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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 97 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 97/ मन्त्र 7
    ऋषिः - भिषगाथर्वणः देवता - औषधीस्तुतिः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    अ॒श्वा॒व॒तीं सो॑माव॒तीमू॒र्जय॑न्ती॒मुदो॑जसम् । आवि॑त्सि॒ सर्वा॒ ओष॑धीर॒स्मा अ॑रि॒ष्टता॑तये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒श्व॒ऽव॒तीम् । स॒म॒ऽव॒तीम् । ऊ॒र्जय॑न्तीम् । उत्ऽओ॑जसम् । आ । अ॒वि॒त्सि॒ । सर्वाः॑ । ओष॑धीः । अ॒स्मै । अ॒रि॒ष्टऽता॑तये ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्वावतीं सोमावतीमूर्जयन्तीमुदोजसम् । आवित्सि सर्वा ओषधीरस्मा अरिष्टतातये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अश्वऽवतीम् । समऽवतीम् । ऊर्जयन्तीम् । उत्ऽओजसम् । आ । अवित्सि । सर्वाः । ओषधीः । अस्मै । अरिष्टऽतातये ॥ १०.९७.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 97; मन्त्र » 7
    अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अश्वावतीम्) अश्व-घोड़े की शक्तिवाली अश्वगन्धा आदि ओषधी को (सोमावतीम्) सोम्यरसवाली ओषधी को (ऊर्जयन्तीम्) बलकारिणी ओषधी को (उदोजसम्) उत्साहवर्धक ओषधी को तथा (सर्वाः) सारी (ओषधीः) ओषधियों को (अस्मै) इस (अरिष्टतातये) रोगरहित-रोगमुक्त हो जाने के लिए (आवित्सि) मैं वैद्य जानता हूँ या उपयोग करता हूँ ॥७॥

    भावार्थ

    कुछ ओषधियाँ मानसिक रोग को दूर करनेवाली, कुछ शरीर में रस रक्त का सञ्चार करनेवाली और कुछ प्राणशक्ति देनेवाली और कुछ वीर्यप्रद वाजीकरण ओषधियाँ होती हैं, उन सबका ज्ञान और उपयोग करना वैद्य को आना चाहिये ॥७॥

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    विषय

    'अश्वावती-सोमावती - ऊर्जयन्ती - उदोजस्'

    पदार्थ

    [१] गत मन्त्र का वैद्य इस रूप में सोचता है कि मैं उस ओषधि को (आवित्सि) = सर्वथा प्राप्त करता हूँ [विद् लाभे] जो (अश्वावतीम्) = प्रशस्त इन्द्रियाश्वोंवाली है, इन्द्रियों की शक्ति को जो ठीक बनाये रखती हैं। (सोमावतीम्) = जो शरीर में सौम्यशक्ति को पैदा करनेवाली है। आग्नेय शक्ति को पैदा करनेवाले पदार्थ शरीर में कुछ क्षोभ को पैदा करते हैं, उनकी प्रतिक्रिया कभी ठीक नहीं होती। मैं उस ओषधि को प्राप्त करता हूँ जो (ऊर्जयन्तीम्) = बल व प्राणशक्ति का संचार करनेवाली है। तथा (उदोजसम्) = उत्कृष्ट ओजस्विता को प्राप्त कराती है। 'ओजस्' वह तत्त्व है, जो शरीर की शक्तियों के उत्कर्ष का कारण बनता है। [२] (सर्वाः ओषधीः) [आवित्सि ] = मैं उन सब ओषधियों को प्राप्त करता हूँ, जो (अस्मै अरिष्टतातये) = इस रोगी के लिए अहिंसा का विस्तार करनेवाली होती हैं। ये ओषधियाँ इसे नीरोग बनाकर पूर्ण आयुष्य में पहले शरीर से पृथक् नहीं होने देती । 'मा पुरा जातो मृथाः ' = यह पुरुष पूर्ण आयुष्य को भोग करके ही जाता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- ओषधियाँ 'अश्वावती, सोमावती, ऊर्जयन्ती व उदोजस्' हैं ।

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    विषय

    आरोग्यदायक ओषधियों के ४ प्रकार। अश्वावती, सोमवती, ऊर्जयन्ती, ओजस्विनी। पक्षान्तर में—राष्ट्ररक्षक सेना का गुण।

    भावार्थ

    हे विद्वान् पुरुष ! तू (अश्व-वतीम्) अश्व के तुल्य गन्ध वाली, और (सोम-वतीम्) सोम के समान रस, वीर्य, विपाक वाली, (ऊर्जयन्तीम्) बल उत्पन्न करने वाली और (उत्-ओजसम्) उत्तम पराक्रम बढ़ाने वाली ओषधि को और (सर्वाः ओषधीः) अन्यान्य समस्त ओषधियों को भी (अस्मै अरिष्ट- तातये) इस मनुष्य के आरोग्य सुख के लिये (आवित्सि) सब प्रकार से और सब स्थानों से प्राप्त कर। (२) सेनापक्ष में वह अश्वयुक्त और प्रेरक नायक से युक्त होती है उनको राष्ट्र का नाश न होने देने के लिये प्राप्त करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१—२३ भिषगाथर्वणः। देवता—ओषधीस्तुतिः॥ छन्दः –१, २, ४—७, ११, १७ अनुष्टुप्। ३, ९, १२, २२, २३ निचृदनुष्टुप् ॥ ८, १०, १३—१६, १८—२१ विराडनुष्टुप्॥ त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अश्वावतीम्) अश्ववच्छक्तिमतीमश्वगन्धादिकां (सोमावतीम्) सोम्यरसवतीम् (ऊर्जयन्तीम्) बलकारिणीम् (उदोजसाम्) उत्साहवतीम्-तथा (सर्वाः-ओषधीः) सर्वाः खल्वोषधीः (अस्मै-अरिष्टतातये) एतस्मै रोगिणे जनाय अरिष्टकरणाय रोगविमुक्तये (आवित्सि) अहं भिषग्जानामि यद्वोपयुञ्जे ॥७॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    For the recovery and rehabilitation of the sick and for his freedom from ailment in future, I know and can provide all herbal medicines, for example, Ashvavati, the herb for revival and energy, Somavati, for soothing and energising, Urjayanti for strengthening, and Udojas, exceedingly powerful for life saving, and others.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    काही औषधी मानसिक रोग दूर करणारी, काही शरीरात रस रक्ताचा संचार करणारी, काही प्राणशक्ती देणारी व काही वीर्यप्रद वाजीकरण औषधी असतात. त्या सर्वांचे ज्ञान व उपयोग वैद्याला माहीत असले पाहिजेत. ॥७॥

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