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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 102 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 102/ मन्त्र 1
    ऋषिः - मुद्गलो भार्म्यश्वः देवता - द्रुघण इन्द्रो वा छन्दः - पाद्निचृद्बृहती स्वरः - मध्यमः

    प्र ते॒ रथं॑ मिथू॒कृत॒मिन्द्रो॑ऽवतु धृष्णु॒या । अ॒स्मिन्ना॒जौ पु॑रुहूत श्र॒वाय्ये॑ धनभ॒क्षेषु॑ नोऽव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । ते॒ । रथ॑म् । मि॒थु॒ऽकृत॑म् । इन्द्रः॑ । अ॒व॒तु॒ । धृ॒ष्णु॒ऽया । अ॒स्मिन् । आ॒जौ । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । श्र॒वाय्ये॑ । ध॒न॒ऽभ॒क्षेषु॑ । नः॒ । अ॒व॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र ते रथं मिथूकृतमिन्द्रोऽवतु धृष्णुया । अस्मिन्नाजौ पुरुहूत श्रवाय्ये धनभक्षेषु नोऽव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । ते । रथम् । मिथुऽकृतम् । इन्द्रः । अवतु । धृष्णुऽया । अस्मिन् । आजौ । पुरुऽहूत । श्रवाय्ये । धनऽभक्षेषु । नः । अव ॥ १०.१०२.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 102; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 20; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (3)

    विषय

    इस सूक्त में वृषभाकृतिवाले यान का वर्णन है, जो विद्युत् से चलता है, काष्ठयुक्त डोरी से नियन्त्रित विद्युत् होती है, उसमें मुख्य पात्र को प्रेरित करती है, प्रेरणा के अनुसार यान ऊपर उछलता है, काष्ठों को फेंकता है, इत्यादि वर्णन है।

    पदार्थ

    (ते)  हे राजन् ! तेरा (मिथुकृतम्) मेधावी शिल्पी के द्वारा रचा हुआ (रथम्) यान-गाड़ी को  (धृष्णुया) धर्षणशील दूसरे को विजय करनेवाला (इन्द्रः) विद्युत्-अग्नि (अवतु) रक्षा करे या चलावे (पुरुहूत) हे बहुतों से बुलाने योग्य ! (अस्मिन्) इस (श्रवाय्ये) सुनने योग्य प्रसिद्ध-यश प्राप्त करने योग्य (आजौ) संग्राम में (धनभक्षेषु) राष्ट्र को खा जानेवाले शत्रुओं के प्रसङ्गों में (नः) हमारी (अव) रक्षा कर ॥१॥

    भावार्थ

    राजा का संग्राम में विजय करानेवाला रथ-यान-सांग्रामिकयान विद्युत् अग्नि से चलनेवाला योग्य शिल्पी द्वारा बनाया हुआ होना चाहिए, जिससे शत्रुओं पर विजय पा सकें ॥१॥

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    विषय

    शरीर रथ का रक्षण

    पदार्थ

    [१] हे प्रभो! (ते) = आपके इस (मिथूकृतम्) = ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रिय रूप अश्वों से युक्त किये हुए (रथम्) = शरीर रथ को (इन्द्रः) = जितेन्द्रिय पुरुष (धृष्णुया) = शत्रुओं के धर्षण के द्वारा (प्र अवतु) = प्रकर्षेण रक्षित करे । वासनाओं के आक्रमण से ही यह रथ जीर्ण-शीर्ण हो जाता है। वासनाओं को नष्ट करके इन्द्र प्रभु से दिये गये इस रथ का रक्षण करनेवाला होता है । [२] (अस्मिन्) = इस (श्रवाय्ये) = प्रशंसनीय, हमारे जीवन को यशस्वी बनानेवाले (आजौ) = वासनाओं के साथ चलनेवाले संग्राम में हे (पुरुहूत) = बहुतों से पुकारे जानेवाले प्रभो ! आप (धनभक्षेषु) = धनों के सेवनों में (नः) = हमारा (अव) = रक्षण कीजिए। इस वासनामय संसार में धन आवश्यक भी है, साथ ही भयों का कारण भी है । इन धनों के सेवन में हम गलती कर बैठते हैं। यह धन ही वासनाओं का मूल बन जाता है। वासनाओं को जीतकर हम धन के स्वामी बने रहें, दास न बन जाएँ।

    भावार्थ

    भावार्थ- वासनाओं के धर्षण के द्वारा हम शरीर रथ का रक्षण करनेवाले हों । प्रभु स्मरण के द्वारा वासना संग्राम में विजयी बनें।

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    विषय

    द्रुघण इन्द्र। परमेश्वर से रक्षा की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे जीव ! (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् शत्रुओं और विघ्नों का नाशक परमेश्वर ही (धृष्युया) दुष्टों के नाशक बल से (ते) तेरे (मिथू-कृतम्) सारथी बने (रथम्) सुखप्रद साधन देह की (अवतु) रक्षा करे। हे (पुरु-हूत) बहुतों के पुकारने योग्य ! (अस्मिन्) इस (श्रवाय्ये) श्रवण करने योग्य (आजौ) संग्राम तुल्य, जय योग्य प्राप्तव्य मार्ग में और (धन-भक्षेषु च) धनैश्वर्य के सेवन के अवसरों में (नः अव) हमारी रक्षा कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिर्मुद्गलो भार्म्यश्वः॥ देवता—द्रुघण इन्द्रो वा॥ छन्दः- १ पादनिचृद् बृहती। ३, १२ निचृद् बृहती। २, ४, ५, ९ निचृत् त्रिष्टुप्। ६ भुरिक् त्रिष्टुप्। ७, ८, १० विराट् त्रिष्टुप्। ११ पादनिचृत् त्रिष्टुप्।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अत्र सूक्ते वृषाकृतिमतो यानस्य वर्णनमस्ति यत् खलु विद्युता चलति, काष्ठयुक्तरज्ज्वा नियन्त्रिता भवति विद्युत् तत्र मुख्यपात्रं प्रेरयति प्रेरणामनुसरद्यानमुद्गमनं करोति काष्ठानि प्रक्षिपति इत्यादि वर्णनमस्ति।

    पदार्थः

    (ते मिथूकृतं रथम्) हे राजन् ! तव मिथुना-मेधाविना शिल्पिना कृतम् “मिथृ मेधाहिंसनयोः” [भ्वादि०] ततः कुः प्रत्ययो बाहुलकादौणादिकः रथं यानं (धृष्णुया-इन्द्रः-अवतु) धर्षणशीलः “सुपां सुलुक् पूर्वसवर्णाच्छेयाडाड्यायाजालः” [अष्टा० ७।१।३९] इति याच् प्रत्ययः, विद्युदग्निः-रक्षतु चालयतु वा प्रत्यक्षमुच्यते (पुरुहूत) हे बहुभिर्ह्वातव्य ! (अस्मिन् श्रवाय्ये-आजौ) अस्मिन् श्रोतव्ये प्रसिद्धे यशःप्रापणयोग्ये “श्रुधातोः आय्यः प्रत्ययः” “श्रुदक्षिस्पृहिगृहिभ्य आय्यः” [उणादि० ३।९६] सङ्ग्रामे “आजौ-सङ्ग्रामनाम” [निघ० २।१७] (धनभक्षेषु) राष्ट्रभक्षकेषु येऽस्माकं राष्ट्रं भक्षयन्ति तेषु दस्युषु “राष्ट्राणि वै धनानि” [ऐ० ८।२६] (नः-अव) अस्मान् रक्ष ॥१॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O ruler and commander, may Indra with his irresistible might and weapon protect your chariot designed and structured by the team of scientist and technologist and working on double stream of energy. O universally invoked leader, in this famous and terrible battle of the nation against all-destroying forces, pray protect us and lead us to victory.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    युद्धात राजाचा विजय करविणारे व योग्य शिल्पीक्षरे बनविलेले, विद्युत अग्नीद्वारे चालणारे रथ, यान, युद्धातील लढाऊ याने तयार केली पाहिजेत. ज्यांच्याद्वारे शत्रूवर विजय प्राप्त करता येतो. ॥१॥

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