ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 29/ मन्त्र 1
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - अग्निः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
अस्ती॒दम॑धि॒मन्थ॑न॒मस्ति॑ प्र॒जन॑नं कृ॒तम्। ए॒तां वि॒श्पत्नी॒मा भ॑रा॒ग्निं म॑न्थाम पू॒र्वथा॑॥
स्वर सहित पद पाठअस्ति॑ । इ॒दम् । अ॒धि॒ऽमन्थ॑नम् । अस्ति॑ । प्र॒ऽजन॑नम् । कृ॒तम् । ए॒ताम् । वि॒श्पत्नी॑म् । आ । भ॒र॒ । अ॒ग्निम् । म॒न्था॒म॒ । पू॒र्वऽथा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्तीदमधिमन्थनमस्ति प्रजननं कृतम्। एतां विश्पत्नीमा भराग्निं मन्थाम पूर्वथा॥
स्वर रहित पद पाठअस्ति। इदम्। अधिऽमन्थनम्। अस्ति। प्रऽजननम्। कृतम्। एताम्। विश्पत्नीम्। आ। भर। अग्निम्। मन्थाम। पूर्वऽथा॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 29; मन्त्र » 1
अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 32; मन्त्र » 1
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अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 32; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विद्युदग्निवायुभ्यां विद्वांसः किं किं साधयन्तीत्याह।
अन्वयः
हे विद्वन् ! यदीदमधिमन्थनमस्ति यच्च प्रजननं कृतमस्ति ताभ्यामेतां विश्पत्नीं वयं पूर्वथाऽग्निं मन्थामेवाऽऽभर ॥१॥
पदार्थः
(अस्ति) (इदम्) (अधिमन्थनम्) उपरिस्थं मन्थनम् (अस्ति) (प्रजननम्) प्रकटनम् (कृतम्) (एताम्) (विश्पत्नीम्) प्रजायाः पालिकाम् (आ) (भर) समन्ताद्धर (अग्निम्) (मन्थाम) (पूर्वथा) पूर्वैरिव ॥१॥
भावार्थः
ये मनुष्या उपर्य्यधस्थाभ्यां मन्थनाभ्यां सङ्घर्षणेन विद्युतमग्निं जनयेयुस्ते प्रजापालिकां शक्तिं लभन्ते यथा पूर्वैः शिल्पिभिः क्रिययाऽग्न्यादिविद्या संपादिता भवेत्तेनैव प्रकारेण सर्व इमां सङ्गृह्णीयुः ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब तृतीय मण्डल में सोलह ऋचावाले उनतीसवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र से विद्युत् अग्नि और वायु से विद्वान् लोग किस-किस कर्म को सिद्ध करते हैं, इस विषय को कहा है।
पदार्थ
हे विद्वान् पुरुष ! जो (इदम्) यह (अधिमन्थनम्) ऊपर के भाग में वर्त्तमान मथने का वस्तु (अस्ति) विद्यमान है और जो (प्रजननम्) प्रकट होना (कृतम्) किया (अस्ति) है, उन दोनों से (एताम्) इस (विश्पत्नीम्) प्रजाजनों के पालन करनेवाली को हम लोग (पूर्वथा) प्राचीन जनों के तुल्य (अग्निम्) विद्युत् को (मन्थाम्) मन्थन करें और (आ) (भर) सब ओर से आप लोग ग्रहण करो ॥१॥
भावार्थ
जो मनुष्य ऊपर और नीचे के भाग में स्थित मथने की वस्तुओं के द्वारा घिसने से बिजुलीरूप अग्नि को उत्पन्न करें, वे प्रजाओं के पालन करनेवाले सामर्थ्य को प्राप्त होते हैं और जैसे पूर्व काल के कारीगरों ने शिल्पक्रिया से अग्नि आदि सम्बन्धिनी विद्या की सिद्धि की हो, उसही प्रकार से सम्पूर्ण जन इस अग्निविद्या को ग्रहण करें ॥१॥
विषय
[१] जैसे दूध का जमा रूप दही 'मक्खन' की उत्पत्ति का आधार होती है तथा मथानी [मन्थनदण्ड] उस मक्खन की प्राप्ति का साधन बनती है, इसी प्रकार (इदं अधिमन्थनं अस्ति) = यह बुद्धि [= अन्तःकरण] तो उत्कृष्ट मन्थनदण्ड है तथा सृष्टि के प्रारम्भ में दिये जानेवाला यह गत सूक्त का पुरोडाश [= वेदज्ञान] (प्रजननं कृतं अस्ति) = प्रजनन किया गया है। यह वेदज्ञान ही परमात्म-प्रकाश का आधार बनता है 'सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति' । [२] बुद्धिरूप मन्थनदण्ड द्वारा इस वेदज्ञान रूप दधि का मन्थन करने से ज्ञानप्रकाश की उत्पत्ति होती है। (एताम्) = इस (विश्पत्नीम्) = प्रजाओं की पालिका वेदविद्या को आभर तू अपने में भरनेवाला बन। इस वेदज्ञान से हम पूर्वथा पहले की तरह (अग्निम्) = उस अग्नि नामक प्रभु को (मन्थाम) = मथित करें। इस वेदज्ञान रूप दधि के मन्थन से प्रभु प्रकाश रूप 'नवनीत' को हम प्राप्त करते हैं ।
पदार्थ
भावार्थ– वेदवाणी रूप दधि के बुद्धि रूप मन्थनदण्ड से मन्थन करने पर परमात्म-प्रकाशरूप नवनीत (मक्खन) की प्राप्ति होती है ।
विषय
अग्नि के समान प्रजा और आत्मा के शरीरधारक होने और उत्पन्न होने का वर्णन। अग्नि-मन्थन, प्राण-मन्थन, और प्रजोत्पत्ति की समानता। पक्षान्तर में सैन्य-मन्थन।
भावार्थ
अग्नि की उत्पत्ति के समान प्रजा और आत्मा के शरीर-धारक उत्पन्न होने का वर्णन। (अधिमन्थनं प्रजननं विश्पतीम्) जिस प्रकार अग्नि को मन्थन द्वारा उत्पन्न करने के लिये ‘अधिमन्थन’ अर्थात् मन्थन दण्ड के ऊपर रखने का काष्ठ होता है उसी प्रकार (प्रजननं) मन्थन दण्ड के नीचे का काष्ठ ‘प्रजनन’ अर्थात् अग्नि-उत्पादक काष्ठ (कृतम्) बनाया जाता है। इसी प्रकार परमेश्वर ने ही (इदम्) यह पुरुष-शरीर (अधिमन्थनम्) स्त्री के हृदय को मथन कर देने वाले भावों पर अधिकार करने वाला, उनका लक्ष्यरूप (कृतम् अस्ति) बनाया है। और (इदम्) यह विशेष अङ्ग भी परमेश्वर ने ही (प्रजनने) उत्तम सन्तान उत्पन्न करने का साधन (कृतम्) बनाया है। हे मनुष्य तू (एताम्) उस, दूर देश में विद्यमान अथवा (आ-इताम्) स्वयं इच्छा पूर्वक प्राप्त (विपत्नीम्) गर्भ में प्रविष्ट प्रजाओं को भलीभांति पालन करने में समर्थ स्त्री को (आ भर) उत्तम रीति से प्राप्त कर और (आ भर) सब प्रकार से पालन पोषण कर। (पूर्वथा) हम लोग पूर्व पुरुषों के समान ही, जिस प्रकार (अग्निं मन्थाम) मथन, घर्षण द्वारा अग्नि या विद्युत् को उत्पन्न किया जाता है उसी प्रकार (अग्निम्) आगे भविष्य में प्राप्त होने योग्य और अगले वंश के चलाने वाले पुत्र को (मन्थाम) ‘मथन’ अर्थात् एक दूसरे के हृदयादि को प्रेमपूर्वक स्वीकार कर उत्तम सन्तान उत्पन्न करें। (२) अध्यात्म में ‘प्राण’ अधिमन्धन है, ‘अपान’ प्रजनन काष्ठवत् है। भीतर प्रविष्ट आत्मा या प्राणगण की पालिका या उनकी ग्राह्य विषयों तक जाने वाली बुद्धि या चेतना विश्पत्नी काष्ठ के समान है उनसे प्रकाशमय आत्मा का प्राणायामादि साधनों द्वारा प्रादुर्भाव करें (३) राष्ट्रपक्ष में—शत्रु मथनकारी सैन्य ‘अधिमन्थन’ है। स्वराष्ट्र उत्तम प्रजा को उत्पन्न करने वाला ‘प्रजनन’ है। प्रजाओं का पालन करने वाली नीति, या राजसभा विश्पत्नी है। इसके आश्रय पर सब राजकर्त्ताजन अपने अग्रणी को परस्पर विचार संघर्षो के द्वारा प्राप्त करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ १–४, ६–१६ अग्नि। ५ ऋत्विजोग्निर्वा देवता॥ छन्दः—१ निचृदनुष्टुप्। ४ विराडनुष्टुप्। १०, १२ भुरिगनुष्टुप्। २ भुरिक् पङ्क्तिः। १३ स्वराट् पङ्क्तिः। ३, ५, ६ त्रिष्टुप्। ७, ९, १६ निचृत् त्रिष्टुप्। ११, १४, १५ जगती ॥ षडदशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात अग्नी, वायू व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्तात सांगितलेल्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
भावार्थ
जी माणसे वर व खाली स्थित वस्तूंचे मंथन करून घर्षणाने विद्युतरूपी अग्नी उत्पन्न करतात, ते प्रजेचे पालन करण्याचे सामर्थ्य बाळगतात. जशी पूर्वीच्या काळी कारागिरांनी शिल्पविद्येने अग्नी इत्यादी संबंधी विद्या सिद्ध केलेली असेल, त्याच प्रकारे संपूर्ण लोकांनी ही विद्या ग्रहण करावी. ॥ १ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
This is the arani-wood, chumer of fire. This is the act of churning. And this is the fire generated. Hold on this apparatus of fire generation, sustainer of humanity, so that we may produce the fire as ever before.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What do the enlightened persons accomplish with energy/electricity is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned person ! here the upper part of the (apparatus of attrition) fire sticks are ready to generate the electric fire. Maintain this energy which protects the people. Let us generate this electricity by rubbing as is done by the wise persons since the ancient times.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The people by rubbing the upper and the lower part of the rubbing sticks or rods etc. generate the electric fire, and attain the energy that protects people. As the ancient technologists and scientists acquired the knowledge of the science of Agni (fire and electricity etc.), so all should acquire it by the same method or technique.
Foot Notes
(विश्वपत्नीम् ) प्रजाया: पालिकाम् । विश इति मनुष्यनाम (N.G. 2, 3) पत्नी पा रक्षणे (अदा ० ) = The energy that protects the people.
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