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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 154 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 154/ मन्त्र 1
    ऋषिः - यमी देवता - भाववृत्तम् छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    सोम॒ एके॑भ्यः पवते घृ॒तमेक॒ उपा॑सते । येभ्यो॒ मधु॑ प्र॒धाव॑ति॒ ताँश्चि॑दे॒वापि॑ गच्छतात् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोमः॑ । एके॑भ्यः । प॒व॒ते॒ । घृ॒तम् । एके॑ । उप॑ । आ॒स॒ते॒ । येभ्यः॑ । मधु॑ । प्र॒ऽधाव॑ति । तान् । चि॒त् । ए॒व । अपि॑ । ग॒च्छ॒ता॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोम एकेभ्यः पवते घृतमेक उपासते । येभ्यो मधु प्रधावति ताँश्चिदेवापि गच्छतात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोमः । एकेभ्यः । पवते । घृतम् । एके । उप । आसते । येभ्यः । मधु । प्रऽधावति । तान् । चित् । एव । अपि । गच्छतात् ॥ १०.१५४.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 154; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (3)

    विषय

    इस सूक्त में ब्रह्मचारी को वेदाचार्यों के पास जाकर वेदाध्ययन करना, आश्रमों का क्रमशः सेवन और वर्णों को यथेच्छ वरना चाहिए इत्यादि विषय हैं।

    पदार्थ

    (एकेभ्यः) सामाध्यापक ऋषियों के लिए (सोमः पवते) परमात्मा का आनन्दरस या सोमौषधी का रस प्रवाहित होता है, बहता है-प्राप्त होता है (एके) कुछ एक यजुर्वेद के अध्यापक ऋषि (घृतम्-उप आसते) अध्यात्म तेज का सेवन करते हैं (येभ्यः) जिन अथर्ववेद के अध्यापक ऋषियों के लिए (मधु प्रधावति) मधुर आत्मभाव प्रकृष्टरूप से प्राप्त होता है (तान्-चित्) उन्हें भी जो ऋग्वेद के अध्यापक ऋषि हैं (एव) इसी प्रकार (अपि गच्छतात्) हे संयमी ब्रह्मचारी ! अध्ययन के लिए प्राप्त हो ॥१॥

    भावार्थ

    ब्रह्मचारी को चाहिए कि अपने अन्दर परमात्मा के आनन्दरस को- अध्यात्मतेज को लाने के लिए सामवेद के अध्यापक, यजुर्वेद के अध्यापक, अथर्ववेद के अध्यापक से तथा सभी गुणों की प्राप्ति के लिए ऋग्वेद के अध्यापक से मन्त्रों का अध्ययन करे ॥१॥

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    विषय

    सौम्य - दीप्त- मधुर

    पदार्थ

    [१] (एकेभ्यः) = कइयों के लिये (सोमः) = सोम [वीर्य] (पवते) = पवित्र करनेवाला होता है । वीर्य के रक्षण से उनका जीवन शरीर में नीरोग, मन में निर्मल व बुद्धि में तीव्र बनता है। (एके) = कई (धृतम्) = ज्ञानदीप्ति की उपासते उपासना करते हैं। ज्ञान को महत्त्व देते हुए वे ज्ञान से चमक उठते मुख हैं। कई ऐसे होते हैं, (येभ्यः) = जिनसे कि मधु (प्रधावति) = मधु ही प्रवाहित होता है, जिनके से शहद के समान मधुर शब्द ही निकलते हैं । [२] यह हमारे समीप आया हुआ बालक (चित्) = निश्चय से (तान् एव) = उन लोगों को ही (अपि गच्छतात्) = समीपता से प्राप्त होनेवाला हो । अर्थात् इसकी भी गिनती उनमें हो, जो सोम का रक्षण करते हैं, ज्ञान से दीप्त होते हैं और मधुर ही शब्दों को बोलते हैं। शरीर में सोमरक्षण से यह बिलकुल नीरोग हो, मस्तिष्क में ज्ञान से परिपूर्ण हो और व्यवहार में अत्यन्त मधुर हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ - हमारे सन्तान 'सौम्य, दीप्त व मधुर स्वभाव' के हों ।

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    विषय

    भाववृत्त। ज्ञानोपासक आत्मा वा शिष्य को सन्मार्गोपदेश। ‘सोम’ आत्मा की निरुक्ति।

    भावार्थ

    (एकेभ्यः) एक जनों के लिये या एक जनों से (सोमः पवते) सोम ओषधि वा साम-गान प्रवाहित होता है, (एके घृतम् उपासते) एक विद्वान् जन घृत, तेज अर्थात् यजुर्वेद की उपासना करते हैं और हे विद्वन् ! हे ज्ञानोपासक ! आत्मन् तू (येभ्यः मधु) जिनसे वा जिनके लिये मधु अर्थात् ऋग्वेद की ऋचाएं वा ज्ञान (प्र धावति), वेग से प्राप्त होते हैं (तान् चित् एव) उनको भी तू (अपि गच्छतात्) प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    यत् सामानि सोमासस्ताः। यद् यजूंषि घृतस्य कुल्याः। यदथर्वांगिरसो मघोः कुल्याः, इति। शत०॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिर्यमी॥ देवता—भाववृत्तम् ॥ छन्दः–१, ३, ४ अनुष्टुप्। २, ५ निचृदनुष्टुप् ॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    सूक्तेऽस्मिन् ब्रह्मचारिणा वेदाचार्यस्य पार्श्वे गत्वाऽध्येयं क्रमेण खल्वाश्रमाणामनुष्ठानं करणीयं वर्णानां च यथेच्छं वरणीययित्येवमादयो विषयाः सन्ति।

    पदार्थः

    (एकेभ्यः सोमः पवते) एकेभ्यः सामाध्यापकेभ्यः-ऋषिभ्यः सोमः परमात्मानन्दरसः सोमौषधिरसो वा प्रवहति “यत्सामानि ऋषयोऽध्यगीषत सोमाहुतयः” [तै० आ० २।९।२] (एके घृतम्-उपासते) एके खल्वृषयो ये यजूंषि-अध्यापयन्ति तेऽध्यात्मतेजः सेवन्ते “यद् यजूंषि-ऋषयोऽध्यगीषत घृताहुतयः” [तै० आ० २।९।२] (येभ्यः-मधु प्रधावति) येभ्योऽथर्वाध्यापकेभ्य ऋषिभ्यो मधु-मधुर आत्मभावः प्रकृष्टं प्राप्नोति “आत्मा वै पुरुषस्य मधु” [तै० २।३।२।९] “यदथर्वणाऽङ्गिरसो मधुकुल्या इति” [तै० आ० २।९।२] (तान्-चित्-एव-अपि गच्छतात्) हे संयमिन् ब्रह्मचारिन् ! तानृङ्मन्त्राध्यापकानपि देवान् गच्छ तेभ्योऽध्येतुम् ॥१॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma flows for many, they chant the Samans. Many love ghrta for the yajna fire, they chant the Yajus. Honey flows for those who chant the Atharva verses, and knowledge for the lovers of Rks. The spirit of life flows for all them, universally.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ब्रह्मचाऱ्याने आपल्यातील परमात्म्याच्या आनंदरसाला - अध्यात्मतेजाला - आत्मभाव आणण्यासाठी सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद अध्यापकाकडून अध्ययन करावे, तसेच सर्वगुणसंपन्न होण्यासाठी ऋग्वेदाच्या अध्यापकाकडून अध्ययन करावे. ॥१॥

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