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ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 175/ मन्त्र 1
प्र वो॑ ग्रावाणः सवि॒ता दे॒वः सु॑वतु॒ धर्म॑णा । धू॒र्षु यु॑ज्यध्वं सुनु॒त ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । वः॒ । ग्रा॒वा॒णः॒ । स॒वि॒ता । दे॒वः । सु॒व॒तु॒ । धर्म॑णा । धूः॒ऽसु । यु॒ज्य॒ध्व॒म् । सु॒नु॒त ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र वो ग्रावाणः सविता देवः सुवतु धर्मणा । धूर्षु युज्यध्वं सुनुत ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । वः । ग्रावाणः । सविता । देवः । सुवतु । धर्मणा । धूःऽसु । युज्यध्वम् । सुनुत ॥ १०.१७५.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 175; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 33; मन्त्र » 1
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 33; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
इस सूक्त में राजा राष्ट्रहितार्थ विद्वानों को यथायोग्य नियुक्त करे, प्रजाहित के लिए स्वयं अधिकारी कर्त्तव्यपरायण रहें, विषय हैं।
पदार्थ
(ग्रावाणः) हे विद्वानों ! (वः) तुम्हें (सविता देवः) प्रेरक विजय का इच्छुक राजा (धर्मणा) धारण गुण से (प्र सुवतु) प्रेरित करे (धूर्षु) कार्य धुराओं में धारणीय विभागों में (युज्यध्वम्) नियुक्त होवो-लगो तथा (सुनुत) राष्ट्र को एश्वर्ययुक्त करो ॥१॥
भावार्थ
राजा के आदेशानुसार प्रत्येक विषय के या प्रत्येक क्षेत्र के विद्वान् अपने विभागों में ठीक-ठीक लगें और राष्ट्र को ऐश्वर्यशाली बनावें ॥१॥
विषय
उपासना से प्रेरणा की प्राप्ति
पदार्थ
[१] हे (ग्रावाणः) = स्तोता लोगो ! (सविता देवः) = वह प्रेरक प्रकाश का पुञ्ज प्रभु (वः) = आपको (धर्मणा) = धारणात्मक कर्मों के हेतु से (प्र सुवतु) = प्रकृष्ट प्रेरणा दे। उस प्रभु की प्रेरणा से तुम धारणात्मक कार्यों में प्रवृत्त होवो । [२] उस प्रभु की प्रेरणा के अनुसार (धूर्षु युज्यध्वम्) = धुरों में जुत जाओ, अपने-अपने कार्य को करने में प्रवृत्त हो जाओ। इन कार्यों को करने के लिये शक्ति को प्राप्त करने के लिये ही सुनुत सोम का सम्पादन करो, अपने अन्दर इस सोम शक्ति का [वीर्य का] रक्षण करो ।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु का उपासन करें, प्रभु से प्रेरणा को प्राप्त करके धारणात्मक कर्मों में जुट जायें, इन कार्यों को कर सकने के लिये सोम का [वीर्य का] सम्पादन व रक्षण करें।
विषय
ग्रावगण।
भावार्थ
हे (ग्रावाणः) उत्तम ज्ञान उपदेश करने वाले विद्वानो ! एवं शत्रु को पत्थरों के तुल्य दृढ़ होकर दलन करने वाले सैन्य पुरुषो ! (सविता देवः) ऐश्वर्यवान् तेजस्वी, शास्त्र-ज्ञान सुखादि का दाता स्वामी, (वः प्र सुवतु) आप लोगों को उत्तम मार्ग में संञ्चालित करे। आप लोग (धूर्षु) उत्तम उत्तम कार्यों को धारण करने योग्य पदों पर धुरन्धर के तुल्य (युज्यध्वं) नियुक्त होवो और (सुनुत) उत्तम कार्य करो, अधीनों को सन्मार्ग पर चलाओ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिरुर्ध्वग्रावार्बुदः॥ ग्रावाणो देवताः॥ छन्दः—१, २, ४ गायत्री॥ ३ विराड् गायत्री। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
विषयः
अत्र सूक्ते राजा राष्ट्रस्याधिकारपदेषु विदुषो यथायोग्यं नियोजयेत प्रजाहिताय स्वयं तथाऽधिकारिणश्च कर्तव्यपरायणाः स्युः।
पदार्थः
(ग्रावाणः) हे विद्वांसः ! “विद्वांसो हि ग्रावाणः” [श० ३।९।३।१४] (वः) युष्मान् (सविता देवः-धर्मणा प्रसुवतु) प्रेरको राजा जिगीषुः-धारणगुणेन प्रेरयतु (धूर्षु युज्यध्वं सुनुत) कार्यधूर्षु धारणीयविभागेषु-नियुक्ता भवत तथा राष्ट्रमैश्वर्ययुक्तं कुरुत ॥१॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Gravana, veteran wise scholars and sages, may Savita, self-refulgent creator, the sun and the noble ruler inspire you with the sense of Dharma and noble performance so that you may be appointed to high positions and you play a positive and valuable part in state affairs.
मराठी (1)
भावार्थ
राजाच्या आदेशानुसार प्रत्येक विषय किंवा प्रत्येक क्षेत्राचे विद्वान आपल्या विभागात ठीक-ठीक विभागावे व राष्ट्राला ऐश्वर्यवान बनवावे. ॥१॥
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