sacrifice? By what state of mind shall we offer to serve and honour you?
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How is Agni is taught in the first Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O great Vedic Scholar, giver of peace which is your policy leading us to happiness that may satisfy your mind? Which is the intellect which may give you perfect peace ? Who is the man that may obtain the end of your strength by the Yajnas in the form of study and teaching etc.? With what kind of knowledge should we attain you or what should we give to you? Tell us about all this. These are also applicable to God in some what different form.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(उपेति:) उपेयन्ते सुखानि यया सा नीतिः | = The policy that leads to happiness. (यज्ञैः) अध्ययनाध्यापनादिभिर्यज्ञैः = By the Yajnas in the form of studying and teaching the Vedas etc. (मनसा) विज्ञानेन (मन-बोधे) = With knowledge.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Men should address this prayer to God or a learned wise man. Please grant for our purity that good action, good intellect and good strength by getting which we may know and attain you and thereby enjoy happiness.
Subject of the mantra
Now the seventy-sixth hymn starts. In its first mantra the qualities of a scholar have been preached.
Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-
He=O! (agne) =God who bestows peace, (te) =your, (kā)= ethics, (upetiḥ) =Leading to happiness, (manasaḥ) =of mind, (varāya)= for the excellence, (bhuvat)=it occurs, (kā) =who, (śantamā)=that attains supreme happiness, (manīṣā) =wisdom, (kaḥ) =to whom human, (vā) =or, (te)=you scholars who know the Vedas and the Vedāṅgas, (dakṣam) =strength, (yajñaiḥ)=through yajnas like study and teaching etc., (pari) =from all sides, (āpa) =gets attained, (vayam) =we, (kena)=how, (manasā)= through special knowledge, (kim) =for whom, (vā) =or, (te) =for you, (dāśema) =provide, (iti) =such, (brūhi) =say.
English Translation (K.K.V.)
O God who bestows peace! Your ethics lead to happiness and for the excellence of mind. Which human being, or you scholars who know the Vedas and the Vedāṅgas, obtains the wisdom that attains supreme happiness from all sides, through yajnas like strength, study and teaching et cetera. How do we provide it through special knowledge, for whom or for you, say so.
TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand
Human beings should pray to God and scholars in such a way that - 'O God, please give us the best karmas, best intelligence and best strength for our purification, so that we can be happy after knowing and attaining you.'
TRANSLATOR’S NOTES-
Vedas and Vedāṅgas hav been defined in mantra number 01.76.01 of Rigveda.
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