ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 23/ मन्त्र 1
ग॒णानां॑ त्वा ग॒णप॑तिं हवामहे क॒विं क॑वी॒नामु॑प॒मश्र॑वस्तमम्। ज्ये॒ष्ठ॒राजं॒ ब्रह्म॑णां ब्रह्मणस्पत॒ आ नः॑ शृ॒ण्वन्नू॒तिभिः॑ सीद॒ साद॑नम्॥
स्वर सहित पद पाठग॒णाना॑म् । त्वा॒ । ग॒णऽप॑तिम् । ह॒वा॒म॒हे॒ । क॒विम् । क॒वी॒नाम् । उ॒प॒मश्र॑वःऽतमम् । ज्ये॒ष्ठ॒ऽराज॑म् । ब्रह्म॑णाम् । ब्र॒ह्म॒णः॒ । प॒ते॒ । आ । नः॒ । शृ॒ण्वन् । ऊ॒तिऽभिः॑ । सी॒द॒ । साद॑नम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम्। ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम्॥
स्वर रहित पद पाठगणानाम्। त्वा। गणऽपतिम्। हवामहे। कविम्। कवीनाम्। उपमश्रवःऽतमम्। ज्येष्ठऽराजम्। ब्रह्मणाम्। ब्रह्मणः। पते। आ। नः। शृण्वन्। ऊतिऽभिः। सीद। सादनम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 23; मन्त्र » 1
अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 29; मन्त्र » 1
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अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 29; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथेश्वरविषयमाह।
अन्वयः
हे ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पते वयं गणानां गणपतिं कवीनां कविमुपमश्रवस्तमं ज्येष्ठराजं त्वा परमेश्वरमाहवामहे त्वमूतिभिः शृण्वन्नः सादनं सीद ॥१॥
पदार्थः
(गणानाम्) गणनीयानां मुख्यानाम् (त्वा) त्वाम् (गणपतिम्) मुख्यानां स्वामिनम् (हवामहे) स्वीकुर्महे (कविम्) सर्वज्ञम् (कवीनाम्) विपश्चिताम् (उपमश्रवस्तमम्) उपमीयते येन तच्छ्रवस्तदतिशयितम् (ज्येष्ठराजम्) यो ज्येष्ठेषु राजते तम् (ब्रह्मणाम्) महतां धनानाम् (ब्रह्मणः) धनस्य (पते) स्वामिन् (आ) (नः) अस्माकम् (शृण्वन्) (ऊतिभिः) रक्षाभिः (सीद) तिष्ठ (सादनम्) सीदन्ति यस्मिँस्तत् ॥१॥
भावार्थः
हे मनुष्या यथा वयं सर्वेषामधिपतिं सर्वज्ञं सर्वराजमन्तर्यामिनं परमेश्वरमुपास्महे तथा यूयमप्युपाध्वम् ॥१॥
हिन्दी (4)
विषय
अब उन्नीस मन्त्रवाले तेईसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में परमेश्वर का वर्णन करते हैं।
पदार्थ
हे (ब्रह्मणाम्) बड़े-बड़े धनों में (ब्रह्मणस्पते) धन के स्वामी हम लोग (गणानाम्) गणनीय मुख्य पदार्थों में (गणपतिम्) मुख्य पदार्थों के स्वामी (कवीनाम्) उत्तमबुद्धिवालों में (कविम्) सर्वज्ञ और (उपमश्रवस्तमम्) उपमा जिससे दी जाती ऐसे अत्यन्त श्रवणरूप (ज्येष्ठराजम्) ज्येष्ठ अर्थात् अत्यन्त प्रशंसित पदार्थों में प्रकाशमान (त्वा) आप परमेश्वर को (आ,हवामहे) अच्छे प्रकार स्वीकार करते हैं आप (ऊतिभिः) रक्षाओं से (शृण्वन्) सुनते हुए (नः) हम लोगों के (सादनम्) उस स्थान को कि जिसमें स्थिर होते हैं (सीद) स्थिर हूजिये ॥१॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग सबके अधिपति सर्वज्ञ सर्वराज अन्तर्यामी परमेश्वर की उपासना करते हैं, वैसे तुम भी उपासना करो ॥१॥
Bhajan
आज का वैदिक भजन 🙏 1123
ओ३म् ग॒णानां॑ त्वा ग॒णप॑तिं हवामहे क॒विं क॑वी॒नामु॑प॒मश्र॑वस्तमम् ।
ज्ये॒ष्ठ॒राजं॒ ब्रह्म॑णां ब्रह्मणस्पत॒ आ न॑: शृ॒ण्वन्नू॒तिभि॑: सीद॒ साद॑नम् ॥
ऋग्वेद 2/23/1
वसुवेद ज्ञान-अधिपति
निस्तारक रूप धनपति
ज्ञानियों में परम ज्ञानी
मुमुक्षु समूह के स्वामी
वसुवेद ज्ञान-अधिपति
आदर्शों में परम आदर्श
ज्येष्ठों में हो देदीप्यमान्
उत्तम गणों के गणपति
कवियों में कवि महान्
रक्षा करो सब ओर से
सुन लो हमारी विनती
वसुवेद ज्ञान-अधिपति
हो तुम उत्तम उपमेय
यशस्वियों में यशस्वी
दीर्घ-दर्शियों में सबसे
बढ़कर हो दीर्घ-दर्शी
हे दीप्तिमान् परमेश्वर
दे दो हमें भी सद्गति
वसुवेद ज्ञान-अधिपति
सुनकर पुकार प्रार्थना
कर दो अनूप संरक्षण
आओ हृदय- सदन में
स्वागत विराजो भगवन्
अपने प्रकाश से प्रभु
हृदयों में भर दो ज्योति
वसुवेद ज्ञान-अधिपति
निस्तारक रूप धनपति
ज्ञानियों में परम ज्ञानी
मुमुक्षु समूह के स्वामी
वसुवेद ज्ञान-अधिपति
रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
रचना दिनाँक :-
*राग :- पटदीप
*राग :-गौरी मनोहरी( कर्नाटक राग में)
शीर्षक :- वेदों में गणपति का सही स्वरूप
*तर्ज :- अनुराग लोल गात्रि (मलयालम)
Vyakhya
वेदों में गणपति का सही स्वरूप
गणों के स्वामी गणपति
दिव्य वेदज्ञान एवं अनुपम मोक्षरूपी धन के अधिपति प्रभुवर ! समूहों में अनुपम मुमुक्षु समूह के भी स्वामी परमेश्वर ज्ञानियों में परम ज्ञानी आदर्शों में परम आदर्श ज्येष्ठों में भी अपने गुण कर्म स्वभाव से देदीप्यमान तुझ पावन प्रभु का हम उपासकजन, हम भक्तजन आवाहन करते हैं। प्रभु पर हमारी पुकार अर्थात् हमारी प्रार्थना को सुनकर अपने अनुपम रक्षण- संरक्षण हो के साथ हमारे हृदय- सदन पर विराजमान होओ। ताकि हमारा हृदय सदन आप के प्रकाश से प्रकाशमान हो जाएं आपकी ज्योति से ज्योतिर्मय हो जाएं।
👆🏾वेदों में गणपति का सही स्वरूप🎧
🕉🧘♂️ईश भक्ति भजन
भगवान् ग्रुप द्वारा 🎧🙏
🕉🧘♂️ वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं🙏
विषय
गणपति प्रभु
पदार्थ
१. हमारा शरीर पंचभूतों के गण से बना है। उसके अन्दर पाँच प्राणों का एक गण है [प्राणअपान-व्यान- उदान- समान], पाँच कर्मेन्द्रियों का दूसरा गण है, पाँच ज्ञानेन्द्रियों का तीसरा, पाँच अन्तःकरण के भागों का चौथा [मन-बुद्धि-चित्त- अहंकार- हृदय] । इस प्रकार इन (गणानाम्) = गणों के (गणपतिम्) = स्वामी (त्वा) = आपको (हवामहे) = हम पुकारते हैं। आपने ही तो हमारे इन गणों का रक्षण करना है। (कवीनां कविम्) = आप कवियों के कवि हैं– महान् क्रान्तदर्शी हैं। 'वेद' आपका महान् अजरामर काव्य है । (उपमश्रवस्तमम्) = उपमा देने योग्य है ज्ञान जिनका, उनमें आप सर्वोपरि हैं। एक ऊँचे योगी ऋषि के लिए इसी प्रकार कहते हैं कि वे तो परमात्मा के समान ज्ञानी हैं 'ब्रह्म इव' । इस प्रकार आपके ज्ञान से ही किसी के ज्ञान की उपमा दी जाती है। (ज्येष्ठराजम्) = आप सबसे श्रेष्ठ राजा है। अन्य राजा थोड़े से काल के लिए प्रदेश का शासन करते हैं। आप सदा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के शासक हैं 'इन्द्रो विश्वस्य राजति' । (ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पते) = सम्पूर्ण ज्ञानों के आप पति हैं— गुरुओं के गुरु हैं— आदि गुरु हैं 'स पूर्वेषामपि गुरुः कालेनानवच्छेदात्' । २. हे प्रभो! आप (नः शृण्वन्) = हमारी प्रार्थना को सुनते हुए (ऊतिभिः) = हमारे रक्षणों के हेतु से (सादनम् आसीद) = हमारे हृदयरूप आसन पर बैठिए- हमारा हृदय आपका घर बने । हृदयस्थ आपके द्वारा हम रक्षण को प्राप्त हों। जहाँ आप हैं-वहाँ कामदेव नहीं होता। अतः हृदयों में आपके स्थित होने पर काम का स्वभावतः वहाँ प्रवेश न होगा ।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु सब गणों के पति हैं। हमारे हृदयों में स्थित हुए-हुए वे हमारा रक्षण करते हैं।
विषय
ईश्वरस्तुति, प्रार्थना।
भावार्थ
हे ( ब्रह्मणः ) महान् ऐश्वर्य, महान् संसार और वेद ज्ञान के ( पते ) पालक ! परमेश्वर ! ( गणानाम् ) गणना योग्य प्रमुखों में सब के प्रमुख, अग्रगण्य व (गणपति) उनके पालक ( कावीनाम् कविम् ) क्रान्तदर्शी, मेधावी, पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ कवि, क्रान्तदर्शी और मेधावी, और ( उपमश्रवस्तमम् ) सर्वोपमायोग्य, श्रवण करने योग्य कीर्त्ति विद्या और बल में सर्वश्रेष्ठ, ( ज्येष्ठराजं ) बड़े बड़े लोकों में भी सब से अधिक दीप्तिमान्, उनको भी प्रकाशित करने वाले ( त्वा ) आपको हम ( हवामहे ) पुकारते हैं । तू ( नः ) हमारी स्तुति ( शृण्वन् ) श्रवण करता हुआ ( ऊतिभिः ) रक्षा आदि शक्तियों सहित ( सादनं ) विराजने योग्य प्रत्येक स्थान पर ( सीद ) विराजमान है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ देवताः– १, ५,९,११, १७, १९ ब्रह्मणस्पतिः । २–४, ६–८, १०, १२–१६, १८ बृहस्पतिश्च ॥ छन्दः– १, ४, ५, १०, ११, १२ जगती । २, ७, ८, ९, १३, १४ विराट् जगती । ३, ६, १६, १८ निचृज्जगती । १५, १७ भुरिक् त्रिष्टुप् । १६ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ एकोन विंशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात ईश्वराच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.
भावार्थ
हे माणसांनो! जसे आम्ही सर्वांचा अधिपती, सर्वज्ञ, सर्वांचा राजा, अन्तर्यामी परमेश्वराची उपासना करतो तशी तुम्हीही करा. ॥ १ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
We invoke, invite and honour you Brahmana spati, as lord president of all classes, nations and republics of the peoples of the world, as highest visionary of the men of supreme vision, most renowned of all beyond comparison and imagination, highest of the brilliant rulers, lord of the knowledge and commonwealth of the world in existence. Listen to our prayer, come with all powers of protection, preservation and promotion of the peace and prosperity of the world and grace the presidential seat in the hall of nations.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The multi-faced God is adored.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
We are owners of great wealth and important substances. We invoke the Omniscient, Unmatched and the Great God Who always is in the mind of noble persons. We pray to Him to seek His protection and to make Him attentive to our prayers permanently.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men ! the way we pray to the Great Master, who is Omniscient and Omnipresent God, let yon also follow the same path and pray to Him.
Foot Notes
(गणानाम् ) गणनीयानां मुख्यानाम्। = Among the important substances. (गणपतिम्) मुख्यानां स्वामिनम्। = Master of great persons. (हवामहे) स्वीकुर्महे। = We accept. ( कविम् ) सर्वज्ञम् =All-knower. ( कवीनाम् ) विपश्चिताम् । = Of the wise persons. ( उपमश्रवस्तमम् ) उपमीयते येनतच्छ्रवस्तदतिशयितम्। = Unmatched. (ज्येष्ठराजम् ) यो ज्येष्ठेषु राजते तम् । = Shining among the great. (ब्रह्मणाम् ) महतां धनानाम् = Of the great wealth. (सादनम् ) सीदन्ति यस्मिँस्तत् । = (Divine) Seat.
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