ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 42/ मन्त्र 1
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
उप॑ नः सु॒तमा ग॑हि॒ सोम॑मिन्द्र॒ गवा॑शिरम्। हरि॑भ्यां॒ यस्ते॑ अस्म॒युः॥
स्वर सहित पद पाठउप॑ । नः॒ । सु॒तम् । आ । ग॒हि॒ । सोम॑म् । इ॒न्द्र॒ । गोऽआ॑शिरम् । हरि॑ऽभ्याम् । यः । ते॒ । अ॒स्म॒ऽयुः ॥
स्वर रहित मन्त्र
उप नः सुतमा गहि सोममिन्द्र गवाशिरम्। हरिभ्यां यस्ते अस्मयुः॥
स्वर रहित पद पाठउप। नः। सुतम्। आ। गहि। सोमम्। इन्द्र। गोऽआशिरम्। हरिऽभ्याम्। यः। ते। अस्मऽयुः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 42; मन्त्र » 1
अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 5; मन्त्र » 1
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अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 5; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विद्वद्विषयमाह।
अन्वयः
हे इन्द्र ! त्वं हरिभ्यां युक्तेन रथेन यस्ते रथोऽस्मयुर्वर्त्तते तेन हरिभ्यां युक्तेन नः सुतं सोममुपागहि ॥१॥
पदार्थः
(उप) (नः) अस्माकम् (सुतम्) सुसाधितम् (आ) (गहि) समन्तात् प्राप्नुहि (सोमम्) ओषधिगणमिवैश्वर्य्यम् (इन्द्र) बह्वैश्वर्य्ययुक्त (गवाशिरम्) गावोऽश्नन्ति यं तम् (हरिभ्याम्) अश्वाभ्यां युक्तेन रथेन (यः) (ते) तव (अस्मयुः) आत्मनोऽस्मानिच्छुरिव ॥१॥
भावार्थः
त एव सर्वेषां सुहृदः सन्ति ये स्वैश्वर्येण सर्वानामन्त्र्य सत्कुर्वन्ति ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब नव ऋचावाले बयालीसवें सूक्त का आरम्भ है। इसके प्रथम मन्त्र में विद्वान् के गुणों को कहते हैं।
पदार्थ
हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्ययुक्त ! आप (हरिभ्याम्) घोड़ों से युक्त रथ से (यः) जो (ते) आपका वाहन (अस्मयुः) अपने को हम लोगों की इच्छा करता हुआ सा वर्त्तमान है, घोड़ों से युक्त उस रथ से (नः) हम लोगों के (सुतम्) उत्तम प्रकार सिद्ध (सोमम्) ओषधिगणों के सदृश ऐश्वर्य्य को (उप, आ, गहि) समीप में सब प्रकार प्राप्त हूजिये ॥१॥
भावार्थ
वे लोग ही सब लोगों के मित्र हैं, कि जो लोग अपने ऐश्वर्य्य से सब लोगों को बुला कर सत्कार करते हैं ॥१॥
विषय
गवाशिर् सोम
पदार्थ
[१] हे इन्द्र हमारे सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो ! (नः) = हमारे (गवाशिरम्) = [गां श्रीणाति = to cook, गो= A ray of Light या सरस्वती] ज्ञानरश्मियों को परिपक्व करनेवाले (सुतं सोमं उप) = उत्पन्न हुए हुए सोम के समीप (आगहि) = आइये, अर्थात् जब हम इस सोम का [वीर्य का] शरीर में स्थापन करें, तो यह सोम हमारे ज्ञान को परिपक्व करनेवाला हो और हमें आपकी प्राप्ति करानेवाला हो। [२] हे प्रभो ! यह सोम वह है (यः) = जो (ते) = आपका होता हुआ (अस्मयुः) = हमारी कामनावाला होता है। सोम आप द्वारा उत्पादित हुआ है, इससे ही हमारा सारा हित सिद्ध होता है। आप (हरिभ्याम्) = उत्तम इन्द्रियाश्वों के साथ हमें प्राप्त होइये। आपकी कृपा से हमारे इन्द्रियाश्व उत्तम हों ।
भावार्थ
भावार्थ - रक्षित हुआ हुआ सोम हमारे ज्ञान को परिपक्व करता है और हमारे इन्द्रियाश्वों को सबल बनाता है।
विषय
सोम इन्द्र के सम्बन्ध और उनके नाना रहस्य।
भावार्थ
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! तू (नः) हमारे (गवाशिरम्) गौओं, पशु या जीवों के खाने योग्य (सुतम् सोमम्) उत्पन्न ‘सोम’ अर्थात् ओषधियों के समान (गवाशिरम्) प्रजाओं द्वारा उपभोग योग्य वा (गवाशिरम्) गौ पृथिवी में स्थित (सुतम् सोमम्) उत्पन्न हुए ऐश्वर्य को (यः ते) जो तेरा (अस्मयुः) हमें चाहने वाला, हमारा हितकारी रथ आदि है उससे (हरिभ्यां) वेगवान् अश्वों से (नः आगहि) हमें प्राप्त हो। आचार्य पक्ष में—(सुतं सोमं) पुत्र तुल्य सौम्य शिष्य जो (गवाशिरम्) वेदवाणी को व्याप रहा है उसको ज्ञान और कर्ममार्ग में ले जाने वाले उपायों सहित प्राप्त हो। जो शिष्य (ते) तेरा और (अस्मयुः) हम मां बाप को भी चाहने वाला हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः- १, ४-७ गायत्री। २, ३, ८, ९ निचृद्गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात इंद्र, विद्वान व सोम यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे.
भावार्थ
तेच लोक सर्व लोकांचे मित्र असतात जे लोक आपल्या धन-ऐश्वर्याने सर्व लोकांना आमंत्रित करून त्यांचा सत्कार करतात. ॥ १ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, lord of power and honour, come hither to our soma yajna and taste our soma seasoned with cow’s milk. Come by your chariot drawn by horses, self- programmed to reach us.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of learned persons are told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
Come O Indra-the wealthy king! to this our well-prepared Soma juice (essence of the invigorating herbs). It is mixed with milk in your car with your horses yoked to in which is favorably disposed to us. Partake also of the wealth which is beneficent like the Soma juice. The cows also are benefited by it. The residue of it is used to feed the cows well.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
They are the friends of all who invite all to share their wealth and thus show respect to them.
Foot Notes
(सोमम् ) ओषधिगणमिवैश्वय्र्यम् = Wealth which is like the essence of various herbs and drugs. ( गवाशिरम् ) गावोऽश्नन्ति यं तम् = Which is partaken of by the cows i. e. which (wealth) is used for properly feeding the cows.
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