ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 135/ मन्त्र 1
यस्मि॑न्वृ॒क्षे सु॑पला॒शे दे॒वैः स॒म्पिब॑ते य॒मः । अत्रा॑ नो वि॒श्पति॑: पि॒ता पु॑रा॒णाँ अनु॑ वेनति ॥
स्वर सहित पद पाठयस्मि॑न् । वृ॒क्षे । सु॒ऽप॒ला॒शे । दे॒वैः । स॒म्ऽपिब॑ते । य॒मः । अत्र॑ । नः॒ । वि॒श्पतिः॑ । पि॒ता । पु॒रा॒णान् । अनु॑ । वे॒न॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्मिन्वृक्षे सुपलाशे देवैः सम्पिबते यमः । अत्रा नो विश्पति: पिता पुराणाँ अनु वेनति ॥
स्वर रहित पद पाठयस्मिन् । वृक्षे । सुऽपलाशे । देवैः । सम्ऽपिबते । यमः । अत्र । नः । विश्पतिः । पिता । पुराणान् । अनु । वेनति ॥ १०.१३५.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 135; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
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अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
इस सूक्त में संसार कर्मक्षेत्र है जीवों के कर्म करने के लिये, पूर्वकृत कर्मानुसार जन्म पाता है, निन्दा करता हुआ भी फिर शरीर में आता है यह प्रवृत्ति है, परमात्मा नित्य, आत्मा भी नित्य है, इत्यादि विषय हैं।
पदार्थ
(यस्मिन् वृक्षे) जिस वृक्ष-वृतक्षय अर्थात् वृतों-सत्कर्म में वर्तमानों के निवास में (सुपलाशे) सुपल, सुगति, सुकर्म के फल भोगने में (देवैः) इन्द्रियों के साथ (यमः) नियन्ता आत्मा (सम्पिबते) सङ्गत होता है (अत्र) इस संसार में (नः) हम जीवों का (विश्पतिः) पालक पिता परमात्मा (पुराणान्-अनु) पुराने व्यवहारों-कर्मों के अनुसार (वेनति) फल देना चाहता है ॥१॥
भावार्थ
मानव संसार में जन्म लेते हैं, जो उसके कर्म करने का विशाल क्षेत्र है, कर्मों के फल भोगने के लिए आत्मा इन्द्रियों के साथ सङ्गत होता है , सबका पालक पिता परमात्मा पूर्व कर्मों के अनुसार फलप्रदान करता है ॥१॥
विषय
इस सुपलाश वृक्ष पर
पदार्थ
[१] यह संसार एक वृक्ष है, इसका एक-एक पत्ता चमकता है, यह हमें अपनी ओर आकृष्ट करता है। हमें इस संसारवृक्ष में उलझना नहीं। इसके फलों के खाने में ही स्वाद नहीं लेने लग जाना । (यस्मिन्) = जिस (सुपलाशे) = उत्तम पत्तोंवाले (वृक्षे) = इस संसार वृक्ष में (यमः) = अपने जीवन को नियम में चलानेवाला व्यक्ति (देवैः) = दिव्यगुणों की प्राप्ति के हेतु से (सम्पिबते) = सोम का पान करता है, वीर्य को शरीर में ही सुरक्षित रखता है। वस्तुतः सोम का शरीर में सुरक्षित रखना ही शरीर को ठीक बना के रखने का साधन है । सोम के रक्षण के होने पर शरीर बड़ी उमरवाला होता हुआ भी [पुरा अपि नव:- पुराण:] नवीन -सा बना रहता है। यह व्यक्ति 'सनत् कुमार' बना रहता है । [२] (अत्रा) = ऐसा होने पर (नः) = हमारा (विश्पतिः) = प्रजाओं का स्वामी पिता रक्षक प्रभु (पुराणान्) = 'पुरापि नवीन्' इन बड़ी उमर के भी नवीन, अजीर्ण-शीर्ण शरीरवालों को (अनुवेनति) = चाहते हैं। ये व्यक्ति प्रभु के प्रिय होते हैं। यह स्वाभाविक बात है, हमने प्रभु के दिये हुए शरीर को बड़ा ठीक रख करके प्रभु का वास्तविक पूजन किया है । सो हम प्रभु के प्रिय क्यों न होंगे?
भावार्थ
भावार्थ - भोगमार्ग पर न जाकर यदि हम सोम का रक्षण करें तो शरीर जीर्ण नहीं होता और हम प्रभु के प्रिय होंगे।
विषय
यम। देह द्वारा कर्मफल भोग का वर्णन।
भावार्थ
(यस्मिन्) जिस (सु-पलाशे) उत्तम पत्रों से युक्त (वृक्षे) आश्रय वृक्ष के तले वा उस पर, (यमः) नियन्ता, आत्मा वा यतात्मा साधक, (देवैः) सुखप्रद और ज्ञानप्रद इन्द्रियों से ही (पुराणान् संपिबते) पूर्व के किये कर्मफलों का भोग करता है, (अत्र) उसी वृक्ष पर (नः) हमारा (विश्पतिः) प्रजापति, आत्मा इन्द्रियादि का अधिष्ठाता, (पुराणान् अनु वेनति) पूर्व भुक्त भोगों को पुनः भी चाहता है। वह ‘वृक्ष’ यह देह या संसार है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः कुमारो यामायनः॥ देवता—यमः। छन्दः– १—३, ५, ६ अनुष्टुप्। ४ विराडनुष्टुप्। ७ भुरिगनुष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
विषयः
अत्र सूक्ते संसारः कर्मक्षेत्रं जीवानां कर्मकरणाय, पूर्वकर्मसंस्कारात् पुनर्जन्म प्राप्यते पूर्वकृतकर्मणां फलं भुङ्क्ते परमात्मा नित्यस्तथात्माऽपि नित्यः-शरीरमूलं संस्कारोऽसूयन्नपि शरीरं गृह्णाति जीव इति प्रवृत्तिः, इत्यादि विषयाः सन्ति।
पदार्थः
(यस्मिन् वृक्षे) यस्मिन् वृक्षे-वृतक्षये “वृक्षे वृतक्षये” [निरु० १२।३०] वृतानां सत्कर्मणि वर्त्तमानानां क्षये निवासे (सुपलाशे) सुपलस्य सुगतेः सुकर्मणः फलाशने (देवैः-यमः सं पिबते) देवैः-इन्द्रियैः सह नियन्ता-आत्मा सङ्गच्छते “सम्पिबते सङ्गच्छते” [निरु० १२।३०] (अत्र नः-विश्पतिः पिता) अस्मिन्-अस्माकं प्रजानां जीवानां पालकः पिता परमात्मा (पुराणान्-अनु वेनति) पुराणान् व्यवहाराननुसरन् फलप्रदानं कामयते ॥१॥
इंग्लिश (1)
Meaning
On the leafy silken tree on which yama, the human soul in control of its senses and mind, sits and tastes the fruits of its own performance, on the same tree, our father, ruler and controller of the universe, sits, lives, loves, and watches the eternal human souls in accordance with their performance.
मराठी (1)
भावार्थ
माणूस संसारात जन्म घेतो. त्याचे कर्म करण्याचे क्षेत्र विशाल आहे. कर्माचे फळ भोगण्यास आत्मा इंद्रियांसोबत असतो. सर्वांचा पालक पिता परमात्मा पूर्व कर्मानुसार फल प्रदान करतो. ॥१॥
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