ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 166/ मन्त्र 1
ऋषिः - ऋषभो वैराजः शाक्वरो वा
देवता - सपत्नघ्नम्
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
ऋ॒ष॒भं मा॑ समा॒नानां॑ स॒पत्ना॑नां विषास॒हिम् । ह॒न्तारं॒ शत्रू॑णां कृधि वि॒राजं॒ गोप॑तिं॒ गवा॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठऋ॒ष॒भम् । मा॒ । स॒मा॒नाना॑म् । स॒ऽपत्ना॑नाम् । वि॒ऽस॒स॒हिम् । ह॒न्तार॑म् । शत्रू॑णाम् । कृ॒धि॒ । वि॒ऽराज॑म् । गोऽप॑तिम् । गवा॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋषभं मा समानानां सपत्नानां विषासहिम् । हन्तारं शत्रूणां कृधि विराजं गोपतिं गवाम् ॥
स्वर रहित पद पाठऋषभम् । मा । समानानाम् । सऽपत्नानाम् । विऽससहिम् । हन्तारम् । शत्रूणाम् । कृधि । विऽराजम् । गोऽपतिम् । गवाम् ॥ १०.१६६.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 166; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
इस सूक्त में राजा सैन्य शरीर मन आत्मबलों से युक्त हो, राष्ट्रद्रोही जनों की वृत्तिपरम्परा से प्राप्त क्षेम का राष्ट्रियकरण हो, विशेष दण्ड देकर भी प्रजा का रक्षण करना चाहिए, इत्यादि विषय हैं।
पदार्थ
(समानानाम्) समानगुणकर्मवालों के मध्य में (मा-ऋषभम्) मुझे श्रेष्ठ (सपत्नानां विषासहिम्) विरोधयों का अभिभव करनेवाला-दबानेवाला (शत्रूणां हन्तारम्) नाश करनेवालों का मारनेवाला (गवां विराजम्) भूमियों के मध्य विशेष राजमान (गोपतिम्) भूमि का स्वामी (मां कृधि) परमात्मा मुझे कर दे ॥१॥
भावार्थ
राजा को समान गुण कर्मवालों के मध्य श्रेष्ठ होना चाहिए, विरोधियों का दबानेवाला, शत्रुओं का नाशक, राष्ट्रभूमियों का स्वामी व प्रजाओं का रक्षक होना चाहिये ॥१॥
विषय
गवां गोपति
पदार्थ
[१] हे प्रभो ! (मा) = मुझे (समानानाम्) = अपने समान लोगों में, एक श्रेणी में स्थित व्यक्तियों में (ऋषभम्) = श्रेष्ठ कृधि = करिये। मैं समान लोगों में आगे बढ़ जानेवाला बनूँ। इसी दृष्टिकोण से मुझे (सपत्नानाम्) = मेरे शरीर के पति बनने की कामनावाले इन मेरे सपत्नभूत काम-क्रोध आदि का (विषासहिम्) = विशेषरूप से पराभव करनेवाला करिये। तथा (शत्रूणाम्) = शरीर को विनष्ट करनेवाले विविध रोगरूप शत्रुओं का (हन्तारम्) = मारनेवाला करिये, हम रोगों से कभी आक्रान्त न हों। जब हम शरीर में नीरोग होते हैं और मन में वासनाओं से ऊपर उठ जाते हैं तभी उन्नतिपथ पर आगे बढ़ते हुए समान लोगों में श्रेष्ठ बन पाते हैं। [२] रोगों व वासनाओं से ऊपर उठाकर मुझे (विराजम्) = विशिष्ट दीप्तिवाला (कृधि) = करिये। मेरा शरीर तेजस्विता से दीप्त हो तथा मेरा मन निर्मलता से चमक उठे। मुझे (गवां गोपतिम्) = इन्द्रियरूप गौओं का (पति) = स्वामी बनाइये । इन्द्रियों को मैं वश में करनेवाला होऊँ । जितेन्द्रियता ही वस्तुतः सब उन्नतियों का आधार है । अजितेन्द्रिय न रोगों से बच पाता है, न वासनाओं से। यह विराट् तो क्या, एकदम निस्तेज होकर मृत्यु की ओर अग्रसर होता है ।
भावार्थ
भावार्थ - मैं जितेन्द्रिय बनूँ । विशिष्ट दीप्तिवाला बनकर वासनाओं को विनष्ट करूँ और नीरोग बनूँ । इस प्रकार मैं अपने समान लोगों में श्रेष्ठ होऊँ ।
विषय
सपत्नघ्न सूक्त। सर्वश्रेष्ठ होने की प्रार्थना।
भावार्थ
हे प्रभो ! (मा) मुझको (समानानाम् ऋषभम्) एक समान मानपद वालों में सर्वश्रेष्ठ, और (सपत्नानां वि-ससहिम्) शत्रुओं को विशेष रूप से पराजित करने में समर्थ, (शत्रूणां हन्तारं) आघातकारी शत्रुओं का नाश करने वाले और (गवां गो-पतिम्) भूमियों के भूमिपति और (वि-राजं) विशेष कान्ति से चमकने वाला, विविध देशों का राजा (कृधि) बना।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्ऋषभो वैराजः शाकरो वा॥ देवता—सपत्नघ्नम्॥ छन्द:– १, २ अनुष्टुप्। ३, ४ निचृदनुष्टुप्। ५ महापक्तिः। पञ्चर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
विषयः
अत्र सूक्ते राजा सैन्यशरीरमनआत्मबलैर्युक्तः स्यात्, राष्ट्रविद्रोग्धृ-जनानां वृत्तेः परम्परातः क्षेमस्य स्वायत्तीकरणे विशिष्टदण्डप्रदानं च तेभ्यो दातव्यं प्रजारक्षणं च कार्यमित्येवं विषयाः सन्ति।
पदार्थः
(समानानां मा-ऋषभम्) समानगुणकर्मवतां मध्ये श्रेष्ठम् (सपत्नानां विषासहिम्) विरोधिनामभिभवितारम् (शत्रूणां हन्तारम्) शातयि-तॄणां हन्तारम् (गवां विराजं गोपतिम्) भूमीनां विशेषेण राजमानं भूमिस्वामिनम् (मां कृधि) परमात्मन् मां कुरु ॥१॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Make me brave and generous among equals, challenger of rivals and adversaries, subduer of enemies, and brilliant leader, protector and promoter of lands, cows and culture of the peoples of the earth.
मराठी (1)
भावार्थ
राजाने समान गुण असणाऱ्यामध्ये श्रेष्ठ असले पाहिजे. विरोधी लोकांचे दमन करणारा, शत्रूंचा नाशक, राष्ट्राचा स्वामी व प्रजेचा रक्षक असले पाहिजे. ॥१॥
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