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ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 98/ मन्त्र 2
ऋषिः - कुत्सः आङ्गिरसः
देवता - अग्निर्वैश्वानरः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
पृ॒ष्टो दि॒वि पृ॒ष्टो अ॒ग्निः पृ॑थि॒व्यां पृ॒ष्टो विश्वा॒ ओष॑धी॒रा वि॑वेश। वै॒श्वा॒न॒रः सह॑सा पृ॒ष्टो अ॒ग्निः स नो॒ दिवा॒ स रि॒षः पा॑तु॒ नक्त॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठपृ॒ष्टः । दि॒वि । पृ॒ष्टः । अ॒ग्निः । पृ॒थि॒व्याम् । पृ॒ष्टः । विश्वाः॑ । ओष॑धीः । आ । वि॒वे॒श॒ । वै॒श्वा॒न॒रः । सह॑सा । पृ॒ष्टः । अ॒ग्निः । सः । नः॒ । दिवा॑ । सः । रि॒षः । पा॒तु॒ । नक्त॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
पृष्टो दिवि पृष्टो अग्निः पृथिव्यां पृष्टो विश्वा ओषधीरा विवेश। वैश्वानरः सहसा पृष्टो अग्निः स नो दिवा स रिषः पातु नक्तम् ॥
स्वर रहित पद पाठपृष्टः। दिवि। पृष्टः। अग्निः। पृथिव्याम्। पृष्टः। विश्वाः। ओषधीः। आ। विवेश। वैश्वानरः। सहसा। पृष्टः। अग्निः। सः। नः। दिवा। सः। रिषः। पातु। नक्तम् ॥ १.९८.२
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 98; मन्त्र » 2
अष्टक » 1; अध्याय » 7; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
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अष्टक » 1; अध्याय » 7; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते ।
अन्वयः
योऽग्निर्विद्धद्भिर्दिवि पृष्टो यः पृथिव्यां पृष्टो यः पृष्टो वैश्वानरोऽग्निर्विश्वा ओषधीराविवेश सहसा पृष्टः स नो दिवा रिषः स नक्तं च पातु पाति वा ॥ २ ॥
पदार्थः
(पृष्टः) विदुषः प्रति यः पृच्छ्यते (दिवि) दिव्यगुणसंपन्ने जगति (पृष्टः) (अग्निः) विज्ञानस्वरूप ईश्वरो विद्युदग्निर्वा (पृथिव्याम्) अन्तरिक्षे भूमौ वा (पृष्टः) प्रष्टव्यः (विश्वाः) अखिलाः (ओषधीः) सोमलताद्याः (आ) सर्वतः (विवेश) प्रविष्टोऽस्ति (वैश्वानरः) सर्वस्य नरसमूहस्य नेता (सहसा) बलादिगुणैः सह वर्त्तमानाः (पृष्टः) (अग्निः) (सः) (नः) अस्मान् (दिवा) विज्ञानान्धकारप्रकाशेन सह (सः) (रिषः) हिंसकात् (पातु) पाति वा (नक्तम्) रात्रौ ॥ २ ॥
भावार्थः
अत्र श्लेषालङ्कारः। मनुष्यैर्विदुषां समीपं गत्वेश्वरस्य विद्युदादेश्च गुणान् पृष्ट्वोपकारं चाश्रित्य हिंसायां च न स्थातव्यम् ॥ २ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वे दोनों कैसे हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
जो (अग्निः) ईश्वर वा भौतिक अग्नि (दिवि) दिव्यगुण सम्पन्न जगत् में (पृष्टः) विद्वानों के प्रति पूछा जाता वा जो (पृथिव्याम्) अन्तरिक्ष वा भूमि में (पृष्टः) पूछने योग्य है वा जो (पृष्टः) पूछने योग्य (वैश्वानरः) सब मनुष्यमात्र को सत्य व्यवहार में प्रवृत्त करानेहारा (अग्निः) ईश्वर और भौतिक अग्नि (विश्वा) समस्त (ओषधीः) सोमलता आदि ओषधियों में (आ, विवेश) प्रविष्ट हो रहा और (सहसा) बल आदि गुणों के साथ वर्त्तमान (पृष्टः) पूछने योग्य है वह (नः) (सः) हम लोगों को (दिवा) दिन में (रिषः) मारनेवाले से और (नक्तम्) रात्रि में मारनेवाले से (पातु) बचावे वा भौतिक अग्नि बचाता है ॥ २ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि विद्वानों के समीप जाकर ईश्वर वा बिजुली आदि अग्नि के गुणों को पूछकर ईश्वर की उपासना और अग्नि के गुणों से उपकारों का आश्रय करके हिंसा में न ठहरें ॥ २ ॥
विषय
सर्वव्यापक प्रभु
पदार्थ
१. ‘पृष्टः’ शब्द स्पृश धातु से ‘स’ का लोप करके भी बनता है अथवा ‘पृष सेचने’ से भी । वे (अग्निः) = अग्रणी प्रभु (दिवि) = द्युलोक में (पृष्टः) = संस्पृष्ट हैं अथवा द्युलोक में निषिक्त व निहित हैं । (पृथिव्यां पृष्टः) = उसी प्रकार पृथिवीलोक में भी विद्यमान हैं । (पृष्टः) = संस्पृष्ट हुए - हुए वे प्रभु (विश्वाः ओषधीः) = सब ओषधियों में (आविवेश) = प्रविष्ट हुए - हुए हैं । वस्तुतः प्रभु की सत्ता के कारण ही द्युलोक उग्र व तेजस्वी है , प्रभु की सत्ता ही पृथिवी को दृढ़ बना रही है और प्रभु की सत्ता ही ओषधियों को दोष - दहन - शक्ति प्राप्त कराती है ।
२. ये (वैश्वानरः अग्निः) = सब मनुष्यों का हित करनेवाले अग्रणी प्रभु सहसा (पृष्टः) = सहस् व बल से संस्पृष्ट व निषिक्त हैं । सहस् के वे पुञ्ज हैं - (‘सहोऽसि’ । सः) = वे प्रभु (नः) = हमें (दिवा) = दिन में तथा (सः) = वे (नक्तम्) = रात्रि में (रिषः पातु) = हिंसा से बचाएँ । प्रभु की शक्ति से सुरक्षित होकर हम कामादि शत्रुओं से हिंसित नहीं होंगे ।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु को सत्ता से ही द्युलोक दीप्तिमय है , पृथिवी दृढ़ है और ओषधियों रोगों के दहन की शक्ति से युक्त हैं । वे प्रभु शक्ति के पुञ्ज हैं । वे हमें सदा नाश से बचाते हैं ।
विषय
सर्वहितैषी राजा को अग्नि और सूर्य के दृष्टान्त से उपदेश ।
भावार्थ
( वैश्वानरः ) सब मनुष्यों का नेता, सबका सञ्चालक, नायक परमेश्वर (दिवि) सूर्य और महान् आकाश में ( पृष्टः ) व्यापक है, वह ( अग्निः ) इस संसार के अंग २ में व्यापक होकर ( पृथिव्यां पृष्टः ) इस समस्त पृथिवी में व्यापक है, वह ( पृष्टः ) सर्वत्र रसों का सेवन करने हारा होने से ( विश्वाः ओषधीः ) समस्त ओषधियों में भी ( आविवेश ) प्रविष्ट है । वह विद्युत् के समान ( पृष्टः ) वर्षा से जल सेचन करने हारा होकर ( सहसा ) बड़े भारी बल से ( अग्निः ) समस्त संसार को चला रहा है । ( सः ) वह ( नः ) हमें ( दिवा नक्तम् ) दिन और रात (रिषः) हिंसक शत्रु आदि नाशकारी मृत्यु से (पातु) बचावे । (२) राजाके पक्ष में—राजा ( दिवि पृथिव्या ) ज्ञानवान्, विद्वानों के समुदाय में और ( पृथिव्यां ) सामान्य पृथिवीवासी प्रजा में और ( ओषधीः ) शत्रुओं को संतापकारी सैनिक जनों के प्रति ( पृष्टः = स्पृष्टः ) आदर से आश्रय लेने योग्य होता है । ( पृष्टः ) उन पर ऐश्वर्यों का वर्षण करता है, ( पृष्टः ) वह शत्रुओं पर शरवर्षणकारी होकर सैन्यों के भीतर (आविवेश) प्रविष्ट होता है । वह ( सहसा पृष्टः ) बल से ही अग्रणी पुरुष सब के आश्रय योग्य होकर (नः) हम प्रजाजन को सब हिंसक शत्रुओं से बचावे । विद्युत् अग्नि और सूर्य वृष्टि का कारण होने से ‘पृष्ट’ हैं । ( ३ ) अथवा—परमेश्वर पक्ष में वह ( पृष्टः ) विद्वानों द्वारा नाना प्रकार से प्रश्नों द्वारा जानने योग्य है। वह आकाश, भूमि, ओषधि, जल आदि सब में व्यापक है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कुत्स ऋषिः ॥ अग्निवैश्वानरो देवता विराट् त्रिष्टुप् । २ त्रिष्टुप् । ३ निचृत् त्रिष्टुम् । तृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. माणसांनी विद्वानांजवळ जाऊन ईश्वर व विद्युत इत्यादी अग्नीच्या गुणांना जाणून ईश्वराची उपासना व अग्नीपासून उपयोग करून घ्यावा तसेच हिंसा करू नये. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
It is sanctified: sanctified as light in heaven, as heat in fire, as energy in earth, as vitality in all the herbs in which it has entered. Vaishvanara Agni, sanctified and replete with strength, energy and courage, may, we pray, protect us against hate, enmity and negativity day and night, both in the waking and in the sleeping state.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
God who is present in the sky and present upon earth, and who is present and enquired about by the wise, has pervaded all herbs; May that all pervading God who is enquired by the wise and who is present in Vigour, Guard us night and day, against all violent persons with the light of knowledge.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(पृष्ट:) विदुषः प्रति यः पृछ् यते = Enquired by the wise. (अग्निः) विज्ञानस्वरूप ईश्वरो विद्युदग्निर्वा = Omniscient God, electricity or fire. (दिवा) विज्ञानान्धकारप्रकाशेन सह = With the light of knowledge.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Men should approach the wise learned persons and should enquire about the nature and attributes of God, fire and electricity etc. and being benevolent, should keep away from violence.
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