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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 71 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 71/ मन्त्र 7
    ऋषिः - बृहस्पतिः देवता - ज्ञानम् छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒क्ष॒ण्वन्त॒: कर्ण॑वन्त॒: सखा॑यो मनोज॒वेष्वस॑मा बभूवुः । आ॒द॒घ्नास॑ उपक॒क्षास॑ उ त्वे ह्र॒दा इ॑व॒ स्नात्वा॑ उ त्वे ददृश्रे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒क्ष॒ण्ऽवन्तः॑ । कर्ण॑ऽवन्तः । सखा॑यः । म॒नः॒ऽज॒वेषु॑ । अस॑माः । ब॒भू॒वुः॒ । आ॒द॒घ्नासः॑ । उ॒प॒ऽक॒क्षासः॑ । ऊँ॒ इति॑ । त्वे॒ । ह्र॒दाःऽइ॑व । स्नात्वाः॑ । ऊँ॒ इति॑ । त्वे॒ । द॒दृ॒श्रे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अक्षण्वन्त: कर्णवन्त: सखायो मनोजवेष्वसमा बभूवुः । आदघ्नास उपकक्षास उ त्वे ह्रदा इव स्नात्वा उ त्वे ददृश्रे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अक्षण्ऽवन्तः । कर्णऽवन्तः । सखायः । मनःऽजवेषु । असमाः । बभूवुः । आदघ्नासः । उपऽकक्षासः । ऊँ इति । त्वे । ह्रदाःऽइव । स्नात्वाः । ऊँ इति । त्वे । ददृश्रे ॥ १०.७१.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 71; मन्त्र » 7
    अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 24; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अक्षण्वन्तः कर्णवन्तः सखायः) आँखवाले कानवाले समानरूपवाले होते हुए (मनोजवेषु) मन के वेगों-व्यापारों में (असमाः बभूवुः) असमान अर्थात् भिन्न-भिन्न प्रवृत्तिवाले होते हैं,, उनमें (आदघ्नासः) मुखप्रमाणवाले (उपकक्षासः) कक्षाप्रमाणवाले (उ त्वे) कुछ एक (ह्रदा-इव स्नात्वाः ददृश्रे) जलाशय में जैसे स्नान करने योग्य दिखलायी पड़ते हैं, ये ज्ञानवाले मनुष्यों की गतियाँ हैं ॥७॥

    भावार्थ

    आँखवाले कानवाले मनुष्य आकृति में समान दिखते हुए भी मन के वेगों अर्थात् मानसिक विचारों, प्रवृत्तियों में भिन्न-भिन्न होते हैं। भिन्न-भिन्न ज्ञान के कारण जैसे किसी एक जलाशय में किसी मनुष्य के कोख तक पानी आता है, किसी के मुख तक, कोई पूरा डूब जाता है, भिन्न-भिन्न शरीरों के कारण। इसी प्रकार ज्ञान की भी भिन्न-भिन्न गतियाँ हैं ॥७॥

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    विषय

    एक समान अध्येताओं में भी ज्ञान मार्ग में न्यूनाधिक ज्ञानी होने का

    भावार्थ

    (अक्षण्वन्तः) आंखों वाले, और (कर्णवन्तः) कान वाले (सखायः) समान नाम वाले, समानसं ज्ञान-उपदेश ग्रहण करने वाले, एक जैसे मित्र भी (मनः-जवेषु) मन, चित्त के वेगों, मन द्वारा जानने या अनुभव करने योग्य ज्ञानों में (असमाः बभूवुः) एक समान नहीं होते। जिस प्रकार (ह्रदाः) भूमि पर अनेक जलाशय (आदध्नासः) बहुत ही थोड़े परिमाण या गहराई के होते हैं। (त्वे उ) और कई जलाशय (उप-कक्षासः) कांख तक गहरे जल के होते हैं और (स्नात्वाः उ त्वे) और कुछ स्नान करने, डूबने लायक गहरे जल के भी होते हैं इसी प्रकार मनुष्यों में भी ज्ञान की दृष्टि से तारतम्य होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    बृहस्पतिः॥ देवता—ज्ञानम्॥ छन्दः– १ त्रिष्टुप्। २ भुरिक् त्रिष्टुप्। ३, ७ निचृत् त्रिष्टुप्। ४ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ५, ६, ८, १०, ११ विराट् त्रिष्टुप्। ९ विराड् जगती॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    ज्ञान में विषमता

    पदार्थ

    [१] (अक्षण्वन्तः) = आँखोंवाले तथा (कर्णवन्तः) = कानोंवाले (सखाया) = एक ही श्रेणी में ज्ञान को प्राप्त करनेवाले [ समानं ख्यानं येषां ] युवक होते हैं। इनकी आँखें बाह्य पदार्थों को ठीक से देखती हैं, कान बाह्य शब्दों को ठीक से सुनते हैं एक ही गुरु से ये ज्ञान प्राप्त कर रहे होते हैं । ऐसा होते हुए भी (मनोजवेषु) = मन के वेगों में (असमा बभूवुः) = ये समान नहीं होते। इनका मन दिये जाते हुए ज्ञान को समानरूप से ग्रहण नहीं करता। [२] ज्ञान को यदि जल से उपमित करें, तो इनमें से कई (आदध्नासः) = आस्य प्रमाण उदकवाले होते हैं, कइयों के ज्ञान सरोवर में मुख तक आनेवाला ज्ञान जल भरा होता है । (उ) = और (त्वे) = कई (उपकक्षासः) = बाहुमूलपर्यन्त आनेवाले ज्ञान जलवाले होते हैं। (उ) = और (त्वे) = कई तो (स्नात्वा: हृदाः इव) = स्नानीय तालाबों के समान परिपूर्ण जलवाले, डुबाऊ जलवाले (ददृश्रे) = दिखाई पड़ते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - बाह्य वातावरण की समानता हुए भी मनोजवों की विषमता के कारण एक होते ही श्रेणी के विद्यार्थियों में ज्ञान की विषमता हो जाती है। 'स्नात्वा: हृदाः इव' प्रथम विभाग के हैं, 'आदध्नासः' द्वितीय विभाग के तथा 'उपकक्षासः ' तृतीयविभाग के ।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अक्षण्वन्तः कर्णवन्तः सखायः) अक्षिमन्तः कर्णवन्तः समानख्यानाः समानरूपाः सन्तः (मनो जवेषु-असमाः-बभूवुः) मनसो वेगेषु व्यापारेषु खल्वसमानाः-भिन्न-भिन्नप्रवृत्तयो भवन्ति, तत्र (आदघ्नासः) आस्यदधानाः-मुखप्रमाणाः (उपकक्षासः) कक्षापर्यन्तप्रमाणाः (उ त्वे) एके खलु (ह्रदा-इव स्नात्वाः-ददृश्रे) जलाशये यथा स्नातुं योग्या एके दृश्यन्ते। इति ज्ञानवतां गतयः ॥७॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indeed friends and companions equal of eyes and ears are unequal in mind and intellectual efficiency. Some are like tanks just waist deep, others neck deep, and yet others are deep as lakes, rivers or even seas wherein you bathe and feel sanctified and absolved.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    डोळे असणारे, कान असणारे, बाह्य आकृतीत समान दिसणारे लोकही मनाचे वेग अर्थात मानसिक विचार, प्रवृत्तीने भिन्न-भिन्न असतात. याचे कारण भिन्न-भिन्न ज्ञान होय, जसे एका जलाशयात एखाद्या माणसाच्या कंबरेपर्यंत पाणी येते, एखाद्याच्या मुखापर्यंत येते तर कुणी त्यात बुडतो. याचे कारण भिन्न-भिन्न शरीर होय. या प्रकारे ज्ञानाच्या गती भिन्न-भिन्न असतात. ॥७॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    All men are not born Equal

    Word Meaning

    (अक्षण्वन्त: कर्णवंत: सखाय: ) आंख से, कान से, समान ज्ञान ग्रहण करने वाले मित्र भी ( मनोजवेषु असमा: बभूवु:) मन से जानने योग्य ज्ञान में एक समान नहीं होते. ( हृदा: आदघ्नास:) जैसे भूमि पर कोइ जलाशय मुख तक गहरायी वाले और (त्वे उ उपकक्षास: इव) कोइ कमर तक जल वाले तलाब जैसे(स्नात्वा: उ त्वे) स्नान करने योग्य होते हैं. इसी प्रकार मनुष्यों मे भी ज्ञान की दृष्टि से असमानता रहती है.

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