ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 107/ मन्त्र 1
ऋषिः - दिव्यो दक्षिणा वा प्राजापत्या
देवता - दक्षिणा तद्दातारों वा
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
आ॒विर॑भू॒न्महि॒ माघो॑नमेषां॒ विश्वं॑ जी॒वं तम॑सो॒ निर॑मोचि । महि॒ ज्योति॑: पि॒तृभि॑र्द॒त्तमागा॑दु॒रुः पन्था॒ दक्षि॑णाया अदर्शि ॥
स्वर सहित पद पाठआ॒विः । अ॒भू॒त् । महि॑ । माघो॑नम् । ए॒षा॒म् । विश्व॑म् । जी॒वम् । तम॑सः । निः । अ॒मो॒चि॒ । महि॑ । ज्योतिः॑ । पि॒तृऽभिः॑ । द॒त्तम् । आ । अ॒गा॒त् । उ॒रुः । पन्थाः॑ । दक्षि॑णायाः । अ॒द॒र्शि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आविरभून्महि माघोनमेषां विश्वं जीवं तमसो निरमोचि । महि ज्योति: पितृभिर्दत्तमागादुरुः पन्था दक्षिणाया अदर्शि ॥
स्वर रहित पद पाठआविः । अभूत् । महि । माघोनम् । एषाम् । विश्वम् । जीवम् । तमसः । निः । अमोचि । महि । ज्योतिः । पितृऽभिः । दत्तम् । आ । अगात् । उरुः । पन्थाः । दक्षिणायाः । अदर्शि ॥ १०.१०७.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 107; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 3; मन्त्र » 1
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अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 3; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
इस सूक्त में विविध दक्षिणा यज्ञादि शुभकर्मों में देनी चाहिये, संसार में यशस्करी अध्यात्म शान्तिप्रद है, पर दक्षिणादाता परमात्मा के प्रिय बनते हैं, इत्यादि विषय हैं।
पदार्थ
(एषाम्) इन रश्मियों का तथा राजसभासदों का (माघोनम्) सूर्यसम्बन्धी तथा राजसम्बन्धी (महि) ज्योति या महत्त्व (आविः-अभूत्) प्रगट होता है-सम्पन्न होता है (विश्वं-जीवम्) सब जीवनवाली वस्तु (तमसः) अन्धकार से (निर्-अमोचि) निर्मुक्त हो जाती है छूट जाती है (महि ज्योतिः) वह महा ज्योति (पितृभिः) रश्मियों द्वारा तथा पालक राजसभासदों द्वारा (दत्तम्) दिया हुआ प्रकाश पद या राजपद (आगात्) आता है या प्राप्त होता है (दक्षिणायाः) दक्षिणा देने का (उरुः-पन्था) महान् मार्ग (अदर्शि) दृष्ट होता है-दिखाया जाता है। सूर्योदय के अनन्तर यज्ञ किया जाता है और दक्षिणा दी जाती है, राजा द्वारा राजसूययज्ञ में दक्षिणा विविध अधिकार में दी जाती है, इस प्रकार दान का मार्ग दृष्ट होता है-दिखाया जाता है ॥१॥
भावार्थ
सूर्य जब उदय होता है, रश्मियों का प्रकाश प्रकट होता है, अन्धकार से प्रत्येक वस्तु निर्मुक्त हो जाती है, सूर्योदय के अनन्तर ही यज्ञ किया जाता है और दक्षिणा दी जाती है एवं राजा जब राजसूययज्ञ करके राजारूप में प्रसिद्ध होता है, तो सभासदों द्वारा राजपद घोषित किया जाता है, प्रजाजन अन्याय अन्धकार से मुक्त हो जाता है और राजसूययज्ञ में पुरोहितों तथा अधिकारियों को दक्षिणा तथा अधिकार दक्षिणा दी जाती है ॥१॥
विषय
महान् ऐश्वर्य का आविर्भाव [दक्षिणा का विशाल मार्ग]
पदार्थ
[१] (दक्षिणाया:) = दक्षिणा का, दानवृत्ति का (उरुः पन्थाः) = विशाल मार्ग अदर्शि देखा जाता है। दान का मार्ग मनुष्य का कल्याण ही कल्याण करनेवाला है। सब से प्रथम तो (एषाम्) = इन दान की वृत्तिवाले पुरुषों का (महि) = महनीय (माघोनम्) = ऐश्वर्य (अविः अभूत्) = प्रकट होता है। दान से कभी ऐश्वर्य घटता नहीं, बढ़ता ही है । [२] दक्षिणा का दूसरा लाभ यह है कि (विश्वं जीवम्) = सब जीव, घर में प्रवेश करनेवाले सब प्राणी (तमसः) = अज्ञानान्धकार से (निरमोचि) = मुक्त हो जाते हैं । जहाँ दान की परिपाटी होती है, वहाँ लोभ की वृत्ति के न होने से दिमाग सुलझा हुआ रहता है। दान से मनोवृत्ति तामसी नहीं रहती । [३] इस दक्षिणा के मार्ग पर चलने से (पितृभिः) = माता, पिता, आचार्य आदि से (दत्तम्) = दी हुई (महि ज्योतिः) = महनीय ज्ञान की ज्योति आगात् प्राप्त होती है । अर्थ में न फँसे हुओं को ही ज्ञान प्राप्त होता है । अर्थासक्त पुरुष प्रकाश को नहीं देख पाता ।
भावार्थ
भावार्थ- दान का मार्ग विशाल है। इस मार्ग पर चलनेवालों को ऐश्वर्य भी प्राप्त होता है और ज्ञान भी ।
विषय
दक्षिणा और दक्षिणा के दाता। प्रभु का महान् सामर्थ्य। सबके दुःख छूटने की कामना। अन्नोत्पत्ति, दानशीलता का मार्गदर्शन।
भावार्थ
(एषां) जिस प्रकार इन जीवों के लिये (महि माघोनम्) बड़ा भारी सूर्य का प्रकाश (आविः अभूत्) प्रकट होता है, और (विश्वं जीवं) समस्त जीव संसार (तमसः) अन्धकार से (निर्-अमोचि) मुक्त हो जाता है। उसी प्रकार (माघोनं) धनवान् पुरुष वा प्रभु का (महि) महान् सामर्थ्य (आविः अभूत्) प्रकट हो। और (विश्वं जीवं) समस्त जीव संसार (तमसः) दुःख से (निर् अमोचि) मुक्त हो। (पितृभिः महि ज्योतिः दत्तम्) जगत् के पालक रश्मिगण से दिया हुआ महान् प्रकाश जिस प्रकार प्राप्त होता है और (दक्षिणायाः) अन्न की उत्पत्ति का (उरुः पन्थाः अदर्शि) महान् मार्ग दृष्टिगत होता है उसी प्रकार (पितृभिः दत्तम्) पालक जनों से दिया (महि ज्योतिः) महान् प्रकाश (आ अगात्) प्राप्त हो। और (दक्षिणायाः) दान-शीलता का (उरुः पन्थाः) महानू मार्ग (अदर्शि) दिखाई देवे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्दिव्य आंगिरसो दक्षिणा वा प्राजापत्या॥ देवता—दक्षिणा, तद्दातारो वा॥ छन्द:– १, ५, ७ त्रिष्टुप्। २, ३, ६, ९, ११ निचृत् त्रिष्टुपु। ८, १० पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ४ निचृञ्जगती॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
विषयः
अत्र सूक्ते विविधदक्षिणा यज्ञादिशुभकर्मसु दातव्या संसारे यशस्करी तथाऽध्यात्मशान्तिप्रदातास्ति दक्षिणादातारः परमात्मनः प्रिया भवन्तीत्येवमादयो विषयाः सन्ति।
पदार्थः
(एषां माघोनं महि-आविः-अभूत्) एतेषां रश्मीनां राजसभासदां वा यत् खलु माघोनमैन्द्रम्, “इन्द्रो मघवान्” [श० ४।१।२।१५] इन्द्रश्च सूर्यो राजा वा-“असौ आदित्य इन्द्रः” [मै० ४।७।३] “तस्येदम्” [अष्टा० ४।३।१२०] इत्यत्र-अण् माघोनं वकारस्य सम्प्रसारणम् ‘तद्धितेऽपि छान्दसं सम्प्रसारणम्’ महज्ज्योतिर्महत्त्वं वा प्रादुर्भवति सम्पद्यते वा “यज्ञेन मघवान्” [काठ० ३९।१३] राजसूययज्ञेन राजा मघवान् भवति, तदा (विश्वं जीवं तमसः-निर्-अमोचि) सर्वं जीवं जीवनवत् वस्तु खल्वन्धकारान्निर्मुक्तं भवति (महि ज्योतिः) तन्महज्ज्योतिः (पितृभिः-दत्तम्-आगात्) पालकरश्मिभिर्दत्तं पालकराजसभासद्भिर्दत्तं राजपदं दत्तमागच्छति प्राप्नोति (दक्षिणायाः-उरुः पन्था-अदर्शि) दक्षिणायाः खलु महान्-मार्गः दृष्टो भवति सूर्योदयानन्तरं यज्ञोऽनुष्ठीयते तत्र दक्षिणा दीयते “अयज्ञो वा एष यददक्षिणः” राज्ञा राजसूये दक्षिणा विविधाधिकाररूपा दीयते दानस्य मार्गो दृष्टो भवति ॥१॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Revealed and manifest is the great light and glory of these sun-rays, the entire life of the world is revealed and released from darkness. Mighty light given by parental radiations of the sun is come, yajna is accomplished, and the broad flow of generosity is seen on high.
मराठी (1)
भावार्थ
सूर्य जेव्हा उगवतो व रश्मींचा प्रकाश पसरतो. तेव्हा अंधकारातून प्रत्येक वस्तू निर्मुक्त होते. सूर्योदयानंतरच यज्ञ केला जातो व दक्षिणा दिली जाते व राजा जेव्हा राजसूय यज्ञ करून राजारूपात प्रसिद्ध होतो तेव्हा सभासदांद्वारे राजपद घोषित केले जाते. प्रजा अन्याय अंधकारातून मुक्त होते व राजसूय यज्ञात पुरोहित व अधिकाऱ्यांना विविध प्रकारे दक्षिणा दिली जाते. ॥१॥
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