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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 84 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 84/ मन्त्र 1
    ऋषिः - मन्युस्तापसः देवता - मन्युः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    त्वया॑ मन्यो स॒रथ॑मारु॒जन्तो॒ हर्ष॑माणासो धृषि॒ता म॑रुत्वः । ति॒ग्मेष॑व॒ आयु॑धा सं॒शिशा॑ना अ॒भि प्र य॑न्तु॒ नरो॑ अ॒ग्निरू॑पाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वया॑ । म॒न्यो॒ इति॑ । स॒ऽरथ॑म् । आ॒ऽरु॒जन्तः॑ । हर्ष॑मानासः । धृ॒षि॒ताः । म॒रु॒त्वः॒ । ति॒ग्मऽइ॑षवः । आयु॑धा । स॒म्ऽशिशा॑नाः । अ॒भि । प्र । य॒न्तु॒ । नरः॑ । अ॒ग्निऽरू॑पाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वया मन्यो सरथमारुजन्तो हर्षमाणासो धृषिता मरुत्वः । तिग्मेषव आयुधा संशिशाना अभि प्र यन्तु नरो अग्निरूपाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वया । मन्यो इति । सऽरथम् । आऽरुजन्तः । हर्षमानासः । धृषिताः । मरुत्वः । तिग्मऽइषवः । आयुधा । सम्ऽशिशानाः । अभि । प्र । यन्तु । नरः । अग्निऽरूपाः ॥ १०.८४.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 84; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    इस सूक्त में स्वाभिमानरूप आत्मप्रभाव  संग्राम में विजय प्राप्त करने के लिये तथा परमात्मा की स्तुति में आत्मबल प्राप्त करना भी विजय के लिए आवश्यक है।

    पदार्थ

    (मरुत्वः-मन्यो) हे सैनिकों से युक्त आत्मप्रभाव या स्वाभिमान ! (त्वया) तेरे साथ (सरथम्) समानरथ-शरीररथ में आरूढ़ होकर (हर्षमाणासः) हर्षित होते हुए (धृषिताः) दृढ़ बलवान् (आरुजन्तः) शत्रुओं का भली-भाँति भञ्जन करते हुए (तिग्मेषवः) तीक्ष्ण बाणवाले (आयुधाः) शस्त्रों को (संशिशानाः) तीक्ष्ण करते हुए (अग्निरूपाः) अग्नि के समान तापक (नरः) नेता (अभिप्रयन्तु) शत्रुओं के प्रति आक्रमण करें ॥१॥

    भावार्थ

    आत्मप्रभाव या स्वाभिमान होने पर सैनिकों के साथ तीक्ष्ण शस्त्रास्त्रों से शत्रुओं का नाश किया जा सकता है, बिना आत्मप्रभाव या स्वाभिमान के सैनिक और शस्त्रास्त्र होते हुए भी शत्रुओं पर विजय नहीं पाया जा सकता ॥१॥

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    विषय

    मन्यु। सेनापति का वर्णन। अध्यात्म में रस स्वरूप प्रभु का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (मन्यो) ज्ञानवन् ! हे दीप्तियुक्त ! तेजस्विन् ! (स-रथम्) रथ के सहित होकर हे (मरुत्वः) हे वीरों, मर्दों के स्वामिन् ! (त्वया) तेरे सहयोग में (आरुजन्तः) शत्रुओं का सब ओर नाश करते हुए, (हर्षमाणासः) तेरे से हर्ष अनुभव करते हुए, (धृषिताः) शत्रु का धर्षण करनेहारे, (तिग्म-इषवः) तीक्ष्ण बाणों वाले, तीक्ष्ण सेनाओं वाले (आयुधा सं-शिशानाः) अनेक शस्त्रास्त्रों को तीक्ष्ण करते हुए (अग्नि-रूपाः) अग्नि के समान तेजस्वी, उज्ज्वल रूप वाले होकर (नरः) नेता लोग (अभि प्र यन्तु) आगे बढ़ें। (२) अध्यात्म में—हे (मन्यो) तेजोमय ! हे ज्ञानमय प्रभो ! (स-रथम्) इस देह से युक्त होकर वा रसस्वरूप तुझ सहित विघ्नों का नाश करते हुए (हर्षमाणासः) हर्ष, लाभ करते हुए (तिग्मेषवः) तीक्ष्ण इच्छा, प्रेरणा वाले होकर (आयुधा सं- शिशानाः) इन्द्रियगणों वा प्राणों वा साधन को भी तीक्ष्ण करते हुए (अग्नि-रूपाः नरः) अग्निवत् प्रकाशमय, ज्ञानी आत्मा गण आगे बढ़ें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मन्युस्तापस ऋषिः॥ मन्युर्देवता॥ छन्दः- १, ३ त्रिष्टुप्। २ भुरिक् त्रिष्टुप्। ४, ५ पादनिचृज्जगती। ६ आर्ची स्वराड़ जगती। ७ विराड़ जगती। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    अग्निरूप नरों का अभिप्रयण

    पदार्थ

    [१] हे (मन्यो) = ज्ञान ! (त्वया) = तेरे साथ (सरथम्) = समान रथ पर आरूढ़ हुए हुए (आरुजन्त:) = समन्तात् शत्रुओं को नष्ट करते हुए, (हर्षमाणासः) = आनन्द का अनुभव करते हुए (धृषिताः) = शत्रुओं का धर्षण करनेवाले (नरः) = मनुष्य (अभिप्रयन्तु) = अभ्युदय व निः श्रेयस सम्बन्धी क्रियाओं के प्रति [अभि] गतिवाले हों। [२] (मरुत्वः) = हे प्राणोंवाले [ मन्यो] ज्ञान ! [प्राणसाधना से ही बुद्धि ही तीव्रता होकर ज्ञान की वृद्धि होती है] (तिग्मेषवः) = तीव्र प्रेरणाओं [इषु] वाले, अर्थात् जो प्रभु की प्रेरणा को ठीक से सुनते हैं, (आयुधा संशिशाना:) = इन्द्रिय, मन व बुद्धिरूप आयुधों को [ औजारों को ] तेज करते हुए (अग्निरूपा:) = अग्नि के समान तेजस्वी अथवा उस अग्नि नामक प्रभु के ही छोटे रूप बने हुए ये लोग अभिप्रयन्तु ऐहिक व आमुष्मिक क्रियाओं को करनेवाले हों ।

    भावार्थ

    भावार्थ - ज्ञान से हम वासना रूप शत्रुओं का नाश करके इहलोक व परलोक की साधक क्रियाओं को ठीक रूप से कर पाते हैं।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अत्र सूक्ते स्वाभिमानरूप आत्मप्रभावः सङ्ग्रामे विजयं प्रापयति तथा परमात्मस्तवनेन चात्मबलप्रापणमपि विजयाय आवश्यकम्।

    पदार्थः

    (मरुत्वः-मन्यो) हे मरुत्वन् ! मरुद्भिः सह वीरसैनिकैः सह मन्यो-आत्मप्रभावः (त्वया) त्वया सह (सरथम्-हर्षमाणासः-धृषिताः आरुजन्तः)  समानरथं शरीररथमारुह्य हृष्यन्तो दृढा बलवन्तः सन्तः नः शत्रून् समन्ताद् भञ्जन्तः (तिग्मेषवः-आयुधाः संशिशानाः) तीक्ष्णबाणवन्तः शस्त्राणि सम्यक् शिष्यन्तस्तीक्ष्णीकुर्वन्तः “शो तनूकरणे” [दिवादिः] (अग्निरूपाः-नरः-अभिप्रयन्तु) अग्निकर्माणो-ऽग्निवत्तापका नेतारः शत्रून् प्रतिगच्छन्तु ॥१॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Manyu, spirit of vaulting passion without compromise with negativities, may our leading lights, warriors of universal rectitude, riding the chariot with you, breaking through paths of advancement, joyous, bold, undaunted, stormy like wind shears, their arrows like lazer beams, weapons sharp and blazing, move forward like flames of fire.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    आत्मप्रभाव किंवा स्वाभिमान असल्यामुळे सैनिक तीक्ष्ण शस्त्रास्त्रांनी शत्रूंचा नाश करू शकतो. आत्मप्रभाव किंवा स्वाभिमानाशिवाय शस्त्रास्त्रे असूनही शत्रूंवर विजय प्राप्त केला जाऊ शकत नाही. ॥१॥

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