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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 14 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 14/ मन्त्र 1
    ऋषिः - ऋषभो वैश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आ होता॑ म॒न्द्रो वि॒दथा॑न्यस्थात्स॒त्यो यज्वा॑ क॒वित॑मः॒ स वे॒धाः। वि॒द्युद्र॑थः॒ सह॑सस्पु॒त्रो अ॒ग्निः शो॒चिष्के॑शः पृथि॒व्यां पाजो॑ अश्रेत्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । होता॑ । म॒न्द्रः । व॒दथा॑नि । अ॒स्था॒त् । स॒त्यः । यज्वा॑ । क॒विऽत॑मः । सः । वे॒धाः । वि॒द्युत्ऽर॑थः । सह॑सः । पु॒त्रः । अ॒ग्निः । शो॒चिःऽके॑शः । पृ॒थि॒व्याम् । पाजः॑ । अ॒श्रे॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ होता मन्द्रो विदथान्यस्थात्सत्यो यज्वा कवितमः स वेधाः। विद्युद्रथः सहसस्पुत्रो अग्निः शोचिष्केशः पृथिव्यां पाजो अश्रेत्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। होता। मन्द्रः। विदथानि। अस्थात्। सत्यः। यज्वा। कविऽतमः। सः। वेधाः। विद्युत्ऽरथः। सहसः। पुत्रः। अग्निः। शोचिःऽकेशः। पृथिव्याम्। पाजः। अश्रेत्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
    अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 14; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ शिल्पविद्याविषयमाह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या यो मन्द्रः सत्यो यज्वा होता कवितमो वेधा अस्ति स विदथान्यास्थात् विद्युद्रथः सहसस्पुत्रः शोचिष्केशोऽग्निः पृथिव्यां पाजोऽश्रेत्तस्मादेव युष्माभिः शिल्पविद्या सङ्ग्राह्या ॥१॥

    पदार्थः

    (आ) समन्तात् (होता) सकलविद्यादाता (मन्द्रः) कमनीयो हर्षयिता (विदथानि) विज्ञानानि (अस्थात्) तिष्ठेत् (सत्यः) सत्सु साधुः (यज्वा) सङ्गन्ता (कवितमः) अतिशयेन विद्वान् (सः) (वेधाः) मेधावी। वेधा इति मेधाविना०। निघं० ३। १५। (विद्युद्रथः) विद्युता चालितो रथो विद्युद्रथः (सहसः) बलयुक्तस्य वायोः (पुत्रः) सन्तान इव (अग्निः) (शोचिष्केशः) शोचींषि तेजांसि केशा इव ज्वाला यस्य सः (पृथिव्याम्) (पाजः) बलम् (अश्रेत्) श्रयेत् ॥१॥

    भावार्थः

    ये मनुष्याः पदार्थविज्ञानानि प्राप्य हस्तक्रियया यन्त्रकला निष्पाद्य विद्युदादिचाल्यानि यानानि साधयेयुस्तेऽत्यन्तं सुखमाप्नुयुः ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब सात ऋचावाले चौदहवें सूक्त का आरम्भ है। इसके प्रथम मन्त्र से शिल्पविद्या विषय को कहते हैं।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जो (मन्द्रः) अच्छे और प्रसन्न कराने (सत्यः) श्रेष्ठ पुरुषों का आदर करने (यज्वा) मेल करने और (होता) सब विद्या का देनेवाला (कवितमः) अत्यन्त विद्वान् (वेधाः) बुद्धिमान् पुरुष है (सः) वह (विदथानि) विज्ञानों को (आ) (अस्थात्) प्राप्त होकर उत्पन्न करे (विद्युद्रथः) बिजुली से रथ चलानेवाला (सहसः) बलयुक्त वायु के (पुत्रः) सन्तान के सदृश (शोचिष्केशः) केशों के सदृश तेजों को धारणकर्त्ता (अग्निः) अग्नि के तुल्य तेजस्वी इस (पृथिव्याम्) पृथिवी में (पाजः) बल का (अश्रेत्) आश्रय करे, उससे विमानरचना और शिल्पविद्या में निपुण होइये ॥१॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य पदार्थविद्या में कुशल होकर हाथ की कारीगरी से यन्त्रकला सिद्ध करके बिजुली से चलाने योग्य वाहनों को रचें, तो वे अत्यन्त सुख को प्राप्त होवें ॥१॥

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    विषय

    सत्यः-यज्वा

    पदार्थ

    [१] प्रभु (विदथानि) = ज्ञानयज्ञों में (आ अस्थात्) = सर्वथा प्रतिष्ठित होते हैं। हम मिलकर ज्ञानचर्चा करें तो यह प्रभु का पूजन होता है और इन ज्ञानयज्ञों में ही हमें प्रभु की प्राप्ति होती है। उन प्रभु की, जो कि (होता) = हमें सब कुछ देनेवाले हैं। (मन्द्रः) = आनन्दस्वरूप हैं, हमें आनन्द प्राप्त करानेवाले हैं। (सत्यः) = सत्यस्वरूप हैं। (यज्वा) = इस सृष्टियज्ञ को करनेवाले हैं। (कवितमः) = सर्वज्ञ हैं। (सः) = वे प्रभु ही (वेधा:) = विधाता व सब सृष्टि के निर्माता हैं । [२] (विद्युद्रथः) = वे प्रभु हमारे इस शरीर रूप रथ को विशेषरूप से (द्योतित) = करनेवाले हैं। (सहसः पुत्रः) = बल के [पुतले =] पुञ्ज हैं। (अग्नि:) = हमें आगे ले चलनेवाले हैं। (शोचिष्केशः) = ज्योतिर्मय दीप्त-ज्ञानरश्मियोंवाले हैं। ये प्रभु (पृथिव्याम्) = इस पृथिवीरूप शरीर में (पाजः) = शक्ति को (अश्रेत्) = [श्रयते प्रापयति सा०] प्राप्त कराते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम ज्ञानयज्ञों में प्रभु का पूजन करनेवाले बनें। हमारा जीवन सत्यवाला, यज्ञोंवाला व आनन्दमय होगा। हमें किसी आवश्यक चीज की कमी न रहेगी- अन्त तक हम शक्तिशाली बने रहेंगे।

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    विषय

    विद्वान् गुरु और परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    (होता) विद्वानों को आदर पूर्वक बुलाने, विद्यार्थियों को सब विद्याओं का दान करने हारा, (मन्द्रः) स्वयं कमनीय गुणों से युक्त, अन्यों को प्रसन्न करने हारा (सत्यः) सत्य धर्माचरण से युक्त, सज्जनों का हितकारी, (यज्वा) दानशील, सत्संगी एवं मित्रभावसे रहने हारा, (कवितमः) बहुत दूरदर्शी, (सः) वह (वेधाः) सर्व कार्य करने में कुशल, मेधावी होकर (विदथानि) यज्ञों, लाभ करने योग्य विज्ञानों को (आ अस्थात्) अभ्यास करे। वह (अग्निः) अग्नि के समान तेजस्वी अग्रणी नायक (विद्युत् रथः) विद्युत् से चलने वाले रथ का स्वामी, वा विद्युत् के समान रमणीय स्वरूप, कान्तिमान (सहसस्पुत्रः) बलवान् पुरुष का पुत्र (शोचिष्केशः) तेजों को सिंह के बालों के समान धारण करने वाला होकर (पृथिव्यां) अन्तरिक्ष में सूर्य के समान पृथिवी पर (पाजः) बल, ऐश्वर्य (अश्रेत्) धारण करे। (२) परमेश्वर भी (वेधाः) समस्त जगत् का कर्त्ता, सर्व-सुखैश्वर्य का दाता, अनन्दघन, सत्य, सर्व मित्र, सबसे बड़ा कवि है। वह विद्युत् के समान तेजोमय, रसमय, बल का पुतला, ज्ञानी, दीप्तिमय होकर (पृथिव्यां) विस्तृत महती प्रकृति में अपना बल आधान करता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषभो वैश्वामित्र ऋषिः। अग्निर्देवता॥ छन्दः– १, ७ निचृत् त्रिष्टुप्। २, ५ त्रिष्टुप्। ३, ४ विराट् त्रिष्टुप्। ६ पङ्किः॥ सप्तर्चं सूक्तम॥

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    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात अग्नी व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे हे जाणावे.

    भावार्थ

    जी माणसे पदार्थविद्येत कुशल असून हस्तक्रियेने यंत्रकला सिद्ध करून विद्युतद्वारे चालविण्यायोग्य वाहने तयार करतात, ती अत्यंत सुखी होतात. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Versatile leader, messenger of joy, Agni sustains the projects of creation and production. Truest of the true, master of unifying applications, he is an imaginative thinker and a skillful creator. Child of energy itself, he travels by chariots run by electricity. His hair radiate fire and he brings the light of heaven to illuminate the planes of earth.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Particulars about technology are stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! the learned leader is desirable and exhilarator, true, unifier, giver of all knowledge, the most enlightened, and wise. He stands for the propagation of true knowledge. The Agni which is the mover of the tram run by power, is the product of mighty wind and possesses many hairs in the form of flames. It manifests its power on the earth. With the help of this Agni (in the form of the fire and electricity), you could acquire the knowledge of art and industry.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those persons who have acquired the knowledge of the composition of various objects and have manufactured with dexterity various machines, they accomplish the vehicles driven by electricity and joy much happiness.

    Foot Notes

    (मन्द्रः) कमनियो हर्षयिता। = Desirable and exhilarator-giver of great joy. (पाज:) बलम्। = Strength. (वेधा:) मेधावी । वैधा इति मेधाविनाम (N. G. 3, 15 ) = (विद्युद्रथः) विद्युता चलितो रथः। = Car train or tram etc. driven by electricity. विद्युद्रथ: is a significant word clearly denoting a car; train or tram, operated by electricity/power. But Prof. Wilson has translated it as "whose Chariot is the lightning", and Griffith as "whose car is lightning". Rishi Dayananda Sarasvati's translation is simple, straight-forward and correct. The epithet used for Agni in the mantra is कवितम्:. Both Prof. Wilson and Griffith have translated it as "The most wise person."

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