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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 31 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 31/ मन्त्र 1
    ऋषिः - कवष ऐलूषः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आ नो॑ दे॒वाना॒मुप॑ वेतु॒ शंसो॒ विश्वे॑भिस्तु॒रैरव॑से॒ यज॑त्रः । तेभि॑र्व॒यं सु॑ष॒खायो॑ भवेम॒ तर॑न्तो॒ विश्वा॑ दुरि॒ता स्या॑म ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । नः॒ । दे॒वाना॑म् । उप॑ । वे॒तु॒ । शंसः॑ । विश्वे॑भिः । तु॒रैः । अव॑से । यज॑त्रः । तेभिः॑ । व॒यम् । सु॒ऽस॒खायः॑ । भ॒वे॒म॒ । तर॑न्तः । विश्वा॑ । दुः॒ऽइ॒ता । स्या॒म॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ नो देवानामुप वेतु शंसो विश्वेभिस्तुरैरवसे यजत्रः । तेभिर्वयं सुषखायो भवेम तरन्तो विश्वा दुरिता स्याम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । नः । देवानाम् । उप । वेतु । शंसः । विश्वेभिः । तुरैः । अवसे । यजत्रः । तेभिः । वयम् । सुऽसखायः । भवेम । तरन्तः । विश्वा । दुःऽइता । स्याम ॥ १०.३१.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 31; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (3)

    विषय

    इस सूक्त में योगियों की संगति से ज्ञानग्रहण, परमात्मा के ध्यान से आनन्द की प्राप्ति, सृष्टि का प्रसार परमात्मा का कार्य दिखाया गया है।

    पदार्थ

    (देवानां नः शंसः-यजत्रः) कामना करते हुए हम लोगों का प्रशंसनीय स्तुतियोग्य संगमनीय परमात्मा (उप-आ वेतु) समीप प्राप्त हो-साक्षात् हो (विश्वेभिः तुरैः-अवसे) सब या प्रवेश पाए हुए यति-योगियों संसारसागर को पार करने में यत्न करनेवालों के द्वारा रक्षा के लिए अर्थात् उनके उपदेश सुनकर हम परमात्मसाक्षात्कार में प्रवृत्त रहें (तेभिः सुसखायः-वयं भवेम) उन यतियोगियों के साथ समानधर्मी हम होवें। (विश्वा दुरिता तरन्तः स्याम) समस्त पापों को पार किये हुए हम होवें ॥१॥

    भावार्थ

    परमात्मा के साक्षात् समागम की कामना करनी चाहिए, यतियोगियों के सत्सङ्ग उपदेशों के अनुसार साधना कर निष्पाप हो संसारसागर को पार करें ॥१॥

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    विषय

    देव- मैत्री

    पदार्थ

    [१] (नः) = हमें (देवानां शंसः) = देवों का ज्ञान, अर्थात् देवों से दिये जानेवाला ज्ञान (उपवेतु) = समीपता से प्राप्त हो। हम देवों के समीप, ज्ञान - ज्योति से दीप्त गुरुओं के समीप उपस्थित हों। हम उन्हें पुकारें [उपहूतो वाचस्पति: ], वे वाचस्पति हमें समीप उपस्थित होने की स्वीकृति दें [उपास्मान् वाचस्पर्तिह्वयताम्] इन आचार्यों के चरणों में बैठकर हम ज्ञान को प्राप्त करें। [२] यह ज्ञान (विश्वेभिः) = सब (तुरै:) = बुराइयों के संहार के द्वारा (अवसे) = रक्षण के लिये (यजत्रः) = संगतिकरण योग्य है। इस ज्ञान को हमें इसलिये प्राप्त करना चाहिये कि यह सब बुराइयों को समाप्त करनेवाला है । [३] सो (वयम्) = हम (तेभिः) = उन देवों के साथ (सुषखायः) = उत्तम मित्रतावाले (भवेम) = हों । इनके सम्पर्क में रहते हुए हम उत्तम ज्ञान को प्राप्त करें। [४] ज्ञान को प्राप्त करते हुए हम (विश्वा) = सब (दुरिता) = बुराइयों को (तरन्तः) = तैरते हुए (स्याम) = हों। सब बुराइयों के हम पार हो जायें। बुराइयों को छोड़कर अच्छाइयों को प्राप्त करनेवाले हों।

    भावार्थ

    भावार्थ- देवों के सम्पर्क से ज्ञान प्राप्त करें। यह ज्ञान हमारी न्यूनताओं को दूर करे। ज्ञानियों की मित्रता से हम दुरितों को तैर जायें ।

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    विषय

    विश्वेदेव। आचार्य का उपासन। उसका सत्परिणाम।

    भावार्थ

    (देवानां शंसः) ज्ञान की कामना करने वाले मनुष्यों को उपदेश करने वाला विद्वान् आचार्य, उपदेष्टा (नः आवेतु) हमें प्राप्त हो और (यजत्रः) पूजनीय पुरुष (विश्वेभिः तुरैः) सब शत्रुनाशक उपायों सहित (नः अवसे) हमारी रक्षा के लिये (उप वेतु) आवे। (तेभिः) उनसे ही (वयम्) हम (सु-सखायः भवेस) उत्तम मित्र होकर रहें। और (विश्वा दुरिता) समस्त दुःखदायी, बुरे आचारणों, पापों को (तरन्तः स्याम) पार करते रहें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कवष ऐलूष ऋषिः॥ विश्वे देवा देवताः॥ छन्द:-१, ८ निचृत् त्रिष्टुप्। २, ४,५, ७, ११ त्रिष्टुप्। ३, १० विराट् त्रिष्टुप्। ६ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ६ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप् ॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अस्मिन्सूक्ते योगिनां सङ्गत्या ज्ञानग्रहणं परमात्मध्यानेनानन्दप्राप्तिः सृष्टेः प्रसारणं परमात्मकार्यं प्रदर्श्यते।

    पदार्थः

    (देवानां नः शंसः-यजत्रः) कामयमानानामस्माकं शंसनीयः स्तोतव्यः संगमनीयश्च परमात्मा (उप-आ वेतु) उपागच्छतु साक्षाद् भवतु (विश्वेभिः तुरैः-अवसे) समस्तैर्यमैर्यतिभिर्योगिभिः सह “तुर इति यमनाम तरतेः” [निरुक्त १२।१४] संसारसागरं पारयितुं यतमानैः रक्षणाय योगिनामुपदेशं श्रुत्वा वयं परमात्मनः साक्षात्कारे प्रवृत्ता भवेमेति यावत् (तेभिः सुसखायः-वयं भवेम) तैर्योगिभिर्वयं समानधर्माणः समानपरमात्मसाक्षात्कारवन्तो भवेम (विश्वा दुरिता तरन्तः स्याम) समस्तानि पापानि पारयन्तो भवेम ॥१॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May the adorable word and wisdom of lord Supreme and all divinities of nature and humanity come to us in communion with all the speed, power and excellence of the world for our protection and progress. May we be good friends with them and cross over all hurdles, sins and evils of existence.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराचा साक्षात समागम करण्याची इच्छा बाळगली पाहिजे. यतियोग्यांच्या सत्संग उपदेशानुसार साधना करून निष्पाप बनून संसार सागरातून पार पडले पाहिजे. ॥१॥

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