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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 37 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 37/ मन्त्र 1
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    वार्त्र॑हत्याय॒ शव॑से पृतना॒षाह्या॑य च। इन्द्र॒ त्वा व॑र्तयामसि॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वार्त्र॑ऽहत्याय । शव॑से । पृ॒त॒ना॒ऽसह्या॑य । च॒ । इन्द्र॑ । त्वा॒ । व॒र॒या॒म॒सि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वार्त्रहत्याय शवसे पृतनाषाह्याय च। इन्द्र त्वा वर्तयामसि॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वार्त्रऽहत्याय। शवसे। पृतनाऽसह्याय। च। इन्द्र। त्वा। वर्त्तयामसि॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 37; मन्त्र » 1
    अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 21; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ राजगुणानाह।

    अन्वयः

    हे इन्द्र ! यथा वयं वार्त्रहत्याय सूर्यमिव पृतनाषाह्याय शवसे त्वा वर्त्तयामसि तथा त्वं चास्मानेतस्मै वर्त्तय ॥१॥

    पदार्थः

    (वार्त्रहत्याय) वृत्रहत्याया इदं तस्मै (शवसे) बलाय (पृतनाषाह्याय) पृतना सह्या येन तस्मै (च) (इन्द्र) सेनाधीश (त्वा) त्वाम् (आ) (वर्त्तयामसि) वर्त्तयामः ॥१॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। युद्धविद्याशिक्षकैः सेनाध्यक्षा भृत्याश्च सम्यक् शिक्षणीया यतो ध्रुवो विजयः स्यात् ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब ग्यारह ऋचावाले सैंतीसवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में राजा के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) सेना के अधीश ! जैसे हम लोग (वार्त्रहत्याय) मेघ के नाश करने के लिये जो बल उसके लिये सूर्य के समान (पृतनाषाह्याय) संग्राम के सहनेवाले (शवसे) बल के लिये (त्वा) आपका (वर्त्तयामसि) आश्रय करते हैं वैसे आप (च) भी हम लोगों को इस बल के लिये वर्त्तो ॥१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। युद्ध करने की विद्या के शिक्षकों को चाहिये कि सेनाओं के अध्यक्ष और नोकरों को उत्तम प्रकार शिक्षा देवैं, जिससे निश्चित विजय होवै ॥१॥

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    विषय

    अन्तः व बाह्य शत्रुओं का अभिभव

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = सर्वशक्तिमन्, सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो ! हम (वार्त्रहत्याय) = वृत्रहननरूप कार्य के लिए (शवसे) = बल प्राप्ति के लिए (त्वा) = आपको (वर्तयामसि) = प्रवृत्त करते हैं। आपने ही इन ज्ञान की आवरणभूत वासनाओं का विनाश करना है। हमारे लिए तो इस काम का विनाश असम्भव-सा प्रतीत होता है। आपकी कृपा होगी और हम वासना को जीत पाएँगे । [२] हे प्रभो ! (पृतनाषाह्याय च) = परायी सेनाओं के अभिभव के लिए भी हम आपको ही प्रवृत्त करते हैं। इन शत्रु-सैन्यों पर भी आपकी कृपा से ही हमने विजय पानी है। चाहे अन्तः-शत्रु हों, चाहे बाह्य, प्रभु से शक्ति पाकर ही हम इन्हें जीतते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु का स्मरण हमें वह शक्ति देता है, जिससे कि हम अन्तः व बाह्य- शत्रुओं को जीत पाते हैं।

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    विषय

    शत्रु दलन और विजयार्थ सेनापति का स्थापन।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) शत्रुहन्तः ! सेनापते ! (त्वा) तुझको हम (वार्त्रहत्याय) बढ़ते हुए और सत्कर्म से रोकने वाले, विघ्नकारी या नगरों को घेरने वाले शत्रुओं वा दुष्ट पुरुषों के हनन करने वाले और (पृतना-साह्याय) सेनाओं को पराजित करने में समर्थ (शवसे) बल को प्राप्त करने और बढ़ाने के लिये (आ वर्त्तयामसि) प्रवृत्त करते और सर्वत्र स्थापित करते हैं। (२) प्रभो ! विघ्ननिवारण, शत्रुविजय और बलवृद्धि के लिये तेरा पुनः २ चिन्तन करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्द:– १, ३, ७ निचृद्गायत्री। २, ४-६,८-१० गायत्री। ११ निचृदनुष्टुप्॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    विषय

    या प्रकारे राजा व प्रजेच्या कामाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्तार्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. युद्धविद्या शिक्षकांनी सेनाध्यक्ष व नोकरांना उत्तम प्रकारे शिक्षण द्यावे, ज्यामुळे निश्चित विजय मिळेल. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, lord of honour and valour, commander of the forces of life and freedom, we pledge to abide by you and exhort you for breaking of the clouds of rain, for the destruction of darkness and evil, for rousing courage and valour, and for challenging and beating back the enemy in battle. And we pray, inspire and exhort us too with full power and preparation.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of a king are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O Indra (commander of the army)! we urge upon you to annihilate the enemies, like the sun destroying the clouds, in order to overpower the hostile armies. So you should encourage us also to do so.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    It is the duty of the persons in charge of military training, to train well the commanders and their combatants, in order to ensure the victory.

    Foot Notes

    (इन्द्र:) सेनाधीशः । सेनेन्द्रस्य पत्नी । सेना तस्मात् स्पष्टं द्यौत्यतेयत् सेनापतिरिन्द्र: (Gopatha Brahman, 3, 2, 9) = Commander- in-chief of the army. (वार्त्रहत्याय) वृत्तहत्याया इदं तस्मै । वृत्र इति मेघनाम (NG 1, 10) मेघ इव शत्रुः । पाप्मा वै वृत्रः ( Stph 11, 1, 5, 7) वृत्रं खलु वा एष हन्ति यः संग्रामं जयति (Maitra 2, 2, 10) =For destroying the foes, as the sun destroys the clouds.

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