ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 93/ मन्त्र 1
ऋषिः - गोतमो राहूगणपुत्रः
देवता - अग्नीषोमौ
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
अग्नी॑षोमावि॒मं सु मे॑ शृणु॒तं वृ॑षणा॒ हव॑म्। प्रति॑ सू॒क्तानि॑ हर्यतं॒ भव॑तं दा॒शुषे॒ मय॑: ॥
स्वर सहित पद पाठअग्नी॑षोमौ । इ॒मम् । सु । मे॒ । शृ॒णु॒तम् । वृ॒ष॒णा॒ । हव॑म् । प्रति॑ । सु॒ऽउ॒क्तानि॑ । ह॒र्य॒त॒म् । भव॑तम् । दा॒शुषे॑ । मयः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्नीषोमाविमं सु मे शृणुतं वृषणा हवम्। प्रति सूक्तानि हर्यतं भवतं दाशुषे मय: ॥
स्वर रहित पद पाठअग्नीषोमौ। इमम्। सु। मे। शृणुतम्। वृषणा। हवम्। प्रति। सुऽउक्तानि। हर्यतम्। भवतम्। दाशुषे। मयः ॥ १.९३.१
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 93; मन्त्र » 1
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
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अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथाऽध्यापकपरीक्षकौ प्रति विद्यार्थिभिर्वक्तव्यमुपदिश्यते ।
अन्वयः
हे वृषणावग्नीषोमौ युवां मे प्रतिसूक्तानीमं हवं सुशृणुतं दाशुषे मह्यं मयो हर्य्यतमेवं विद्याप्रकाशकौ भवतम् ॥ १ ॥
पदार्थः
(अग्नीषोमौ) तेजश्चन्द्राविव विज्ञानसोम्यगुणावध्यापकपरीक्षकौ (इमम्) अध्ययनजन्यं शास्त्रबोधम् (सु) (मे) मम (शृणुतम्) (वृषणा) विद्यासुशिक्षावर्षकौ (हवम्) देयं ग्राह्यं विद्याशब्दार्थसम्बन्धमयं वाक्यम् (प्रति) (सूक्तानि) सुष्ठ्वर्था उच्यन्ते येषु गायत्र्यादिछन्दोयुक्तेषु वेदस्थेषु तानि (हर्य्यतम्) कामयेथाम् (भवतम्) (दाशुषे) अध्ययने चित्तं दत्तवते विद्यार्थिने (मयः) सुखम् ॥ १ ॥
भावार्थः
नहि कस्यापि मनुष्यास्याध्यापनेन परीक्षया च विना विद्यासिद्धिर्जायते नहि पूर्णविद्याया विनाऽध्यापनं परीक्षां च कर्त्तुं शक्नोति। नह्येतया विना सर्वाणि सुखानि जायन्ते तस्मादेतन्नित्यमनुष्ठेयम् ॥ १ ॥
हिन्दी (3)
विषय
अब तिरानवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में पढ़ाने और परीक्षा लेनेवालों के प्रति विद्यार्थी लोग क्या-क्या कहें, यह विषय कहा है।
पदार्थ
हे (वृषणा) विद्या और उत्तम शिक्षा देनेवाले (अग्नीषोमौ) अग्नि और चन्द्र के समान विशेष ज्ञान और शान्ति गुणयुक्त पढ़ाने और परीक्षा लेनेवाले विद्वानो ! तुम दोनों (मे) मेरा (प्रतिसूक्तानि) जिनमें अच्छे-अच्छे अर्थ उच्चारण किये जाते हैं, उन गायत्री आदि छन्दों से युक्त वेदस्थ सूक्तों और (इमम्) इस (हवम्) ग्रहण करने-कराने योग्य विद्या के शब्द अर्थ और सम्बन्धयुक्त वचन को (सुशृणुतम्) अच्छे प्रकार सुनो (दाशुषे) और पढ़ने में चित्त देनवाले मुझ विद्यार्थी के लिये (मयः) सुख की (हर्य्यतम्) कामना करो, इसप्रकार विद्या के प्रकाशक (भवतम्) हूजिये ॥ १ ॥
भावार्थ
किसी मनुष्य को पढ़ाने और परीक्षा के विना विद्या की सिद्धि नहीं होती और कोई मनुष्य पूरी विद्या के विना किसी दूसरे को पढ़ा और उसकी परीक्षा नहीं कर सकता और इस विद्या के विना समस्त सुख नहीं होते, इससे इसका सम्पादन नित्य करें ॥ १ ॥
विषय
अग्नि व सोम का समन्वय
पदार्थ
१. (वृष्णौ) = सब सुखों का वर्षण करनेवाले या हमें शक्तिशाली बनानेवाले (अग्नीषोमौ) = अग्नि व सोम (मे) = मेरी (इमं हवम्) = इस पुकार को (सुश्रृणुतम्) = ठीक से सुनें । हमारी यह प्रार्थना अग्नि व सोम से सुनी जाए कि वे (सूक्तानि) = हमारे स्तुतिवचनों को (प्रतिहर्यतम्) = चाहें - हमारे स्तुतिवचन उनके लिए प्रीतिकर हों और (दाशुषे) = आपके प्रति अपना अर्पण करनेवाले के लिए (मयः) = आरोग्य - सुख देनेवाले (भवतम्) = होओ । २. वस्तुतः शरीर में अग्नि व सोम तत्त्व का ठीक समन्वय होने पर पूर्ण आरोग्य निर्भर करता है । अग्नि प्राण है तो सोम अपान । केवल अग्नि 'पैत्तिक रोगों' का कारण बनती है और केवल सोम 'कफ के रोगों का' । दोनों का समन्वय आरोग्य प्रदान करता है । ३. हम प्राणापान के महत्त्व - प्रतिपादन मन्त्रों का स्मरण करते हैं । यही प्राणापान का स्तवन है, इससे हमें प्राणसाधना व प्राणायाम की रचि उत्पन्न होकर नीरोगता की प्राप्ति होती है ।
भावार्थ
भावार्थ = हम अपने जीवन में अग्नि व सोम का समन्वय करके रस पैदा करें ।
विषय
उत्तम विद्वान आचार्य शिक्षकों के कर्तव्य । राष्ट्र के दो प्रमुख अधिकारी अग्नि और सोम ।
भावार्थ
हे (अग्नीषोमौ) अग्ने ! ज्ञानवान् विद्वन् ! और हे ( सोम ) उत्पादक पितः ! शम आदि गुणों से युक्त परीक्षक जनों ! आप दोनों ( वृषणौ ) मेघ के समान ज्ञानोपदेशो की वर्षा करने हारे हो । ( मे ) मेरे ( इमं ) इस ( हवं ) ग्राह्य वचन को ( शृणुतं ) श्रवण करो और ( मे इमं हर्यतं हवं शृणुतम् ) कुछ मेरे हित के लिये ग्राह्य, श्रवण करने योग्य उपदेश, ज्ञान-प्रवचन का श्रवण कराओ। और ( सूक्तानि प्रति ) वेद के सूक्तों के प्रतिदिन ( हर्यतम् ) प्रवचन, व्याख्यान करने की अभिलाषा करो । ( दाशुषे ) अपने द्रव्य और सर्वस्व को अर्पण करने वाले शिष्य जन के लिये ( मयः ) कल्याणकारक ( भवतम् ) होओ । राष्ट्रपक्ष में—अग्नि अग्रणी नायक, सोम ऐश्वर्यवान् आज्ञापक दोनों प्रजा के वचन श्रवण करें और उनकी प्रार्थनों पर उत्सुकता से ध्यान दें और उनके लिये सुखकारी हों । आत्मा और ब्रह्म भी स्तुति श्रवण करते, स्तुतियों द्वारा भक्त को चाहते और सुख देते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोतमो रहूगणपुत्र ऋषिः ॥ अग्नीषोमौ देवते ॥ छन्दः–१ अनुष्टुप् । २ विराड् नुष्टुप् । ३ भुरिगुष्णिक् । ४ स्वराट् पंक्तिः । ५, ७ निचृत् त्रिष्टुप् । ६ विराट् त्रिष्टुप् । ८ स्वराट् त्रिष्टुप् । १२ त्रिष्टुप् । ९, १०, ११ गायत्री ॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात वायू व विद्युतचे गुणवर्णन करण्याने या सूक्तार्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥
भावार्थ
कोणत्याही माणसाला अध्यापनाखेरीज व परीक्षेखेरीज विद्येची सिद्धी होत नाही व कोणताही माणूस पूर्ण विद्येशिवाय अध्यापन करू शकत नाही व दुसऱ्याची परीक्षा घेऊ शकत नाही व या विद्येशिवाय संपूर्ण सुख मिळू शकत नाही. त्यामुळे त्याचे अनुष्ठान नित्य करावे. ॥ १ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Agni-Soma, power divine both fire and water in one, beauty and brilliance of the Lord’s Nature in existence blissful as sun-and-moon, fire and air, exciting and soothing, lord of dynamic knowledge, kind disposition and steady action, generous and abundant, listen to this prayer of mine, respond with love and kindness to these honest words and be gracious to me, this dedicated child and faithful disciple.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should students tell teachers and examiners is taught in the first Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O teachers and examiners who are like fire in splendour and moon, endowed with knowledge and peaceful nature, showerers of wisdom and good education, favourably hear this my invocation or utterance full of knowledge and relation between words and meanings, the knowledge acquired from the study of the Shastras and graciously accept my hymns consisting of Gayatri and other metres. Desire happiness for me who has given himself up to the Vedic study whole-heartedly.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(अग्नीषोमौ) तेजश्चन्द्राविव विज्ञानसौम्यगुणौ अध्यापकपरीक्षकौ । = Teacher and examiner who are like fire (splendour) and moon and who are endowed with wisdom and peaceful nature. (वृषणा) विद्यासुशिक्षावर्षकौ = Rainers of knowledge and good education. (हर्यतम्) कामयेथाम् = Desire. (दाशुषे) अध्ययने चित्तं दत्तवते विद्यार्थिने | = For a student engaged in his studies whole-heartedly.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
None can accomplish knowledge without teaching and and examination, none can teach and examine without acquiring thorough knowledge of a subject and without this it is not possible to get all happiness Therefore, this must be done.
Translator's Notes
हर्य-गति प्रेप्सयोः By प्रेप्सा is meant intense desire and love. दाश-दाने
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