ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 158/ मन्त्र 1
ऋषिः - चक्षुः सौर्यः
देवता - सूर्यः
छन्दः - स्वराडार्चीगायत्री
स्वरः - षड्जः
सूर्यो॑ नो दि॒वस्पा॑तु॒ वातो॑ अ॒न्तरि॑क्षात् । अ॒ग्निर्न॒: पार्थि॑वेभ्यः ॥
स्वर सहित पद पाठसूर्यः॑ । नः॒ । दि॒वः । पा॒तु॒ । वातः॑ । अ॒न्तरि॑क्षात् । अ॒ग्निः । नः॒ । पार्थि॑वेभ्यः ॥
स्वर रहित मन्त्र
सूर्यो नो दिवस्पातु वातो अन्तरिक्षात् । अग्निर्न: पार्थिवेभ्यः ॥
स्वर रहित पद पाठसूर्यः । नः । दिवः । पातु । वातः । अन्तरिक्षात् । अग्निः । नः । पार्थिवेभ्यः ॥ १०.१५८.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 158; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 1
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
इस सूक्त में लोकों के प्रमुख देव अग्नि, वायु, सूर्य हैं, इनका ठीक उपयोग करना चाहिए, सूर्य से दर्शनशक्ति का लाभ मिलता है, ये विषय हैं।
पदार्थ
(सूर्यः) सूर्य (नः) हमारी (दिवः) द्युलोक से-वहाँ के पदार्थों से (पातु) रक्षा करे (वातः) वायु (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष से-वहाँ के पदार्थों से रक्षा करे (अग्निः पार्थिवेभ्यः) अग्नि पृथ्वीस्थ पदार्थों से रक्षा करे, ऐसे वर्त्तना और करना चाहिए ॥१॥
भावार्थ
सूर्य, वायु, अग्निलोकों के प्रमुख देव क्रमशः द्युलोक, अन्तरिक्ष-लोक, पृथिवीलोकों के पदार्थ मानव की रक्षा करने के लिये हैं, ऐसा वर्तना और करना चाहिए ॥१॥
विषय
सूर्य-वायु-अग्नि
पदार्थ
[१] द्युलोक का मुख्य देव 'सूर्य' है, अन्तरिक्ष का 'वायु' और पृथिवी का 'अग्नि' । सो इन से इस रूप में प्रार्थना करते हैं कि (सूर्य:) = सूर्य (नः) = हमें (दिवः पातु) = द्युलोक से रक्षित करे । द्युलोक से हो सकनेवाले उपद्रवों से सूर्य हमें बचाये । अर्थात् द्युलोकस्थ सूर्यादि देवों से किसी प्रकार का हमारा प्रातिकूल्य न हो और इस प्रकार हमारा मस्तिष्क पूर्ण स्वस्थ बना रहे। [२] (वातः) = वायु हमें (अन्तरिक्षात्) = अन्तरिक्ष से रक्षित करे, अन्तरिक्ष से हो सकनेवाले उपद्रवों से वायु हमारा रक्षण करे । अन्तरिक्षस्थ इन वायु आदि देवों से हमारी अनुकूलता हो और इस प्रकार हमारा मन वासनाओं के तूफानों से अशान्त न हो। [३] (अग्निः) = अग्नित्व हमें (पार्थिवेभ्यः) = पृथिवी से सम्भावित उपद्रवों से बचानेवाली हो । अग्नि आदि देवों की अनुकूलता से यह हमारा पार्थिव शरीर स्वस्थ बना रहे ।
भावार्थ
भावार्थ- सूर्य की अनुकूलता हमारे मस्तिष्क को ठीक रखे। वायु की अनुकूलता मन को तथा अग्नि की अनुकूलता हमारे शरीर को स्वस्थ रखे ।
विषय
सूर्य। सबका संचालक प्रभु सूर्य। उससे रक्षा की प्रार्थना।
भावार्थ
(सूर्यः) सूर्य, सब का संचालक प्रभु (नः दिवः पातु) हमें आकाश से बचावे। (वातः) वायु (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष के उत्पातों से बचावे, (अग्निः नः पार्थिवेभ्यः) अग्नि हमें पृथिवी पर होने वाले उपद्रवों से बचावे। इस मन्त्र में सूर्य, वायु, और अग्नि ये तीनों शब्द उन २ पदार्थों की विद्याओं को जानने वालों के लिये उपलक्षण हैं। अथवा (२) सूर्य वायु अग्नि तीनों नामों से गुण भेद से परमेश्वर को ही संबोधन करके उससे ही रक्षा की प्रार्थना की है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिश्चक्षुः सौर्यः॥ सूर्यो देवता॥ छन्द:- १ आर्ची स्वराड् गायत्री। २ स्वराड् गायत्री। ३ गायत्री। ४ निचृद् गायत्री। ५ विराड़ गायत्री॥
संस्कृत (1)
विषयः
अस्मिन् सूक्ते सर्वलोकानां प्रमुखदेवा अग्नवायुसूर्याः सन्ति तेषां यथावद् उपयोगः कार्यः सूर्याद्दर्शनशक्तिः प्राप्यते खल्वित्येवं विषयाः सन्ति।
पदार्थः
(सूर्यः-नः-दिवः पातु) सूर्योऽस्मान् द्युलोकात् तत्रत्य-पदार्थाद् रक्षतु (वातः-अन्तरिक्षात्) वायुरस्मान् खल्वन्तरिक्षात् तत्रत्यपदार्थाद् रक्षतु (अग्निः पार्थिवेभ्यः) अग्निः पार्थिवेभ्यः पदार्थेभ्यो रक्षत्विति तथा वर्तितव्यं कर्तव्यं च ॥१॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May Surya, the sun, protect and promote us from the regions of light, may Vayu, the winds, protect and promote us from the middle regions of the sky, and may Agni, fire and vital heat, protect and promote us from the earthly regions.
मराठी (1)
भावार्थ
सूर्य, वायू, अग्नी हे प्रमुख देव क्रमश: द्युलोक, अंतरिक्ष लोक व पृथ्वीलोकातील पदार्थांद्वारे मानवाचे रक्षण करण्यासाठी आहेत. त्यामुळे तसेच आचरण करून कर्तव्य पार पाडले पाहिजे. ॥१॥
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